प्रयागराज कुंभ पर कविता 2025: प्रयागराज का कुंभ मेला – यह सिर्फ एक भव्य आयोजन नहीं, बल्कि एक आस्था और विश्वास का जीवित उदाहरण है। हर 144 वर्षों में जब यह मेला आयोजित होता है, तो नदियों का संगम न केवल भौतिक रूप से, बल्कि आत्मिक रूप से भी मनुष्य को एक नई दिशा दिखाता है। गंगा, यमुना और अदृश्य सरस्वती की पवित्र धाराओं में डुबकी लगाकर लाखों श्रद्धालु आत्मशुद्धि की ओर कदम बढ़ाते हैं। इस महाकुंभ के आयोजन में न केवल तीर्थयात्रा की भावना है, बल्कि भक्ति, समर्पण और आस्था की गहरी छाप भी है। इस लेख में, 2025 के प्रयागराज कुंभ मेला पर आधारित 5 आकर्षक कविताएं दी गई हैं, जिनके माध्यम से आप उस पवित्र ऊर्जा और प्रेम को महसूस करेंगें जो इस महान आयोजन से निकलकर हर भक्त के दिल में बसी है। इन कविताओं के जरिए हम कुंभ मेला की भव्यता, श्रद्धा और आत्मिक शांति को शब्दों में पिरोने की कोशिश की गई है।
प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पर कविता 1
संगम की धरती का अलौकिक नजारा,
प्रयागराज में कुंभ का उत्सव दोबारा।
गंगा, यमुना, सरस्वती का मिलन,
श्रद्धा का संगम, भक्ति का चयन।
दिव्य स्नान में डुबकी लगाएंगे,
पुण्य की गंगा में मन को बहाएंगे।
हर हर गंगे के जयकारे होंगे,
आत्मा के सारे पाप विसराएंगे।
शाही जुलूस और साधुओं की टोली,
हर चेहरे पर भक्ति की रंगोली।
अखंड अखाड़े, तपस्वियों का जमघट,
धर्म की बातें, सत्य का पट।
चमके दीप और मंत्रों की गूंज,
मेला बनेगा आस्था का पूंज।
संत-महात्मा देंगे सच्चे उपदेश,
जीवन की गहराई का होगा प्रवेश।
नौका विहार और भजन का रस,
हर कोई डूबेगा आत्मा के बस।
संगम तट पर होगा अद्भुत प्रकाश,
कुंभ मेला 2025 बनेगा खास।
आओ प्रिय, इस कुंभ में आएं,
भक्ति और श्रद्धा का दीप जलाएं।
प्रयागराज की महिमा गाएं,
पुण्य कमाएं, जीवन सजाएं।
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प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पर कविता 2
गंगा का तट, यमुना की बाहें,
सरस्वती की अदृश्य निगाहें।
त्रिवेणी का संगम बुला रहा,
प्रयागराज में कुंभ सजा रहा।
धरती पर स्वर्ग का दृश्य बिखरा,
आस्था का सागर अनंत गहरा।
चारों दिशाओं में भक्तों का रेला,
प्रकृति ने भी पहना भक्ति का मेला।
मौनी अमावस्या का पावन दिन,
हर डुबकी से मिटें मन के पाप-धन।
शिव के जयकारे, हर हर महादेव,
प्रभु से मिलने का यही है सेतु।
अखाड़ों के संत, योगी और महात्मा,
ज्ञान और तपस्या से भरते आत्मा।
मंत्रोच्चार से गूंजे यह मेघ,
प्रयागराज बना भक्ति का ध्रुव।
शाम की आरती का दृश्य अलौकिक,
दीपों का महासागर प्रतीक दिव्य।
हर लहर में गूंजे भगवान का नाम,
कुंभ में हर दिल को मिले सुकून तमाम।
तो आओ, इस कुंभ में झूम उठें,
पाप और मोह से दूर हटें।
भक्ति और पुण्य का करें आलिंगन,
त्रिवेणी संगम बने मोक्ष का बंधन।
प्रयागराज कुंभ मेला—पवित्रतम, अनंततम।
