राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता: उत्साह, जोश और प्रेरणा का संगम

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राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता

किसी भी राष्ट्र की उन्नति में उस राष्ट्र के युवा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। आसान भाषा में समझें तो युवा ही किसी भी राष्ट्र के लिए एक वरदान के समान होते हैं, जो अपनी शक्ति और सामर्थ्य को राष्ट्र की उन्नति के प्रति समर्पित करते हैं। भारत एक युवा राष्ट्र है, जिसमें लगभग 70 फीसदी आबादी युवाओं की है। भारत अपनी इसी शक्ति को सम्मानित और प्रेरित करने के लिए हर वर्ष 12 जनवरी को राष्ट्रीय युवा दिवस मनाता है, जिसका उद्देश्य सही दिशा में युवाओं का मार्गदर्शन करना और उन्हें प्रेरित करना होता है। राष्ट्रीय युवा दिवस स्वामी विवेकानंद की जयंती के अवसर पर मनाया जाता है, जिन्हें आधुनिक भारत के युवाओं के प्रेरणा स्रोत के रूप में जाना जाता है। इस लेख में आपके लिए राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आप इस दिन और युवा शक्ति का महत्व जान पाएंगे।

राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता

राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता पढ़कर आपका मार्गदर्शन होगा और इस पर लिखी कविताएं युवाओं को प्रेरित करेंगी। इस ब्लॉग में आपको राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता पढ़कर युवाओं की शक्ति और समर्थ का महत्व जानने का अवसर मिलेगा।

युवा शक्ति

ऋतुओं में जैसे बसंत की बहार है
साहस की जैसे धारदार तलवार है
जीवन यात्रा में है प्रयासरत निरंतर
युवा शक्ति के आगे नतमस्तक संसार है

असंख्य असफलताओं से टकराकर
निज सपनों को साहस से बचाकर
ले जाना है जरूरी श्रम की नौका को
निज ज़ख्मों पर जैसे मरहम लगाकर
सच्चे सपनों की उड़ान है
चेहरों पर खिली मुस्कान है
खुशियों की खोज में निरंतर
युवा शक्ति ही सत्य की पहचान है

जीकर जिनके किस्सों में
अमर होती कई कहानियां
आकर पीड़ाओं के हिस्सों में
जैसे पलती हैं कई कहानियां
वो कहानियां जो जीत का आगाज़ हैं
वो कहानियां जो साहसी आवाज़ हैं
युवा शक्ति हैं संघर्षरत निरंतर
वो कहानियां जो सुखों का एहसास हैं…”

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को युवा शक्ति की परिभाषा बताने का प्रयास करते हैं। यह कविता हर प्रकार की नकारात्मकता का नाश करते हुए, सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करती है। इस कविता में कवि युवाओं का परिचय उनकी विस्मृत शक्ति से करवाने का प्रयास करते हैं। इस कविता में युवाओं को शक्ति के प्रतीक के रूप में देखा गया है।

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ओ गगन के जगमगाते दीप!

दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!

-हरिवंश राय बच्चन

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गगन के तारों को जगमगाते हुए दीपक मानते हुए उनसे सवाल पूछते हैं, कि क्या वह उनके टूटे हुए सपनों को लौटा सकते हैं। इस कविता को युवा अवस्था का एक पड़ाव माना जा सकता है, जिसमें हमारे युवाओं के कई सपने कहीं खो जाते हैं। यह कविता समाज का आईना बनने का सफल प्रयास करती है।

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कलम या कि तलवार

दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार
मन में ऊँचे भाव कि तन में शक्ति विजय अपार

अंध कक्ष में बैठ रचोगे ऊँचे मीठे गान
या तलवार पकड़ जीतोगे बाहर का मैदान

कलम देश की बड़ी शक्ति है भाव जगाने वाली,
दिल की नहीं दिमागों में भी आग लगाने वाली

