मातृ दिवस पर कविता, जो ममता को मर्यादा को परिभाषित करेंगी!

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मातृ दिवस पर कविता

माँ एक ऐसा शब्द है जिसमें सारा संसार समाया है, माँ को ही मनुष्य का पहला गुरु माना जाता है क्योंकि माँ ही मानव को मानवता और करुणा का पाठ पढ़ाती है। माँ के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए विद्यार्थियों को कविताओं का सहारा लेना चाहिए। सही मायनों में कविताएं ही साहित्य का वो अभिन्न अंग होती हैं, जो समाज को माँ की ममता के प्रति समर्पित रहना सिखाती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप मातृ दिवस पर कविता पढ़कर कविताओं को अपनी माँ के साथ साझा कर सकते हैं। यह कविता आप में सकारात्मक परिवर्तन करने का काम करेंगी, जिनके लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक पढ़ना चाहिए।

मातृ दिवस पर कविता की सूची

इस मातृ दिवस पर कविता और उन्हें लिखने वाले कवियों की सूची पर भी एक नज़र डाल पाएंगे। मातृ दिवस पर कविता की सूची कुछ इस प्रकार है:

कविता का नामकवि का नाम
यह कदम्ब का पेड़सुभद्रा कुमारी चौहान
अम्मायोगेश छिब्बर ‘आनन्द’
शहीद की माँहरिवंश राय बच्चन
माँ की ममतामयंक विश्नोई (स्वलिखित)
हूँ मैं ही तुम्हारा वीर पुत्र!मयंक विश्नोई (स्वलिखित)

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यह कदम्ब का पेड़

मातृ दिवस पर कविताएं आपके जीवन में माँ के महत्व को बताएंगी, “यह कदम्ब का पेड़” एक ऐसी कविता है जिसका उद्देश्य आपको माँ की ममता की अनुभूति कराना है। मातृ दिवस पर कविता कुछ इस प्रकार है:

यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।
मैं भी उस पर बैठ कन्हैया बनता धीरे-धीरे।

ले देतीं यदि मुझे बांसुरी तुम दो पैसे वाली।
किसी तरह नीची हो जाती यह कदंब की डाली।

तुम्हें नहीं कुछ कहता पर मैं चुपके-चुपके आता।
उस नीची डाली से अम्मा ऊँचे पर चढ़ जाता।

वहीं बैठ फिर बड़े मजे से मैं बांसुरी बजाता।
अम्मा-अम्मा कह वंशी के स्वर में तुम्हे बुलाता।

बहुत बुलाने पर भी माँ जब नहीं उतर कर आता।
माँ, तब माँ का हृदय तुम्हारा बहुत विकल हो जाता।

तुम आँचल फैला कर अम्मां वहीं पेड़ के नीचे।
ईश्वर से कुछ विनती करतीं बैठी आँखें मीचे।

तुम्हें ध्यान में लगी देख मैं धीरे-धीरे आता।
और तुम्हारे फैले आँचल के नीचे छिप जाता।

तुम घबरा कर आँख खोलतीं, पर माँ खुश हो जाती।
जब अपने मुन्ना राजा को गोदी में ही पातीं।

इसी तरह कुछ खेला करते हम-तुम धीरे-धीरे।
यह कदंब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे।

-सुभद्रा कुमारी चौहान

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवियत्री ने बचपन की गलियों का पुनः भ्रमण किया है, जिसमें वह माँ की चिंता, माँ की ममता और माँ के दुलार को प्रस्तुत करने का सफल प्रयास करते हैं। यह कविता हमें माँ का सम्मान करना तो सिखाती ही है, साथ ही यह कविता हमें हमारे बचपन की भी याद दिलाती है।

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अम्मा

मातृ दिवस पर कविताएं आपका परिचय माँ की ममता से करवाएंगी, “अम्मा” एक ऐसी कविता है जिसका उद्देश्य आपको माँ की उपस्थिति का एहसास कराना है। मातृ दिवस पर कविता कुछ इस प्रकार है:

