Pash Poems: पाश की कविताएं, जिन्होंने साहित्य जगत में उनका परचम लहराया

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Pash Poems in Hindi

पाश की कविताएं मुख्य तौर पर क्रांति, प्रेम और जीवन के गीत के रूप में समाज की चेतना को जगाने का प्रयास करती हैं, पाश की कविताएं बड़ी ही सरलता और बेबाकी से अपनी बात ज़माने के सामने रखती हैं। Pash Poems: पाश की कविताएं, जिन्होंने साहित्य जगत में उनका परचम लहरायापाश की कविताएं उन क्रांतिकारी रचनाओं में से एक है, जो आज के समय में भी प्रासंगिक होकर समाज में परिवर्तन की पुकार बनने के अपने दायित्व को भलीभांति निभा रही हैं। पाश की कविताएं विद्यार्थियों को अन्याय के खिलाफ लड़ने और न्याय को पाने के लिए प्रेरित करती हैं, जिन्हें पढ़कर उनके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन आ सकते हैं। इस ब्लॉग में आपको Pash Poems in Hindi (पाश की कविताएं) पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, इन कविताओं का उद्देश्य आपका मार्गदर्शन करना और आपके लक्ष्य की प्राप्ति करना है।

पाश के बारे में

Pash Poems in Hindi (पाश की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको पाश के बारे में जरूर पढ़ लेना चाहिए। भारतीय पंजाबी साहित्य/पंजाबी काव्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि पाश भी हैं, जिन्होंने जीवनभर भारत के एक महान हिंदी-पंजाबी भाषा का कवि होने का सम्मान प्राप्त किया। पाश का पूरा नाम अवतार सिंह संधू था।

9 सितंबर 1950 को पाश का जन्म पंजाब के जालंधर में हुआ था। पाश के पिता एक किसान थे, प्रारंभिक शिक्षा गांव के स्कूल से प्राप्त करने के बाद उन्होंने वर्ष 1969 में जालंधर के गवर्नर डायरेक्टर स्कूल से मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद, पाश ने जालंधर के पंजाबी विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया, लेकिन पढ़ाई पूरी नहीं कर पाए।

1970 के दशक आते-आते समाज को पाश की कविताओं में एक क्रांतिकारी कवि की झलक दिखने लगी। परिणामस्वरूप पाश ने पंजाब में किसानों और मजदूरों के अधिकारों के संघर्षों को अपनी कविता का आधार बनाया। उनकी कविताएं अब सामाजिक और राजनीतिक समस्याओं पर केंद्रित होने लगीं। 23 मार्च 1988 को पाश की मृत्यु के बाद, पंजाब सरकार ने पाश को सम्मानित करने के लिए उनकी जन्मतिथि को “पाश दिवस” के रूप में मनाने की घोषण की।

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पाश की कविताएं – Pash Poems in Hindi

पाश की कविताएं (Pash Poems in Hindi) समाज को वीरता का महत्व समझाने, अन्याय के खिलाफ बोलने और समाज की सोई चेतना जगाने का काम करती हैं। Pash Poems in Hindi कुछ इस प्रकार हैं;

अपनी असुरक्षा से

Pash Poems in Hindi (पाश की कविताएं) आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। पाश की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “अपनी असुरक्षा से” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

यदि देश की सुरक्षा यही होती है 
कि बिना ज़मीर होना ज़िंदगी के लिए शर्त बन जाए 
आँख की पुतली में ‘हाँ’ के सिवाय कोई भी शब्द 
अश्लील हो 
और मन बदकार पलों के सामने दंडवत झुका रहे 
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है 

