Amrita Pritam Poems: पढ़िए अमृता प्रीतम की वो महान कविताएं, जो आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी

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Amrita Pritam Famous Poems

अमृता प्रीतम एक कवियत्री हैं, जिन्होंने पंजाबी भाषा के साहित्य में अपना अविस्मरणीय योगदान दिया और अपनी अमिट पहचान बनाई। अमृता प्रीतम ने हर बार अपने लेखन से समाज को प्रेम की परिभाषा समझाने और भावनाओं का भार उठाने का प्रयास किया। अमृता प्रीतम को पंजाबी साहित्य की पहली कवियत्री के रूप में भी जाना जाता है। इस पोस्ट के माध्यम से आप Amrita Pritam Famous Poems की जानकारी प्राप्त कर पाएंगे, जिसके लिए आपको यह पोस्ट अंत तक पढ़नी होगी।

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कौन हैं अमृता प्रीतम?

Amrita Pritam Poems पढ़ने के पहले आपको अमृता प्रीतम जी का जीवन परिचय होना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कवियत्री अमृता प्रीतम जी भी थी, जिन्होंने पंजाबी साहित्य के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। अमृता प्रीतम का जन्म 31 अगस्त 1919 ई० को, पंजाब (भारत) के गुजरांवाला जिले में हुआ था।

अमृता प्रीतम जी का बचपन लाहौर में बीता, जहाँ से उन्होंने शिक्षा प्राप्त की। उनकी विधा गद्य और पद्य दोनों रूपों में मजबूत थी। अमृता प्रीतम जी ने किशोरावस्था से ही लिखना शुरू कर दिया था, जिसकी शुरुआत उन्होंने कविता, कहानी और निबंध लिखने से की थी। लेखन में उनकी रूचि ने उन्हें पंजाबी की सुप्रसिद्ध कवियत्री का सम्मान दिया।

अमृता प्रीतम एक पंजाबी भाषा की लेखिका और कवियत्री थीं, जिन्होंने सदैव पंजाबी भाषा को साहित्य के श्रृंगार से श्रृंगारित किया। उन्होंने कुल मिलाकर लगभग 100 पुस्तकें लिखी हैं, जिनमें उनकी चर्चित आत्मकथा ‘रसीदी टिकट’ भी शामिल है। अमृता प्रीतम की गिनती उन चंद महान साहित्यकारों में होती है, जिनकी कृतियों का समय-समय पर अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ।

जीवन भर साहित्य के आँगन को अपने शब्दों से सजाने वाली अमृता प्रीतम एक महान लेखिका थी। साहित्य के क्षेत्र में उनके अविस्मरणीय योगदान के चलते उन्हें, साहित्य अकादमी पुरस्कार तथा पद्मविभूषण से सम्मानित किया गया। जीवन भर अपनी साहित्य की समझ से समाज को प्रेरित करने वाली अमृता प्रीतम, 86 वर्ष की आयु में 31 अक्टूबर 2005 को पंचतत्व में विलीन हो गयीं।

Amrita Pritam Poems

मैं तुम्हें फिर मिलूँगी

Amrita Pritam Poems आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, अमृता प्रीतम जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मैं तुम्हें फिर मिलूँगी” भी है, जिसका अनुवाद अमिया कुँवर द्वारा किया गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

“मैं तुम्हें फिर मिलूँगी 
कहाँ? किस तरह? नहीं जानती 
शायद तुम्हारे तख़्ईल की चिंगारी बन कर 
तुम्हारी कैनवस पर उतरूँगी 
या शायद तुम्हारी कैनवस के ऊपर 
एक रहस्यमय रेखा बन कर 
ख़ामोश तुम्हें देखती रहूँगी 
या शायद सूरज की किरन बन कर 
तुम्हारे रंगों में घुलूँगी 
या रंगों की बाँहों में बैठ कर 
तुम्हारे कैनवस को 
पता नहीं कैसे-कहाँ? 
पर तुम्हें ज़रूर मिलूँगी 
या शायद एक चश्मा बनी होऊँगी 
और जैसे झरनों का पानी उड़ता है 
मैं पानी की बूँदें 
तुम्हारे जिस्म पर मलूँगी 
और एक ठंडक-सी बन कर 
तुम्हारे सीने के साथ लिपटूँगी… 
मैं और कुछ नहीं जानती 
पर इतना जानती हूँ 
कि वक़्त जो भी करेगा 
इस जन्म मेरे साथ चलेगा… 
यह जिस्म होता है 
तो सब कुछ ख़त्म हो जाता है 
पर चेतना के धागे
कायनाती कणों के होते हैं 
मैं उन कणों को चुनूँगी 
धागों को लपेटूँगी 
और तुम्हें मैं फिर मिलूँगी…

