Mahadevi Verma ki Kavitayen आपके जीवन में सकारात्मक परिवर्तन डालने का प्रयास करेंगी। महादेवी वर्मा की कविताएं विद्यार्थियों को सही दिशा दिखाने का सफल प्रयास करती हैं। महादेवी वर्मा की कविताएं समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने का प्रयास करती हैं। यह कहना अनुचित न होगा कि कविताओं ने सभ्यताओं का नेतृत्व करने में अपना अहम योगदान दिया है। महादेवी वर्मा की कविताएं भी हिंदी साहित्य की उस श्रेणी में आती हैं, जिसमें रचित रचनाएं आज भी प्रासंगिक होकर समाज में सकारात्मक परिवर्तन ला रही हैं। महादेवी की कविताएं मानव को साहस से लड़ना सिखाती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप Mahadevi Verma ki Kavitayen पढ़ पाएंगे, जिसके लिए आपको ब्लॉग को अंत तक पढ़ना पड़ेगा।
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महादेवी वर्मा का जीवन परिचय
Mahadevi Verma ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको महादेवी वर्मा का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। हिन्दी साहित्य की अनमोल मणियों में से एक कवियत्री महदेवी वर्मा जी भी थीं, जिन्होंने हिंदी साहित्य के लिए अपना अविस्मरणीय योगदान दिया। महादेवी वर्मा जी का जन्म 26 मार्च 1907 को उत्तर प्रदेश के फरुक्खाबाद में हुआ था, बचपन कठिनाईयों में फिर भी महादेवी वर्मा जी ने साहस से काम लिया और अपने कौशल का विकास किया।
भारतीय हिंदी साहित्य की प्रमुख कवित्री में से एक थीं और उन्होंने सदैव ही अपने लेखन से भारतीय समाज को महिला उत्थान की दिशा में प्रेरित किया। उनकी कविताएं उनके समय के सामाजिक, राजनीतिक, और मानविक मुद्दों पर आधारित थीं।
महादेवी वर्मा भारतीय साहित्य की एक मशहूर हिन्दी कवियत्री और लेखिका थी। उन्हें हिन्दी साहित्य में अपनी रचनाओं के आधार पर खूब यश कमाया। 11 सितंबर 1987 को महादेवी वर्मा जी का निधन हुआ और वह सदा के लिए पंचतत्व में विलीन हो गयीं।
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महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं
Mahadevi Verma ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं अवश्य देख लेना चाहिए, जिसको आप इस ब्लॉग में पढ़ेंगे। महादेवी वर्मा की कविताएं उनके समय के सामाजिक परिपेक्ष्य में महिला स्वतंत्रता, शिक्षा, और समाज में उनकी भूमिका को दर्शाने वाली हैं। महादेवी वर्मा की प्रमुख रचनाएं हिंदी साहित्य में उनके महान और महत्वपूर्ण योगदान को दर्शाती है, जिस कारण उन्हें “मॉडर्न मीरा” के रूप में भी जाना जाता है।
यह मेरा दीप सदा सुद्ध हे
इस कविता में, महादेवी वर्मा ने दीप की संजीवनी शक्ति को बयां किया और वह एक प्रतीक है कि महिलाएं समाज में सुधार ला सकती हैं। दीप की पवित्र लौ से ही अन्याय के अंधकार का नाश होता है, यह इस कविता के माध्यम से बताया गया है।
मधुबाला
यह कविता महादेवी वर्मा की स्त्रीशक्ति और स्वतंत्रता के प्रति उनकी विश्वास को प्रकट करती है। महादेवी वर्मा ने इस कविता के माध्यम से स्वतंत्रता के सही रूप में नारी शक्ति को सम्मानित और प्रेरित किया है।
रात पश्चाताप
इस कविता के माध्यम से महादेवी वर्मा समाज को रात के अंधकार से लड़ने के लिए समर्थ होने की बात करती हैं और जीवन को नई उम्मीद की ओर ले जाने के लिए बदलती दिशा को दर्शाती हैं।
सुहागिन
इस कविता में, महादेवी वर्मा ने सुहागिन स्त्री की भावनाओं और उसकी समझ को व्यक्त किया है। महादेवी वर्मा के शब्द दर्शाते हैं कि कैसे उन्होंने सुंदरता के साथ विवाह के पवित्र बंधन और सुहागन स्त्री के सम्मान को प्रस्तुत किया है।
अच्छाई की तारीकें
इस कविता के माध्यम से महादेवी वर्मा अच्छाई की उस महत्वपूर्ण भूमिका पर चर्चा करती हैं, जो समाज का आधार बननी चाहिए। साथ ही वह इस कविता के माध्यम से यह दिखाती हैं कि अच्छाई हमारे जीवन में कैसे महत्वपूर्ण है।
दीप मेरे जल अकम्पित
Mahadevi Verma ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महादेवी वर्मा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “दीप मेरे जल अकम्पित” भी है, जो कि आपको संकट के समय में संभालने और प्रेरित करने का काम करेगी।
दीप मेरे जल अकम्पित,
घुल अचंचल!
