Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva: राज्य के नीति निर्देशक तत्व 

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Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva

Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva: भारतीय संविधान की एक विशेषता के रूप में राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांत का उद्देश्य देश में एक न्यायपूर्ण और समानता पर आधारित समाज की स्थापना के लिए मार्गदर्शन करना है। भारतीय संविधान सिर्फ कानूनों का संकलन नहीं है, बल्कि यह एक ऐसा मार्गदर्शक दस्तावेज़ है जो भारत को एक न्यायपूर्ण, समानता-प्रधान और समावेशी राष्ट्र बनाने की दिशा में आगे बढ़ाता है। इसी उद्देश्य को साकार करने के लिए संविधान में राज्य के नीति निर्देशक तत्वों को शामिल किया गया है। ये देश के नीति-निर्माताओं के लिए आदर्श दिशा-निर्देश होते हैं। इनका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि भारत का हर नागरिक समान अवसर, गरिमामयी जीवन और सामाजिक सुरक्षा प्राप्त कर सके। इस ब्लॉग में राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva) के बारे में विस्तार से जानकारी दी गई है। 

राज्य के नीति निर्देशक तत्व क्या होते हैं?

राज्य के नीति निर्देशक तत्व भारतीय संविधान का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो सरकार को देश के नागरिकों के सामाजिक और आर्थिक कल्याण के लिए आवश्यक दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं। ये संविधान के भाग-4 (अनुच्छेद 36 से 51) में शामिल हैं। यह तत्व कानून की तरह बाध्यकारी नहीं होते, लेकिन ये सरकार के लिए नैतिक रूप से अनिवार्य होते हैं। यानी सरकार जब कोई नीति या कानून बनाती है, तो उसे इन सिद्धांतों को ध्यान में रखना चाहिए।

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के प्रकार

भारतीय संविधान में शामिल नीति निर्देशक तत्वों को उनके उद्देश्य और प्रकृति के आधार पर मुख्यतः तीन भागों में बांटा गया हैं;-

सामाजिक और आर्थिक तत्व

सामाजिक और आर्थिक तत्वों का उद्देश्य समाज में समानता, न्याय और गरीबों का कल्याण सुनिश्चित करना है।  

सामाजिक और आर्थिक तत्व के मुख्य अनुच्छेद इस प्रकार हैं:- 

  • अनुच्छेद 38 (Article 38): राज्य का काम यह है कि वह ऐसा समाज बनाए जहाँ सभी को न्याय (सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक) मिल सके। इसके लिए वह लोगों की आय, सुविधा और अवसरों में बराबरी लाने की कोशिश करता है।
  • अनुच्छेद 39 (Article 39): राज्य को कुछ खास बातों का ध्यान रखना चाहिए:
    • हर नागरिक को रोज़गार और कमाई का साधन मिले।
    • देश के संसाधनों का फायदा हर किसी को मिले, न कि कुछ अमीरों को ही।
    • धन कुछ लोगों के हाथों में ही जमा न हो जाए।
    • महिलाओं और पुरुषों को बराबर वेतन मिले।
    • मजदूरों के स्वास्थ्य और ताकत की रक्षा की जाए।
    • बच्चों और युवाओं का शोषण न हो।
  • अनुच्छेद 41 (Article 41): राज्य को यह देखना चाहिए कि ज़रूरतमंद लोगों को काम, शिक्षा और सरकारी सहायता मिल सके, खासकर जब कोई बेरोज़गार, बुजुर्ग, बीमार या विकलांग हो।
  • अनुच्छेद 42 (Article 42): राज्य को मजदूरों के लिए अच्छे और इंसानी हालात में काम का इंतजाम करना चाहिए और गर्भवती महिलाओं के लिए विशेष सुविधा भी देनी चाहिए।
  • अनुच्छेद 43 (Article 43): हर काम करने वाले को इतनी मज़दूरी मिले कि वह अपना और अपने परिवार का अच्छे से पालन-पोषण कर सके। साथ ही, सम्मान से जीने का मौका भी मिले।
  • अनुच्छेद 43A (Article 43A): राज्य को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उद्योगों में काम करने वाले मजदूर भी फैक्ट्री या कंपनी के प्रबंधन में भाग ले सकें, ताकि वे भी फैसलों का हिस्सा बन सकें।
  • अनुच्छेद 47 (Article 47): राज्य का यह कर्तव्य है कि वह लोगों को अच्छा खाना, पोषण और स्वास्थ्य सुविधा उपलब्ध कराए ताकि सभी का स्वास्थ्य और जीवन स्तर सुधरे।

