Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen: पढ़िए काका हाथरसी की वो महान कविताएं, जो आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी

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Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen

विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का उद्देश्य अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने का होता है, इसी ज्ञान की कड़ी में विद्यार्थियों को कविताओं की महत्वता को भी समझ लेना चाहिए। कविताएं समाज को साहसिक और निडर बनाती हैं, कविताएं मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। ऐसी ही कुछ महान कविताओं के रचनाकार “काका हाथरसी” भी थे, जिनकी लेखनी ने सदा सभी प्राणियों समाज मार्गदर्शन किया है। Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।

कौन हैं काका हाथरसी?

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen पढ़ने के पहले आपको काका हाथरसी जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि काका हाथरसी भी थे, जिनका पूरा नाम प्रभुलाल गर्ग था। काका हाथरसी एक ऐसे हास्य कवि थे, जिन्होंने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपनी बेबाकी राय रखी।

18 सितंबर, 1906 को काका हाथरसी का जन्म उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में हुआ था। काका हाथरसी जी ने हाथरस से ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद वर्ष 1926 में काका हाथरसी जी ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी साहित्य में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।

काका हाथरसी की महान रचनाओं में “आखिर हार गए हम”, “इश्क में पड़ गए”, “ये दुनिया है”, “हंसी के फूल”, “जीवन का सच”, “पढ़ लो ज़रा”, “ख़ुशी का हार”, “दिल में है”, “ज़िंदगी का सच” इत्यादि हैं। इन रचनाओं ने उनके लेखन को अमर कर दिया।

काका हाथरसी की महान रचनाओं के कारण उन्हें वर्ष 1958 में पद्मश्री, वर्ष 1966 में साहित्य अकादमी पुरस्कार और वर्ष 1972 में भारत सरकार द्वारा “आजीवन उपलब्धि” पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सदी के महान हास्य कवि ने 18 सितंबर, 1995 को अपनी अंतिम साँस ली।

चुनाव की चोट

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “चुनाव की चोट” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

हार गए वे, लग गई इलेक्शन में चोट। 
अपना-अपना भाग्य है, वोटर का क्या खोट? 

वोटर का क्या खोट, ज़मानत ज़ब्त हो गई। 
उस दिन से ही लालाजी को ख़ब्त हो गई॥ 

कह ‘काका’ कवि, बर्राते हैं सोते-सोते। 
रोज़ रात को लें, हिचकियाँ रोते-रोते॥

-काका हाथरसी

तथाकथित पत्रकार

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “तथाकथित पत्रकार” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

पत्रकार दादा बने, देखो उनके ठाठ। 
काग़ज़ का कोटा झपट, करें एक के आठ॥ 

करे एक के आठ, चल रही आपाधापी। 
दस हज़ार बतलाय, छपें ढाई सौ कापी॥ 

विज्ञापन दे दो तो, जय-जयकार कराएं। 
मना करो तो उल्टी-सीधी न्यूज़ छपाएं

-काका हाथरसी

खल-वंदना

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “खल-वंदना” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

प्रथम करूँ खल-वंदना, श्रद्धा से सिर नाय। 
मेरी कविता यों जमे, ज्यो कुल्फ़ी जम जाय॥ 

ज्यो कुल्फ़ी जम जाय, आप जब कविता नापें। 
बड़े-बड़े कविराज, मंच पर थर-थर कापें॥ 

करें झूठ को सत्य, सत्य को झूठ करा दें। 
रूठें जिस पर आप, उसी को हूट करा दें॥

-काका हाथरसी

गुड़ और चीनी

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “गुड़ और चीनी” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

चीनी हमले से हुई, मिस ‘चीनी’ बदनाम। 
गुड़ की इज़्ज़त बढ़ गई और बढ़ गए दाम॥ 

और बढ़ गए दाम, ‘गुलगुले’ तब बन पाए। 
सवा रुपए का एक किलो, गुड़ लेकर आए॥ 

कह ‘काका’, बीवी से बोला बुंदू भिश्ती। 
ग़ज़ब हो गया बेगम गुड़ से चीनी सस्ती॥

-काका हाथरसी

असली डाकू

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “असली डाकू” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