सिन्धु का उच्छवास घन है,
तड़ित, तम का विकल मन है,
भीति क्या नभ है व्यथा का
आँसुओं से सिक्त अंचल!
स्वर-प्रकम्पित कर दिशायें,
मीड़, सब भू की शिरायें,
गा रहे आंधी-प्रलय
तेरे लिये ही आज मंगल
मोह क्या निशि के वरों का,
शलभ के झुलसे परों का
साथ अक्षय ज्वाल का
तू ले चला अनमोल सम्बल!
पथ न भूले, एक पग भी,
घर न खोये, लघु विहग भी,
स्निग्ध लौ की तूलिका से
आँक सबकी छाँह उज्ज्वल
हो लिये सब साथ अपने,
मृदुल आहटहीन सपने,
तू इन्हें पाथेय बिन, चिर
प्यास के मरु में न खो, चल!
धूम में अब बोलना क्या,
क्षार में अब तोलना क्या!
प्रात हंस रोकर गिनेगा,
स्वर्ण कितने हो चुके पल!
दीप रे तू गल अकम्पित,
चल अंचल!
-महादेवी वर्मा
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पंथ होने दो अपरिचितपंथ होने दो अपरिचित
Mahadevi Verma ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महादेवी वर्मा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “पंथ होने दो अपरिचित” भी है, जो कि हमें अपनी सीमाओं को पार करके नए अनुभवों की ओर बढ़ने के लिए प्रोत्साहित करती है। इस कविता से प्रेरित होकर नए रास्तों को खुलकर चुनेंगे।
प्राण रहने दो अकेला
और होंगे चरण हारे,
अन्य हैं जो लौटते दे शूल को संकल्प सारे;
दुखव्रती निर्माण-उन्मद
यह अमरता नापते पद;
बाँध देंगे अंक-संसृति से तिमिर में स्वर्ण बेला
दूसरी होगी कहानी
शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी;
आज जिसपर प्यार विस्मृत ,
मैं लगाती चल रही नित,
मोतियों की हाट औ, चिनगारियों का एक मेला
हास का मधु-दूत भेजो,
रोष की भ्रूभंगिमा पतझार को चाहे सहेजो;
ले मिलेगा उर अचंचल
वेदना-जल स्वप्न-शतदल,
जान लो, वह मिलन-एकाकी विरह में है दुकेला
-महादेवी वर्मा
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ओ चिर नीरव
Mahadevi Verma ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महादेवी वर्मा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “ओ चिर नीरव” भी है, जो कि प्रेम की पवित्र भावना को दर्शाती है। इस कविता में प्रेमिका के नेत्रहीन होने पर भी उसके प्रति पवित्र भावनाओं और प्रेम की परिभाषा को सही शब्दों से सुसज्जित किया गया है।
मैं सरित विकल,
तेरी समाधि की सिद्धि अकल,
चिर निद्रा में सपने का पल,
ले चली लास में लय-गौरव
मैं अश्रु-तरल,
तेरे ही प्राणों की हलचल,
पा तेरी साधों का सम्बल,
मैं फूट पड़ी ले स्वर-वैभव !
मैं सुधि-नर्तन,
पथ बना, उठे जिस ओर चरण,
दिशा रचता जाता नुपूर-स्वन,
जगता जर्जर जग का शैशव !
मैं पुलकाकुल,
पल पल जाती रस-गागर ढुल,
प्रस्तर के जाते बन्धन खुल,
लुट रहीं व्यथा-निधियाँ नव-नव !