गांधीवादी तत्व (Gandhian Principles)

गांधीवादी तत्व सिद्धांत महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित हैं और ग्राम स्वराज, खादी, पशुपालन जैसी ग्रामीण नीतियों पर आधारित हैं।

गांधीवादी तत्व के मुख्य अनुच्छेद इस प्रकार हैं:-

  • अनुच्छेद 40: ग्राम पंचायतों को बढ़ावा, राज्य को यह सुनिश्चित करना है कि गाँवों में ग्राम पंचायतों का निर्माण हो और उन्हें स्वशासन की इकाइयों के रूप में विकसित किया जाए, जिससे ग्रामीण इलाकों में भी लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हों।
  • अनुच्छेद 43: कुटीर उद्योगों को समर्थन, राज्य को ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे स्तर पर चलने वाले कुटीर और हस्तशिल्प उद्योगों को प्रोत्साहित करना चाहिए। ये उद्योग या तो व्यक्तिगत रूप से या फिर सहकारी आधार पर संचालित हो सकते हैं ताकि ग्रामीण लोगों को रोज़गार के अवसर मिल सकें।
  • अनुच्छेद 43B: सहकारी समितियों को बढ़ावा, राज्य को ऐसे माहौल का निर्माण करना चाहिए जिससे सहकारी समितियाँ अपने कार्यों को स्वतंत्रता, लोकतंत्र और पेशेवर तरीके से चला सकें। इसमें समितियों का स्वैच्छिक गठन, स्वायत्तता और बेहतर प्रबंधन सुनिश्चित करना शामिल है।
  • अनुच्छेद 46: कमजोर वर्गों का कल्याण, राज्य का दायित्व है कि वह समाज के कमजोर वर्गों, खासकर SC, ST और अन्य पिछड़े वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों की रक्षा करे और उन्हें आगे बढ़ने के अवसर प्रदान करे, जिससे समानता और न्याय सुनिश्चित हो सके।
  • अनुच्छेद 47: स्वास्थ्य और नशामुक्ति, राज्य को जनता के स्वास्थ्य स्तर को सुधारने के लिए कार्य करना चाहिए और साथ ही नशे वाले पदार्थों और हानिकारक पेयों के सेवन को कम करने के लिए कड़े कदम उठाने चाहिए। यह एक स्वस्थ समाज के निर्माण की दिशा में एक जरूरी प्रयास है।
  • अनुच्छेद 48: पशुधन का संरक्षण, राज्य को चाहिए कि वह गायों, बछड़ों और अन्य दुधारू पशुओं के वध पर रोक लगाए और पशुधन की नस्लों में सुधार के लिए जरूरी कदम उठाए। इसका उद्देश्य है ग्राम्य जीवन और कृषि की रीढ़ माने जाने वाले पशुओं की सुरक्षा और उन्नति।

अंतर्राष्ट्रीय शांति और न्याय से जुड़े तत्व

इनका उद्देश्य भारत को वैश्विक स्तर पर एक शांतिप्रिय और न्यायप्रिय राष्ट्र के रूप में प्रस्तुत करना है।