हम तो देश को समझे थे घर-जैसी पवित्र चीज़ 
जिसमें उमस नहीं होती 
आदमी बरसते मेंह की गूँज की तरह गलियों में बहता है 
गेहूँ की बालियों की तरह खेतों में झूमता है 
और आसमान की विशालता को अर्थ देता है 
हम तो देश को समझे थे आलिगंन-जैसे एक एहसास का नाम 
हम तो देश को समझते थे काम-जैसा कोई नशा 
हम तो देश को समझे थे क़ुर्बानी-सी वफ़ा 
लेकिन ’गर देश 
आत्मा की बेगार का कोई कारख़ाना है 
’गर देश उल्लू बनने की प्रयोगशाला है 
तो हमें उससे ख़तरा है 
’गर देश का अमन ऐसा होता है 
कि क़र्ज़ के पहाड़ों से फिसलते पत्थरों की तरह 
टूटता रहे अस्तित्व हमारा 
और तनख़्वाहों के मुँह पर थूकती रहे 

क़ीमतों की बेशर्म हँसी 
कि अपने रक्त में नहाना ही तीर्थ का पुण्य हो 
तो हमें अमन से ख़तरा है 
’गर देश की सुरक्षा ऐसी होती है 
कि हर हड़ताल को कुचलकर अमन को रंग चढ़ेगा 
कि वीरता बस सरहदों पर मरकर परवान चढ़ेगी 
कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलेगा 
अक़्ल, हुक्म के कुएँ पर रहट की तरह ही धरती सींचेगी 
मेहनत, राजमहलों के दर पर बुहारी ही बनेगी 
तो हमें देश की सुरक्षा से ख़तरा है।

-पाश

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से पाश अपने देश की असुरक्षा और अनिश्चितता की भावनाओं को व्यक्त करते हैं। कविता में कवि का पूरा ध्यान देश के भविष्य पर केंद्रित रहता है। कविता के माध्यम से कवि देश के भविष्य को लेकर अपनी चिंतित व्यथा को व्यक्त करते हैं, साथ ही कविता को देश की उस समय की स्थिति के प्रति एक गंभीर चेतावनी के रूप में लिखा गया है।

हमारे समयों में

Pash Poems in Hindi (पाश की कविताएं) आपके नज़रिए को नया आयाम देंगी। पाश की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “हमारे समयों में” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

यह सब कुछ हमारे ही समयों में होना था
कि समय ने रुक जाना था थके हुए युद्ध की तरह 
और कच्ची दीवारों पर लटकते कैलेंडरों ने 
प्रधानमंत्री की फ़ोटो बनकर रह जाना था 

धूप से तिड़की हुई दीवारों के परखचों 
और धुएँ को तरसते चूल्हों ने 
हमारे ही समयों का गीत बनना था 
ग़रीब की बेटी की तरह बढ़ रहा 
इस देश के सम्मान का पौधा 
हमारे रोज़ घटते क़द के कंधों पर ही उगना था 

शानदार एटमी तजर्बे की मिट्टी 
हमारी आत्मा में फैले हुए रेगिस्तान से उड़नी थी 
मेरे-आपके दिलों की सड़क के मस्तक पर जमना था 
रोटी-माँगने आए अध्यापकों के मस्तक की नसों का लहू 
दशहरे के मैदान में 
गुम हुई सीता नहीं, बस तेल का टिन माँगते हुए 
रावण हमारे ही बूढ़ों को बनना था 
अपमान वक़्त का हमारे ही समयों में होना था 

हिटलर की बेटी ने ज़िंदगी के खेतों की माँ बनकर 
ख़ुद हिटलर का ‘डरौना’ 
हमारे ही मस्तकों में गड़ाना था 
यह शर्मनाक हादसा हमारे ही साथ होना था 
कि दुनिया के सबसे पवित्र शब्दों ने 
बन जाना था सिंहासन की खड़ाऊँ-
मार्क्स का सिंह जैसा सिर 
दिल्ली की भूल-भुलैयों में मिमियाता फिरता 
हमें ही देखना था 
मेरे यारो, यह कुफ़्र हमारे ही समयों में होना था 

बहुत दफ़ा, पक्के पुलों पर 
लड़ाइयाँ हुईं 
लेकिन ज़ुल्म की शमशीर के 
घूँघट न मुड़ सके 
मेरे यारो, अपने अकेले जीने की ख़्वाहिश कोई पीतल का छल्ला है 
हर पल जो घिस रहा 
न इसने यार की निशानी बनना है 
न मुश्किल वक़्त में रक़म बनना है 