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प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पर कविता 3
जहां तीन नदियां मिलती हैं,
वहां श्रद्धा की माला गूंथती है।
गंगा, यमुना, सरस्वती का संगम,
प्रयागराज में फिर सजा यह संगम।
लाखों कदम जब संगम को छूते,
भक्तों के दिल में भाव भरते।
साधु-संतों का अनमोल प्रवाह,
आस्था का अद्भुत प्रवास।
शाही स्नान की वो अनोखी बात,
जहां रचता धर्म नया इतिहास।
सूरज की पहली किरण से पहले,
साधना में डूबे भक्त अकेले।
धूप, चंदन, और माटी का संग,
त्रिवेणी के जल में पवित्रता का रंग।
हर आहट में सुनाई दे प्रभु का नाम,
प्रयागराज कुंभ मेला करे सबका कल्याण।
आरती के दीपक जगमगाते,
हर कोना आस्था से सजे।
मंत्रों की गूंज में खो जाएं,
भक्ति के इस पर्व में रम जाएं।
कुंभ मेला है एक संदेश,
प्यार, एकता और धर्म विशेष।
तो आओ, करें पुण्य का काम,
प्रयागराज में पाए जीवन का सार।
जय गंगा, जय यमुना, जय सरस्वती।
प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पर कविता 4
भक्तों की श्रद्धा से तीरथ सजे,
त्रिवेणी संगम पर दीपक जले।
हर मन में भक्ति का भाव उमड़े,
प्रयागराज में कुंभ का पर्व चमके।
गंगा की धार में पावन स्नान,
हर कण में बसता भगवान।
आंखों में आशा, दिल में लगन,
भक्ति में खोए सबके चरण।
संतों की वाणी से गूंजे गगन,
ध्यान में डूबे हर भक्त का मन।
मंत्रों के स्वर, आरती की ज्योति,
संगम तट पर बसे अलौकिक होती।
हर ओर छाई है पुण्य की बयार,
भक्तों के संग चले भक्ति का संसार।
प्रभु की आराधना, सत्य का संकल्प,
हर भक्त का जीवन बने प्रेरक।
आओ, संगम पर हम सब जुड़ें,
प्रभु की महिमा में खुद को गढ़ें।
प्रयागराज कुंभ में करें जीवन सफल,
भक्ति के रस से भरें हृदय का पल।
प्रयागराज कुंभ मेला 2025 पर कविता 5
प्रयागराज का त्रिवेणी संगम,
जहां नदियां गाती हैं प्रेम का राग।
आध्यात्मिकता की बहे पवित्र लहरें,
यह महाकुंभ मेला है शांति का भाग।
पौष पूर्णिमा से आरंभ हुआ संगम,
शाही स्नान का अवसर है अद्भुत और महान।
चार सौ मिलियन भक्तों का आना,
स्वच्छता और स्वास्थ्य की व्यवस्था बनी प्रामाण।
मकर संक्रांति की धूप में चेहरे पर मुस्कान,
मौनी अमावस्या में चुपचाप भक्ति का ध्यान।
वसंत पंचमी का रंग हर दिल में बसा,
माघी पूर्णिमा पर भक्ति का नृत्य झलका।
महाशिवरात्रि में शिव का ध्यान,
हर भक्त के मन में गूंजे आशीर्वाद का गान।
महाकुंभ, यह अद्भुत सृजन,
144 सालों बाद आता, है मोक्ष का वरदान।
नदियों के संगम में बहता जीवन,
श्रद्धा की लहरों में बसा हर मन।
आत्मशुद्धि की तलाश में हर कदम बढ़े,
प्रयागराज कुंभ मेला—आध्यात्मिक यात्रा का खजाना।
यह है शांति का विशाल जनसंग्रह,
जहां सभी मिलकर साधते मोक्ष का मंत्र।
गंगा, यमुना, सरस्वती की महिमा गाए,
यह महाकुंभ मेला है प्रेम का संदेश सुनाए।
जय गंगा, जय यमुना, जय सरस्वती!
हर हर महादेव।
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