Jwar Bhata Kise Kahate Hain: चंद्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्र तल का नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वारभाटा (Jwar Bhata) कहा जाता है। ज्वारभाटाओं का स्थानिक एवं कालिक रूप से अध्ययन बहुत ही जटिल है, क्योंकि इसके आवृत्ति, परिमाण तथा ऊँचाई में बहुत अधिक भिन्नता होती है। बताना चाहेंगे स्कूली परीक्षाओं के अलावा विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में भूगोल विषय से संबधित प्रश्न अकसर पूछे जाते हैं। इसलिए इस लेख में भूगोल के एक महत्वपूर्ण विषय ज्वार भाटा किसे कहते हैं? (Jwar Bhata Kise Kahate Hain) के बारे में बताया गया है।
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ज्वार भाटा किसे कहते हैं? – Jwar Bhata Kise Kahate Hain
सूर्य तथा चंद्रमा की आकर्षण शक्तियों के कारण पृथ्वी पर स्थित सागरीय जल के ऊपर उठने को तथा नीचे गिरने को ज्वार भाटा कहते है। यह प्रक्रिया मुख्य रूप से चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बलों के कारण होती है। ध्यान दें कि जब चंद्रमा पृथ्वी के निकट होता है, तो उसका गुरुत्वाकर्षण बल समुद्र के जल को अपनी ओर खींचता है, जिससे समुद्र का जल स्तर बढ़ जाता है, इसे ज्वार (High Tide) कहते हैं। वहीं जब चंद्रमा दूर होता है या गुरुत्वाकर्षण बल कम होता है, तो जल स्तर गिर जाता है, इसे भाटा (Neap Tide) कहते हैं।
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ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के क्या कारण है?
चंद्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ हद तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वारभाटाओं की उत्पत्ति होती है। इसका दूसरा कारण, अपकेंद्रीय बल है, जो कि गुरुत्वाकर्षण को संतुलित करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेंद्रीय बल (Centripetal Force) दोनों मिलकर पृथ्वी पर दो महत्वपूर्ण ज्वारभाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी है।
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ज्वार भाटा के प्रकार
ज्वार-भाटा कई प्रकार के होते हैं, जो पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की स्थिति पर निर्भर करते हैं। ध्यान दें कि ज्वार की आवृत्ति, दिशा एवं गति में स्थानीय व सामयिक भिन्नता पाई जाती है। ज्वारभाटाओं को उनकी बारंबारता एक दिन में या 24 घंटे में या उनकी ऊंचाई के आधार पर विभिन्न प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:-
- दैनिक ज्वार – इसमें प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। उच्च एवं निम्न ज्वारों की ऊंचाई समान होती है।
- अर्ध दैनिक ज्वार – बताना चाहेंगे यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है, जिसके अंतर्गत प्रतिदिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं।
- मिश्रित ज्वार – ऐसे ज्वार भाटा जिनकी ऊंचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार भाटा (Mixed Tide) कहा जाता है। बता दें कि ये ज्वार भाटा मुख्यतः उत्तर अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशांत महासागर के बहुत से द्वीप समूहों पर उत्पन्न होते हैं।
- वृहत ज्वार – पृथ्वी के संदर्भ में सूर्य एवं चंद्रमा की स्थिति ज्वार की ऊंचाई को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती है। जब तीनों एक सीधी रेखा में होते हैं, तब ज्वारीय उभार अधिकतम होगा। इनको वृहत ज्वार भाटा (Spring Tides) कहा जाता है।
- निम्न ज्वार – जब समुद्र का जलस्तर सामान्य से नीचे गिर जाता है, यानी समुद्री पानी तट से दूर हट जाता है, तो इस स्थिति को निम्न ज्वार (Neap Tide) भाटा कहते हैं।
- सूर्य, चंद्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वारभाटा – उच्च ज्वार की ऊंचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चंद्रमा के स्थिति पर निर्भर करती है। वृहत् ज्वार (Spring Tides) एवं निम्न ज्वार (Neap Tide) इसी वर्ग के अंतर्गत आते हैं।