मेरे यारो, हमारे वक़्त का एहसास 
बस इतना ही न रह जाए 
कि हम धीमे-धीमे मरने को ही 
जीना समझ बैठे थे 
कि समय हमारी घड़ियों से नहीं 
हड्डियों के खुरने से मापे गए 
यह गौरव हमारे ही समयों को मिलेगा 
कि उन्होंने नफ़रत निथार ली 
गुजरते गंदलाए समुद्रों से 
कि उन्होंने बींध दिया पिलपिली मुहब्बत का तेंदुआ 
और वह तैरकर जा पहुँचे 
हुस्न की दहलीज़ों पर 
यह गौरव हमारे ही समयों का होगा 
यह गौरव हमारे ही समयों का होना है।

-पाश

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि पाश अपने उस समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति की समीक्षा करते हैं। कविता में कवि अपनी उस चिंता को व्यक्त हैं, जो उनके समय में समाज में कई तरह की समस्याओं को जन्म देती हैं, जैसे: गरीबी, भ्रष्टाचार, अराजकता और हिंसा इत्यादि। कवि का मानना है कि इन समस्याओं के कारण हमारे देश की प्रगति बाधित हो रही है। इस कविता के माध्यम से कवि ने अपने समय की सामाजिक और राजनीतिक स्थिति को बहुत ही सशक्त रूप से व्यक्त किया है।

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सबसे ख़तरनाक

Pash Poems in Hindi आपको परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। पाश की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “सबसे ख़तरनाक” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती 
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती 
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबससे ख़तरनाक नहीं होती 

बैठे-बिठाए पकड़े जाना-बुरा तो है 
सहमी-सी चुप में जकड़े जाना-बुरा तो है 
पर सबसे ख़तरनाक नहीं होता 

कपट के शोर में 
सही होते हुए भी दब जाना-बुरा तो है 
किसी जुगनू की लौ में पढ़ना-बुरा तो है 
मुट्ठियाँ भींचकर बस वक़्त निकाल लेना-बुरा तो है 

सबसे ख़तरनाक नहीं होता 
सबसे ख़तरनाक होता है 
मुर्दा शांति से भर जाना 
न होना तड़प का सब सहन कर जाना 
घर से निकलना काम पर 
और काम से लौटकर घर जाना 

सबसे ख़तरनाक होता है 
हमारे सपनों का मर जाना 
सबसे ख़तरनाक वह घड़ी होती है 
आपकी कलाई पर चलती हुई भी जो 
आपकी निगाह में रुकी होती है 

सबसे ख़तरनाक वह आँख होती है 
जो सबकुछ देखती हुई भी जमी बर्फ़ होती है 
जिसकी नज़र दुनिया को मुहब्बत से चूमना भूल जाती है 

जो चीज़ों से उठती अँधेपन की भाप पर ढुलक जाती है 
जो रोज़मर्रा के क्रम को पीती हुई 
एक लक्ष्यहीन दुहराव के उलटफेर में खो जाती है 

सबसे ख़तरनाक वह चाँद होता है 
जो हर हत्याकांड के बाद 
वीरान हुए आँगनों में चढ़ता है 
पर आपकी आँखों को मिर्चों की तरह नहीं गड़ता है 

सबसे ख़तरनाक वह गीत होता है 
आपके कानों तक पहुँचने के लिए 
जो मरसिए पढ़ता है 
आतंकित लोगों के दरवाज़ों पर 
जो गुंडे की तरह अकड़ता है 

सबसे ख़तरनाक वह रात होती है 
जो ज़िंदा रूह के आसमानों पर ढलती है 
जिसमें सिर्फ़ उल्लू बोलते और हुआं-हुआं करते गीदड़ 
हमेशा के अँधेरे बंद दरवाज़ों-चौगाठों पर चिपक जाते हैं 

सबसे ख़तरनाक वह दिशा होती है 
जिसमें आत्मा का सूरज डूब जाए 
और उसकी मुर्दा धूप का कोई टुकड़ा 
आपके जिस्म के पूरब में चुभ जाए 

