क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी, जिनके नाम को इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों के साथ अंकित है। क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा ने जल, जंगल और जमीन की पैरवी करते हुए आदिवासी समाज को संगठित करने का काम किया था। अंग्रेजों की क्रूरता के खिलाफ समाज को संगठित करके युद्ध छेड़ने वाले क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा पर कविताएं पढ़कर आप साहसी जीवन जीने की प्रेरणा पा सकते हैं। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा जैसे महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन पर आधारित कविताएं अवश्य पढ़नी चाहिए। इस ब्लॉग के माध्यम से आप क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा पर आधारित Birsa Munda Poems in Hindi पढ़ पाएंगे, ये कविताएं आपको राष्ट्रप्रेम की भावनाओं से ओतप्रोत कर देंगी। क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा पर कविताएं पढ़ने के लिए आपको इस ब्लॉग को अंत तक पढ़ना चाहिए।
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बिरसा मुंडा का जीवन परिचय
क्रांतिसूर्य बिरसा मुंडा पर कविता पढ़ने से पहले आपको बिरसा मुंडा का जीवन परिचय अवश्य पढ़ लेना चाहिए। बिरसा मुंडा का जीवन परिचय आपको इतिहास के पन्ने पलटने पर मजबूर कर देगा। स्वतंत्रता संग्राम के लिए आदिवासी समाज का नेतृत्व करने वाले तथा भारत की महान संस्कृति का संरक्षण करने वाले, बिरसा मुंडा जी के परम बलिदान ने समाज को जगाने का काम किया। उनके परम बलिदानों के कारण ही उन्हें भगवान बिरसा मुंडा के नाम से संबोधित किया जाता है। बिरसा मुंडा जी केवल आदिवासी समाज के लोगों के लिए पूजनीय नहीं हैं, बल्कि उनका सम्मान देश का हर वो नागरिक करता है, जिसके लिए मातृभूमि के प्रति समर्पण सर्वोपरि होता है।
बिरसा मुंडा जी का जन्म झारखंड के 15 नवंबर 1875 को उलीहातू में हुआ था। बिरसा मुंडा जी एक गरीब आदिवासी परिवार से आते थे। बचपन से ही आदिवासी संस्कृति और परंपराओं के बारे में रूचि रखने वाले बिरसा मुंडा वर्ष 1895 में एक धार्मिक नेता के रूप में उभरे।
इतिहास के पन्नों को पलटकर देखा जाए आप पाएंगे कि बिरसा मुंडा जी एक भारतीय आदिवासी स्वतंत्रता सेनानी और मुंडा जनजाति के लोक नायक थे। उन्होंने ब्रिटिश राज के दौरान 19वीं शताब्दी के अंत में बंगाल प्रेसीडेंसी (आज के झारखंड) में हुए एक आदिवासी धार्मिक सहस्राब्दी आंदोलन का नेतृत्व किया था। इसी के बाद उन्हें भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के इतिहास में एक महत्वपूर्ण स्थान मिला।
बिरसा मुंडा ने आदिवासी लोगों को ब्रिटिश शासन और साहूकारों के शोषण के विरुद्ध एकत्र कर अपनी संस्कृति और परंपराओं को बचाने और अपने अधिकारों के लिए लड़ने के लिए प्रेरित किया। परिणामस्वरूप उनके नेतृत्व में आदिवासी समाज ने अंग्रेजों के खिलाफ कई विद्रोह किये, जिससे तंग आकर ब्रिटिश सरकार ने बिरसा मुंडा को गिरफ्तार कर, रांची सेंट्रल जेल में कैद कर दिया। जहाँ 9 जून 1900 को उन्हें अंग्रेजों द्वारा मार दिया गया।
