गिरिजाकुमार माथुर की कविताएँ आज भी प्रासंगिक होकर समाज का मार्गदर्शन करती हैं। गिरिजाकुमार माथुर हिंदी साहित्य के एक ऐसी प्रतिष्ठित कवि और साहित्यकार थे, जिनकी कविताएँ भावनाओं, विचारों और सामाजिक परिवर्तनों का नेतृत्व करती हैं। गिरिजाकुमार माथुर के लेखन में आज भी हिंदी कविता की विविधता और गहराई स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। देखा जाए तो गिरिजाकुमार माथुर की कविताओं का प्रमुख उद्देश्य मानवता, सामाजिक न्याय और राष्ट्रीय चेतना को उभारना रहा है। इस ब्लॉग में आपको गिरिजाकुमार माथुर की कविताएँ (Girija Kumar Mathur Poems in Hindi) पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जिन्हें पढ़कर विद्यार्थियों को प्रेरणा मिल सकती है।
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गिरिजाकुमार माथुर के बारे में
भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि गिरिजाकुमार माथुर भी हैं, जिनकी लेखनी आज के समय में भी प्रासंगिक हैं और लाखों युवाओं को प्रेरित कर रही हैं। गिरिजाकुमार माथुर एक ऐसे भारतीय कवि, लेखक और पत्रकार थे, जिन्हें “बच्चों के गांधी” के नाम से भी जाना जाता था।
22 अगस्त 1919 को गिरिजाकुमार माथुर का जन्म मध्य प्रदेश के अशोकनगर में हुआ था। गिरिजाकुमार माथुर जी को कविताओं के प्रति प्रेरित करने का श्रेय उनके पिता देवीचरण माथुर जी को दिया जाना गलत नहीं होगा क्योंकि उनके पिताजी स्वयं कवित्त, सवैयाँ और दोहे लिखते थे और उनका एक संग्रह भी प्रकाशित हुआ था। गिरिजाकुमार माथुर ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा अशोकनगर में ही प्राप्त की थी, जिसके बाद उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त की। इसके बाद में उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए किया।
गिरिजाकुमार माथुर जी की रचनाओं में “मैं वक़्त के हूँ सामने”, “पत्थर का वध”, “आवाज़ें”, “मनुष्य और समुद्र”, “अंतिम यात्रा” आदि बेहद लोकप्रिय हैं। अपने समय के एक महान कवि, नाटककार गिरिजाकुमार माथुर का निधन 29 अगस्त, 1998 को नई दिल्ली में हुआ था।
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Girija Kumar Mathur Poems in Hindi
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi को पढ़कर आप जीवन में साहित्य के महत्व के बारे में जान पाओगे, जो कुछ इस प्रकार हैं;
बुद्ध
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi (गिरिजाकुमार माथुर की कविताएं) आपको साहित्य से परिचित करवाएंगी। गिरिजाकुमार माथुर जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “बुद्ध” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
आज लौटती जाती है पदचाप युगों की, सदियों पहले का शिव-सुंदर मूर्तिमान हो चलता जाता है बोझीले इतिहासों पर श्वेत हिमालय की लकीर-सा। प्रतिमाओं-से धुँधले बीते वर्ष आ रहे, जिनमें डूबी दिखती ध्यान-मग्न तस्वीर, बोधि-तरु के नीचे की। जिसे समय का हिम न प्रलय तक गला सकेगा देश-देश से अंतहीन वह छाया लौटी और लौटते आते हैं वे मठ, विहार सब, कपिलवस्तु के भवनों की वह कांचन माला जब सागर, वन की सीमाएँ लाँघ गए थे कुटियों के संदेश प्यार के। महलों का जब स्वप्न अधूरा पूर्ण हुआ था शीतल, मिट्टी के स्तूपों की छाया में। वैभव की वे शिलालेख-सी यादें आतीं, एक चाँदनी-भरी रात उस राजनगर की, रनिवासों की नंगी बाँहों-सी रंगीनी वह रेशमी मिठास मिलन के प्रथम दिनों की— फीकी पड़ती गई अचानक; जाने कैसे मिटे नयन-डोरों के बंधन मोह-पाश रोमन, प्यार के गोपा के सोते मुख की तस्वीर सलोनी, गौतम बनने के पहले किस तरह मिटी थी तीस वर्ष तक रची राजमदिरा की लाली। आलिंगन में बँधा स्वप्न जब सिंधु और आकाश हो गया महागमन की जिस वैराग्य-भरी वेला में तप की पहली भोर बनी थी सेज और सिंहासन की मधु-रात अख़ीरी। देख रहे संपाति-नयन शिव की सीमा पर वे शताब्दियों तले दूर देशांतर फैले वल्मीकी-से कच्चे मंदिर, चैत्य, पगोड़ा, जिनसे शीतलता का कन लेने आते थे रानी, राजपुत्र भिक्षुक बन। फैल गई थी मिट्टी के अंतर की बाँहें, सत्य और सुंदरता के अविरल संघों से— स्याम, ब्रह्म, जापान, चीन, गांधार, मलय तक, दीर्घ विदेशों के अशोक साम्राज्यों ऊपर। नहीं रहे वे महावंश अब, वे कनिष्क-से, शिलादित्य-से नाम हज़ारों, किंतु तक्षशिला, साँची, सारनाथ के मंदिर, और जीति-स्तंभ धर्म के बोल रहे हैं— जिस सीमा पर पहुँच न पाईं, हुईं पराजित, कुफ़्र तोड़ने की, क्रूसेडों की तलवारें वहाँ विश्व-जय हुई प्यार के एक घूँट से!