मेहनत की लूट सबसे ख़तरनाक नहीं होती 
पुलिस की मार सबसे ख़तरनाक नहीं होती 
गद्दारी-लोभ की मुट्ठी सबसे ख़तरनाक नहीं होती।

-पाश

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से पाश उस स्थिति को सबसे ख़तरनाक मानते हैं, जब व्यक्ति अपने अधिकारों और खुद को मिलने वाली स्वतंत्रताओं को छोड़ देता है। कविता में कवि का मानना है कि जब व्यक्ति अन्याय और अत्याचार को सहन करने लगता है, तो वह अपनी आत्मा को खो देता है। इस कविता के अंत में कवि देशवासियों से अपील करते हैं कि वे अन्याय और अत्याचार के खिलाफ आवाज़ उठाएं। कविता की भाषा सरल और स्पष्ट है, जिसमें कवि ने अपने विचारों को बहुत ही सशक्त रूप से व्यक्त किया है। कविता समाज में व्याप्त अन्याय और अत्याचार के खिलाफ एक चेतावनी की जैसी है।

सपने

Pash Poems in Hindi आपका परिचय साहित्य के सच्चे स्वरुप से करवाएंगी, पाश की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “सपने” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:

सपने 
हर किसी को नहीं आते 
बेजान बारूद के कणों में 
सोई आग को सपने नहीं आते 

बदी के लिए उठी हुई 
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते 
शेल्फ़ों में पड़े 
इतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते 

सपनों के लिए लाज़िमी है 
झेलने वाले दिलों का होना 
सपनों के लिए 
नींद की नज़र होना लाज़िमी है 
सपने इसलिए 
हर किसी को नहीं आते

-पाश

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से पाश सपनों की महत्ता को व्यक्त करने का सफल प्रयास करते हैं। इस कविता में कवि का मानना है कि सपने ही मानव को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह एक प्रेरणादाई कविता है, जिसके शब्द मानव को सपनों के लिए जीना सिखाते हैं। कविता के माध्यम से कवि अपने सपनों को कभी न छोड़ने के लिए मानव को प्रेरित करते हैं। कविता में कवि सपनों को ही व्यक्ति की ताकत कहते हैं।

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संविधान

Pash Poems in Hindi आपको प्रेरित करेंगी, साथ ही आपका परिचय अटल सत्य से करवाएंगी। पाश जी की महान रचनाओं में से एक रचना “संविधान” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

यह पुस्तक मर चुकी है 
इसे न पढ़ें 
इसके शब्दों में मौत की ठंडक है 
और एक-एक पृष्ठ 
ज़िंदगी के आख़िरी पल जैसा भयानक 
यह पुस्तक जब बनी थी 
तो मैं एक पशु था 
सोया हुआ पशु... 
और जब मैं जगा 
तो मेरे इंसान बनने तक 
यह पुस्तक मर चुकी थी 
अब यदि इस पुस्तक को पढ़ोगे 
तो पशु बन जाओगे 
सोए हुए पशु।

-पाश

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से पाश भारत के संविधान की दुर्दशा को व्यक्त करते हैं। कविता में कवि का मानना है कि संविधान एक महान दस्तावेज है, लेकिन इसे लागू नहीं किया जा रहा है। कविता में कवि संविधान को एक महान ग्रन्थ के रूप में देखते हैं, जिसको पढ़ने के बाद मानव को जीवन जीने का एक सशक्त मार्ग दिख सकता है। कविता में कवि बताते हैं कि संविधान को बचाना हम सभी का कर्तव्य है। हमें संविधान के नियमों का पालन करना चाहिए, साथ ही हमें देश में भ्रष्टाचार और अन्याय के खिलाफ लड़ना चाहिए।

पाश की लोकप्रिय कविताएं

पाश की लोकप्रिय कविताएं (Pash Poems in Hindi) युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय हैं, इन कविताओं को पढ़कर आप अपने जीवन में सकारातमक परिवर्तन की अनुभूति कर सकते हैं। पाश की लोकप्रिय कविताएं कुछ इस प्रकार हैं;

