कारगिल विजय दिवस पर कविता पढ़कर, लिखकर या मंचों से इन कविताओं को गाकर भारतीय सेना के उन वीरों की वीरगाथाओं को जन-जन तक पहुँचाया जा सकता है, जिन्होंने भारत की स्वतंत्रता और भारतीय सीमाओं के संरक्षण के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दिया। कारगिल विजय दिवस भारतीय सेना के अदम्य साहस, मातृभूमि के प्रति उनके प्रेम और बलिदान हुए सैनिकों को श्रद्धा सुमन अर्पित करने का दिन है। कारगिल विजय दिवस एक ऐसा ऐतिहासिक दिन है, जिस दिन माँ भारती के सूरवीरों ने अपने प्राणों की आहुति देकर भी भारत राष्ट्र की अखंडता, अस्मिता और स्वतंत्रता की रक्षा की थी। इस दिन शहीदों की गौरवगाथाएं गा कर या सुना कर आने वाली पीढ़ी में राष्ट्रवाद का बीज बोया जाता है। इस ब्लॉग में आपको कारगिल विजय दिवस पर कविता पढ़ने का अवसर मिलेगा, जो भारतीय सेना की शौर्यगाथाएं गाकर आपको प्रेरणा करेंगी।
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कारगिल विजय दिवस पर कविता : भारतीय सेना को समर्पित कुछ कविताएँ
कारगिल विजय दिवस भारतीय सेना पर गौरव का दिन होता है, इस दिन पर समाज को प्रेरित करने के लिए कई कविताएं लिखी व गाई जाती हैं। इस कारगिल विजय दिवस पर आपके सामने कुछ लोकप्रिय कविताएं और उन कविताओं के रचियताओं के नाम नीचे सूची में दिए गए हैं-
कविता का नाम | कवि का नाम |
भारत का हर वीर सिपाही | मयंक विश्नोई |
रगो में बहता रक्त | मयंक विश्नोई |
कारगिल की माटी | मयंक विश्नोई |
कारगिल शहीदों की स्मृतियां | हरिओम पवार |
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा | श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ |
न चाहूँ मान दुनिया में | राम प्रसाद बिस्मिल |
भारत का हर वीर सिपाही
“वीरता का प्रतीक वह, साहस का उचित सम्मान है
भारत का हर वीर सिपाही मातृभूमि की शान है
संकट के समय सदा ही, वह ढाल बन जाता है
समस्याओं से भरे सफर में, सफलता का पथ बनाता है
मानवता का शास्वत प्रमाण वह
साहस का करता प्रचार वह
आँखों में भरकर अंगार शत्रुओं के आगे तन जाता है
भारत का हर वीर सिपाही, भारत की आत्मा कहलाता है
बलिदानों से सुसज्जित स्वतंत्रता को
युग परिवर्तन की गाथा, गणतंत्रता को
निज माथे पर सजाता है वह
आज़ादी का मोल चुकाता है वह
शस्त्रों को धारण कर रण में महाकाल बन जाता है
भारत का हर वीर सिपाही, अन्याय के तमस को मिटाता है…”
-मयंक विश्नोई
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रगो में बहता रक्त
“माटी में घुला उनका रक्त सींचता है भविष्य की फसलों को
जिनकी वीरता राह दिखाए, आने वाली नस्लों को
मानवता की असली रक्षक हिन्द की सेना है
जो अपने दम पर अकेले मिटाती विश्व के मसलों को
उन्हीं वीरों की संतान हैं,
हम उनके समर्पण के सच्चे भक्त हैं
हम साहसी हैं क्योंकि हमारी रगो में
बहता उन्हीं वीरों का रक्त है
रगो में बहता रक्त
पानी नहीं, जिम्मेदारी है जो विरासत में मिली है हम को
जिम्मेदारी जिसकी आहट में भारत है केवल
जिम्मेदारी जिसके हर विचार में भारत है केवल…”
-मयंक विश्नोई
कारगिल की माटी
“कारगिल की माटी सिंचित है वीरों के बलिदानी लहूं से
कारगिल की हवाओं में वीरता की महक है
कारगिल की राहें चूमती हैं कदम उन वीरों के
जिन वीरों ने कारगिल के वजूद के लिए बलिदान किए
हिन्द की सेना, हिन्द का करती जयगान है
हिन्द की सेना, हिन्द की एकता की पहचान है
कारगिल में लहराता तिरंगा
प्रतीक है सभ्यताओं की रक्षा का
कारगिल की सादगी भी
प्रतीक है विचारों की सुरक्षा का
कारगिल की माटी पर बलिदान देने वाला हर वीर महान हैं
उनके बलिदानों के कारण ही हम और आप आज़ाद हैं….”
