सआदत हसन मंटो 20वीं सदी में उर्दू अदब के नामचीन कथाकारों में से एक माने जाते हैं। मंटो की कहानियों में भारत-पाकिस्तान के विभाजन के समय की त्रासदी का बेबाक और संजीव चित्रण देखने को मिलता हैं। वहीं, अपनी 42 साल 8 माह और चार दिन की छोटी से जिंदगी में उन्होंने वो रच दिया जो कालजयी हो गई। बता दें कि उनकी कहानियाँ साहित्य जगत में तहलका मचा देती थी। लेकिन कई बार उनकी कुछ कहानियों पर अश्लीलता के आरोप में मुक़दमे भी चले थे। इन कहानियों में ‘काली सलवार’, ‘धुंआ’ और ‘बू’ शामिल थीं लेकिन हर बार मंटो और उनकी कहानियों को अश्लीलता के आरोप से बरी कर दिया।
सआदत हसन मंटो ने नून मीम राशिद, कृश्न चंदर, उपेन्द्रनाथ अश्क और राजिंदर सिंह बेदी जैसे विख्यात साहित्यकारों के सहयात्री रहने के बाद भी उर्दू साहित्य जगत में अपनी एक विशिष्ठ पहचान बनाई। वहीं पाकिस्तान सरकार ने सआदत हसन मंटो की मृत्यु के बाद उन्हें देश के सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘निशान-ए- इम्तियाज़’ से सम्मानित किया था।
बता दें कि सआदत हसन मंटो की कई रचनाएँ को बी.ए. और एम.ए. के सिलेबस में विभिन्न विश्वविद्यालयों में पढ़ाया जाता हैं। वहीं बहुत से शोधार्थियों ने उनके साहित्य पर पीएचडी की डिग्री प्राप्त की हैं। इसके साथ ही UGC/NET में उर्दू विषय से परीक्षा देने वाले स्टूडेंट्स के लिए भी सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto in Hindi) और उनकी रचनाओं का अध्ययन करना आवश्यक हो जाता है। आइए अब हम उर्दू अदब के मशहूर अफ़साना निगार सआदत हसन मंटो का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं के बारे में विस्तार से जानते हैं।
नाम | सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto) |
जन्म | 11 मई 1912 |
जन्म स्थान | कस्बा समराला, लुधियाना, पंजाब |
पिता का नाम | मौलवी ग़ुलाम हुसैन |
शिक्षा | अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय |
पेशा | लेखक, रेडियो पटकथा लेखक और पत्रकार |
भाषा | उर्दू |
विधाएँ | कहानी, संस्मरण, पत्रकारिता |
कहानी-संग्रह | ‘लज्जत-ए-रंग’, ‘अफ़साने और ड्रामे’, ‘सियाह हाशिए’, ‘लाउडस्पीकर’, ‘मंटो की बेहतरीन कहानियाँ आदि। ’ |
संस्मरण | मीना बाजार |
पुरस्कार एवं सम्मान | ‘निशान-ए- इम्तियाज़’ |
निधन | 18 जनवरी 1955, लाहौर, पाकिस्तान |
This Blog Includes:
- पंजाब के लुधियाना जिले में हुआ जन्म
- पढ़ाई में नहीं लगता था मन
- पत्रकारिता और अनुवाद की ओर हुए उन्मुख
- बंबई में मिली अलग पहचान
- ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी से दिया इस्तीफा
- जब देश का हो गया विभाजन
- कहानियों में अश्लीलता फैलाने का लगा आरोप
- सआदत हसन मंटो की साहित्यिक रचनाएँ
- 42 वर्ष की आयु में कहाँ दुनिया को अलविदा
- पुरस्कार एवं सम्मान
- पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
- FAQs
पंजाब के लुधियाना जिले में हुआ जन्म
उर्दू साहित्य के विख्यात कथाकार सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पंजाब के लुधियाना जिले के क़स्बा समराला में हुआ था। वह एक कश्मीरी घराने से तल्लुक रखते थे। उनके पिता का नाम ‘मौलवी ग़ुलाम हुसैन’ था जो कि पेशे से जज थे। मंटो के जीवन के कुछ आरंभिक वर्ष समराला में ही बीते।