बिरसा मुंडा पर कविताएं – Birsa Munda Poems in Hindi
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप आदिवासी समाज के संरक्षक भगवान बिरसा मुंडा जी के जीवन पर आधारित कविताओं को पढ़ सकते हैं। बिरसा मुंडा पर कविताएं और इनके कवियों की सूची कुछ इस प्रकार हैं;
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
बिरसा मुंडा | रमाकांत चौधरी |
बिरसा तुम्हें प्रणाम | बुद्धि प्रकश महावर ‘मन’ (दौसा राजस्थान) |
बिरसा मुंडा | मंजू आनंद |
वनवास का गरल | विजय कुमार विद्रोही |
अबुआ दिशुम, अबुआ राज | सूरज कुमार बौद्ध |
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बिरसा मुंडा
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप बिरसा मुंडा जी के चरित्र को जान सकते हैं, जिसमें उन पर लिखी कविता “बिरसा मुंडा” भी है। यह एक ऐसी कविता है, जिसने बिरसा मुंडा जी के जीवन को जन-जन तक पहुंचाने का काम किया है।
क्रांति की अमिट कहानी था। वह वीर बहुत अभिमानी था। डरा नहीं वह गोरों से, लहज़ा उसका तूफ़ानी था। जल जंगल धरती की ख़ातिर, जिसने सबकुछ वारा था। क्रांति बसी थी रग-रग में, वह जलता हुआ अंगारा था। सन् 1875 में जन्मा, राँची के उलिहातू ग्राम में। नाम था बिरसा मुंडा जिसका, जो हटा न कभी संग्राम में। आदिवासियों का महापुरुष, जो आज भी पूजा जाता है। जिसकी गाथा सुनने से, रग-रग में साहस भर जाता है। मानवता के विरुद्ध ज़ुल्म जब, बहुत अधिक बढ़ जाता है। बिरसा जैसा महापुरुष, तब ज़ुल्म मिटाने आता है।
–रमाकांत चौधरी
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बिरसा तुम्हें प्रणाम
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप बिरसा मुंडा जी के जीवन पर आधारित कविताओं को पढ़ सकते हैं, जिसमें से “बिरसा तुम्हें प्रणाम” भी एक प्रसिद्ध कविता है।
उलिहातू में जन्म था, कानन सिंह समान। करमी जिनकी मात है, पितु सुगना कुल भान। आदिवासी राष्ट्र का, तू है सच्चा पूत। आन बान अर शान तू, कानून की तू धूप। मातृभूमि का लाल है, धन्य तुम्हारी मात। बलिदानी जीवन रहा, नमन तुम्हारे तात। जल जंगल नारा दिया, सदा रहे निज धाम। राज देश स्व का रहे, बिरसा का पैगाम। क्रांतिकारी देशभक्त, बिरसा तुम्हें प्रणाम। गौरव तू मन देश का, जग में तेरा नाम।
–बुद्धि प्रकश महावर ‘मन’ (दौसा राजस्थान)
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बिरसा मुंडा
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप बिरसा मुंडा के बलिदान पर रचित कविता “बिरसा मुंडा” को पढ़ सकते हैं, जिसका उद्देश्य आप तक बिरसा मुंडा जी के बलिदान की गौरव गाथा को पहुंचाना है।
एक आदिवासी नाम था जिसका बिरसा मुंडा, नाम इसका जानता होगा कोई विरला, जल जंगल ज़मीन की लड़ लड़ाई, कर गया यह आदिवासी काम महान, था वह एक स्वतंत्रता सेनानी, जिसके प्रयासों ने आज आदिवासी समाज को, देश भर में दिलवाया सम्मान, हर वर्ष पंद्रह नवम्बर बिरसा मुंडा के जन्मदिवस को, मनाया जाएगा जनजातीय गौरव के रूप में, मोदी जी ने किया यह ऐलान।
–मंजू आनंद
