बहन पर कविता, जो बहन के रिश्तों के महत्व को करेगी परिभाषित

1 minute read
बहन पर कविता

बहन पर कविता के माध्यम से आप अपनी भावनाओं को अपनी बहन के साथ साझा कर पाएंगे। बहनों के प्रति अपने स्नेह, प्रेम, और सम्मान को व्यक्त करने के लिए हर साल अगस्त के पहले रविवार को नेशनल सिस्टर डे मनाया जाता है। इस दिन के विशेष अवसर पर भाई-बहन के बीच के बंधन की मजबूती का जश्न मनाया जाता है, साथ ही इस दिन भाई अपनी बहन के साथ बिताए गए अनमोल पलों को याद करके और उनके प्रति आभार व्यक्त कर सकते हैं। इस ब्लॉग में आपको बहन पर कविता पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा, जिन्हें आप अपनी बहन के साथ साझा कर पाएंगे।

बहनों पर आधारित प्रमुख रचनाएं

बहनों पर आधारित प्रमुख रचनाएं पढ़कर आप इन्हें अपनी बहनों के साथ साझा कर पाएंगे, बहनों पर आधारित प्रमुख रचनाएं कुछ इस प्रकार हैं:

  • धरती की बहनें : यह कविता अनुपम सिंह द्वारा लिखी गई है।
  • दीदी : यह कविता प्रमोद कुमार तिवारी द्वारा लिखी गई है।
  • बहनें : यह कविता विमलेश त्रिपाठी द्वारा लिखी गई है।
  • बहन : यह कविता इब्बार रब्बी द्वारा लिखी गई है।
  • बहनों का कमरा : यह कविता गार्गी मिश्र द्वारा लिखी गई है।
  • बहनें : यह कविता राजेश्वर वशिष्ठ द्वारा लिखी गई है।

बहन पर कविता

बहन पर कविता, भाई-बहन के पवित्र बंधन को परिभाषित करेंगी, जो इस प्रकार हैं :-

दीदी

“दीदी” रवींद्रनाथ टैगोर की एक लोकप्रिय कविता है, जिसका अनुवाद भवानीप्रसाद मिश्र ने किया है, जो इस प्रकार है:

आवा लगाने के लिए नदी के तीर पर 
मज़दूर मिट्टी खोद रहे हैं। 
उन्हीं में से किसी की एक छोटी-सी बिटिया 
बार-बार घाट पर आवा-जाई कर रही है 
कभी कटोरी उठाती, है कभी थाली 
कितना घिसना और माँजना चला है! 
दिन में बीसियों बार दौड़-दौड़कर आती है 
पीतल का कँगना पीतल की थाली से लगाकर 
ठन-ठन बजता है। 
दिन-भर काम-धंधे में व्यस्त है! 

उसका छोटा भाई है 
मुड़ा हुआ सिर, कीचड़ से लथ-पथ, नंगा-पुंगा, 
पोषित पंछी की तरह पीछे आता है,
और बैठ जाता है दीदी की आज्ञा मानकर, धीरज धरकर 
अचंचल भाव से नदी से लगे ऊँचे टीले पर 
बच्ची वापिस लौटती है 
भरा हुआ घड़ा लेकर
बाईं कोख में थाली दबाकर
दहिने हाथ से बच्चे का हाथ पकड़कर। ?
काम के भार से झुकी हुई 
माँ की प्रतिनिधि है यह अत्यंत छोटी दीदी।

-रवींद्रनाथ टैगोर

भाई-बहन

“भाई-बहन” एक ऐसी कविता है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को परिभाषित करती है। यह कविता गोपाल सिंह नेपाली द्वारा लिखी गई है, जो इस प्रकार है-

तू चिंगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ,?
तू बन जा हहराती गँगा, मैं झेलम बेहाल बनूँ,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूँ लाल बनूँ,
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ,
यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, बंशीवाला,
तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरे वाला।

बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी,
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी,
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी,
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना।

भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है,
संगम है, गँगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है,
यह उन्माद, बहन को अपना भाई एक सहारा है,
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा है,
पागल घडी, बहन-भाई है, वह आज़ाद तराना है।
मुसीबतों से, बलिदानों से, पत्थर को समझाना है।

-गोपाल सिंह नेपाली

यह भी पढ़ें : दुष्यंत कुमार की कविताएं, जो आपको प्रेरित करेंगी

बहनें

बहनों पर कविताओं के माध्यम से आप अपनी बातों को अपनी बहन तक साझा कर सकते हैं। बहन पर आधारित लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “बहनें” भी है, जो असद ज़ैदी द्वारा लिखी गई है। यह कविता इस प्रकार है:

कोयला हो चुकी हैं हम बहनों ने कहा रेत में धँसते हुए 
ढक दो अब हमें चाहे हम रुकती हैं यहाँ तुम जाओ 

बहनें दिन को हुलिए बदलकर आती रहीं 
बुख़ार था हमें शामों में 
हमारी जलती आँखों को और तपिश देती हुई बहनें 
शाप की तरह आती थीं हमारी बर्राती हुई 
ज़िंदगियों में बहनें ट्रैफ़िक से भरी सड़कों पर 
मुसीबत होकर सिरों पर हमारे मँडराती थीं 
बहनें कभी सांत्वना पाकर बैठ जाती थीं हमारी पत्नियों के 
अँधेरे गर्भ में बहनें पहरा देती रहीं 

चूल्हे के पीछे अँधेरे में प्याज़ चुराकर जो हमें चकित करते हैं 
उन चोरों को कोसती थीं बहनें 
ख़ुश हुई बहनें हमारी ठीक-ठाक चलती नौकरियों में भरी 
संभावनाएँ देखकर 

कहनें बच्चों को परी-दरवेश की कथाएँ सुनाती थीं 
उनकी कल्पना में जंगल जानवर बहनें लाती थीं 
बहनों ने जो नहीं देखा उसे और बढ़ाया अपने 
आन की पूँजी 
बटोरते-बटोरते। 
‘यह लकड़ी नहीं जलेगी किसी ने 
यों अगर कहा तो हम बुरा मान लेंगी 
किसलिए आख़िर हम हुई हैं लड़कियाँ 
लकड़ियाँ चलती हैं जैसे हम जानती हैं तुम जानते हो 
लकड़ियाँ हैं हम लड़कियाँ 
जब तक गीली हैं धुआँ देंगी पर इसमें 
हमारा क्या बस? हम 
पतीलियाँ हैं तुम्हारे घर की भाई पिता 

'माँ देखो हम पतीलियाँ हैं' 
हमारी कालिख धोई जाएगी, नहीं धोया गया हमें तो 
हम बनकर कालिख 
बढ़ती रहेंगी और चीथड़े 
भरती रहेंगी शरीर में जब तक है गीलापन और स्वाद 
हम सूखेंगी अपनी रफ़्तार से 

‘हम सूख जाएँगी 
हम खड़खड़ाएँगी इस धरती पर सन्नाटे में 
मोखों में चूल्हों पर दोपहरियों में 
अपना कटोरा बजाएँगी हम हमारा कटोरा 
भर देना—मोरियों पर पानी मिल जाता है कुनबेवालो 
पर घूरों पर दाना नहीं मिलता 
हमारा कटोरा भर देना 