लेती नहीं दवाई अम्मा,
जोड़े पाई-पाई अम्मा।

दुःख थे पर्वत, राई अम्मा
हारी नहीं लड़ाई अम्मा।

इस दुनियां में सब मैले हैं 
किस दुनियां से आई अम्मा।

दुनिया के सब रिश्ते ठंडे 
गरमागरम रजाई अम्मा।

जब भी कोई रिश्ता उधड़े
करती है तुरपाई अम्मा।

बाबू जी तनख़ा लाये बस
लेकिन बरक़त लाई अम्मा।

बाबूजी थे छड़ी बेंत की 
माखन और मलाई अम्मा।

बाबूजी के पाँव दबा कर 
सब तीरथ हो आई अम्मा।

नाम सभी हैं गुड़ से मीठे 
माँ जी, मैया, माई, अम्मा।

सभी साड़ियाँ छीज गई थीं 
मगर नहीं कह पाई अम्मा।

अम्मा में से थोड़ी - थोड़ी 
सबने रोज़ चुराई अम्मा। 

घर में चूल्हे मत बाँटो रे 
देती रही दुहाई अम्मा।

बाबूजी बीमार पड़े जब 
साथ-साथ मुरझाई अम्मा।

लड़ते-लड़ते, सहते-सहते,
रह गई एक तिहाई अम्मा।

बेटी की ससुराल रहे खुश
सब ज़ेवर दे आई अम्मा।

अम्मा से घर, घर लगता है
घर में घुली, समाई अम्मा।

बेटे की कुर्सी है ऊँची, 
पर उसकी ऊँचाई अम्मा।

दर्द बड़ा हो या छोटा हो 
याद हमेशा आई अम्मा।

घर के शगुन सभी अम्मा से,
है घर की शहनाई अम्मा।

सभी पराये हो जाते हैं, 
होती नहीं पराई अम्मा।

-योगेश छिब्बर ‘आनन्द’

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने अम्मा यानी कि माँ की एक परिवार में क्या भूमिका होती है, यह बताने का प्रयास किया हैं। माँ के त्याग को समर्पण को दुनिया की कोई ताक़त झुठला नहीं सकती है, यह कविता हमें इसी बात का बोध कराती है। इस कविता के माध्यम से आप अपनी अम्मा के समर्पण का सम्मान करने में सक्षम बन पाएंगे।

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शहीद की माँ

मातृ दिवस पर कविताएं पढ़कर आप दुनिया की हर माँ को मातृ दिवस की शुभकामनाएं दे सकते हैं, “शहीद की माँ” एक ऐसी कविता है जिसका उद्देश्य समाज के समक्ष एक शहीद की माँ की व्यथा गाना है। मातृ दिवस पर कविता कुछ इस प्रकार है:

इसी घर से
एक दिन
शहीद का जनाज़ा निकला था,
तिरंगे में लिपटा,
हज़ारों की भीड़ में।
काँधा देने की होड़ में
सैकड़ो के कुर्ते फटे थे,
पुट्ठे छिले थे।
भारत माता की जय,
इंकलाब ज़िन्दाबाद,
अंग्रेजी सरकार मुर्दाबाद
के नारों में शहीद की माँ का रोदन
डूब गया था।
उसके आँसुओ की लड़ी
फूल, खील, बताशों की झडी में
छिप गई थी,
जनता चिल्लाई थी-
तेरा नाम सोने के अक्षरों में लिखा जाएगा।
गली किसी गर्व से
दिप गई थी।

इसी घर से
तीस बरस बाद
शहीद की माँ का जनाजा निकला है,
तिरंगे में लिपटा नहीं,
(क्योंकि वह ख़ास-ख़ास
लोगों के लिये विहित है)
केवल चार काँधों पर
राम नाम सत्य है
गोपाल नाम सत्य है
के पुराने नारों पर;
चर्चा है, बुढिया बे-सहारा थी,
जीवन के कष्टों से मुक्त हुई,
गली किसी राहत से
छुई छुई।

-हरिवंशराय बच्चन

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने एक शहीद की माँ की व्यथा को लिखने का सफल प्रयास किया है। यह कविता हर उस माँ की वंदना करती है जिसके बेटे ने मातृभूमि की रक्षा हेतु भारत माँ के लिए अपने प्राणों का महा-बलिदान किया है। इस कविता को पढ़कर आज की पीढ़ी के मन में एक संवेदना जागृत होगी, जो एक शहीद की माँ के हर दुखों को दूर करने का प्रयास करेगी।