-मयंक विश्नोई
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कारगिल विजय दिवस पर कविता : प्रसिद्द कविओं द्वारा लिखी गई कविता
प्रसिद्द कवि हरी ओम पंवार द्वारा लिखी गई कारगिल विजय दिवस पर कविता नीचे दी गई है:
मैं केशव का पाञ्चजन्य भी गहन मौन में खोया हूँ
उन बेटों की आज कहानी लिखते-लिखते रोया हूँ
जिस माथे की कुमकुम बिन्दी वापस लौट नहीं पाई
चुटकी, झुमके, पायल ले गई कुर्बानी की अमराई
कुछ बहनों की राखियां जल गई हैं बर्फीली घाटी में
वेदी के गठबन्धन खोये हैं कारगिल की माटी में
पर्वत पर कितने सिन्दूरी सपने दफन हुए होंगे
बीस बसंतों के मधुमासी जीवन हवन हुए होंगे
टूटी चूड़ी, धुला महावर, रूठा कंगन हाथों का
कोई मोल नहीं दे सकता वासन्ती जज्बातों का
जो पहले-पहले चुम्बन के बाद लाम पर चला गया
नई दुल्हन की सेज छोड़कर युद्ध-काम पर चला गया
उनको भी मीठी नीदों की करवट याद रही होगी
खुशबू में डूबी यादों की सलवट याद रही होगी
उन आँखों की दो बूंदों से सातों सागर हारे हैं
जब मेंहदी वाले हाथों ने मंगलसूत्र उतारे हैं
गीली मेंहदी रोई होगी छुपकर घर के कोने में
ताजा काजल छूटा होगा चुपके-चुपके रोने में
जब बेटे की अर्थी आई होगी सूने आँगन में
शायद दूध उतर आया हो बूढ़ी माँ के दामन में
वो विधवा पूरी दुनिया का बोझा सिर ले सकती है
जो अपने पति की अर्थी को भी कंधा दे सकती है
मैं ऐसी हर देवी के चरणों में शीश झुकाता हूँ
इसीलिए मैं कविता को हथियार बनाकर गाता हूँ
जिन बेटों ने पर्वत काटे हैं अपने नाखूनों से
उनकी कोई मांग नहीं है दिल्ली के कानूनों से
जो सैनिक सीमा रेखा पर ध्रुव तारा बन जाता है
उस कुर्बानी के दीपक से सूरज भी शरमाता है
गर्म दहानों पर तोपों के जो सीने अड़ जाते हैं
उनकी गाथा लिखने को अम्बर छोटे पड़ जाते हैं
उनके लिए हिमालय कंधा देने को झुक जाता है
कुछ पल सागर की लहरों का गर्जन रुक जाता है
उस सैनिक के शव का दर्शन तीरथ-जैसा होता है
चित्र शहीदों का मन्दिर की मूरत जैसा होता है।
-हरिओम पंवार
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कारगिल विजय दिवस पर कविता : विजयी विश्व तिरंगा प्यारा
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला
वीरों को हरषाने वाला
मातृभूमि का तन-मन सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर जोश बढ़े क्षण-क्षण में,
काँपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जावे भय संकट सारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
हो स्वराज जनता का निश्चय,
बोलो भारत माता की जय,
स्वतंत्रता ही ध्येय हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
आओ प्यारे वीरों आओ,
देश-जाति पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
इसकी शान न जाने पावे,
चाहे जान भले ही जावे,
विश्व-विजय करके दिखलावे,
तब होवे प्रण-पूर्ण हमारा,
झंडा ऊँचा रहे हमारा।
श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’
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कारगिल विजय दिवस पर कविता : न चाहूँ मान दुनिया में
न चाहूँ मान दुनिया में, न चाहूँ स्वर्ग को जाना
मुझे वर दे यही माता रहूँ भारत पे दीवाना
करुँ मैं कौम की सेवा पडे़ चाहे करोड़ों दुख
अगर फ़िर जन्म लूँ आकर तो भारत में ही हो आना
लगा रहे प्रेम हिन्दी में, पढूँ हिन्दी लिखुँ हिन्दी
चलन हिन्दी चलूँ, हिन्दी पहरना, ओढना खाना
भवन में रोशनी मेरे रहे हिन्दी चिरागों की
स्वदेशी ही रहे बाजा, बजाना, राग का गाना
लगें इस देश के ही अर्थ मेरे धर्म, विद्या, धन
करुँ मैं प्राण तक अर्पण यही प्रण सत्य है ठाना
नहीं कुछ गैर-मुमकिन है जो चाहो दिल से “बिस्मिल” तुम
उठा लो देश हाथों पर न समझो अपना बेगाना।।
-राम प्रसाद बिस्मिल
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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप कारगिल विजय दिवस पर कविता पढ़ पाए होंगे, कारगिल विजय दिवस पर कविता आपके भीतर राष्ट्रवाद का बीज बोने का प्रयास करेंगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।