अंतर्राष्ट्रीय शांति और न्याय से जुड़े मुख्य तत्व इस प्रकार हैं:-

  • अनुच्छेद 44: समान नागरिक संहिता, राज्य का कर्तव्य है कि वह भारत के सभी नागरिकों के लिए एक समान नागरिक संहिता लागू करने की दिशा में कार्य करे, ताकि सभी को समान अधिकार और न्याय मिल सके, चाहे उनका धर्म या समुदाय कुछ भी हो।
  • अनुच्छेद 45: बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा, राज्य को छह वर्ष की आयु तक के सभी बच्चों को प्रारंभिक देखभाल और शिक्षा उपलब्ध कराने का प्रयास करना चाहिए ताकि उनका समुचित विकास हो सके।
  • अनुच्छेद 48: कृषि और पशुपालन का आधुनिकीकरण, राज्य को कृषि और पशुपालन को वैज्ञानिक और आधुनिक तरीकों से संगठित करने का प्रयास करना चाहिए ताकि उत्पादन में वृद्धि हो और ग्रामीण अर्थव्यवस्था मजबूत हो।
  • अनुच्छेद 48A: पर्यावरण और वन्यजीव संरक्षण, राज्य को पर्यावरण की रक्षा और उसमें सुधार करने के साथ-साथ देश के वनों और वन्यजीवों की सुरक्षा सुनिश्चित करनी चाहिए।
  • अनुच्छेद 49: सांस्कृतिक और ऐतिहासिक धरोहरों की रक्षा, राज्य को उन सभी स्मारकों, स्थलों और वस्तुओं की रक्षा करनी चाहिए जो कला या इतिहास की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण हैं।
  • अनुच्छेद 50: न्यायपालिका की स्वतंत्रता, राज्य को न्यायपालिका को कार्यपालिका से अलग और स्वतंत्र बनाए रखने के लिए आवश्यक कदम उठाने चाहिए, ताकि न्याय व्यवस्था निष्पक्ष और प्रभावी बनी रहे।
  • अनुच्छेद 51: अंतर्राष्ट्रीय शांति और सहयोग, राज्य को अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बढ़ावा देने, सभी राष्ट्रों से सम्मानजनक संबंध बनाए रखने, अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करने और विवादों को शांतिपूर्ण तरीकों से सुलझाने की दिशा में काम करना चाहिए।

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों की विशेषताएं 

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva) की विशेषताएं इस प्रकार हैं;-  

  • संवैधानिक मार्गदर्शन: DPSP संविधान द्वारा दिए गए ऐसे निर्देश हैं, जिनका उद्देश्य विधायिका, कार्यपालिका और प्रशासन को नीति निर्माण में सही दिशा देना है। ये सिद्धांत किसी भी कानून या योजना को तैयार करते समय मूल विचारधारा के रूप में काम आते हैं।
  • न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते: मौलिक अधिकारों के विपरीत, नीति निर्देशक सिद्धांतों को अदालत में लागू नहीं किया जा सकता। यानी अगर सरकार इनका पालन न भी करे, तो नागरिक अदालत में जाकर सरकार को इसके लिए बाध्य नहीं कर सकते।
  • कल्याणकारी राज्य की स्थापना का उद्देश्य: ये सिद्धांत संविधान की प्रस्तावना में उल्लेखित मूल्यों—न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व—को वास्तविकता में बदलने की दिशा में कार्य करते हैं। इनका मकसद है भारत को एक कल्याणकारी राज्य बनाना, जहाँ हर नागरिक का भला हो।
  • सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा: DPSP ऐसे सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक उद्देश्यों की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं, जिनके ज़रिए एक समावेशी और न्यायपूर्ण लोकतंत्र की नींव रखी जा सकती है।
  • सुशासन का आधार: नीति निर्देशक सिद्धांत शासन में पारदर्शिता, जवाबदेही और नवाचार को बढ़ावा देते हैं। इन सिद्धांतों के माध्यम से सरकार सामाजिक-आर्थिक विकास के लक्ष्यों को बेहतर ढंग से पूरा कर सकती है।
  • ‘निर्देशों के उपकरण’ के समान: संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने इन सिद्धांतों की तुलना 1935 के भारत सरकार अधिनियम के ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ इंस्ट्रक्शन’ से की थी। यानी ये सरकार को नीति निर्माण में दिशा देने वाले एक औपचारिक साधन हैं।
  • न्यायपालिका में सहायक भूमिका: हालांकि DPSP को अदालत में लागू नहीं किया जा सकता, फिर भी ये न्यायालयों द्वारा कानून की संवैधानिकता की जांच में एक अहम भूमिका निभाते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में माना है कि अगर कोई कानून नीति निर्देशक तत्वों को लागू करने की कोशिश करता है, तो उसे संविधान के अनुच्छेद 14 या 19 के तहत ‘उचित’ माना जा सकता है।

