अशोक वाजपेयी की कविताएं, जो बनी आधुनिक हिंदी कविता का संवेदनशील स्वर

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अशोक वाजपेयी की कविताएं

Ashok Vajpeyi Poems : कविताएं ही समाज की चेतना को जगाए रखने के साथ-साथ, हम में कलात्मक विकास भी करती हैं। कविताएं समाज का दर्पण बनकर सही को सही और गलत को गलत कहने की पूरी क्षमता रखती हैं। हिंदी साहित्य में कई ऐसे कवियों ने अपना योगदान दिया, जिनकी लेखनी ने लाखों लोगों का मार्गदर्शन और प्रोत्साहन किया। ऐसे ही लोकप्रिय कवियों में से एक अशोक वाजपेयी (Ashok Vajpeyi) भी हैं, जिन्हें आधुनिक हिंदी साहित्य के संवेदनशील स्वर के रूप में जाना जाता है। 

अशोक वाजपेयी की कविताएं जीवन के सूक्ष्म पहलुओं, मानवीय संवेदनाओं और समाज में तेजी से हो रहे परिवर्तनों को गहराई से अभिव्यक्त करती हैं। उनकी लोकप्रिय कविताओं में ‘युवा जंगल’, ‘चींटी’, ‘प्रतीक्षा’, ‘बच्चे एक दिन’, ‘पूर्वजों की अस्थियों में’, ‘एक पतंग अनंत में’, ‘अगर इतने से’, ‘कहीं नहीं वहीं’, ‘समय के पास समय’ और ‘इबारत से गिरी मात्राएँ’ आदि है। वहीं इस ब्लॉग में आप अशोक वाजपेयी की कविताएं (Ashok Vajpeyi Poems) पढ़ पाएंगे, जो आपको प्रकृति, प्रेम और जीवन के अनूठे संगम से परिचित करवाएंगे।

अशोक वाजपेयी की कविताएं – Ashok Vajpeyi Poems

अशोक वाजपेयी की कविताएं (Ashok Vajpeyi Poems) समाज का दर्पण कहलाती हैं, जिसने सदैव समाज का सच से सामना करवाया है, वे कुछ इस प्रकार हैं: –

  • पूर्वजों की अस्थियों में
  • समय से अनुरोध
  • तुम जहाँ कहो
  • एक बार जो
  • हम न होंगे
  • थोड़ा-सा
  • जीवन
  • छाता
  • जूते
  • पत्ती
  • विदा
  • वहाँ भी
  • फिर घर
  • एक खिड़की
  • अकेले क्यों
  • हम
  • शरण्य
  • वापसी
  • ओझल
  • सब कुछ छोड़कर नहीं
  • अन्त के बाद-1
  • अन्त के बाद-2
  • नहीं आ पायेंगे
  • शेष गाथा
  • अगली बार
  • गोधूलि में ही
  • कितना अच्छा हो
  • देवता हमें पुकारेंगे
  • इसी मटमैलेपन पर
  • फिर आऊँगा
  • वही नहीं
  • मृत्यु
  • आवृत्ति
  • पुरखों के घर
  • रास्ता
  • वहीं
  • बची हुई
  • सिर्फ़ नहीं
  • कैसे कहें
  • बहिष्कृत
  • बचा रहेगा
  • अधपके अमरूद की तरह पृथ्वी
  • मौत की ट्रेन में दिदिया
  • सड़क पर एक आदमी
  • वह नहीं कहती
  • बच्चे एक दिन
  • वे बच्चे
  • सूर्य
  • चींटी
  • गाढे अंधेरे में
  • कोई नहीं सुनता
  • विश्वास करना चाहता हूँ
  • कितने दिन और बचे हैं?
  • सद्यःस्नाता
  • जबर जोत
  • चीख़
  • युवा जंगल
  • पहला चुंबन
  • वह कैसे कहेगी
  • प्रेम के लिए जगह
  • शेष
  • प्रतीक्षा
  • वहाँ-यहाँ
  • अव्यय
  • रचना
  • वह मुझमें
  • उससे पूछो
  • सिर्फ़ शब्दों से नहीं
  • गाढ़े अँधेरे में
  • सिर्फ शब्दों से नहीं
  • आततायी की प्रतीक्षा-1
  • आततायी की प्रतीक्षा-2
  • पथहारा वक्तव्य
  • चीख इत्यादि।

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अशोक वाजपेयी की चुनिंदा कविताएं 

यहाँ अशोक वाजपेयी की चुनिंदा कविताएं (Ashok Vajpeyi Poems) दी गई हैं:-

पूर्वजों की अस्थियों में

हम अपने पूर्वजों की अस्थियों में रहते हैं
हम उठाते हैं एक शब्द
और किसी पिछली शताब्दी का वाक्य-विन्यास
विचलित होता है,
हम खोलते हैं द्वार
और आवाज़ गूँजती है एक प्राचीन घर में कहीं-