ये डाकू तो सूक्ष्म हैं, क्या समझावे मोहि। 
असली डाकू आप जब, तब मानूँगा तोहि॥ 

तब मानूँगा तोहि, पकड़ सत्ता की टाँगें। 
भोली जनता की छाती पर गोली दागें॥ 

कह ‘काका’, हथियार डाल दें भ्रष्टाचारी। 
‘जयप्रकाशनारायण’, तब जय होय तुम्हारी॥ 

चूहेदानी भर गई, चूहे पकड़े बीस। 
पुन: दूसरे दिन वही, घूम रहे पच्चीस॥ 

घूम रहे पच्चीस, प्रभु की अद्भुत माया। 
ऋषि-मुनियों ने इसका, समाधान नहीं पाया॥ 

कह ‘काका’ कवि, गुरु रिटायर जब हो जाते। 
चेला जी आकर, उस गद्दी पर जम जाते॥

-काका हाथरसी

चोटी के कवि

काका हाथरसी की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “चोटी के कवि” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

बोले माइक पकड़ कर, पापड़चंद ‘पराग’। 
चोटी के कवि ले रहे, सम्मेलन में भाग॥ 

सम्मेलन में भाग, महाकवि गामा आए। 
काका, चाचा, मामाश्री, पाजामा आए॥ 

हमने कहा, व्यर्थ जनता को क्यों बहकाते? 
दाढ़ी वालों को भी, चोटी का बतलाते॥

-काका हाथरसी

इश्क़ हक़ीक़ी

काका हाथरसी की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “इश्क़ हक़ीक़ी” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

रूठ गई हो प्रेमिका, बीज प्रेम के बोय। 
याद सताए रात-दिन, धक-धक दिन में होय॥ 

धक-धक दिल में होय, व्यर्थ जा रही जवानी। 
देख आज़माकर नुस्ख़ा, यह पाकिस्तानी॥ 

कह ‘काका’ कवि, तवा बाँधकर अपने सर पर। 
लेकर छाता कूदो, महबूबा के घर पर॥

-काका हाथरसी

अँगूठा छाप नेता

Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “अँगूठा छाप नेता” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

चपरासी या कलर्क जब करना पड़े तलाश। 
पूछा जाता—क्या पढ़े, कौन क्लास हो पास? 

कौन क्लास हो पास, विवाहित हो या क्वारे। 
शामिल रहते हो या मात-पिता से न्यारे? 

कह ‘काका’ कवि, छान-बीन काफ़ी की जाती। 
साथ सिफ़ारिश हो, तब ही सर्विस मिल पाती॥ 

कर्मचारियों के लिए, है अनेक दुख-द्वंद्व। 
नेताजी के वास्ते, एक नहीं प्रतिबंध॥ 

एक नहीं प्रतिबंध, मंच पर झाड़े लेक्चर। 
वैसे उनकी भैंस बराबर काला अक्षर॥ 

कह ‘काका’, दर्शन करवा सकता हूँ प्यारे। 
एम.एल.ए. कई, ‘अँगूठा छाप’ हमारे॥

-काका हाथरसी

तारिका बनाम दाढ़ी

काका हाथरसी की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “तारिका बनाम दाढ़ी” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

ईर्ष्या करने लग गए, क्लीन शेव्ड इंसान। 
फ़िल्म-जगत के बढ गया, दाढ़ी का सम्मान॥ 

दाढ़ी का सम्मान, देख दाढ़ी को डरती। 
वही तारिका आज, मुहब्बत इससे करती॥ 

‘राजश्री’ ने काका कवि की, लज्जा रख ली। 
अमरीकन दाढ़ी वाले से, शादी कर ली॥

-काका हाथरसी

ग़लती का छक्का

काका हाथरसी की कविताएं आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, काका हाथरसी जी की कविताओं में से एक कविता “ग़लती का छक्का” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

कभी ग़लती नहीं करता, उसे ‘भगवान’ कहते हैं। 
करे ग़लती ओ’ स्वीकारे, उसे ‘इंसान’ कहते हैं॥ 

न अपनी ग़लती पहचाने, उसे ‘हैवान’ कहते हैं। 
करे ग़लती, नही माने, उसे ‘शैतान’ कहते हैं॥ 

करे जो जानकर ग़लती पे ग़लती, और फिर ग़लती। 
तो उस शैतान के दादा को, ‘पाकिस्तान’ कहते है॥

-काका हाथरसी

आशा है कि Kaka Hathrasi ki Hasya Kavitayen के माध्यम से आप काका हाथरसी की कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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