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों का महत्व

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों (Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva) का महत्व इस प्रकार है: 

  • DPSP राज्य को ऐसे कदम उठाने के लिए प्रेरित करते हैं जो समाज के सभी वर्गों के हित में हों। इनका उद्देश्य एक ऐसी सामाजिक और आर्थिक व्यवस्था स्थापित करना है जो न्याय, समानता और भाईचारे को बढ़ावा दे।
  • ये सिद्धांत जाति, लिंग और आर्थिक भेदभाव को खत्म कर एक न्यायपूर्ण समाज की ओर ले जाते हैं। राज्य को इस दिशा में काम करने और वंचित वर्गों को मुख्यधारा से जोड़ने के लिए प्रेरित किया जाता है।
  • DPSP राज्य से यह अपेक्षा करता है कि वह धन और संसाधनों का ऐसा वितरण करे जिससे सभी नागरिकों को एक गरिमामय जीवन जीने का अवसर मिल सके।
  • इन सिद्धांतों में बच्चों को नि:शुल्क और अनिवार्य शिक्षा देने पर बल दिया गया है। यह समाज के समग्र विकास और व्यक्ति के आत्मनिर्भर बनने के लिए आवश्यक माना गया है।
  • DPSP में राज्य को पर्यावरण संरक्षण की दिशा में काम करने, जंगलों, वन्यजीवों और प्राकृतिक संसाधनों को बचाने का निर्देश दिया गया है। यह विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन बनाए रखने की सोच को दर्शाता है।
  • कुछ नीति निर्देशक तत्व राज्य को अन्य देशों के साथ न्यायपूर्ण और सम्मानजनक संबंध बनाए रखने, संधियों का पालन करने और वैश्विक शांति को बढ़ावा देने के लिए प्रेरित करते हैं।
  • हालांकि ये सिद्धांत न्यायालयों द्वारा लागू नहीं किए जा सकते, फिर भी ये विधायिका के लिए नीति और कानून बनाते समय एक मार्गदर्शक के रूप में काम करते हैं, ताकि संविधान के मूल उद्देश्यों को पूरा किया जा सके।
  • DPSP संविधान में दिए गए मौलिक अधिकारों के पूरक हैं। ये सामाजिक और आर्थिक लक्ष्यों की ओर इशारा करते हैं जिससे व्यक्ति के अधिकार और समाज का कल्याण दोनों एक साथ आगे बढ़ सकें।

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों में अंतर

मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक तत्वों (Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva) में अंतर इस प्रकार हैं:-

संविधान में उल्लेख

  • मौलिक अधिकार: संविधान के भाग-3, अनुच्छेद 12 से 35 तक।
  • नीति निर्देशक तत्व: संविधान के भाग-4, अनुच्छेद 36 से 51 तक।

स्रोत

  • मौलिक अधिकार: संयुक्त राष्ट्र अमेरिका से लिया गया है।
  • नीति निर्देशक तत्व: आयरलैंड के संविधान से लिया गया है।

कानूनी प्रवर्तन

  • मौलिक अधिकार: इनका उल्लंघन होने पर व्यक्ति अदालत में जा सकता है।
  • नीति निर्देशक तत्व: इनका उल्लंघन होने पर अदालत में जाने की आवश्यकता नहीं होती है।

मान्यता

  • मौलिक अधिकार: कानूनी मान्यता प्राप्त होती है।
  • नीति निर्देशक तत्व: सरकारी मान्यता प्राप्त होती है।

स्वत: उपलब्धता

  • मौलिक अधिकार: नागरिकों को स्वत: प्राप्त होते हैं।
  • नीति निर्देशक तत्व: इन्हें सरकार के द्वारा लागू किया जाता है और तब नागरिकों को प्राप्त होते हैं।