पढ़ाई में नहीं लगता था मन
सआदत हसन मंटो की प्रारंभिक शिक्षा की समराला के ही एक स्थानीय स्कूल से हुई। वहीं मैट्रिक में दो बार फेल होने के बाद उन्होंने थर्ड डिवीज़न से मैट्रिक की परीक्षा पास की। मैट्रिक के बाद उन्हें अलीगढ़ भेजा गया जहाँ उन्होंने ‘अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय’ में दाखिला लिया। किंतु दिक की बीमारी के कारण अपनी पढ़ाई पूरी न कर सके और वापस आ गए। इसके बाद उन्होंने अमृतसर के अपने पुश्तैनी घर के पास ही एक विद्यालय में एफ.ए की कक्षा में दाखिला लिया। किंतु यहाँ भी उनका पढ़ाई में मन नहीं लगा और ज्यादातर समय घूमने-फिरने में बीता।
पत्रकारिता और अनुवाद की ओर हुए उन्मुख
इसी दौरान सआदत हसन मंटो की मुलाकात बारी (अलीग) से हुई, जो ‘मुसावात’ पत्रिका के संपादक थे। उन्होंने मंटो की प्रतिभा को पहचाना और उन्हें पत्रकारिता और अनुवाद के क्षेत्र की ओर उन्मुख किया। इसके बाद मंटो ने कई विदेशी पुस्तकों का अनुवाद कार्य किया। इसमें उन्होंने प्रसिद्ध फ्रांसीसी साहित्यकार विक्टर ह्यूगो (Victor Hugo) की किताब ‘The Last Day of a Condemned Man’ का अनुवाद दस-पंद्रह दिन के भीतर ‘सरगुज़श्त-ए-असीर’ के नाम से किया। ‘मुसावात’ में कुछ समय तक कार्य करने के बाद वह इससे अलग हो गए और ‘ख़ुल्क़’ पत्रिका से सम्बद्ध हो गए। बता दें कि यहीं मंटो का पहला प्रिंट कहानी ‘तमाशा’ प्रकाशित हुई थी।
बंबई में मिली अलग पहचान
वर्ष 1935 में सआदत हसन मंटो ने बंबई की ओर रुख किया जहाँ एक सुनहरा भविष्य उनका इंतजार कर रहा था। ये वो समय था जब उनकी पहचान एक चर्चित कहानीकार के रूप में साहित्यिक मंडली में होने लगी थी। बंबई में मंटो ने शुरुआती दौर में ‘पारस’ और ‘मुसव्विर’ जैसी लोकप्रिय साप्ताहिक पत्रिकाओं के संपादन का कार्य किया। वहीं इसके बाद उन्होंने कुछ समय तक फिल्म कंपनी में भी कार्य किया।
ऑल इंडिया रेडियो की नौकरी से दिया इस्तीफा
बंबई में पत्रिकाओं और फिल्मी जगत में काम करने के साथ साथ मंटो ने रेडियो के लिए भी लिखना शुरू कर दिया था। बता दें कि वर्ष 1940 में उन्हें ‘ऑल इंडिया रेडियो’ (AIR) के दिल्ली केंद्र में नौकरी मिल गई। यहाँ उन्होंने तकरीबन 18 महीनों तक कार्य किया और रेडियो के लिए लगभग 100 से अधिक ड्रामे लिखे। किंतु ऑल इंडिया रेडियो के डायरेक्टर और शायर-कवि ‘एन.एम. राशिद’ के साथ तल्खियां बढ़ने के कारण उन्होंने नौकरी से इस्तीफा दे दिया और वापस बंबई लौट आए।
जब देश का हो गया विभाजन
पुनः बंबई लौटने के बाद मंटो ने फिल्मों के लिए संवाद लिखने का कार्य करने लगे। इस दौरान उन्होंने कई फिल्मों के लिए संवाद लिखे और इसी बीच उनकी बहुत सी कहानियां भी प्रकाशित हुई। लेकिन कुछ समय बाद ही देश का विभाजन हो गया और मंटो वर्ष 1948 में पाकिस्तान चले गए।
कहानियों में अश्लीलता फैलाने का लगा आरोप