मैं चिर चंचल,
मुझसे है तट-रेखा अविचल,
तट पर रूपों का कोलाहल,
रस-रंग-सुमन-तृण-कण-पल्लव !
मैं ऊर्म्मि विरल,
तू तुंग अचल, वह सिन्धु अतल,
बाँधें दोनों को मैं चल चल,
धो रही द्वैत के सौ कैतव !
मैं गति विह्वल,
पाथेय रहे तेरा दृग-जल,
आवास मिले भू का अंचल,
मैं करुणा की वाहक अभिनव !
-महादेवी वर्मा
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प्राण हँस कर ले चला जब
Mahadevi Verma ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महादेवी वर्मा की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “प्राण हँस कर ले चला जब” भी है, जो कि जीवन के कटु सत्य यानि मृत्यु से बिना भय खाए, खुशियों के चयन पर आधारित है। कविता में मृत्यु को एक सुंदर और अद्वितीय प्रकार से दिखाया गया है, जिसमें मृतक के प्राणों का विदाय हँसते हुए किया गया है। इससे व्यक्ति के अंतिम पलों में भी वह खुशियाँ और आनंद का अहसास करता है, जो उसके जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।
प्राण हँस कर ले चला जब
चिर व्यथा का भार!
उभर आये सिन्धु उर में
वीचियों के लेख,
गिरि कपोलों पर न सूखी
आँसुओं की रेख।
धूलि का नभ से न रुक पाया कसक-व्यापार!
शान्त दीपों में जगी नभ
की समाधि अनन्त,
बन गये प्रहरी, पहन
आलोक-तिमिर, दिगन्त!
किरण तारों पर हुए हिम-बिन्दु बन्दनवार।
स्वर्ण-शर से साध के
घन ने लिया उर बेध,
स्वप्न-विहगों को हुआ
यह क्षितिज मूक निषेध!
क्षण चले करने क्षणों का पुलक से श्रृंगार!
शून्य के निश्वास ने दी
तूलिका सी फर,
ज्वार शत शत रंग के
फैले धरा को घेर!
वात अणु अणु में समा रचने लगी विस्तार!
अब न लौटाने कहो
अभिशाप की वह पीर,
बन चुकी स्पन्दन ह्रदय में
वह नयन में नीर!
अमरता उसमें मनाती है मरण-त्योहार!
छाँह में उसकी गये आ
शूल फूल समीप,
ज्वाल का मोती सँभाले
मोम की यह सीप
सृजन के शत दीप थामे प्रलय दीपाधार!
-महादेवी वर्मा
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सब बुझे दीपक जला लूँ !
Mahadevi Verma ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महादेवी वर्मा जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “सब बुझे दीपक जला लूँ !” भी है, जो कि बिना कठिन समय में भी आपको साहस से काम लेना सिखाती है। कविता में कवियत्री ने एक दीपक की मिसाल दी है, जो जलकर भी सब कुछ खो देता है, लेकिन वह दीपक जिसमें समर्पण और संकल्प होता है, वही सच्चा जीवन का मतलब है।
सब बुझे दीपक जला लूं
घिर रहा तम आज दीपक रागिनी जगा लूं
क्षितिज कारा तोडकर अब
गा उठी उन्मत आंधी,
अब घटाओं में न रुकती
लास तन्मय तडित बांधी,
धूल की इस वीणा पर मैं तार हर त्रण का मिला लूं!
भीत तारक मूंदते द्रग
भ्रान्त मारुत पथ न पाता,
छोड उल्का अंक नभ में
ध्वंस आता हरहराता
उंगलियों की ओट में सुकुमार सब सपने बचा लूं!
लय बनी मृदु वर्तिका
हर स्वर बना बन लौ सजीली,
फैलती आलोक सी
झंकार मेरी स्नेह गीली
इस मरण के पर्व को मैं आज दीवाली बना लूं!
देखकर कोमल व्यथा को
आंसुओं के सजल रथ में,
मोम सी सांधे बिछा दीं
थीं इसी अंगार पथ में
स्वर्ण हैं वे मत कहो अब क्षार में उनको सुला लूं!
अब तरी पतवार लाकर
तुम दिखा मत पार देना,
आज गर्जन में मुझे बस
एक बार पुकार लेना
ज्वार की तरिणी बना मैं इस प्रलय को पार पा लूं!
आज दीपक राग गा लूं!
-महादेवी वर्मा
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