-गिरिजाकुमार माथुर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से गिरिजाकुमार माथुर जी भगवान बुद्ध के जीवन और उनके विचारों की सराहना करते हैं। इस कविता के माध्यम से कवि मानते हैं कि बुद्ध एक महान आध्यात्मिक गुरु थे जिन्होंने दुनिया को प्रेम, करुणा और अहिंसा का संदेश दिया। इस कविता में कवि बुद्ध के विचारों के माध्यम से दुनिया की बदलती तस्वीर पर प्रकाश डालते हैं। कविता का भाव भगवान बुद्ध के दुनिया को प्रेम करने, करुणा और अहिंसा के संदेश को जगजाहिर करना है, जो आज भी प्रासंगिक हैं और हमें प्रेरित करते हैं।
छाया मत छूना
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi (गिरिजाकुमार माथुर की कविताएं) आपको साहित्य से परिचित करवाएंगी। गिरिजाकुमार माथुर जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “छाया मत छूना” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
छाया मत छूना मन, होगा दु:ख दूना। जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी : तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी। भूली-सी एक छुअन बनता हर जीवित क्षण— छाया मत छूना मन, होगा दु:ख दूना। यश है या न वैभव है, मान है न सरमाया; जितना ही दौड़ा तू उतना ही भरमाया। प्रभुता का शरण-बिंब केवल मृगतृष्णा है, हर चंद्रिका में छिपी एक रात कृष्णा है जो है यथार्थ कठिन उसका तू कर पूजन— छाया मत छूना। मन, होगा दु:ख दूना। दुविधा-हत साहस है, दिखता है पंथ नहीं, देह सुखी हो पर मन के दु:ख का अंत नहीं। दु:ख है न चाँद खिला शरद-रात आने पर, क्या हुआ जो खिला फूल रस-वसंत जाने पर? जो न मिला भूल भुले कल तू भविष्य वरण, छाया मत छूना। मन, होगा दु:ख दूना।
-गिरिजाकुमार माथुर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गिरिजाकुमार माथुर हमें अतीत की यादों से बाहर निकलकर उनसे ना उलझने की सीख देते हैं। कवि कविता के माध्यम से कहते हैं कि अतीत की यादें केवल एक छाया हैं, जो हमें वर्तमान से बहुत दूर ले जाती हैं। कवि के अनुसार अतीत की यादें हमें दुख और निराशा दे सकती हैं। इसलिए, हमें अतीत की यादों को भूलकर वर्तमान में जीने की कोशिश करनी चाहिए। कविता के माध्यम से कवि हमें वर्तमान में जीने के लिए प्रेरित करते हैं। यह कविता हमें बताती है कि वर्तमान ही वास्तविक है जबकि अतीत केवल एक याद है।
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दो पाटों की दुनिया
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi आपको प्रेरणा से भर देंगी। गिरिजाकुमार माथुर जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “दो पाटों की दुनिया” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
चारों तरफ़ शोर है, चारों तरफ़ भरा-पूरा है चारों तरफ़ मुर्दनी है भीड़ और कूड़ा है हर सुविधा एक ठप्पेदार अजनबी उगाती है हर व्यस्तता और अधिक अकेला कर जाती है हम क्या करें: भीड़ और अकेलेपन के क्रम से कैसे छुटें? राहें सभी अंधी हैं ज़्यादातर लोग पागल हैं अपने ही नशे में चूर वहशी हैं या ग़ाफ़िल हैं खलनायक हीरो हैं, विवेकशील कायर हैं थोड़े-से ईमानदार लगते सिर्फ़ मुजरिम हैं हम क्या करें : अविश्वास और आश्वासन के क्रम से कैसे-कैसे छुटें? तर्क सभी अच्छे हैं अंत सभी निर्मम हैं आस्था के वसनों में कंकालों के अनुक्रम हैं प्रौढ़ सभी कामुक हैं जवान सब अराजक हैं वृद्धजन अपाहिज हैं मुँह बाए हुए भावक हैं। हम क्या करें : तर्क और मूढ़ता के क्रम से कैसे छुटें! हर आदमी में देवता है और देवता बड़ा बोदा है हर आदमी में जंतु है जो पिशाच से न थोड़ा है हर देवतापन हमको नपुंसक बनाता है हर पैशाचिक पशुत्व नए जानवर बढ़ाता है हम क्या करें : देवता और राक्षस के क्रम से कैसे छुटें?