-अमृता प्रीतम

मुलाक़ात

Amrita Pritam Poems आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, अमृता प्रीतम जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मुलाक़ात” भी है, जिसका अनुवाद अमिया कुँवर द्वारा किया गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

मुझे पल भर के लिए आसमान को मिलना था ?
पर घबराई हुई खड़ी थी… 
कि बादलों की भीड़ में से कैसे गुज़रूँगी… 
कई बादल स्याह काले थे 
ख़ुदा जाने—कब के और किन संस्कारों के 
कई बादल गरजते दिखते 
जैसे वे नसीब होते हैं राहगीरों के… 
कई बादल घूमते, चक्कर खाते 
खँडहरों के खोल से उठते खतरों जैसे… 
कई बादल उठते और गिरते थे 
कुछ पूर्वजों की फटी पत्रियों जैसे… 
कई बादल घिरते और घूरते दिखते 
कि सारा आसमान उनकी मुट्ठी में हो 
और जो कोई भी इस राह पर आए 
वह ज़र ख़रीद ग़ुलाम की तरह आए… 
मैं नहीं जानती थी कि क्या और किसे कहूँ 
कि काया के अंदर एक आसमान होता है 
और उसकी मोहब्बत का तकाज़ा… 
वह कायनाती आसमान का दीदार माँगता है… 
पर बादलों की भीड़ की यह जो भी फ़िक्र थी 
यह फ़िक्र उसका नहीं, मेरा थी 
उसने तो इश्क़ की एक कनी खा ली थी 
और एक दरवेश की मानिंद उसने 
मेरे श्वासों की धूनी रमा ली थी… 
मैंने उसके पास बैठ कर धूनी की आग छेड़ी 
कहा—ये तेरी और मेरी बातें… 
पर ये बातें—बादलों का हुजूम सुनेगा 
तब बता योगी! मेरा क्या बनेगा? 
वह हँसा— 
एक नीली और आसमानी हँसी 
कहने लगा— 
ये धुएँ के अंबार होते हैं— 
घिरना जानते 
गरजना भी जानते 
निगाहों को बरजना भी जानते 
पर इनके तेवर 
तारों में नहीं उगते 
और नीले आसमान की देह पर 
इल्ज़ाम नहीं लगते… 
मैंने फिर कहा— 
कि तुम्हें सीने में लपेट कर 
मैं बादलों की भीड़ में से 
कैसे गुजरूँगी? 
और चक्कर खाते बादलों से 
मैं कैसे रास्ता माँगूँगी? 
ख़ुदा जाने— 
उसने कैसी तलब पी थी 
बिजली की लकीर की तरह 
उसने मुझे देखा, 
कहा— 
तुम किसी से रास्ता न माँगना 
और किसी भी दीवार को 
हाथ न लगाना 
न घबराना 
न किसी के बहलावे में आना 
और बादलों की भीड़ में से— 
तुम पवन की तरह गुज़र जाना।

-अमृता प्रीतम

मन योगी तन भस्म भया

Amrita Pritam Poems आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, अमृता प्रीतम जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मन योगी तन भस्म भया” भी है, जिसका अनुवाद अमिया कुँवर द्वारा किया गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

मन योगी तन भस्म भया 
तू कैसो हर्फ़ कमाया 
अज़ल के योगी ने फूँक जो मारी 
इश्क़ का हर्फ़ अलाया… 
धूनी तपती मेरे मौला वाली 
मस्तक नाद सुनाई दे 
अंतर में एक दीया जला 
आस्मान तक रोशनाई दे 
कैसो रमण कियो रे जोगी! 
किछु न रहियो पराया 
मन योगी तन भस्म भया 
तू ऐसी हर्फ़ कमाया.

