Dushyant Kumar ki Kavitayen: दुष्यंत कुमार की कविताएं, जो बनेंगी क्रांति और करुणा का प्रतीक

1 minute read
Dushyant Kumar ki Kavitayen

दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य के उन प्रमुख कवि और ग़ज़लकारों में से एक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में सामाजिक, राजनीतिक और व्यक्तिगत विषयों का बखूबी रूप से चित्रित किया है। दुष्यंत कुमार की रचनाएं सही मायनों में आम आदमी की आवाज़ को बुलंद करती हैं और व्यवस्था की खामियों पर करारा प्रहार करती हैं। दुष्यंत कुमार एक ऐसे कवि हैं जिन्होंने युवाओं को हिंदी साहित्य की अमृत धारा में गोते लगाने के लिए भी प्रेरित किया है। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कविताएं ही सही मायनों में समाज को सहासिक और निडर बनाती हैं, साथ ही समाज की हर कुरीति का कड़ा विरोध करती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको Dushyant Kumar ki Kavitayen पढ़ने का अवसर मिलेगा। दुष्यंत कुमार की रचनाएं विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके लिए विद्यार्थियों को उनकी रचनाओं को इस ब्लॉग के माध्यम से अंत तक पढ़ना होगा।

कौन थे दुष्यंत कुमार?

Dushyant Kumar ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको दुष्यंत कुमार का जीवन परिचय होना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कवि दुष्यंत कुमार जी भी थे, दुष्यंत कुमार एक लोकप्रिय हिंदी ग़ज़लकार भी थे। उनकी कविताएं सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों के प्रति प्रखरता से जागरूकता फैलाती थी, जो कि आज के समय में बेहद प्रासंगिक हैं। दुष्यंत कुमार का जन्म 1 सितंबर 1933 को, उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद के राजपुर नवादा में हुआ था।

दुष्यंत कुमार जी का मूल नाम दुष्यंत कुमार त्यागी थी, उन्होंने दसवीं कक्षा से ही कविताएं लिखना शुरू कर दिया था। अपने लेखन के आरंभिक दिनों में दुष्यंत कुमार जी ने “परदेशी” नाम से, अपनी कालजयी रचनाओं को समाज के लिए समर्पित किया था। यूँ तो दुष्यंत कुमार जी का लेखन कविता, नाटक, एकांकी, उपन्यास सदृश विधाओं में एकसमान था, लेकिन उनके द्वारा लिखित ग़ज़लों ने उनकी लोकप्रियता को बढ़ाने का काम किया। ‘हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं’ जैसी उनकी अभिव्यक्ति संसद से सड़क तक गूँजती है और आम आदमी उनमें अपनी आवाज़ की तलाश कर पाता है।

दुष्यंत कुमार जी की महान रचनाओं को संग्रहित करने के लिए ‘दुष्यंत कुमार स्मारक पांडुलिपि संग्रहालय’ के निर्माण किया गया। इसके साथ ही उनके सम्मान में भारत सरकार द्वारा उनके नाम की डाक टिकट भी जारी की गयी। एक महान व्यक्तित्व वाले आशावादी कवि और ग़ज़लकार दुष्यंत कुमार जी मात्र 42 वर्ष की आयु में 30 दिसम्बर 1975 को सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गए।

यह भी पढ़ें : पढ़िए दुष्यंत कुमार के अनमोल विचार

दुष्यंत कुमार की रचनाएं

दुष्यंत कुमार की रचनाएं आपका परिचय हिंदी साहित्य के समृद्धशाली इतिहास से करवाएंगी, जिसके लिए यहाँ आपको उनकी कविताओं को पढ़ने का अवसर मिलेगा। दुष्यंत कुमार की रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:

काव्य संग्रह

  • सूर्य का स्वागत
  • आवाज़ों के घेरे
  • जलते हुए वन का वसंत
  • अब और न सोएंगे हम
  • मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ
  • इसे भी देखो
  • अश्रुओं को पोंछ कर इत्यादि।

उपन्यास

  • छोटे-छोटे सवाल
  • आँगन में एक वृक्ष
  • दुहरी ज़िंदगी इत्यादि।

ग़ज़ल संग्रह

  • साये में धूप

कहानी संग्रह

  • मन के कोण

नाटक

  • और मसीहा मर गया

यह भी पढ़ें : राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविता

दुष्यंत कुमार की कविताएं – Dushyant Kumar ki Kavitayen

दुष्यंत कुमार की कविताएं (Dushyant Kumar ki Kavitayen) समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने में मुख्य भूमिका निभाती हैं, जो कुछ इस प्रकार हैं;