-गिरिजाकुमार माथुर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गिरिजाकुमार माथुर हमारा ध्यान आधुनिक समाज में व्याप्त दोहरेपन और विसंगतियों की ओर आकर्षित करते हैं। कविता में कवि कहते हैं कि आधुनिक समाज एक दोहरी दुनिया है, जिसमें दो तरह के लोग रहते हैं। कविता के अनुसार इस दुनिया एक ओर, वे लोग हैं जो दिखावे और भौतिकता के पीछे भागते हैं। वे केवल पैसा, प्रतिष्ठा और शक्ति के पीछे भागते हैं, तो वहीं दूसरी ओर, वे लोग हैं जो वास्तविक जीवन और मानवीय मूल्यों की परवाह करते हैं। वे प्रेम, करुणा और सद्भाव के लिए जीते हैं। यह कविता हमें दिखावे और भौतिकता के पीछे जाने से रोकने के साथ-साथ वास्तविक जीवन जीने की सीख देती है।
नया कवि
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi आपको साहित्य के सौंदर्य से परिचित करवाएंगी, साथ ही आपको प्रेरित करेंगी। गिरिजाकुमार माथुर जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “नया कवि” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:
जो अँधेरी रात में भभके अचानक चमक से चकचौंध भर दे मैं निरंतर पास आता अग्निध्वज हूँ कड़कड़ाएँ रीढ़ बूढ़ी रूढ़ियों की झुर्रियाँ काँपें घुनी अनुभूतियों की उसी नई आवाज़ की उठती गरज हूँ। जब उलझ जाएँ मनस गाँठें घनेरी बोध की हो जाएँ सब गलियाँ अँधेरी तर्क और विवेक पर बेसूझ जाले मढ़ चुके जब वैर रत परिपाटियों की अस्मि ढेरी जब न युग के पास रहे उपाय तीजा तब अछूती मंज़िलों की ओर मैं उठता क़दम हूँ। जब कि समझौता जीने की निपट अनिवार्यता हो परम अस्वीकार की झुकने न वाली मैं क़सम हूँ। हो चुके हैं सभी प्रश्नों के सभी उत्तर पुराने खोखले हैं व्यक्ति और समूह वाले आत्मविज्ञापित ख़जाने पड़ गए झूठे समन्वय रह न सका तटस्थ कोई वे सुरक्षा की नक़ाबें मार्ग मध्यम के बहाने हूँ प्रताड़ित क्योंकि प्रश्नों के नए उत्तर दिए हैं है परम अपराध क्योंकि मैं लीक से इतना अलग हूँ। सब छिपाते थे सच्चाई जब तुरत ही सिद्धियों से असलियत को स्थगित करते भाग जाते उत्तरों से कला थी सुविधापरस्ती मूल्य केवल मस्लहत थे मूर्ख थी निष्ठा प्रतिष्ठा सुलभ थी आडंबरों से क्या करूँ उपलब्धि की जो सहज तीखी आँच मुझमें क्या करूँ जो शंभु धनु टूटा तुम्हारा तोड़ने को मैं विवश हूँ।
-गिरिजाकुमार माथुर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से गिरिजाकुमार माथुर जी आधुनिक कवि की भूमिका और जिम्मेदारियों पर प्रकाश डालते हैं। कवि कहते हैं कि आधुनिक कवि को केवल सुंदर शब्दों का प्रयोग नहीं करना चाहिए, उसे समाज की समस्याओं और चुनौतियों के प्रति भी जागरूक भी होना चाहिए। एक नए कवि को कविता के माध्यम से समाज को जागरूक करना चाहिए और उसे एक बेहतर जगह बनाने में मदद करनी चाहिए। कवि के अनुसार आधुनिक कवि को अपने कविता के माध्यम से समाज को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। उसे अपने कविता के माध्यम से लोगों को प्रेम, करुणा और सद्भाव के लिए प्रेरित करना चाहिए।
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देह की दूरियाँ
Girija Kumar Mathur Poems in Hindi आपको प्रेरित करेंगी, साथ ही आपका परिचय साहस से करवाएंगी। गिरिजाकुमार माथुर जी की महान रचनाओं में से एक रचना “देह की दूरियाँ।” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
निर्जन दूरियों के ठोस दर्पणों में चलते हुए सहसा मेरी एक देह तीन देह हो गई उगकर एक बिंदु पर तीन अजनबी साथ चलने लगे अलग दिशाओं में और यह न ज्ञात हुआ इनमें कौन मेरा है!