मैं घास हूँ, मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा

मैं घास हूँ 
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा 

बम फेंक दो चाहे विश्‍वविद्यालय पर 
बना दो होस्‍टल को मलबे का ढेर 
सुहागा फिरा दो भले ही हमारी झोपड़ियों पर 
मुझे क्‍या करोगे? 
मैं तो घास हूँ, हर चीज़ ढंक लूंगा 
हर ढेर पर उग आऊँगा

बंगे को ढेर कर दो 
संगरूर को मिटा डालो 
धूल में मिला दो लुधियाना का ज़िला 
मेरी हरियाली अपना काम करेगी...
दो साल, दस साल बाद
सवारियाँ फिर किसी कंडक्‍टर से पूछेंगी - 
"यह कौन-सी जगह है? 
मुझे बरनाला उतार देना 
जहाँ हरे घास का जंगल है।" 

मैं घास हूँ, मैं अपना काम करूँगा
मैं आपके हर किए-धरे पर उग आऊँगा। 

-पाश

हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे साथी, उदास मौसम के लिए
हम लड़ेंगे साथी, ग़ुलाम इच्छाओं के लिए
हम चुनेंगे साथी, ज़िन्दगी के टुकड़े

हथौड़ा अब भी चलता है, उदास निहाई पर
हल की लीकें अब भी बनती हैं, चीख़ती धरती पर
यह काम हमारा नहीं बनता, सवाल नाचता है
सवाल के कंधों पर चढ़कर
हम लड़ेंगे साथी

क़त्ल हुए जज़्बात की क़सम खाकर
बुझी हुई नज़रों की क़सम खाकर
हाथों पर पड़े गाठों की क़सम खाकर
हम लड़ेंगे साथी

हम लड़ेंगे तब तक
कि बीरू बकरिहा जब तक
बकरियों का पेशाब पीता है
खिले हुए सरसों के फूल को
बीजनेवाले जब तक ख़ुद नहीं सूँघते
कि सूजी आँखोंवाली
गाँव की अध्यापिका का पति जब तक
जंग से लौट नहीं आता
जब तक पुलिस के सिपाही
अपने ही भाइयों का गला दबाने के लिए विवश हैं
कि बाबू दफ़्तरों के
जब तक रक्त से अक्षर लिखते हैं...
हम लड़ेंगे जब तक
दुनिया में लड़ने की ज़रूरत बाक़ी है... 

जब तक बंदूक न हुई, तब तक तलवार होगी
जब तलवार न हुई, लड़ने की लगन होगी
लड़ने का ढंग न हुआ, लड़ने की ज़रूरत होगी
और हम लड़ेंगे साथी...

हम लड़ेंगे
कि लड़ने के बग़ैर कुछ भी नहीं मिलता
हम लड़ेंगे
कि अब तक लड़े क्यों नहीं
हम लड़ेंगे
अपनी सज़ा कबूलने के लिए
लड़ते हुए मर जानेवालों
की याद ज़िन्दा रखने के लिए
हम लड़ेंगे साथी... 

-पाश

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तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं

तुम्हारे बग़ैर मैं बहुत खचाखच रहता हूँ
यह दुनिया सारी धक्कम-पेल सहित
बे-घर पाश की दहलीजें लाँघ कर आती-जाती है
तुम्हारे बग़ैर मैं पूरे का पूरा तूफ़ान होता हूँ
ज्वार-भाटा और भूकम्प होता हूँ

तुम्हारे बग़ैर
मुझे रोज़ मिलने आते हैं आइंस्टाइन और लेनिन
मेरे साथ बहुत बातें करते हैं
जिनमें तुम्हारा बिलकुल ही ज़िक्र नहीं होता
मसलन : समय एक ऐसा परिंदा है
जो गाँव और तहसील के बीच उड़ता रहता है
और कभी नहीं थकता
सितारे ज़ुल्फ़ों में गूँथे जाते
या जुल्फ़ें सितारों में - एक ही बात है
मसलन : आदमी का एक और नाम मेन्शेविक है
और आदमी की असलियत हर साँस के बीच को खोजना है
लेकिन हाय-हाय!...
बीच का रास्ता कहीं नहीं होता
वैसे इन सारी बातों से तुम्हारा ज़िक्र ग़ायब रहता है

