राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और साहित्य

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मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय

मैथिलीशरण गुप्त आधुनिक हिंदी काव्य के निर्माता माने जाते हैं। ‘आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी’ की प्रेरणाशक्ति और मार्गदर्शन से उन्होंने खड़ी बोली को अपनी रचनाओं का माध्यम बनाया और अपनी कविता के द्वारा खड़ी बोली को एक काव्य-भाषा के रूप में निर्मित करने में अथक प्रयास किया। क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ ने उन्हें राष्ट्रकवि की उपमा दी थी। वहीं 03 अगस्त को उनकी जयंती के उपलक्ष्य में ‘कवि दिवस’ मनाया जाता है। उन्हें हिंदी काव्य में अपना विशेष योगदान देने के लिए भारत सरकार द्वारा ‘पद्म भूषण’ सम्मान से सम्मानित किया जा चुका है। इस लेख में मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय और उनकी प्रमुख रचनाओं की जानकारी दी गई है।

नाम मैथिलीशरण गुप्त
जन्म 3 अगस्त, 1866
जन्म स्थान चिरगांव, झांसी जिला, उत्तर प्रदेश 
पिता का नाम सेठ रामचरण दास 
माता का नाम काशी बाई 
पेशा साहित्यकार, स्वतंत्रता सेनानी 
भाषा खड़ी बोली,  ब्रजभाषा 
विधाएँ काव्य, नाटक 
काव्य-रचनाएँ रंग में भंग, जयद्रथ-वध, शकुंतला, पंचवटी व उर्मिला आदि।  
गीतिनाट्य तिलोत्तमा, चंद्रहास, अनध, गृहस्थ गीता   
पुरस्कार एवं सम्मान “पद्मभूषण”, “हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार”, “मंगला प्रसाद पारितोषिक” आदि। 
निधन 12 दिसंबर, 1964

उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले में हुआ था जन्म

आधुनिक हिंदी काव्य के प्रतिष्ठित कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1866 को उत्तर प्रदेश के झांसी जिले के निकट चिरगांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘सेठ रामचरण दास’ व माता का नाम ‘काशी बाई’ था। माना जाता है कि उनके पिता भी एक कवि थे और ‘कनकलता’ उपनाम से कविता किया करते थे। 

मैथिलीशरण गुप्त की शिक्षा 

मैथिलीशरण गुप्त की शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई जहाँ उन्होंने हिंदी, बांग्ला और संस्कृत का अध्ययन किया। इसके बाद वह विद्यालय भी गए लेकिन पढ़ाई से ज्यादा उनका मन खेल-कूद और पतंग उड़ाने में लगता था इसलिए औपचारिक शिक्षा अधूरी रह गई।

साहित्य जगत के ‘दद्दा’

मैथलीशरण गुप्त का अल्प आयु में ही साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो चुका था। वहीं, वर्ष 1912 में उनकी श्रेष्ठ काव्य रचनाओं में से एक ‘भारत-भारती’ के लिए उन्हें राष्ट्रपिता ‘महात्मा गांधी’ ने ‘राष्ट्रकवि’ की उपाधि से अलंकृत किया था। इस काव्य रचना का लोगों पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा था। बता दें कि साहित्य जगत में मैथलीशरण गुप्त को ‘दद्दा’ नाम से संबोधित किया जाता था। 

खड़ी बोली के विकास में दिया अहम योगदान 

मैथलीशरण गुप्त जब अनुपम काव्य का सृजन कर रहे थे उस समय ब्रजभाषा को काव्य भाषा के रूप में अधिक महत्व दिया जाता है। किंतु उन्होंने खड़ी बोली को अपनी काव्य की भाषा बनाया और उसे समृद्ध किया। 

मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएं  

मैथिलीशरण गुप्त ने आधुनिक हिंदी साहित्य में मुख्य रूप से गद्य और पद दोनों ही विधाओं में साहित्य का सृजन किया था। नीचे उनकी समग्र साहित्यिक कृतियों की सूची दी गई है:-

काव्य-रचनाएँ 

काव्य-संग्रह प्रकाशन 
रंग में भंगवर्ष 1909
जयद्रथ-वधवर्ष 1910
भारत भारती वर्ष 1912
शकुंतलावर्ष 1914
पंचवटीवर्ष 1915
किसान वर्ष 1916 
सैरंध्रीवर्ष 1927
वकसंहारवर्ष 1927 
वन वैभववर्ष 1927 
शक्ति वर्ष 1927 
यशोधरावर्ष 1932 
द्वापर वर्ष 1936
सिद्धराजवर्ष 1936 
नहुषवर्ष 1940
कुणाल गीतवर्ष 1941 
कर्बलावर्ष 1942
अजित वर्ष 1946 
हिडिंबावर्ष 1950 
विष्णुप्रियावर्ष 1957 
रत्नावलीवर्ष 1960 
उर्मिला(अप्रकाशित, 1908-09) 

महाकव्य 

  • साकेत – वर्ष 1931 

गीतिनाट्य 

  • तिलोत्तमा
  • चंद्रहास
  • अनध
  • गृहस्थ गीता

संस्मरण 

  • मुंशी अजमेरी 

संस्कृत से अनूदित रचनाएँ 

  • स्वप्नवासवदत्ता
  • गीतामृत
  • दूत घटोत्कच
  • अविमारक
  • प्रतिमा
  • अभिषेक
  • उरुभंग

