समादृत उपन्यासकार बाबू देवकीनंदन खत्री का जीवन परिचय

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Devkinandan khatri ka Jivan parichay

बाबू देवकीनंदन खत्री आधुनिक हिंदी साहित्य के विख्यात उपन्यासकरों में से एक माने जाते हैं। वहीं उपन्यास विधा में रहस्य-रोमांच से भरपूर उपन्यासों के लेखकों में वे अपना अग्रणी स्थान रखते हैं। उन्होंने साहित्य सृजन के साथ ही पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अभूतपूर्व योगदान दिया था। उनका उपन्यास ‘चंद्रकांता’ और ‘चंद्रकांता संतति’ हिंदी साहित्य में ‘मील का पत्थर’ माने जाते हैं। 

बाबू देवकीनंदन खत्री की रचनाओं को विद्यालय के अलावा बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में हिंदी विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी बाबू देवकीनंदन खत्री का जीवन परिचय और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। 

नाम बाबू देवकीनंदन खत्री
जन्म 18 जून 1861 
जन्म स्थान पूसा गांव, मुजफ्फरपुर जिला, बिहार  
पिता का नाम लाला ईश्वरदास 
संतान दुर्गा प्रसाद खत्री
भाषा हिंदी 
पेशा लेखक, संपादक 
विधाएँ उपन्यास, संपादन 
उपन्यास ‘चंद्रकांता’, ‘चंद्रकांता संतति’, ‘काजर की कोठरी’, ‘नरेंद्र मोहिनी’ आदि 
संपादक ‘सुदर्शन’ (मासिक) 
निधन 1 अगस्त, 1913 

बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में हुआ था जन्म 

हिंदी साहित्य में प्रथम पीढ़ी के विख्यात उपन्यासकार ‘बाबू देवकीनंदन खत्री’ का जन्म 18 जून 1861 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम ‘लाला ईश्वरदास’ था। बताया जाता है कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फ़ारसी में हुई थी लेकिन बाद में उन्होंने संस्कृत, हिंदी और अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन किया। 

प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना 

अपनी शिक्षा के बाद बाबू देवकीनंदन खत्री ने शुरूआती दौर में कई पेशे इख़्तियार किए और फिर वाराणसी में प्रिंटिंग प्रेस की स्थापना की। वहीं वर्ष 1883 में हिंदी मासिक ‘सुदर्शन’ का संपादन किया। इस दौरान ही उनका साहित्य के क्षेत्र में पर्दापण हो गया था। 

‘चंद्रकांता’ उपन्यास ने बनाया लोकप्रिय 

बाबू देवकीनंदन खत्री को घूमने-फिरने का शौक बचपन से ही था। माना जाता है कि उन्होंने किशोरावस्था में ही भारत की कई रियासतों, जागीरों, प्राचीन गढ़ों व किलों का भ्रमण किया। यहीं से उनके मन में रोमांच और रहस्य से भरा उपन्यास लिखने का विचार आया। जिसके बाद उन्होंने ‘चंद्रकांता’ उपन्यास की रचना की जिसका प्रकाशन वर्ष 1888 में हुआ। 

हिंदी का किया प्रचार-प्रसार 

बाबू देवकीनंदन खत्री ने जब लेखन की शुरुआत की उस दौरान उर्दू भाषा का प्रचलन बहुत अधिक था। इस परिस्थिति में उन्होंने ऐसी रचना करने के बारे में सोचा जिससे देवनागरी हिंदी का प्रचार-प्रसार हो सके। बता दें कि उनका प्रथम उपन्यास ‘चंद्रकांता’ (Chandrakanta) इतना लोकप्रिय हुआ जिसके कारण वह रातों-रात मशहूर हो गए। इस उपन्यास को पढ़ने के लिए साहित्य प्रेमियों में एक होड़ सी मच गई और गैर हिंदी भाषी लोगों को भी इस रचना को पढ़ने के लिए हिंदी भाषा सीखनी पड़ी। 

‘चंद्रकांता’ उपन्यास पर बाद में टेलीविजन धारावाहिक भी बनाया गया जिसका प्रसारण वर्ष 1994 से 1996 के बीच ‘दूरदर्शन’ नेशनल चैनल पर किया गया। इस लोकप्रिय उपन्यास की कथा को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने ‘चंद्रकांता संतति’ (Chandrakanta Santati) भी लिखा जिसने साहित्य जगत में धूम मचा दी। 

बाबू देवकीनंदन खत्री की साहित्यिक रचनाएं  

यहां बाबू देवकीनंदन खत्री की प्रमुख रचनाओं की सूची दी गई हैं:-

उपन्यास 

  • चंद्रकांता 
  • चंद्रकांता संतति
  • काजर की कोठरी
  • नरेंद्र मोहिनी
  • कुसुम कुमारी 
  • वीरेंद्र वीर
  • गुप्त गोंडा 
  • कटोरा भर खून 
  • भूतनाथ – (बाबू देवकीनंदन खत्री की मृत्यु के बाद उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने इस उपन्यास को पूरा किया था।)

संपादन 

  • सुदर्शन (मासिक पत्रिका)

बाबू देवकीनंदन खत्री का निधन 

बाबू देवकीनंदन खत्री ने दशकों तक हिंदी साहित्य जगत में कई अनुपम रचनाओं का सृजन किया। किंतु 01 अगस्त 1913 को 52 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। लेकिन आज भी साहित्य जगत में उन्हें अपनी लोकप्रिय रचनाओं के लिए याद किया जाता हैं। 

FAQs 

देवकीनंदन खत्री का जन्म कहाँ हुआ था?

देवकीनंदन खत्री का जन्म 18 जून 1861 को बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के पूसा गांव में हुआ था।

देवकीनंदन खत्री के पिता का क्या नाम था?

देवकीनंदन खत्री के पिता का नाम लाला ईश्वरदास था। 

‘चंद्रकांता’ उपन्यास का प्रकाशन कब हुआ था?

‘चंद्रकांता’ देवकीनंदन खत्री का प्रथम उपन्यास है जिसका प्रकाशन वर्ष 1888 में हुआ था। 

देवकीनंदन खत्री का निधन कब हुआ था?

देवकीनंदन खत्री का 01 अगस्त 1913 को निधन हुआ था। 

देवकीनंदन खत्री कौन से युग के साहित्यकार थे?

वे आधुनिक हिंदी साहित्य में ‘भारतेंदु युग’ के प्रतिष्ठित रचनाकार थे।

बाबू देवकीनंदन खत्री का अधूरा उपन्यास कौनसा था?

भूतनाथ उनका अधूरा उपन्यास था। उनकी मृत्यु के बाद उनके पुत्र दुर्गा प्रसाद खत्री ने इस उपन्यास को पूरा किया था। 

आशा है कि आपको समादृत उपन्यासकार बाबू देवकीनंदन खत्री का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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