अब और न सोएंगे हम

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “अब और न सोएंगे हम” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

अब और न सोएंगे हम,
अब और न सोएंगे हम,
जिस दुनिया में
अन्याय और अत्याचार है।
अब और न सोएंगे हम,
अब और न सोएंगे हम,
जिस दुनिया में
गरीबी और भुखमरी है।
अब और न सोएंगे हम,
अब और न सोएंगे हम,
जिस दुनिया में
धर्म और जाति का भेद है।
अब और न सोएंगे हम,
अब और न सोएंगे हम,
जिस दुनिया में
युद्ध और संघर्ष है।

-दुष्यंत कुमार

अश्रुओं को पोंछ कर

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “अश्रुओं को पोंछ कर” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

अश्रुओं को पोंछ कर
मैंने तेरा चेहरा देखा,
तेरे होंठों पर मुस्कान थी,
पर आँखों में डर था।
मैंने तेरे हाथों को थामा,
तेरे दिल को छुआ,
तेरे सीने में धड़कन थी,
पर आवाज़ नहीं थी।
मैंने तेरे बालों को सहलाया,
तेरी आँखों में देखा,
तेरे चेहरे पर रोशनी थी,
पर आशा नहीं थी।

-दुष्यंत कुमार

यह भी पढ़ें : प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ

इसे भी देखो

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “इसे भी देखो” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

इसे भी देखो,
जिस दुनिया में
प्यार की बातें होती हैं,
वहाँ लोग एक-दूसरे से नफरत करते हैं।
इसे भी देखो,
जिस दुनिया में
शांति की बातें होती हैं,
वहाँ लोग एक-दूसरे से लड़ते हैं।
इसे भी देखो,
जिस दुनिया में
समानता की बातें होती हैं,
वहाँ लोग एक-दूसरे को नीचा दिखाते हैं।
इसे भी देखो,
जिस दुनिया में
धर्म और जाति की बातें होती हैं,
वहाँ लोग एक-दूसरे को मारते हैं।

-दुष्यंत कुमार

एक कवि की मौत हो गई

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “एक कवि की मौत हो गई” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

एक कवि की मौत हो गई,
लेकिन उसकी कविताएँ जीवित हैं।
उसकी कविताएँ लोगों को जगाएँगी,
और उन्हें नई दिशा दिखाएँगी।
एक कवि की मौत हो गई,
लेकिन उसका सपना जीवित है।
उसका सपना एक ऐसी दुनिया का है,
जहाँ प्यार, शांति और समानता हो।
एक कवि की मौत हो गई,
लेकिन उसका संघर्ष जीवित है।
उसका संघर्ष एक ऐसे समाज के लिए है,
जहाँ हर किसी को समान अधिकार हों।

-दुष्यंत कुमार

यह भी पढ़ें : लोहड़ी पर कविताएं पढ़कर करें इस पर्व का भव्य स्वागत!

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

मैं जिसे ओढ़ता-बिछाता हूँ, 
वो ग़ज़ल आपको सुनाता हूँ। 
एक जंगल है तेरी आँखों में, 
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ। 
तू किसी रेल-सी गुज़रती है, 
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ। 
हर तरफ़ एतराज़ होता है, 
मैं अगर रोशनी में आता हूँ। 
एक बाज़ू उखड़ गया जब से, 
और ज़्यादा वज़न उठाता हूँ। 
मैं तुझे भूलने की कोशिश में, 
आज कितने क़रीब पाता हूँ। 
कौन ये फ़ासला निभाएगा, 
मैं फ़रिश्ता हूँ सच बताता हूँ।

-दुष्यंत कुमार

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए

दुष्यंत कुमार की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए, 
कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। 
यहाँ दरख़्तों के साये में धूप लगती है, 
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। 
न हो क़मीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, 
ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए। 
ख़ुदा नहीं, न सही, आदमी का ख़्वाब सही, 
कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए। 
वे मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता, 
मैं बेक़रार हूँ आवाज़ में असर के लिए। 
तेरा निज़ाम है सिल दे ज़ुबान शाइर की, 
ये एहतियात ज़रूरी है इस बहर के लिए। 
जिएँ तो अपने बग़ीचे में गुलमोहर के तले, 
मरें तो ग़ैर की गलियों में गुलमोहर के लिए।

-दुष्यंत कुमार

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए

Dushyant Kumar ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, दुष्यंत कुमार जी की कविताओं और ग़ज़लों की श्रेणी में एक ग़ज़ल “हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