पैदा करती कलम विचारों के जलते अंगारे,
और प्रज्वलित प्राण देश क्या कभी मरेगा मारे

एक भेद है और वहां निर्भय होते नर -नारी,
कलम उगलती आग, जहाँ अक्षर बनते चिंगारी

जहाँ मनुष्यों के भीतर हरदम जलते हैं शोले,
बादल में बिजली होती, होते दिमाग में गोले

जहाँ पालते लोग लहू में हालाहल की धार,
क्या चिंता यदि वहाँ हाथ में नहीं हुई तलवार

-रामधारी सिंह दिनकर

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने दो विपरीत शक्तियों का संघर्ष प्रस्तुत किया गया है। एक ओर है ज्ञान और संस्कृति की शक्ति, जो कलम का प्रतीक है, और दूसरी ओर है हिंसा और अत्याचार की शक्ति, जो तलवार का प्रतीक है। कविता के माध्यम से कवि ने यह बताने का प्रयास किया है कि कलम ही वह शक्ति है जो दुनिया को बदल सकती है। कलम से ही हम एक ऐसे समाज का निर्माण कर सकते हैं जो शांतिपूर्ण, न्यायपूर्ण, और समतामूलक हो।

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मै अनंत पथ में लिखती जो

मै अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बाते
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें!

उड़् उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल-
में मेरी पीड़ा की रेख!

तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगी अनंत आँखें,
हो कर सीमाहीन, शून्य में
मँडरायेगी अभिलाषें!

वीणा होगी मूक बजाने-
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आ कर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!

जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल!

-महादेवी वर्मा

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवियत्री अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, और शोषण के खिलाफ आवाज उठाती हैं। कवियत्री का मानना है कि लेखन एक शक्तिशाली माध्यम है जो समाज को बदलने की क्षमता रखता है। कविता समाज में युवाओं को भी लेखन के लिए प्रेरित करने का काम करती है। कविता में कवियत्री कहती हैं कि वह अपने लेखन के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाना चाहती हैं। वह एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहती हैं जिसमें सभी लोग समान हों और जिसमें किसी के साथ अन्याय न हो। कवियत्री का मानना है कि लेखन के माध्यम से वह इस सपने को साकार कर सकती हैं।

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दुखी-मन से कुछ भी न कहो!

व्यर्थ उसे है ज्ञान सिखाना,
व्यर्थ उसे दर्शन समझाना,
उसके दुख से दुखी नहीं हो तो बस दूर रहो!
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!

उसके नयनों का जल खारा,
है गंगा की निर्मल धारा,
पावन कर देगी तन-मन को क्षण भर साथ बहो!
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!

देन बड़ी सबसे यह विधि की,
है समता इससे किस निधि की?
दुखी दुखी को कहो, भूल कर उसे न दीन कहो?
दुखी-मन से कुछ भी न कहो!

-हरिवंश राय बच्चन

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि दुख से प्रेरित होकर की गई बातों के नकारात्मक परिणामों पर प्रकाश डालते हैं। कवि का मानना है कि दुख की स्थिति में मनुष्य का मन शांत और विवेकपूर्ण नहीं होता है। वह जल्दबाजी में और बिना सोचे समझे कुछ भी कह या कर सकता है, जिसका बाद में उसे पछतावा होता है। इस कविता के माध्यम से कवि समाज और युवाओं को संदेश देते हैं कि दुखी मन से कही गई बातें अक्सर विनाशकारी होती हैं। वे व्यक्ति के लिए और उसके आसपास के लोगों के लिए नुकसानदायक हो सकती हैं।


युवा पीढ़ी का तराना

एक इक टुकड़े की ख़ातिर देंगे सौ-सौ जान हम
पर तुझे टुकड़े न होने देंगे हिन्दुस्तान हम