-अमृता प्रीतम

मरुस्थल की लीला

Amrita Pritam Poems आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, अमृता प्रीतम जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मरुस्थल की लीला” भी है, जिसका अनुवाद अमिया कुँवर द्वारा किया गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

एक गहरी शाम थी 
वह रेत के टीले पर बैठी 
अँधेरे का तागा 
उँगलियों पर लपेटती रही… 
फिर ऊपर आसमान पर 
एक तारा चमका 
और रोशनी की किरण को 
वह देह पर मलती रही… 
दूर अँधेरे की घाटी से 
कुछ घंटियों की आवाज़ आई 
कि जैसे एक डाची (ऊँटनी) 
किसी सफ़र पर चली हो 
वह टीले से उतर आई 
घंटियों की सीध में खड़ी हुई तो लगा— 
कोई बात थी 
जो इस राह से गुज़र रही हो… 
ये मरुस्थलों की लीला 
चाँद की कतरन ने देखी 
और वह जो, रेगिस्तान में खड़ी थी 
खड़ी-सी रह गई, 
और अँधेरे स्थलों की ओर से— 
जो एक डाची आई थी 
वह घुटनों के भार 
उसके पैरों में बैठ गई… 
उसकी काँपती हथेली ने 
डाची के बदन को छुआ 
डाची ने गर्दन हिलाई 
तब नहीं मालूम, वह क्या था 
जो घंटियों में टुनका 
और किसी काल का स्मरण
किसी ने हल्के से 
छाती पर छिटका… 
वह डाची पर बैठी, तब एक विरह का दुख 
उसके पैरों तले पाँव की रेत-सा झड़ने लगा,
चाँद की कतरन ने जादू बिछाया 
तो दूर कितने ही साए 
कुछ दौड़ते-हाँफते नज़र आए 
और उसके कलेजे की तरह 
रेत का दिल डूबने लगा… 
एक सोच उसके मस्तक से टकराई— 
कि उत्तर दिशा की ओर 
कुछ झाड़ियों के पीछे 
एक पानी का छप्पड़ है, 
और उस प्यासी ने, 
जब डाची को उस दिशा में मोड़ा 
तब वह बिना नकेल की डाची 
दक्षिण दिशा की ओर भागी… 
रेत के गुबार उठते रहे 
वे कभी डाची से आगे भागते, 
कभी पीछे से ऐसे आते 
जैसे डाची का निशान तलाश रहे हों, 
और कोई-कोई यूँ दिखते 
कि उसे पहचाने हुए लगते 
वह याद की मुट्ठी भरती 
तब मुट्ठी से रेत की तरह फिसल जाते… 
एक जगह लगा कि कोई 
कुछ रेत में दबा रहा है 
और रेत की एक क़ब्र के पीछे 
वह ख़ुद भी छुप रहा, 
और दूर कोई और नज़र आ रहा था 
शायद कुछ बताना चाह रहा था 
जो रेत पर उँगलियों से 
जाने कितना कुछ लिख रहा… 
इतने में एक आफ़त-सी 
एक बवंडर की तरह आई 
और झपट कर उसे 
डाची से उतारने लगी 
तब डाची ने ज़ोर से गर्दन हिलाई… 
एक घंटी चीख़ की तरह बजी 
और कहीं से एक साया आया, 
उसने बाज़ुओं को आगे किया 
और डाची वाली को थाम लिया… 
सुन ओ डाची वाली! 
कानों के पास से एक पवन सरकी 
और टूटी रही आवाज़ में 
कहने लगी— 
ये कई जन्मों की स्मृतियाँ 
अगर किसी ने घंटियों से बाँध दीं 
यह मरुस्थल की लीला 
कुछ खोल देगी 
पर तुम्हारी यह बिन नकेल की डाची 
तुम्हें मरुस्थल में भटका देगी… 
यूँ मरुस्थल में नहीं जाते 
उस पवन ने कानों में कहा 
पहले तो पर्वतों पर जाते हैं 
अंतर का दीया जगाते हैं 
और रूठे हुए 
फ़क़ीर को मनाते हैं 
वह डाची को चंदन चराता है 
आसमान का पानी पिलाता है 
और अपने हाथों से 
डाची को नकेल डालता है… 
यह चेतना की एक किरन थी 
जो उसके मस्तक को छुई 
तब अपने वजूद के 
स्थलों में चलती 
पगडंडी पर चढ़ने लगी, 
ऊपर पहाड़ से 
एक महक आ रही थी 
जो उसके पीर का 
कुछ पता देती थी 
और उसने देखा 
कि उसके पीछे-पीछे 
उसकी डाची भी चली आ रही थी