लाहौर में रहते हुए मंटो ने कुछ साहित्यिक पत्रिकाओं के लिए लेख लिखने शुरू किए। इसी दौरान उनकी कहानी ‘ठंडा गोश्त’ और ‘खोल दो’ प्रकाशित हुई जिसने साहित्य जगत में खलबली मचा दी। लेकिन मंटो पर ‘ठंडा गोश्त’ कहानी में अश्लीलता फैलाने के आरोप लगे और उन्हें 3 माह की क़ैद और 300 रूपये जुर्माने की सज़ा हुई। कुछ वर्ष बीते ही थे कि मंटो पर ‘ऊपर नीचे और दरमियान’ कहानी पर अश्लीता फैलाने के आरोप में 25 रुपये का जुर्माना लगाया।
सआदत हसन मंटो की साहित्यिक रचनाएँ
मंटो की कहानियों में तत्कालीन समाज का सजीव चित्रण देखने को मिलता है। वहीं उन्होंने लोगों को ही किरदार बनाकर लोगों के अंदाज में ही लोगों की बात कही। इसके साथ ही उन्होंने समाज के हर वर्ग लोगों को अपनी कहानियों का विषय बनाया। बता दें कि मंटो की कहानियों का कई विदेशी भाषाओं में नहीं अनुवाद हो चुका हैं।
सआदत हसन मंटो (Saadat Hasan Manto in Hindi) ने उर्दू साहित्य में केवल गद्य विधा में रचना की। यहाँ सआदत हसन मंटो की संपूर्ण साहित्यिक रचनाओं (Saadat Hasan Manto Books in Hindi) के बारे में विस्तार से बताया गया है, जो कि इस प्रकार हैं:-
कहानी-संग्रह
- आतिशपारे
- मंटो के अफसाने
- धुँआ
- अफसाने और ड्रामे
- लज्जत-ए-संग
- सियाह हाशिए
- बादशाहत का खात्मा
- खाली बोतलें
- सड़क के किनारे
- याजिद
- लाउडस्पीकर
- ठंडा गोश्त
- पर्दे के पीछे
- शिकारी औरतें
- सरकंडों के पीछे
- काली सलवार
- मंटो की बेहतरीन कहानियाँ
संस्मरण
- मीना बाजार
आत्मकथा
- मैं क्यों लिखता हूँ
व्यंग्य
- चचा साम के नाम मंटो के खत
- नेहरू के नाम मंटो के खत
42 वर्ष की आयु में कहाँ दुनिया को अलविदा
18 जनवरी, 1955 को 42 वर्ष की अल्प आयु में ही उन्होंने दुनिया को सदा के लिए अलविदा कह दिया।
पुरस्कार एवं सम्मान
सआदत हसन मंटो ने दो दशकों तक उर्दू साहित्य की कई विधाओं में अनुपम कृतियों का सृजन किया। किंतु मंटो को जीवित रहते वो सम्मान प्राप्त नहीं हुआ जो उन्हें मृत्यु के बाद मिला। बता दें कि जिस सरकार ने उनकी कहानियों पर अश्लीलता के आरोप लगाकर उन्हें जेल में कैद किया था व जुर्माना लगाया था, उसी सरकार ने उनकी मृत्यु के बाद देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘निशान-ए- इम्तियाज़’ से नवाजा। इसके साथ ही उनके सम्मान में डाक विभाग ने एक डाक टिकट भी जारी किया था।
पढ़िए भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय
यहाँ उर्दू अदब के मशहूर अफ़साना निगार सआदत हसन मंटो का जीवन परिचय (Saadat Hasan Manto in Hindi) के साथ ही भारत के महान राजनीतिज्ञ और साहित्यकारों का जीवन परिचय की जानकारी भी दी जा रही हैं। जिसे आप नीचे दी गई टेबल में देख सकते हैं-
FAQs
सआदत हसन मंटो का जन्म 11 मई 1912 को पंजाब के लुधियाना जिले के क़स्बा समराला में हुआ था।
सआदत हसन मंटो के पिता का नाम ‘मौलवी ग़ुलाम हुसैन’ था जो कि पेशे से जज थे।
सआदत हसन मंटो की पत्नी का सफ़िया था।
बता दें कि यह सआदत हसन मंटो की बहुचर्चित कहानियों में से एक मानी जाती है।
सआदत हसन मंटो का 18 जनवरी, 1955 को 42 वर्ष की अल्प आयु में निधन हो गया था।
आशा है कि आपको उर्दू अदब के मशहूर अफ़साना निगार सआदत हसन मंटो का जीवन परिचय (Saadat Hasan Manto in Hindi) पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।