देश के कड़ियल जवाँ हम पूर्वजों की शान हम
कल के वह बलवान थे और आज के बलवान हम

शिवा हम प्रताप हम रंजीत हम चौहान हम
अब वतन के सूरमा हम हैं, वतन की शान हम

शेर दिल टीपू हमारी दास्ताँ, उनवान हम
लक्ष्मी बाई का बल, जीनत महल की आन हम

कल थी राजाओं की शक्ति आज की शक्ति अवाम
तब के हिन्दुस्तान वो थे अबके हिन्दुस्तान हम

आदमी सब आदमी हे ख़त्म कीजे ऊँच-नीच
कैसी यह तक़सीम जब इन्सान तुम इन्सान हम

चार दिन की ज़िन्दगी है काट ले हँस-बोल के
किसको रहना है यहाँ मेहमान तुम मेहमान हम

मौसमी नद्दी नहीं, हम हैं महासागर ’नजीर’
हो गये मिल के पच्चासी करोड़ इन्सान हम

- नज़ीर बनारसी

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युवा कवि

हिंदी कविता में समकालीनता की उम्र
मुझसे एक दिन कम है।

मैं ही कविता को जन के बीच लेकर गया
बदल दिया उसे धन में
इस तरह कविता जन धन हो गई
उसमें वादे जमा हुए
और आत्महत्याओं की निकासी हुई.

पहले कविता पुस्तकालयों में कैद थी
मैंने कांधा लगाया तो
वो पूंजीवादियों के पंच लाइनों में बदल गई
मेरी मखमली कोशिश ने
सिनेमा हालो को माॅल में बदला
पंनसारी की दुकान को माॅल में बदला
यहाँ तक की स्त्रीयों को माल में बदला
मुझ पर आरोप लगे उसके पहले ही
जब काँधे पर लाश ढोते लोग गुजरे सामने से
तो मैंने ठेलों को एम्बुलेंस में बदल दिया
इस तरह विकास को गति दी।

मैं धुँर युवा हूँ
कविता में गुगली खेलता हूँ
मैं एक छोर से कविता डालता हूँ
दूसरे छोर वह लपक ली जाती है सुविधाजनक गदेलियों में
मेरी कविता लकड़ी, कुदाल, हसियाँ से टकराती नहीं है
उसमें कोई खटराग नहीं है
मैं स्केटिंग करते हुए लिख सकता हूँ कविता
पैदल घसीटते हुए जिनके तलवे फट गये
उनके लिए कोई कविता नहीं है मेरे पास।

मैं लिखता नहीं हूँ, कविता करता हूँ
सुबह प्रशंसा प्रैक्टिस करने अकादमी में घुस जाता हूँ
शाम को पुराने चुप्पा कवियों के कुछ शब्द झोले में डालता हूँ और आलोचना पर निकल पड़ता हूँ
पुरस्कारों की घोषणा वाले दुपहरियों में मैं
अपनी कविता के साथ जे एन यू में मिलूंगा
बधाई, शुभकामना का बैना बाँटने में इस कदर
व्यस्त हूँ कि मूतने तक की फुरसत नहीं
जब जंतर मंतर पर किसान मूत्र पी रहे थे
मैं उनके लिए मूत्र तक की व्यवस्था न कर सका।

मेरे लिए तालाब खरे नहीं है
नदियों के जिन्न को मैंने बोतल बंद कर दिया है
बेरोजगारी, ध्यान लगाने का समय देती है
आत्महत्या की राह ईश्वरीय पदचिन्ह है
इसी दर्शन के आख्यान पर
बिल्डरो से मिले स्मृति चिह्न में पीपल के बोन्साई को देखता हूँ
तो एक फ्लैट की जुगत में लग जाता हूँ
मिल जाएँ तो कितना आसान हो जाएँ
बुद्ध बनना।

मैं गिटार भी बजाना सीख रहा हूँ
ताकि सत्ता के सुर में सुर में मिला सकूँ
इतना चिल्लाकर पढ़ता हूँ कविता
कि कभी जयकारे का मौका मिले तो
सबसे अलग दिखूँ।

- अखिलेश श्रीवास्तव

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