-गिरिजाकुमार माथुर
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गिरिजाकुमार माथुर जी प्रेम की शक्ति और उसके द्वारा दूरियों को पार करने की क्षमता को दर्शाते हैं। कवि इस कविता के माध्यम से कहते हैं कि प्रेम एक ऐसी शक्ति है जो दो प्रेमियों को भौतिक दूरियों से नहीं रुकती है। प्रेम के माध्यम से, दो प्रेमी एक-दूसरे के दिलों में हमेशा जुड़े रहते हैं, प्रेम की पवित्रता को कवि अपने शब्दों से सुसज्जित करते हैं।
गिरिजाकुमार माथुर की कविताएँ
गिरिजाकुमार माथुर की कविताएँ समाज को सकारात्मक दिशा देने के काम करेंगी, जो कुछ इस प्रकार हैं;
कौन थकान हरे जीवन की
कौन थकान हरे जीवन की? बीत गया संगीत प्यार का, रूठ गयी कविता भी मन की। वंशी में अब नींद भरी है, स्वर पर पीत सांझ उतरी है बुझती जाती गूंज आखिरी इस उदास बन पथ के ऊपर पतझर की छाया गहरी है, अब सपनों में शेष रह गई सुधियां उस चंदन के बन की। रात हुई पंछी घर आए, पथ के सारे स्वर सकुचाए, म्लान दिया बत्ती की बेला थके प्रवासी की आंखों में आंसू आ आ कर कुम्हलाए, कहीं बहुत ही दूर उनींदी झांझ बज रही है पूजन की। कौन थकान हरे जीवन की?
–गिरिजाकुमार माथुर
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बरसों के बाद कभी
बरसों के बाद कभी हम तुम यदि मिलें कहीं, देखें कुछ परिचित से, लेकिन पहिचानें ना। याद भी न आये नाम, रूप, रंग, काम, धाम, सोचें,यह सम्भव है- पर, मन में मानें ना। हो न याद, एक बार आया तूफान, ज्वार बंद, मिटे पृष्ठों को- पढ़ने की ठाने ना। बातें जो साथ हुई, बातों के साथ गयीं, आँखें जो मिली रहीं- उनको भी जानें ना।
–गिरिजाकुमार माथुर
इतना मत दूर रहो गन्ध कहीं खो जाए
इतना मत दूर रहो गन्ध कहीं खो जाए आने दो आँच रोशनी न मन्द हो जाए देखा तुमको मैंने कितने जन्मों के बाद चम्पे की बदली सी धूप-छाँह आसपास घूम-सी गई दुनिया यह भी न रहा याद बह गया है वक़्त लिए मेरे सारे पलाश ले लो ये शब्द गीत भी कहीं न सो जाए आने दो आँच रोशनी न मन्द हो जाए उत्सव से तन पर सजा ललचाती मेहराबें खींच लीं मिठास पर क्यों शीशे की दीवारें टकराकर डूब गईं इच्छाओं की नावें लौट-लौट आई हैं मेरी सब झनकारें नेह फूल नाजुक न खिलना बन्द हो जाए आने दो आँच रोशनी न मन्द हो जाए. क्या कुछ कमी थी मेरे भरपूर दान में या कुछ तुम्हारी नज़र चूकी पहचान में या सब कुछ लीला थी तुम्हारे अनुमान में या मैंने भूल की तुम्हारी मुस्कान में खोलो देह-बन्ध मन समाधि-सिन्धु हो जाए आने दो आँच रोशनी न मन्द हो जाए इतना मत दूर रहो गन्ध कहीं खो जाए
–गिरिजाकुमार माथुर
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मेरे युवा-आम में नया बौर आया है
मेरे युवा-आम में नया बौर आया है ख़ुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी चमकीले, मँजे अंग चेहरा हँसता मयंक खनकदार स्वर में तेज गमक-ताल फागुनी मेरा जिस्म फिर से नया रूप धर आया है ताज़गी बहुत है क्योंकि तुमने सजाया है। अन्धी थी दुनिया या मिट्टी-भर अन्धकार उम्र हो गई थी एक लगातार इन्तज़ार जीना आसान हुआ तुमने जब दिया प्यार हो गया उजेला-सा रोओं के आर-पार एक दीप ने दूसरे को चमकाया है रौशनी के लिए दीप तुमने जलाया है कम न हुई, मरती रही केसर हर साँस से हार गया वक़्त मन की सतरंगी आँच से कामनाएँ जीतीं जरा-मरण-विनाश से मिल गया हरेक सत्य प्यार की तलाश से थोड़े ही में मैंने सब कुछ भर पाया है तुम पर वसन्त क्योंकि वैसा ही छाया है
–गिरिजाकुमार माथुर
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