तुम्हारे बग़ैर
मेरे पर्स में हमेशा ही हिटलर का चित्र परेड करता है
उस चित्र की पृष्ठभूमि में
अपने गाँव की पूरे वीराने और बंजर की पटवार होती है
जिसमें मेरे द्वारा निक्की के ब्याह में गिरवी रखी ज़मीन के सिवा
बची ज़मीन भी सिर्फ़ जर्मनों के लिए ही होती है 

तुम्हारे बग़ैर, मैं सिद्धार्थ नहीं - बुद्ध होता हूँ
और अपना राहुल
जिसे कभी जन्म नहीं देना
कपिलवस्तु का उत्तराधिकारी नहीं
एक भिक्षु होता है 

तुम्हारे बग़ैर मेरे घर का फ़र्श - सेज नहीं
ईंटों का एक समाज होता है
तुम्हारे बग़ैर सरपंच और उसके गुर्गे
हमारी गुप्त डाक के भेदिए नहीं
श्रीमान बी.डी.ओ. के कर्मचारी होते हैं
तुम्हारे बग़ैर अवतार सिंह संधू महज़ पाश
और पाश के सिवाय कुछ नहीं होता

तुम्हारे बग़ैर धरती का गुरुत्व
भुगत रही दुनिया की तक़दीर होती है
या मेरे जिस्म को खरोंचकर गुज़रते अ-हादसे
मेरे भविष्य होते हैं
लेकिन किंदर! जलता जीवन माथे लगता है
तुम्हारे बग़ैर मैं होता ही नहीं। 

-पाश

मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ

अब विदा लेता हूँ 
मेरी दोस्त, मैं अब विदा लेता हूँ
मैंने एक कविता लिखनी चाही थी
सारी उम्र जिसे तुम पढ़ती रह सकतीं

उस कविता में
महकते हुए धनिए का ज़िक्र होना था
ईख की सरसराहट का ज़िक्र होना था
उस कविता में वृक्षों से टपकती ओस
और बाल्टी में दुहे दूध पर गाती झाग का ज़िक्र होना था
और जो भी कुछ
मैंने तुम्हारे जिस्म में देखा
उस सब कुछ का ज़िक्र होना था

उस कविता में मेरे हाथों की सख़्ती को मुस्कुराना था
मेरी जाँघों की मछलियों को तैरना था
और मेरी छाती के बालों की नरम शॉल में से
स्निग्धता की लपटें उठनी थीं
उस कविता में
तेरे लिए
मेरे लिए
और ज़िन्दगी के सभी रिश्तों के लिए बहुत कुछ होना था मेरी दोस्त

लेकिन बहुत ही बेस्वाद है
दुनिया के इस उलझे हुए नक़्शे से निपटना
और यदि मैं लिख भी लेता
शगुनों से भरी वह कविता
तो उसे वैसे ही दम तोड़ देना था
तुम्हें और मुझे छाती पर बिलखते छोड़कर
मेरी दोस्त, कविता बहुत ही नि:सत्व हो गई है
जबकि हथियारों के नाख़ून बुरी तरह बढ़ आए हैं
और अब हर तरह की कविता से पहले
हथियारों के ख़िलाफ़ युद्ध करना ज़रूरी हो गया है

युद्ध में
हर चीज़ को बहुत आसानी से समझ लिया जाता है
अपना या दुश्मन का नाम लिखने की तरह
और इस स्थिति में
मेरे चुंबन के लिए बढ़े होंठों की गोलाई को
धरती के आकार की उपमा देना
या तेरी कमर के लहरने की
समुद्र की साँस लेने से तुलना करना
बड़ा मज़ाक-सा लगता था
सो मैंने ऐसा कुछ नहीं किया
तुम्हें
मेरे आँगन में मेरा बच्चा खिला सकने की तुम्हारी ख़्वाहिश को
और युद्ध के समूचेपन को
एक ही कतार में खड़ा करना मेरे लिए संभव नहीं हुआ
और अब मैं विदा लेता हूँ