‘हम तुम्हारी दुनिया में मकड़ी भर होंगी 
हम होंगी मकड़ियाँ 
घर के किसी बिसरे कोने में जाला ताने पड़ रहेंगी 
हम होंगी मकड़ियाँ धूल भरे कोनों की 
हम होंगी धूल 
हम होंगी दीमकें किवाड़ों की दरारों में 
बक्से के तले पर रह लेंगी 
नीम की निबौलियाँ और कमलगट्टे खा लेंगी 
हम रात झींगुरों की तरह बोलेंगी 
कुनबे की नींद को सहारा देती हमीं होंगी झींगुर।’ 
कोयला हो चुकी हैं हम 
बहनों ने कहा रेत में धँसते हुए 
कोयला हो चुकीं 
कहा जूतों से पिटते हुए 
कोयला 
सुबकते हुए 

बहनें सुबकती हैः ‘राख हैं हम 
राख हैं हम : गर्द उड़कर बैठ जाएँगी सभी के माथे पर 
सूखेंगी तुम्हारी आँखों में ग्लनि की पपड़ियाँ 
गरदन पर तेल की तह जमेगी, देखना!’ 

बहनें मैल बनेंगी एक दिन 
एक दिन साबुन के साथ निकल जाएँगी यादों से 
घुटनों और कोहनियों को छोड़कर 
मरती नहीं पर वे, बैठी रहती हैं शताब्दियों तक घरों में 

बहनों को दबाती दुनिया गुज़रती जाती है जीवन के 
चरमराते पुल से परिवारों के चीख़ते भोंपू को 
जैसे-तैसे दबाती गर्दन झुकाए अपने फफोलों को निहारती 
एक दिन रास्ते में जब हमारी नाक से ख़ून निकलता होगा 
मिट्टी में जाता हुआ 
पृथ्वी में जाता हुआ 
पृथ्वी की सलवटों में खोई बहनों के खारे शरीर जागेंगे 
श्रम के कीचड़ से लिथड़े अपने आँचलों से हमें घेरने आएँगी बहनें 
बचा लेना चाहेंगी हमें अपने रूखे हाथों से 

बहुत बरस गुज़र जाएँगे 
इतने कि हम बच नहीं पाएँगे।

-असद ज़ैदी

मेरी बहिन

मेरी बहिन एक लोकप्रिय कविता है, जो भाई के जीवन में बहन की उपस्थिति को अपना सौभाग्य बताती है। जितेंद्र कुमार द्वारा लिखित “मेरी बहिन” भी है, जो इस प्रकार है:

मुझे मिला है अर्थ 
और वह तू है ओ मेरी बहिन 
जो मुझे संसार से जोड़ देती है 
जैसे जोड़ती है नाल 
गर्भस्थ शिशु को माँ से 

तू जो खड़ी है 
सारे दुख सहती चुप 
तू जो केवल हँसती है 
अट्टहास 
जो तेरे रोग जर्जर शरीर को 
शिथिल कर देता है 
और मेरी पत्थर आँखों में अनायास 
आँसू छलक आते हैं 

तू मेरे जीवन को अर्थ देती 
ओ मेरी बहिन 
तू मुझमें सामान्य मानवीय भावों को 
उजागर करती 
ओ मेरी बहिन 

अब मैं तरसता नहीं 
कि कोई मुझे देखे 
मुझे सुने 
मेरी प्रतिभा स्वीकारे 
मैं सहज भक्ति से 
तेरे चरणों मैं सिर रख देता हूँ 
और तू संकोच से हँस भर देती है 

तू अपने परिचय से 
मुझे गर्व से भर देती ओ मेरी बहिन!

-जितेंद्र कुमार

यह भी पढ़ें : सुमित्रानंदन पंत की वो महान कविताएं, जो आपको जीने का एक मकसद देंगी

बहन को याद करते हुए

कुँवर नारायण की कविता “बहन को याद करते हुए” भी आती है, जो कि बेहद लोकप्रिय है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

शायद वही है जो मेरे जीवन में 
वापस आना चाहती है बार-बार 
लेकिन जिसे हर बार 
बरबस बाहर कर दिया जाता है 
मेरे जीवन से 

मैं जानता हूँ 
वह है कहीं 
मेरे बिल्कुल पास, गुमसुम, 
मुझे घेरकर बैठी 
एक असह्य उदासी 