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वनवास का गरल
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप आदिवासी समाज और बिरसा मुंडा जी पर रचित कविता “वनवास का गरल” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने जनजातियों के महान इतिहास को प्रस्तुत करेगी।
चलो भरें हुंकार कहें, हम जंगल के रहवासी हैं। काननसुत इस भूमि के, हम कहलाते वनवासी हैं। प्रकृति की गोदी में पलते, हम जीवन धन्य बनाते हैं। आदिकाल से हम संरक्षक, आदिवासी कहलाते है। यहाँ गर्भ में बेटी-बहनें, नहीं मिटाई जाती हैं। दौलत के लालच में बहुऐं, नहीं जलाई जाती हैं। हम ही शबरीवंशज, जिसघर वो रघुनंदन आऐ थे। छुआछूत,सब भेद मिटाकर, जूठे फल भी खाऐ थे। भूल गये आजादी के हित, इक विद्रोह हमारा था। शब्द भी मुंडा बिरसा का, हमको प्राणों से प्यारा था। भूले अल्बर्ट एक्का अबतक, अपनी शान बढ़ाता है। देश पे न्योछावर हो कर के, परम वीर कहलाता है। धान्य विहीन भले रहते,पर स्वार्थ नहीं दिखलाते हम। मजहब के ठेकेदार बने, आतंक नहीं फैलाते हम। अधिकारों की जंग लड़ें, इस कारण शायद ज़िंदा हैं। हालत देख हमारी पावन, “उलगुलान” शर्मिंदा है। ये दौर नहीं है महुये का विज्ञान, धरे मँडराने का। ये दौर नहीं है जातिवाद के, दंशों से डर जाने का। जो छबि बनाई लोगों ने, वो छबि बदलना बाक़ी है। फिर “धरती-बाबा” के, पदचिन्हों पे चलना बाक़ी है। त्याग सकल दुष्कर्मों को, नवपीढ़ी का कल्याण करो। या समाज का दंश सहो, चुल्लु भर जल में डूब मरो।
-विजय कुमार विद्रोही
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अबुआ दिशुम, अबुआ राज
Birsa Munda Poems in Hindi के माध्यम से आप आदिवासी समाज और बिरसा मुंडा जी पर रचित कविता “अबुआ दिशुम, अबुआ राज” को पढ़ सकते हैं, जो आपके सामने जनजातियों के महान इतिहास को प्रस्तुत करेगी।
अबुआ दिशुम अबुआ राज
हे धरती आबा,
तुम याद आते हो।
खनिज धातुओं के मोह में
राज्य पोषित ताकतें
हमारी बस्तियां जलाकर
अपना घर बसा रहे हैं।
मगर हम लड़ रहे हैं
केकड़े की तरह इन बगुलों के
गर्दन को दबोचे हुए
लेकिन इन बगुलों पर
बाजों का क्षत्रप है।
आज जंगल हुआ सुना
आकाश निःशब्द चुप है।
माटी के लूट पर संथाल विद्रोह
खासी, खामती, कोल विद्रोह
नागा, मुंडा, भील विद्रोह
इतिहास के कोने में कहीं सिमटा पड़ा है।
धन, धरती, धर्म पर लूट मचाती धाक
हमें मूक कर देना चाहती है।
और हमारे नाचते गाते
हंसते खेलते खाते कमाते
जीवन को कल कारखानों,
उद्योग बांध खदानों,
में तब्दील कर दिया है।
शोषक हमारे खून को ईंधन बनाकर
अपना इंजन चला रहे हैं।
धरती आबा,
आज के सामंती ताकतें
जल जंगल पर ही नहीं
जीवन पर भी झपटते हैं।
इधर निहत्थों का जमावड़ा
उधर वो बंदूक ताने खड़ा।
मगर हमारे नस में स्वाभिमान है,
भीरू गरज नहीं उलगुलान है।
लड़ाई धन- धरती तक
सिमटकर कैद नहीं है।
हमारे सरजमीं की लड़ाई
शिक्षा, स्वास्थ्य, संस्कृति
मान, सम्मान, प्रकृति..
संरक्षण के पक्ष में है।
ताकि जनसामान्य की
जनसत्ता कायम हो।
अबुआ दिशुम अबुआ राज की
अधिसत्ता कायम हो।
-सूरज कुमार बौद्ध
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