हम वनस्पतियों की अभेद्य छाँह में रहते हैं
कीड़ों की तरह

हम अपने बच्चों को
छोड़ जाते हैं पूर्वजों के पास
काम पर जाने के पहले

हम उठाते हैं टोकनियों पर
बोझ और समय
हम रुखी-सुखी खा और ठंडा पानी पीकर
चल पड़ते हैं,
अनंत की राह पर
और धीरे-धीरे दृश्य में
ओझल हो जाते हैं
कि कोई देखे तो कह नहीं पायेगा
कि अभी कुछ देर पहले
हम थे

हम अपने पूर्वजों की अस्थियों में रहते हैं-

-अशोक वाजपेयी

समय से अनुरोध

समय, मुझे सिखाओ
कैसे भर जाता है घाव?-पर
एक अदृश्य फाँस दुखती रहती है
जीवन-भर। 

समय, मुझे बताओ
कैसे जब सब भूल चुके होंगे
रोज़मर्रा के जीवन-व्यापार में
मैं याद रख सकूँ
और दूसरों से बेहतर न महसूस करूँ। 

समय, मुझे सुझाओ
कैसे मैं अपनी रोशनी बचाए रखूँ
तेल चुक जाने के बाद भी
ताकि वह लड़का
उधार लाई महँगी किताब एक रात में ही पूरी पढ़ सके। 

समय, मुझे सुनाओ वह कहानी
जब व्यर्थ पड़ चुके हों शब्द,
अस्वीकार किया जा चुका हो सच,
और बाक़ि न बची हो जूझने की शक्ति
तब भी किसी ने छोड़ा न हो प्रेम,
तजी न हो आसक्ति,
झुठलाया न हो अपना मोह। 

समय, सुनाओ उसकी गाथा
जो अन्त तक बिना झुके
बिना गिड़गिड़ाए या लड़खड़ाए,
बिना थके और हारे, बिना संगी-साथी,
बिना अपनी यातना को सबके लिए गाए,
अपने अन्त की ओर चला गया। 

समय, अँधेरे में हाथ थामने,
सुनसान में गुनगुनाहट भरने,
सहारा देने, धीरज बँधाने
अडिग रहने, साथ चलने और लड़ने का
कोई भूला-बिसरा पुराना गीत तुम्हें याद हो
तो समय, गाओ
ताकि यह समय,
यह अँधेरा,
यह भारी असह्य समय कटे!

-अशोक वाजपेयी

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तुम जहाँ कहो

तुम जहाँ कहो
वहाँ चले जायेंगे
दूसरे मकान में
अँधेरे भविष्य में
न कहीं पहुँचने वाली ट्रेन में

अपना बसता-बोरिया उठाकर
रद्दी के बोझ सा
जीवन को पीठ पर लादकर
जहाँ कहो वहाँ चले जायेंगे
वापस इस शहर
इस चौगान, इस आँगन में नहीं आयेंगे

वहीं पक्षी बनेंगे, वृक्ष बनेंगे
फूल या शब्द बन जायेंगे
जहाँ तुम कभी खुद नहीं आना चाहोगे
वहाँ तुम कहो तो
चले जायेंगे

-अशोक वाजपेयी

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एक बार जो

एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।

फूल शब्द या प्रेम
पंख स्वप्न या याद
जीवन से जब छूट गए तो
फिर न वापस आएंगे।
अभी बचाने या सहेजने का अवसर है
अभी बैठकर साथ
गीत गाने का क्षण है।

अभी मृत्यु से दांव लगाकर
समय जीत जाने का क्षण है।
कुम्हलाने के बाद
झुलसकर ढह जाने के बाद
फिर बैठ पछताएंगे।

एक बार जो ढल जाएंगे
शायद ही फिर खिल पाएंगे।

-अशोक वाजपेयी

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हम न होंगे

हम न होंगे
जीवन और उसका अनन्त स्पन्दन
कड़ी धूप में घास की हरीतिमा,
प्रेम और मंदिरों का पुरातन स्थापत्य,
अक्षर, भाषा और सुन्दर कविताएँ,
इत्यादि, लेकिन, फिर भी सब होंगे
किलकारी, उदासी और गान सब
बस हम न होंगे।

शायद कभी किसी सपने की दरार में,
किसी भी क्षण भर की याद में,
किसी शब्द की अनसुनी अन्तर्ध्वनि में-
हमारे होने की हलकी सी छाप बची होगी
बस हम न होंगे।

देवता होंगे, दुष्ट होंगे,
जंगलों को छोड़कर बस्तियों में
मठ बनाते सन्त होंगे,
दुबकी हुई पवित्रता होगी,
रौब जमाते पाप होंगे,
फटे-चिथड़े भरे-पूरे लोग होंगे
बस हम न होंगे।
संसार के कोई सुख-दुख कम न होंगे
बस हम न होंगे।