वह नहीं मानती 
कि हमारे बीच अब 
बरसों का फ़ासला है, 
और सारे बंधन 
कब के टूट चुके हैं

-कुँवर नारायण

ससुराल से लौटी मेरी बहन से

शैलजा पाठक की कविता “ससुराल से लौटी मेरी बहन से” भी आती है, जो कि बहन के ससुराल से मायके आ जाने की खुशी पर लिखीं गई है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

ससुराल से लौटी मेरी बहन से मैं कभी नहीं कह पाई 
किस क़दर वह याद आती थी मुझे 
अकेली खटिया के बान कितने चुभे 
चूल्हे के सामने कितनी छौंक से जला मेरा हाथ 
अचानक मेहमानों की आवाजाही से मुझे देर तक बेलनी पड़ी रोटी 
मेरे पेट-दर्द की बात पर घर अनजान रहा 
मेरे गीत पर किसी का न गया कान 
जैसे बालों की लंबाई के छोर 
दो मुँह के हो गए मेरे बाल 
अब सब ठहरेगा 
कुछ न बढ़ेगा 

बहनें सब जानती हैं 
एकदम से मेरे बड़े होने पर उसकी आँख भरी 
एकदम से मेरे दुपट्टे को छुड़ा उसने कहा 
नीली फ़्रॉक और ख़ाकी स्कर्ट पहना करो घर में 
बोल दिया करो नहीं होता इतना काम 
ये पीसने-कूटने से हाथ ख़ुश्क हुआ जाता है तुम्हारा 
समझ रही हो न पागल? 

खटिया पर गदिया डाल मैंने कहा : आओ सो जाओ 
आँगन से चाँद के सफ़र पर चलते हैं 

और सुनो : 
ब्लाउज़ के कुछ हुक खोल दो 
साँस लो 
ससुराल की कहो 
आसमान दिखता है? 

समय ही नहीं मिला कभी 
छत तो है बहुत बड़ी 
आसमान भी होगा 

वह करवट में है 
मैं उसकी गोरी खुली पीठ पर मुँह धसाए 
उसकी रातों के मर्म बूझ रही थी 

रात बुझ रही थी 
मैं बड़ी हो रही थी 
ख़ाकी स्कर्ट से झाड़ी जाने लगी थी घर की धूल...

-शैलजा पाठक

यह भी पढ़ें : काका हाथरसी की कविताएं, जो व्यंगात्मक ढंग से समाज के हर पहलू को छुएंगी

छोटी बहन पर कविता

छोटी बहन पर कविता पढ़कर आप अपनी बहन के साथ अपने जज्बातों को साझा कर पाएंगे, जो कुछ इस प्रकार हैं:

छुटकी

छोटी बहन पर कविता की श्रेणी में एक लोकप्रिय कविता “छुटकी” भी है, जिसे मणि मोहन द्वारा लिखा गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

आठ साल की छुटकी 
अपने से दस साल बड़े 
अपने भाई के साथ 
बराबरी से झगड़ रही है

छीना-झपटी 
खींचा-खाँची 
नोचा-नाची 
यहाँ तक की मारा-पीटी भी 
उसकी माँ नाराज़ है 
इस नकचढ़ी छुटकी से 
बराबरी से जो लड़ती है

अपने भाई के साथ
वह मुझसे भी नाराज़ है 
सर चढ़ा रखा है मैंने उसे 
मैं ही बना रहा हूँ उसे लड़ाकू 
शायद समझती नहीं 
कि ज़िंदगी के घने बीहड़ से होकर 
गुज़रना है उसे

इस वक़्त 
खेल-खेल में जो सीख लेगी 
थोड़ा बहुत लड़ना-भिड़ना 
ज़िंदगी भर उसके काम आएगा।