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माँ की ममता

मातृ दिवस पर कविताएं पढ़कर आप माँ की ममता को महसूस कर पाएंगे, जो कि एक स्वलिखित कविता है। “माँ की ममता” एक ऐसी कविता है जिसका उद्देश्य समाज को माँ की ममता का महत्व बताना है। मातृ दिवस पर कविता कुछ इस प्रकार है:

“बच्चे हो जाते है ज्यों ही बड़े
निज पैरों पर हो जाते खड़े
त्यों ही गांव त्याग, शहर अपनाते हैं
शहर की हलचल में वो बच्चे कहीं खो जाते हैं

उन बच्चों को वो बचपन नहीं मिलता
भीड़भाड़ में भी उन्हें कोई अपना नहीं दिखता
माँ की ममता जीवनभर
बनती है उनका हमसफ़र
माँ की ममता से सृष्टि सृजन करती है
माँ की ममता के बिना एक तिनका भी नहीं पनपता

शहर खाने को दौड़ता है जब-जब
या कि सपने तोड़ता है जब-जब
साँसों की संरचना टूटने लगती है
कोई देहलीज़ छोड़ता है जब-जब
माँ की ममता आशाओं का विस्तार करती है
माँ की ममता पीड़ाओं पर प्रहार करती है…”

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने उस स्थिति का वर्णन किया है, जब कोई बच्चा अपने घर की दहलीज छोड़कर किसी नए शहर में अपना नया सफर शुरू करने जाता है। इस कविता में कवि ने माँ को जीवन का सच्चा हमसफ़र बताया है, एक ऐसा हमसफ़र जो सृष्टि का सृजन करता हो। कवि इस कविता में माँ के महत्व को बताने का सार्थक प्रयास करता है।

हूँ मैं ही तुम्हारा वीर पुत्र

मातृ दिवस पर कविताएं पढ़कर आप अपनी माँ के साथ यह कविता साझा कर सकते हैं, जो कि एक स्वलिखित कविता है। “हूँ मैं ही तुम्हारा वीर पुत्र” एक ऐसी कविता है जिसका उद्देश्य माँ को अपने यश का आधार बताना है। मातृ दिवस पर कविता कुछ इस प्रकार है:

“हूँ मैं ही तुम्हारा प्रतिबिंब
माँ तुम मेरा एक दर्पण हो
हूँ मैं ही तुम्हारी जयगाथा
माँ तुम ही मेरा समर्पण हो

हूँ मैं ही तुम्हारा वीर पुत्र
तुम ही मेरी माँ जननी हो
तुम ही निज जीवन की परभाषा
माँ तुम ही मेरी जगदंबा हो

जीवन की पीड़ाएं सहकर भी
न हारा मैं, न टूटा था
मैं वही तुम्हारा हिस्सा हूँ
जो तुमसे कभी न रूठा था

हूँ मैं ही तुम्हारा वीर पुत्र
जिसके शोणित का कण-कण केवल तुम्हारी जय-जयकार करे
हूँ मैं ही तुम्हारा शस्त्र वही
जो निराशाओं का संहार करे…”

-मयंक विश्नोई

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने अपनी माँ को शक्ति का स्वरुप माना है, यह कविता हमें बताती है कि हमें निज जीवन में जो कुछ सफलता मिलती है उसके पीछे माँ की मेहनत होती है। इस कविता में कवि ने माँ को देवी दुर्गा का स्वरुप बताया है, दुनिया की हर माँ में माँ जगदंबा का ही निवास होता है। यह कविता मातृशक्ति के सम्मान में लिखी गई कविता है, जिसका उद्देश्य समाज को माँ की ममता से परिचित करवाना है।

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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप मातृ दिवस पर कविता पढ़ पाएंगे, अपनी माँ के सामने मातृ दिवस पर कविताएं पढ़कर आप अपनी माँ को गर्व की अनुभूति करा सकते हैं। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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