-अशोक वाजपेयी

थोड़ा-सा

अगर बच सका
तो वही बचेगा
हम सबमें थोड़ा-सा आदमी

जो रौब के सामने नहीं गिड़गिड़ाता,
अपने बच्चे के नंबर बढ़वाने नहीं जाता मास्टर के घर,

जो रास्ते पर पड़े घायल को सब काम छोड़कर
सबसे पहले अस्पताल पहुंचाने का जतन करता है,
जो अपने सामने हुई वारदात की गवाही देने से नहीं हिचकिचाता

वही थोड़ा-सा आदमी
जो धोखा खाता है पर प्रेम करने से नहीं चूकता,

जो अपनी बेटी के अच्छे फ्राक के लिए
दूसरे बच्चों को थिगड़े पहनने पर मजबूर नहीं करता,

जो दूध में पानी मिलाने से हिचकता है,
जो अपनी चुपड़ी खाते हुए दूसरे की सूखी के बारे में सोचता है,

वही थोड़ा-सा आदमी
जो बूढ़ों के पास बैठने से नहीं ऊबता
जो अपने घर को चीजों का गोदाम होने से बचाता है,

जो दुख को अर्जी में बदलने की मजबूरी पर दुखी होता है
और दुनिया को नरक बना देने के लिए दूसरों को ही नहीं कोसता

वही थोड़ा-सा आदमी
जिसे ख़बर है कि
वृक्ष अपनी पत्तियों से गाता है अहरह एक हरा गान,
आकाश लिखता है नक्षत्रों की झिलमिल में एक दीप्त वाक्य,
पक्षी आंगन में बिखेर जाते हैं एक अज्ञात व्याकरण

वही थोड़ा-सा आदमी
अगर बच सका तो
वही बचेगा।

-अशोक वाजपेयी

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जीवन

तुम्हें जीने के लिए
कम से कम क्या चाहिए?
थोड़ी सी रोटी, कुछ नमक, पानी,
एक बसेरा, एक दरी, एक चादर,
एक जोड़ी कपड़े, एक थैला,
दो चप्पलें,
कुछ शब्द, एकाध पुस्तक, कुछ गुनगुनाहट,
दो-चार फूल, मातृस्मृति,
दूर चला गया बचपन,
पास आती मृत्यु।
तुम्हें कविता करने के लिए क्या चाहिए?
बहुत सारा जीवन, पूर्वज,
प्रेम, आँसू, अपमान,
लोगों का शोरगुल, अरण्य का एकान्त,
भाषा का घर, लय का अन्तरिक्ष,
रोटी का टुकड़ा, नमक की दली,
पानी का घड़ा
और निर्दय आकाश।

-अशोक वाजपेयी

छाता

छाते से बाहर ढेर सारी धूप थी
छाता-भर धूप सिर पर आने से रुक गई थी
तेज़ हवा को छाता
अपने-भर रोक पाता था
बारिश में इतने सारे छाते थे
कि लगता था कि लोग घर बैठे हैं
और छाते ही सड़क पर चल रहे हैं
अगर धूप, तेज़ हवा और बारिश न हो
तो किसी को याद नहीं रहता
कि छाते कहाँ दुबके पड़े हैं

-अशोक वाजपेयी

जूते

जूते वहीं थे
उनमें पैर नहीं थे
बीच-बीच में उनमें फफूंद लग जाता था
क्योंकि कोई पहनता नहीं था
निरुपयोग से वे कुछ सख़्त भी पड़ गए थे,
उनके तलों में धूल या कीचड़ नहीं लगा था
उन्हें कोई हटाता नहीं था
क्योंकि वे दिवंगत पिता के थे
फिर एक दिन वो बिला गए,
शायद अँधेरे में मौक़ा पाकर
वे ख़ुद ही अंत की ओर चले गए

-अशोक वाजपेयी

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FAQs 

अशोक वाजपेयी का जन्म कहां हुआ था?

अशोक वाजपेयी का जन्म 16 जनवरी, 1941 को छत्तीसगढ़ के दुर्ग नामक स्थान पर हुआ था। 

अशोक वाजपेयी ने कौन सी कविता लिखी है?

छाता, प्रतीक्षा, प्रेम के लिए जगह, सड़क पर एक आदमी, पूर्वजों की अस्थियों में, वहाँ-यहाँ तथा बच्चे एक दिन अशोक वाजपेयी की लोकप्रिय कविताएं हैं। 

शहर अब भी संभावना है किसकी रचना है?

शहर अब भी संभावना है, अशोक वाजपेयी का लोकप्रिय काव्य-संग्रह है। 

घास में दुबका आकाश किसकी रचना है?

यह अशोक वाजपेयी का बहुचर्चित काव्य-संग्रह है। 

आशा है कि आपको इस ब्लॉग में अशोक वाजपेयी की चुनिंदा कविताएं (Ashok Vajpeyi Poems) पसंद आई होंगी। ऐसे ही अन्य लोकप्रिय कवियों की कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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