बिहारी हिंदी साहित्य के रीतिकाल में रीतिसिद्ध काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। मुक्तक काव्य में उनकी एकमात्र प्रसिद्ध रचना ‘सतसई’ है, जिसमें लगभग 700 या 719 दोहे संकलित हैं। रीतिसिद्ध काव्य के उनके समकालीन कवियों में कृष्णकवि, रसनिधि, सेनापति और बेनी वाजपेयी प्रमुख थे, किंतु इस काव्यधारा में बिहारी को सर्वश्रेष्ठ कवि का स्थान प्राप्त है।
बिहारी ने ‘आचार्य केशवदास’ से शिक्षा प्राप्त की थी। उनके जीवनकाल में कई राजा और रईस आश्रयदाता रहे, जिनमें विशेष रूप से आमेर नरेश ‘राजा जयसिंह’ और मुग़ल सम्राट ‘शाहजहाँ’ का नाम उल्लेखनीय है। बताना चाहेंगे उनकी प्रसिद्ध काव्यरचना ‘सतसई’ को विद्यालयों के साथ-साथ बी.ए. और एम.ए. के पाठ्यक्रमों में भी पढ़ाया जाता है। साथ ही, अनेक शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर शोध कर पीएच.डी. की उपाधि प्राप्त की है।
इसके साथ ही UGC-NET में हिंदी विषय के अभ्यर्थियों के लिए भी बिहारी का जीवन परिचय तथा उनकी काव्यरचना ‘सतसई’ का अध्ययन करना आवश्यक होता है। इस लेख में रीतिसिद्ध कवि बिहारी के जीवन परिचय तथा उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में बताया गया है।
| नाम | बिहारी |
| जन्म | सन 1595 |
| जन्म स्थान | ग्वालियर, मध्य प्रदेश |
| गुरु | आचार्य केशवदास |
| आश्रयदाता | राजा जयसिंह, शाहजहाँ (जहाँगीर से कुछ समय संबंध) |
| साहित्य काल | रीतिकाल (रीतिसिद्ध काव्यधारा) |
| पेशा | दरबारी कवि |
| भाषा | ब्रज |
| काव्य रचना | ‘सतसई’ |
| विषय | शृंगार, प्रेम, आध्यात्म |
| निधन | सन 1663 |
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ग्वालियर में हुआ था जन्म
रीतिसिद्ध काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि बिहारी का जन्म सन 1595 में वर्तमान मध्य प्रदेश के ग्वालियर में हुआ था। माना जाता है कि जब वे सात या आठ वर्ष के थे, तभी उनके पिता ओरछा चले गए। यहीं रहकर बिहारी ने ‘आचार्य केशवदास’ से शिक्षा प्राप्त की। ऐसा भी कहा जाता है कि ओरछा में ही वे ‘रहीम’ के संपर्क में आए थे।
बिहारी का विवाह मथुरा के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था, और विवाह के पश्चात उन्होंने कुछ समय तक मथुरा में निवास भी किया। उनके जीवन का अधिकांश समय बुंदेलखंड (विशेषकर ओरछा) और जयपुर में व्यतीत हुआ।
आश्रयदाताओं का मिला सानिध्य
क्या आप जानते हैं कि रीति काव्य का विकास तत्कालीन राजाओं और रईसों के आश्रय में हुआ था। इसी परंपरा में रीतिसिद्ध कवि बिहारी के जीवनकाल में भी कई आश्रयदाता रहे। कहा जाता है कि उन्हें मुग़ल बादशाह ‘जहाँगीर’ के दरबार में कुछ समय तक रहने का अवसर मिला था। ऐसा भी माना जाता है कि वे ‘शाहजहाँ’ के कृपापात्र कवियों में से एक थे।
ऐसा कहा जाता है कि कुछ समय बाद बिहारी का मुग़ल दरबार से संबंध समाप्त हो गया, जिसके पश्चात उनका जीवन कुछ वर्षों तक अनिश्चितता और भ्रम की स्थिति में रहा। वर्ष 1635 के आसपास वे जयपुर नरेश महाराज जयसिंह के दरबार में पहुँचे। उस समय महाराज जयसिंह अपने राज्य के दायित्वों से अधिक, अपनी नवविवाहिता रानी के प्रेम में डूबे हुए थे। इससे राज्य के मंत्रीगण चिंतित थे, किंतु किसी को भी महाराज से कुछ कहने का साहस नहीं था।
बिहारी ने यह उत्तरदायित्व स्वयं स्वीकार किया और उन्होंने महाराज की सेवा में यह दोहा प्रस्तुत किया-
नाहिं पराग नाहिं मधुर मधु, नाहिं विकास इहि काल। अली कली ही सों बंध्यौ, आगे कौन हवाल।।
अर्थात: “न पराग है न मीठा मकरंद; वह अभी पूर्ण रूप से विकसित भी नहीं हुई है और खिली भी नहीं है। अरे भौरा ! कली से ही तू इस प्रकार उलझ गया, फिर आगे तेरी क्या दशा होगी।” इस दोहे का महाराज पर अत्यंत गहरा प्रभाव पड़ा। वे पुनः राज्य के कार्यों में रुचि लेने लगे। इसके पश्चात बिहारी को महाराज द्वारा सम्मानित किया गया और भविष्य में इस प्रकार के प्रत्येक दोहे पर एक स्वर्ण मुद्रा देने का आश्वासन भी प्रदान किया गया।
ब्रजभाषा के कवि
बिहारी ने ब्रजभाषा में अनुपम काव्य का सृजन किया। उनके समय तक ब्रजभाषा साहित्य की प्रमुख भाषा के रूप में स्वीकृत हो चुकी थी। बिहारी की भाषा अपेक्षाकृत शुद्ध ब्रजभाषा मानी जाती है, जिसमें पूर्वी भारत के भाषाई प्रयोग भी देखने को मिलते हैं।
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1663 में हुआ देहावासन
बिहारी, महाराजा जयसिंह के दरबार में लंबे समय तक रहे और यह माना जाता है कि ‘सतसई’ के अधिकांश दोहे उन्होंने वहीं रहते हुए रचे। ऐसा माना जाता है कि सतसई के कई दोहे उन्होंने महाराज जयसिंह के निवास काल में रचे। कुछ वर्षों तक जयपुर में निवास के पश्चात शाहजहाँ के सम्राट बनने के बाद उनका मुग़ल दरबार से पुनः संबंध स्थापित हो गया। इसके उपरांत उनका शेष जीवन गौरव एवं सम्मान के साथ व्यतीत हुआ। उनका देहावसान लगभग सन् 1663 के आसपास माना जाता है।
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FAQs
बिहारी का जन्म सन 1595 में ग्वालियर में हुआ था।
बिहारी ने ओरछा में आचार्य केशवदास से शिक्षा प्राप्त की थी।
बिहारी की एकमात्र काव्य रचना का नाम ‘सतसई’ है।
बिहारी रीतिकाल में रीतिसिद्ध काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं।
बिहारी की काव्यभाषा ‘ब्रजभाषा’ है।
बिहारी का देहावासन सन 1663 के आसपास माना जाता है।
आशा है कि आपको रीतिसिद्ध कवि बिहारी का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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