मेरी दोस्त, हम याद रखेंगे
कि दिन में लोहार की भट्टी की तरह तपने वाले
अपने गाँव के टीले
रात को फूलों की तरह महक उठते हैं
और चांदनी में पगे हुई 'टोक' के ढेरों पर लेटकर 
स्वर्ग को गाली देना, बहुत संगीतमय होता है
हाँ, यह हमें याद रखना होगा क्योंकि
जब दिल की जेबों में कुछ नहीं होता
याद करना बहुत ही अच्छा लगता है 

मैं इस विदाई के पल शुक्रिया करना चाहता हूँ
उन सभी हसीन चीज़ों का
जो हमारे मिलन पर तंबू की तरह तनती रहीं
और उन आम जगहों का
जो हमारे मिलने से हसीन हो गई
मैं शुक्रिया करता हूँ
अपने सिर पर ठहर जाने वाली
तेरी तरह हल्की और गीतों भरी हवा का
जो मेरा दिल लगाए रखती थी तेरे इंतज़ार में
रास्ते पर उगी हुई रेशमी घास का
जो तुम्हारी लरजती चाल के सामने हमेशा बिछ जाता था
टींडों से उतरी कपास का
जिसने कभी भी कोई उज़्र न किया
और हमेशा मुस्कराकर हमारे लिए सेज बन गई
गन्नों पर तैनात पिद्दियों का
जिन्होंने आने-जाने वालों की भनक रखी
जवान हुए गेहूँ की बालियों का
जो हम बैठे हुए न सही, लेटे हुए तो ढंकती रहीं
मैं शुक्रगुज़ार हूँ, सरसों के नन्हें फूलों का
जिन्होंने कई बार मुझे अवसर दिया
तेरे केशों से पराग-केसर झाड़ने का
मैं आदमी हूँ, बहुत कुछ छोटा-छोटा जोड़कर बना हूँ
और उन सभी चीज़ों के लिए
जिन्होंने मुझे बिखर जाने से बचाए रखा
मेरे पास शुक्राना है
मैं शुक्रिया करना चाहता हूँ 

प्यार करना बहुत ही सहज है
जैसे कि ज़ुल्म को झेलते हुए ख़ुद को लड़ाई के लिए तैयार करना
या जैसे गुप्तवास में लगी गोली से
किसी गुफ़ा में पड़े रहकर
ज़ख़्म के भरने के दिन की कोई कल्पना करे 

प्यार करना
और लड़ सकना
जीने पर ईमान ले आना मेरी दोस्त, यही होता है
धूप की तरह धरती पर खिल जाना
और फिर आलिंगन में सिमट जाना
बारूद की तरह भड़क उठना
और चारों दिशाओं में गूँज जाना -
जीने का यही सलीका होता है
प्यार करना और जीना उन्हें कभी नहीं आएगा
जिन्हें ज़िन्दगी ने बनिया बना दिया 

जिस्म का रिश्ता समझ सकना - 
ख़ुशी और नफ़रत में कभी भी लकीर न खींचना - 
ज़िंदगी के फैले हुए आकार पर फ़िदा होना - 
सहम को चीरकर मिलना और विदा होना - 
बड़ी शूरवीरता का काम होता है मेरी दोस्त,
मैं अब विदा लेता हूँ

तू भूल जाना
मैंने तुम्हें किस तरह पलकों के भीतर पाल कर जवान किया
कि मेरी नज़रों ने क्या कुछ नहीं किया
तेरे नक़्शों की धार बाँधने में
कि मेरे चुम्बनों ने कितना ख़ूबसूरत बना दिया तुम्हारा चेहरा 
कि मेरे आलिंगनों ने
तुम्हारा मोम-जैसा शरीर कैसे साँचे में ढाला 

तू यह सभी कुछ भूल जाना मेरी दोस्त,
सिवा इसके 
कि मुझे जीने की बहुत लालसा थी
कि मैं गले तक ज़िन्दगी में डूबना चाहता था
मेरे भी हिस्से का जी लेना, मेरी दोस्त 
मेरे भी हिस्से का जी लेना! 

-पाश

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