हो गई है पीर पर्वत-सी पिघलनी चाहिए, 
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए। 
आज यह दीवार, परदों की तरह हिलने लगी, 
शर्त लेकिन थी कि ये बुनियाद हिलनी चाहिए। 
हर सड़क पर, हर गली में, हर नगर, हर गाँव में, 
हाथ लहराते हुए हर लाश चलनी चाहिए। 
सिर्फ़ हंगामा खड़ा करना मेरा मक़सद नहीं, 
मेरी कोशिश है कि ये सूरत बदलनी चाहिए। 
मेरे सीने में नहीं तो तेरे सीने में सही, 
हो कहीं भी आग, लेकिन आग जलनी चाहिए।

-दुष्यंत कुमार

यह भी पढ़ें : पढ़िए हिंदी की महान कविताएं, जो आपके भीतर साहस का संचार करेंगी

दुष्यंत कुमार की लोकप्रिय कविता

दुष्यंत कुमार की लोकप्रिय कविता कुछ इस प्रकार हैं;

सूना घर

सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।

पहले तो लगा कि अब आईं तुम, आकर
अब हँसी की लहरें काँपी दीवारों पर
खिड़कियाँ खुलीं अब लिये किसी आनन को।

पर कोई आया गया न कोई बोला
खुद मैंने ही घर का दरवाजा खोला
आदतवश आवाजें दीं सूनेपन को।

फिर घर की खामोशी भर आई मन में
चूड़ियाँ खनकती नहीं कहीं आँगन में
उच्छ्वास छोड़कर ताका शून्य गगन को।

पूरा घर अँधियारा, गुमसुम साए हैं
कमरे के कोने पास खिसक आए हैं
सूने घर में किस तरह सहेजूँ मन को।

-दुष्यंत कुमार

एक आशीर्वाद

जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

भावना की गोद से उतर कर
जल्द पृथ्वी पर चलना सीखें।

चाँद तारों सी अप्राप्य ऊचाँइयों के लिये
रूठना मचलना सीखें।

हँसें
मुस्कुराएँ
गाएँ।

हर दीये की रोशनी देखकर ललचायें
उँगली जलाएँ।
अपने पाँव पर खड़े हों।
जा तेरे स्वप्न बड़े हों।

-दुष्यंत कुमार

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है

एक गुड़िया की कई कठपुतलियों में जान है
आज शायर यह तमाशा देखकर हैरान है

ख़ास सड़कें बंद हैं तब से मरम्मत के लिए
यह हमारे वक़्त की सबसे सही पहचान है

एक बूढ़ा आदमी है मुल्क़ में या यों कहो
इस अँधेरी कोठरी में एक रौशनदान है

मस्लहत-आमेज़ होते हैं सियासत के क़दम
तू न समझेगा सियासत, तू अभी नादान है

इस क़दर पाबन्दी-ए-मज़हब कि सदक़े आपके
जब से आज़ादी मिली है मुल्क़ में रमज़ान है

कल नुमाइश में मिला वो चीथड़े पहने हुए
मैंने पूछा नाम तो बोला कि हिन्दुस्तान है

मुझमें रहते हैं करोड़ों लोग चुप कैसे रहूँ
हर ग़ज़ल अब सल्तनत के नाम एक बयान है

-दुष्यंत कुमार

ये शफ़क़ शाम हो रही है अब

ये शफ़क़ शाम हो रही है अब
और हर गाम हो रही है अब

जिस तबाही से लोग बचते थे
वो सरे आम हो रही है अब

अज़मते—मुल्क इस सियासत के
हाथ नीलाम हो रही है अब

शब ग़नीमत थी, लोग कहते हैं
सुब्ह बदनाम हो रही है अब

जो किरन थी किसी दरीचे की
मरक़ज़े बाम हो रही है अब

तिश्ना—लब तेरी फुसफुसाहट भी
एक पैग़ाम हो रही है अब

-दुष्यंत कुमार

यह भी पढ़ें : विश्व हिंदी दिवस पर कविता

संबंधित आर्टिकल

Rabindranath Tagore PoemsHindi Kavita on Dr BR Ambedkar
Christmas Poems in HindiBhartendu Harishchandra Poems in Hindi
Atal Bihari Vajpayee ki KavitaPoem on Republic Day in Hindi
Arun Kamal Poems in HindiKunwar Narayan Poems in Hindi
Poem of Nagarjun in HindiBhawani Prasad Mishra Poems in Hindi
Agyeya Poems in HindiPoem on Diwali in Hindi
रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएंरामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता
Ramdhari singh dinkar ki kavitayenMahadevi Verma ki Kavitayen
Lal Bahadur Shastri Poems in HindiNew Year Poems in Hindi

आशा है कि इस ब्लॉग में आप दुष्यंत कुमार की कविताएं (Dushyant Kumar ki Kavitayen) और ग़ज़ल पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*