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ज्वार भाटा का महत्व
जैसा कि आप जानते हैं कि पृथ्वी, चंद्रमा व सूर्य की स्थिति ज्वार की उत्पत्ति का कारण है और इनकी स्थिति के सही ज्ञान से ज्वारों का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। यह नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य संबंधी योजनाओं में मदद करता है। नौसंचालन में ज्वारीय प्रवाह का अत्यधिक महत्व है। ज्वार की ऊँचाई बहुत अधिक महत्वपूर्ण है, खासकर नदियों के किनारे वाले पोताश्रय पर एवं ज्वारनदमुख के भीतर, जहाँ प्रवेश द्वार पर छिछले रोधिका होते हैं, जो कि नौकाओं एवं जहाजों को पोताश्रय में प्रवेश करने से रोकते हैं। वहीं कई मछलियाँ ज्वार के समय किनारे की ओर आती हैं, जिससे मछुआरों को अधिक मछलियाँ पकड़ने में सहायता मिलती है।
ज्वार-भाटा तलछटों के डीसिल्टेशन (Desiltation) में भी मदद करती है तथा ज्वारनदमुख से प्रदूषित जल को बाहर निकालने में भी। ज्वार आने पर समुद्र तटों की सफाई करता है और वहाँ की गंदगी को वापस समुद्र में ले जाता है। यह प्राकृतिक प्रक्रिया तटीय पारिस्थितिकी तंत्र को संतुलित बनाए रखने में मदद करती है। इसके अलावा ज्वारों का इस्तेमाल विद्युत शक्ति उत्पन्न करने में भी किया जाता है।
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ज्वार-भाटा की हानियाँ
ज्वार-भाटा की हानियाँ निम्नलिखित हैं;-
- तटीय बस्तियों को नुकसान – अधिक ऊँचा ज्वार (जैसे तूफानी ज्वार) बाढ़ का कारण बन सकता है और तटीय इलाकों को नुकसान पहुँचा सकता है।
- कृषि और नमक उत्पादन में बाधा – ज्वार भाटा के समय पानी बहुत पीछे चला जाता है, जिससे खारे पानी का फैलाव हो सकता है, जो कृषि भूमि के लिए हानिकारक होता है।
- तटीय क्षरण – लगातार ज्वार-भाटा से तटीय भूमि कटने लगती है, जिससे भूमि हानि होती है।
- नौवहन में खतरा – अगर ज्वार का समय सही से नहीं जाना गया, तो जहाज फँस सकते हैं या दुर्घटनाएं हो सकती हैं।
- आधारभूत संरचनाओं को नुकसान – बंदरगाहों, सड़कों, पुलों और अन्य तटीय संरचनाओं को उच्च ज्वार के कारण क्षति पहुँच सकती है।
- ज्वारीय ऊर्जा परियोजनाओं से संभावित पर्यावरणीय प्रभाव – ज्वारीय ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए बनाए गए बांध और बैराज स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र को बाधित कर सकते हैं, मछली के प्रवास को रोक सकते हैं और तलछट के जमाव के पैटर्न को बदल सकते हैं।
FAQs
नदियों में सामान्यतः ज्वार-भाटा नहीं आता क्योंकि ज्वार-भाटा समुद्रों और महासागरों में होने वाली एक प्रक्रिया है, जो मुख्यतः चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण बड़े जल निकायों में जलस्तर के उतार-चढ़ाव के रूप में दिखाई देती है।
ज्वार-भाटा पृथ्वी, चंद्रमा और सूर्य की गुरुत्वीय क्रिया, पृथ्वी के घूर्णन और अपकेंद्रिय बल के कारण उत्पन्न होता है, जिससे समुद्र का जल स्तर नियमित रूप से ऊपर-नीचे होता है।
दीर्घ ज्वार (Spring Tides) हर महीने में लगभग दो बार आते हैं, जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा एक सीधी रेखा में होते हैं। बता दें कि यह स्थिति अमावस्या और पूर्णिमा के दौरान होती है।
ज्वार भाटा मुख्य रूप से चंद्रमा और सूर्य के गुरुत्वाकर्षण बल के कारण आता है। एक दिन में लगभग दो बार उच्च ज्वार (Spring Tide) और दो बार निम्न ज्वार (Neap Tide) आते हैं।
ज्वार-भाटा और नौसंचालन (Navigation) का गहरा संबंध है, विशेषकर समुद्री जहाजों, बंदरगाहों और तटीय क्षेत्रों में चलने वाले व्यापार और परिवहन के लिए। खासकर नदियों के किनारे वाले पोताश्रय पर एवं ज्वारनदमुख के भीतर, जहाँ प्रवेश द्वार पर छिछले रोधिका होते हैं, जो कि नौकाओं एवं जहाजों को पोताश्रय में प्रवेश करने से रोकते हैं।
आशा है कि आपको इस लेख में ज्वार भाटा किसे कहते हैं? (Jwar Bhata Kise Kahate Hain) की संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही सामान्य ज्ञान और ट्रेंडिंग इवेंट्स से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।