सरकार का महत्व

  • मौलिक अधिकार: सरकार के अधिकार को सीमित करते हैं।
  • नीति निर्देशक तत्व: सरकार का महत्व बढ़ाते हैं।

उद्देश्य

  • मौलिक अधिकार: ये व्यक्ति के अधिकारों को सुनिश्चित करते हैं।
  • नीति निर्देशक तत्व: ये समाज की भलाई के लिए होते हैं।

नागरिक और राज्य के संबंध

  • मौलिक अधिकार: इनसे नागरिकों और राज्य के बीच के संबंध का विवरण मिलता है।
  • नीति निर्देशक तत्व: ये राज्य के उद्देश्यों और अंतरराष्ट्रीय नीतियों का वर्णन करते हैं।

राष्ट्रीय आपातकाल की स्थिति

  • मौलिक अधिकार: राष्ट्रीय आपातकाल में इन्हें स्थगित किया जा सकता है।
  • नीति निर्देशक तत्व: इन्हें स्थगित नहीं किया जा सकता है।

FAQs 

राज्य नीति के निदेशक सिद्धांत का महत्व क्या है?

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांत (DPSP) सरकार के लिए अनुसरण करने के लिए दिशा-निर्देश हैं, लेकिन वे गैर-न्यायसंगत हैं। इसका मतलब है कि उन्हें किसी भी अदालत द्वारा लागू नहीं किया जा सकता है। विचार कानून और नीतियों को बनाने के लिए एक ढांचा प्रदान करना है जिसका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।

राज्य के नीति निर्देशक तत्वों में गांधीवादी लक्ष्य कौन से हैं?

गांधीवादी सिद्धांत राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का हिस्सा हैं, जो सामाजिक न्याय, विकेंद्रीकरण और आत्मनिर्भरता पर केंद्रित महात्मा गांधी के आदर्शों पर आधारित हैं।

नीति निर्देशक तत्व कितने भागों में बांटा गया है?

राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों को दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया गया है: सामाजिक और आर्थिक। सामाजिक निर्देशक सिद्धांत: न्यायपूर्ण समाज की स्थापना के लिए सामाजिक निर्देशक सिद्धांतों का पालन किया जाना आवश्यक है। ये सिद्धांत मौलिक अधिकारों की आवश्यकता पर आधारित हैं और इनका उद्देश्य लोगों के कल्याण को बढ़ावा देना है।

मौलिक अधिकारों और राज्य नीति के निर्देशक सिद्धांतों का महत्व क्या है?

मौलिक अधिकार की मुख्य विशेषता संविधान द्वारा प्रदत्त प्रत्येक नागरिक का दैनिक जीवनयापन का अधिकार है। वहीं दूसरी ओर नीति निर्देशक सिद्धांत उदारवादी और गांधीवादी सिद्धांतों को लागू करके आर्थिक और सामाजिक मानसिकता पर आधारित कल्याणकारी राज्य बनाने की वकालत करते हैं।

नीति निर्देशक तत्व क्या हैं?

नीति निर्देशक तत्व (DPSP) भारतीय संविधान के भाग-4 में शामिल होते हैं, जो राज्य को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं। ये तत्व कानूनी रूप से लागू नहीं होते, लेकिन सरकार के लिए दिशा तय करते हैं।

नीति निर्देशक तत्व कहाँ से लिए गए थे?

नीति निर्देशक तत्व (DPSP) आयरलैंड के संविधान से लिए गए थे। भारतीय संविधान निर्माताओं ने आयरलैंड की प्रणाली से प्रेरित होकर इन तत्वों को संविधान में शामिल किया, जो राज्य को सामाजिक और आर्थिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए मार्गदर्शन प्रदान करते हैं।

आशा है कि आपको इस लेख में राज्य के नीति निर्देशक तत्व (Rajya ke Niti Nirdeshak Tatva) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही सामान्य ज्ञान और UPSC आर्टिकल्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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