-मणि मोहन

मेरी बहिन

मेरी बहिन एक लोकप्रिय कविता है, जो भाई के जीवन में बहन की उपस्थिति को अपना सौभाग्य बताती है। बहन पर कविता की श्रेणी में जितेंद्र कुमार द्वारा लिखित “मेरी बहिन” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

मुझे मिला है अर्थ 
और वह तू है ओ मेरी बहिन 
जो मुझे संसार से जोड़ देती है 
जैसे जोड़ती है नाल 
गर्भस्थ शिशु को माँ से 

तू जो खड़ी है 
सारे दुख सहती चुप 
तू जो केवल हँसती है 
अट्टहास 
जो तेरे रोग जर्जर शरीर को 
शिथिल कर देता है 
और मेरी पत्थर आँखों में अनायास 
आँसू छलक आते हैं 

तू मेरे जीवन को अर्थ देती
ओ मेरी बहिन 
तू मुझमें सामान्य मानवीय भावों को 
उजागर करती 
ओ मेरी बहिन 

अब मैं तरसता नहीं 
कि कोई मुझे देखे 
मुझे सुने 
मेरी प्रतिभा स्वीकारे 
मैं सहज भक्ति से 
तेरे चरणों मैं सिर रख देता हूँ 
और तू संकोच से हँस भर देती है 

तू अपने परिचय से 
मुझे गर्व से भर देती ओ मेरी बहिन!

-जितेंद्र कुमार

यह भी पढ़ें : रामकुमार वर्मा की कविताएँ, जो आपको जीवनभर प्रेरित करेंगी

बहन

छोटी बहन पर कविता की श्रेणी में एक लोकप्रिय कविता “बहन” भी है, जिसे प्रांजल धर द्वारा लिखा गया है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

फूलदार लकीरों से रेखांकित शब्द थे 
बहन की चिट्ठी में 
आई जो बहुत दूर से थी 
'भैया को मेरी भी उमर लग जाए' 
यही लिखा था, मात्र इतना 
चिट्ठी बढ़ाई भैया ने 
बहन की भाभी की ओर
एक तिरछी मुस्कान फैल गई 
पूरे बरामदे में 
इस छोटी-सी पंक्ति में भी 
घरेलू राजनीति का गुर कोई 
खोजा जा रहा हो मानो 
और गुर न मिलने पर 
हाथ लगा उस चिट्ठी को 
घर का सबसे बड़ा कूड़ेदान

बहन कहते किसे हैं?
जिसकी चिट्ठियाँ आती हों कभी-कभार 
जिसकी राखी आती हो हर साल 
कोसा गया था जिसे बचपन से ही, बस...
परिचय इतना, इतिहास यही!

-प्रांजल धर

यह भी पढ़ें : पाश की कविताएं, जिन्होंने साहित्य जगत में उनका परचम लहराया

संबंधित आर्टिकल

Rabindranath Tagore PoemsHindi Kavita on Dr BR Ambedkar
Christmas Poems in HindiBhartendu Harishchandra Poems in Hindi
Atal Bihari Vajpayee ki KavitaPoem on Republic Day in Hindi
Arun Kamal Poems in HindiKunwar Narayan Poems in Hindi
Poem of Nagarjun in HindiBhawani Prasad Mishra Poems in Hindi
Agyeya Poems in HindiPoem on Diwali in Hindi
रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएंरामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता
Ramdhari singh dinkar ki kavitayenMahadevi Verma ki Kavitayen
Lal Bahadur Shastri Poems in HindiNew Year Poems in Hindi
राष्ट्रीय युवा दिवस पर कविताविश्व हिंदी दिवस पर कविता
प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँलोहड़ी पर कविताएं पढ़कर करें इस पर्व का भव्य स्वागत!

आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप बहन पर कविता (छोटी बहन पर कविता) पढ़ पाए होंगे, बहन पर कविता को आप अपनी बहनों के साथ साझा कर पाएंगे। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*