विश्व हिंदी दिवस पर कविता: भारत एक विविधिता वाला देश है, जहाँ पग-पग पर भाषाएं, बोलियां और खान-पान में आसानी से बदलाव देखने को मिल जाता है। भारत की हर भाषा का अपना एक समृद्धशाली इतिहास रहा है। भारत की हर भाषा सम्मान के योग्य है, जिनमें से एक भाषा ‘हिन्दी’ भी है। वास्तविकता यही है कि भाषाओं का काम समाज को सशक्त करके सकारात्मकता की अलख जगाने का होता है। ‘हिन्दी भाषा’ के सम्मान और गौरवशाली इतिहास के संरक्षण के उद्देश्य से प्रत्येक वर्ष 10 जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस’ मनाया जाता है। इस लेख में आपके लिए विश्व हिंदी दिवस पर कविता दी गई हैं, जो विश्व में हिन्दी भाषा के साहित्य का प्रचार-प्रसार करेंगी।
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विश्व हिंदी दिवस पर कविता
विश्व हिंदी दिवस पर कविता पढ़कर आप कविताओं के माध्यम से हिंदी साहित्य का दर्शन कर पाएंगे। इस ब्लॉग में दी गई विश्व हिंदी दिवस पर कविता आपको हिंदी भाषा के महत्व के बारे में बताएंगी।
कलम, आज उनकी जय बोल
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
-रामधारी सिंह 'दिनकर'
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत करने का सफल प्रयास करते हैं। कवि ने इस कविता में उन वीर शहीदों का गुणगान किया है, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। इस कविता में कवि कहते हैं कि कलम, आज उन वीर शहीदों की जय बोल, जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान करके क्रान्ति की भावना जागृत की और देश में नई चेतना फैलाई। इन शहीदों ने बिना किसी मूल्य के कर्तव्य की पुण्यवेदी पर स्वयं को न्योछावर कर दिया, जिस कारण हम सभी स्वतंत्र हवाओं में सांस ले पा रहे हैं।
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जय हिंदी
संस्कृत से जन्मी है हिन्दी,
शुद्धता का प्रतीक है हिन्दी ।
लेखन और वाणी दोनो को,
गौरान्वित करवाती हिन्दी ।
उच्च संस्कार, वियिता है हिन्दी,
सतमार्ग पर ले जाती हिन्दी ।
ज्ञान और व्याकरण की नदियाँ,
मिलकर सागर सोत्र बनाती हिन्दी ।
हमारी संस्कृति की पहचान है हिन्दी,
आदर और मान है हिन्दी ।
हमारे देश की गौरव भाषा,
एक उत्कृष्ट अहसास है हिन्दी ।।
-प्रतिभा गर्ग
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवियत्री हिंदी भाषा के जन्म से लेकर, हिंदी भाषा के साहित्य की महत्वता को चित्रित करने का सफल प्रयास करती हैं। इस कविता में हिंदी को संस्कारों की भाषा कहा गया है। कवियत्री का उद्देश्य इस कविता के माध्यम से हिंदी को भारत राष्ट्र की उन्नति और संस्कृति का प्रतीक बताती हैं।
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि अपनी भाषा की उन्नति को ही सभी उन्नतियों का मूल आधार मानते है। इस कविता के माध्यम से कवि का उद्देश्य यह बताना है कि बिना अपनी भाषा के ज्ञान के, मन की पीड़ा दूर नहीं हो सकती। इसीलिए मानव को अपनी मातृभाषा से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है।
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भाल का शृंगार
माँ भारती के भाल का शृंगार है हिंदी
हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी
घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी
स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी
तुलसी, कबीर, सूर औ' रसखान के लिए
ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी
सिद्धांतों की बात से न होयगा भला
अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी
कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में
उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी
माना कि रख दिया है संविधान में मगर
पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी
सुन कर के तेरी आह 'व्योम' थरथरा रहा
वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी
-डॉ जगदीश व्योम
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि हिंदी के महत्व को समझाते हुए समाज को जागृत करने का प्रयास करते हैं। कवि कविता में हिंदी को उस पतवार के समान मानते है, जो संघर्षों के समय में भी आपको आराम से निकाल लाएगी और सफलता की देहलीज तक ले जायेगी। कविता में हिंदी की हुई अनदेखी से कवि का मन व्याकुल हो उठता है, जिसके लिए कविता में कवि हिंदी को एक दिन तलवार बनने का भी वरदान देते हैं। यह एक ऐसी तलवार होगी, जो अपनी हुई अनदेखी का स्वयं न्याय करेगी।
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पुष्प की अभिलाषा
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि स्वयं को उस फूल की भांति मानते हैं, जो मातृभूमि की रक्षा में समर्पित सैनिकों की चरणों की वंदना करता है। यह कविता राष्ट्रहित की भावना का विस्तार करती है। इस कविता का उद्देश्य युवाओं में देशभक्ति की भावना को जागृत करना है।
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हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं
यहाँ आपके लिए हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं पढ़कर आप विश्व हिंदी दिवस 2025 को अच्छे से मना सकेंगे। हिंदी भाषा पर प्रसिद्ध कविताएं निम्नलिखित हैं –
अभिनंदन अपनी भाषा का
करते हैं तन-मन से वंदन, जन-गण-मन की अभिलाषा का
अभिनंदन अपनी संस्कृति का, आराधन अपनी भाषा का।
यह अपनी शक्ति सर्जना के माथे की है चंदन रोली
माँ के आँचल की छाया में हमने जो सीखी है बोली
यह अपनी बँधी हुई अंजुरी ये अपने गंधित शब्द सुमन
यह पूजन अपनी संस्कृति का यह अर्चन अपनी भाषा का।
अपने रत्नाकर के रहते किसकी धारा के बीच बहें
हम इतने निर्धन नहीं कि वाणी से औरों के ऋणी रहें
इसमें प्रतिबिंबित है अतीत आकार ले रहा वर्तमान
यह दर्शन अपनी संस्कृति का यह दर्पण अपनी भाषा का।
यह ऊँचाई है तुलसी की यह सूर-सिंधु की गहराई
टंकार चंद वरदाई की यह विद्यापति की पुरवाई
जयशंकर की जयकार निराला का यह अपराजेय ओज
यह गर्जन अपनी संस्कृति का यह गुंजन अपनी भाषा का।
-सोम ठाकुर
भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में
प्लास्टिक के पेड़
नाइलॉन के फूल
रबर की चिड़ियाँ
टेप पर भूले-बिसरे
लोकगीतों की
उदास लड़ियाँ
एक पेड़ जब सूखता
सबसे पहले सूखते
उसके सबसे कोमल हिस्से
उसके फूल
उसकी पत्तियाँ
एक भाषा जब सूखती
शब्द खोने लगते अपना कवित्व
भावों की ताज़गी
विचारों की सत्यता
बढ़ने लगते लोगों के बीच
अपरिचय के उजाड़ और खाइयाँ
सोच में हूँ कि सोच के प्रकरण में
किस तरह कुछ कहा जाए
कि सबका ध्यान उनकी ओर हो
जिनका ध्यान सबकी ओर है
कि भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में
आग यदि लगी तो पहले वहाँ लगेगी
जहाँ ठूँठ हो चुकी होंगी
अपनी ज़मीन से रस खींच सकनेवाली शक्तियाँ।
-कुँवर नारायण
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मातृभाषा हिंदी पर कविता
मातृभाषा हिंदी पर कविता पढ़कर आप अपने जीवन में इसका महत्व जान पाएंगे, साथ ही विश्व हिंदी दिवस 2025 में यह कविताएं हिंदी भाषा के प्रचार-प्रसार में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। मातृभाषा हिंदी पर कविता कुछ इस प्रकार है –
हिंदी का जयकार
बनने चली विश्व भाषा जो,
अपने घर में दासी,
सिंहासन पर अंग्रेजी है,
लखकर दुनिया हांसी,
लखकर दुनिया हांसी,
हिन्दी दां बनते चपरासी,
अफसर सारे अंग्रेजी मय,
अवधी या मद्रासी,
गूंजी हिन्दी विश्व में
गूंजी हिन्दी विश्व में,
स्वप्न हुआ साकार;
राष्ट्र संघ के मंच से,
हिन्दी का जयकार;
हिन्दी का जयकार,
हिन्दी हिन्दी में बोला;
देख स्वभाषा-प्रेम,
विश्व अचरज से डोला;
कह कैदी कविराय,
मेम की माया टूटी;
भारत माता धन्य,
स्नेह की सरिता फूटी!
-अटल बिहारी वाजपेयी
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