-अमृता प्रीतम

मेरी ख़ता

Amrita Pritam Poems आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, अमृता प्रीतम जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “मेरी ख़ता” भी है, जिसका अनुवाद अमिया कुँवर द्वारा किया गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

“जाने किन रास्तों से होती 
और कब की चली 
मैं उन रास्तों पर पहुँची 
जहाँ फूलों लदे पेड़ थे 
और इतनी महक थी— 
कि साँसों से भी महक आती थी 
अचानक दरख़्तों के दरमियान 
एक सरोवर देखा 
जिसका नीला और शफ़्फ़ाफ़ पानी 
दूर तक दिखता था— 
मैं किनारे पर खड़ी थी तो दिल किया 
सरोवर में नहा लूँ 
मन भर कर नहाई 
और किनारे पर खड़ी 
जिस्म सुखा रही थी 
कि एक आसमानी आवाज़ आई 
यह शिव जी का सरोवर है… 
सिर से पाँव तक एक कँपकँपी आई 
हाय अल्लाह! यह तो मेरी ख़ता 
मेरा गुनाह— 
कि मैं शिव के सरोवर में नहाई 
यह तो शिव का आरक्षित सरोवर है 
सिर्फ़… उनके लिए 
और फिर वही आवाज़ थी 
कहने लगी— 
कि पाप-पुण्य तो बहुत पीछे रह गए 
तुम बहूत दूर पहुँचकर आई हो 
एक ठौर बँधी और देखा 
किरनों ने एक झुरमुट-सा डाला 
और सरोवर का पानी झिलमिलाया 
लगा—जैसे मेरी ख़ता पर 
शिव जी मुस्करा रहे…”

-अमृता प्रीतम

Amrita Pritam Famous Poems

अमृता प्रीतम एक ऐसी महान कवियत्री थी, जिनकी कालजयी रचनाओं ने समाज का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया। Amrita Pritam Famous Poems के बारे में आप निम्नलिखित बिंदुओं के माध्यम से सरलता से समझ सकते हैं-

  • पहचान
  • कुफ़्र
  • शहर
  • लोक पीड़
  • मैं जमा तू 
  • लामियाँ वतन
  • कस्तूरी
  • सुनहुड़े

नोट : उपरोक्त कविताओं के साथ-साथ, 18 कविता संग्रह भी इसी क्रम में आते हैं।

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FAQs 

अमृता प्रीतम को ज्ञानपीठ पुरस्कार कब मिला?

वर्ष 1982 में अमृता प्रीतम को ज्ञानपीठ पुरस्कार मिला।

रसीदी टिकट किसकी आत्मकथा है?

रसीदी टिकट अमृता प्रीतम की लिखी आत्मकथा है।

अमृता प्रीतम किस लिए प्रसिद्ध है?

अमृता प्रीतम अपनी मार्मिक कविताओं, विभाजन में नरसंहारों की पीड़ाओं का गान करने वाली महिला थी, जिनके मन में पंजाबी साहित्य के प्रति अपार स्नेह था।

आशा है कि आपको Amrita Pritam Poems से जुड़ी सम्पूर्ण जानकारी मिल गई होगी, साथ ही यह पोस्ट आपको इंफॉर्मेटिव और इंट्रस्टिंग लगी होगी। इसी प्रकार की अन्य जानकारी के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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