निबंध एवं समालोचना 

  • हिंदी कविता किस ढंग की हो 
  • बृजनंद सहाय के उपन्यास 

पुरस्कार एवं सम्मान

मैथिलीशरण गुप्त को आधुनिक हिंदी काव्य में विशेष योगदान देने के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों और सम्मान से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो कि इस प्रकार हैं:-

  • पद्मभूषण – वर्ष 1953
  • हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार 
  • मंगला प्रसाद पारितोषिक
  • भारत के प्रथम राष्ट्रपति ‘डॉ. राजेंद्र प्रसाद’ ने वर्ष 1962 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के द्वारा मैथिलीशरण गुप्त को ‘डी.लिट.’ की उपाधि से सम्मानित किया था।
  • भारतीय डाक ने राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त के सम्मान में एक स्मारक डाक टिकट जारी किया था।
Image Source: मैथिलीशरण गुप्त पर जारी डाक टिकट

मैथिलीशरण गुप्त का निधन 

मैथिलीशरण गुप्त ने साहित्य जगत को अपनी श्रेष्ठ काव्य-कृतियों से रौशन किया हैं। किंतु 12 दिसंबर 1964 को दिल का दौरा पड़ने से 78 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। लेकिन साहित्य जगत में उनकी काव्य रचनाओं के लिए उन्हें आज भी याद किया जाता हैं।

मैथिलीशरण गुप्त की कविताएँ

यहां राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की कुछ प्रसिद्ध कविताएं दी गई हैं, जो इस प्रकार हैं:-

नर हो, न निराश करो मन को

नर हो, न निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो
जग में रह कर कुछ नाम करो
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो, न निराश करो मन को

सँभलो कि सुयोग न जाए चला
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला
समझो जग को न निरा सपना
पथ आप प्रशस्त करो अपना 
अखिलेश्वर है अवलंबन को
नर हो, न निराश करो मन को

जब प्राप्त तुम्हें सब तत्त्व यहाँ
फिर जा सकता वह सत्त्व कहाँ
तुम स्वत्त्व सुधा रस पान करो
उठके अमरत्व विधान करो
दवरूप रहो भव कानन को
नर हो न निराश करो मन को 

निज गौरव का नित ज्ञान रहे
हम भी कुछ हैं यह ध्यान रहे
मरणोत्तैर गुंजित गान रहे
सब जाए अभी पर मान रहे
कुछ हो न तजो निज साधन को
नर हो, न निराश करो मन को

प्रभु ने तुमको दान किए
सब वांछित वस्तु विधान किए
तुम प्राप्तस करो उनको न अहो 

फिर है यह किसका दोष कहो
समझो न अलभ्य किसी धन को
नर हो, न निराश करो मन को

किस गौरव के तुम योग्य नहीं
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं
जान हो तुम भी जगदीश्वर के
सब है जिसके अपने घर के
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को
नर हो, न निराश करो मन को

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद करो
बनता बस उद्‌यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को
नर हो, न निराश करो मन को
कुछ काम करो, कुछ काम करो
– मैथिलीशरण गुप्त 

जीवन की जय

मृषा मृत्यु का भय है,  
जीवन की ही जय है। 

जीवन ही जड़ जमा रहा है 
निज नव वैभव कमा रहा है 
पिता-पुत्र में समा रहा है 
यह आत्मा अक्षय है 
जीवन की ही जय है! 

नया जन्म ही जग पाता है
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है  
स्रष्टा बड़ा सदय है 
जीवन की ही जय है। 

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं 
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं
तो फिर महा प्रलय है
जीवन की ही जय है। 
– मैथिलीशरण गुप्त 

जीवन की ही जय है

मृषा मृत्यु का भय है 
जीवन की ही जय है 
जीवन ही जड़ जमा रहा है
नीत नव वैभव कमा रहा है 
पिता पुत्र में समा रहा है 
यह आत्मा अक्षय है 
जीवन की ही जय है। 

नया जन्म ही जग पाता है 
मरण मूढ़-सा रह जाता है
एक बीज सौ उपजाता है
स्रष्टा बड़ा सदय है 
जीवन की ही जय है। 

जीवन पर सौ बार मरूँ मैं 
क्या इस धन को गाड़ धरूँ मैं?
यदि न उचित उपयोग करूँ मैं
तो फिर महाप्रलय है 
जीवन की ही जय है। 
– मैथिलीशरण गुप्त 

FAQs 

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म कहाँ हुआ था?

मैथिलीशरण गुप्त का जन्म 3 अगस्त, 1866 को उत्तर प्रदेश के झाँसी जिले के निकट चिरगाँव में हुआ था।

मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएं कौन-कौन सी हैं?

रंग में भंग, जयद्रथ-वध, शकुंतला, पंचवटी, किसान, सैरंध्री, वकसंहार, वन वैभव आदि मैथिलीशरण गुप्त की प्रमुख रचनाएं हैं। 

मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि किसने दी थी?

महात्मा गांधी ने मैथिलीशरण गुप्त को राष्ट्रकवि की उपाधि से अलंकृत किया था। 

‘साकेत’ महाकव्य के रचनाकार कौन हैं?

‘साकेत’ महाकव्य के रचियता मैथिलीशरण गुप्त हैं। 

मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं में मुख्य स्वर क्या है?

प्रेमभक्ति और राष्ट्रीयता मैथिलीशरण गुप्त की रचनाओं का मुख्य स्वर है।

भारत-भारती किसकी रचना है?

भारत-भारती, राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का लोकप्रिय काव्य संग्रह है।

आशा है कि आपको राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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