Bharat Ka Bhautik Swaroop: भारत, जो कि एक अनोखा और अद्भुत देश है। क्या आपको पता है हमारा प्यारा भारत देश कितना अलग है, तरह-तरह की ज़मीन, ऊँचे-ऊँचे पहाड़, दूर तक फैले समतल मैदान, कहीं सूखा रेगिस्तान है, तो कहीं खूबसूरत समुद्री किनारे और द्वीप। आज हम इस ब्लॉग में बात करेंगे भारत का भौतिक स्वरुप (Bharat Ka Bhautik Swaroop) के बारे में।
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भारत का भौतिक स्वरूप
भारत एक ऐसा देश है जहाँ हर क्षेत्र का अपना अलग आकार और रूप है। यहाँ आपको तरह-तरह के जीव-जंतु, पेड़-पौधे, मिट्टी और लोगों का जीवन देखने को मिलेगा। तेज़ हवाएँ, नदियाँ, झरने, खेत-खलिहान, पहाड़ और गहरी घाटियाँ मिलकर यहाँ की भू-आकृति (Topography) को बनाती हैं, जो इसे एक विशेष पहचान देती है।
भारत की भगौलिक आकृति
भारत की भगौलिक आकृति को छह भागों में कुछ इस प्रकार बाँटा गया है:-
क्रम | नाम |
1 | हिमालय पर्वतमाला |
2 | उत्तरी मैदान |
3 | प्रायद्वीपीय पठार |
4 | भारतीय मरूस्थल |
5 | तटीय मैदान |
6 | द्वीप समूह |
हिमालय पर्वतमाला
भारत की उत्तरी सीमा पर पश्चिम से पूर्व तक एक युवा और वलित (मोड़दार) पर्वतों की विशाल श्रृंखला फैली हुई है यही हिमालय है। यह विश्व की सबसे ऊँची पर्वतमाला है, जो न केवल हमारी सीमाओं की रक्षा करती है, बल्कि भारतीय जलवायु का भी निर्धारण करती है। इसे तीन भाग में बांटा गया है:-
हिमाद्रि
हिमाद्रि (महान हिमालय): यह सबसे उत्तरी और सबसे ऊँची श्रेणी है। इसकी चोटियाँ स्थायी रूप से बर्फ से ढकी रहती हैं और यहाँ कई महत्वपूर्ण हिमनद (ग्लेशियर) पाए जाते हैं, जो हमारी प्रमुख नदियों के स्रोत हैं।
मध्य हिमालय
हिमाचल (मध्य हिमालय): हिमाद्रि के दक्षिण में स्थित यह श्रेणी घने जंगलों, खूबसूरत घाटियों और कई प्रसिद्ध हिल स्टेशनों (जैसे शिमला, मसूरी, नैनीताल) के लिए जानी जाती है। इसकी ऊँचाई 3,700 से 4,500 मीटर के बीच है।
ब्रह्मा हिमालय या शिवालिक हिमालय
शिवालिक (बाह्य हिमालय): यह हिमालय की दक्षिणी और नवीनतम श्रेणी है। इसकी ऊँचाई अपेक्षाकृत कम है और यह असंगठित अवसादों से बनी है, जिसमें कई समतल घाटियाँ (“दून”) पाई जाती हैं। इसकी ऊँचाई 900 से 1100 मीटर के बीच है।
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हिमालय पर्वतमाला का महत्व
हिमालय पर्वतमाला के महत्व इस प्रकार हैं:-
- यह उत्तरी ठंडी हवाओं को भारत में प्रवेश करने से रोकता है, जिससे यहाँ की जलवायु अपेक्षाकृत गर्म बनी रहती है।
- यह सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र जैसी महत्वपूर्ण नदियों का उद्गम स्थल है, जो उत्तरी भारत के विशाल मैदानों को जीवनदायिनी जल प्रदान करती हैं।
- यह घने वनों और समृद्ध जैव विविधता का केंद्र है, जो कई प्रकार के जीव-जंतुओं और वनस्पतियों का घर है।
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भारत के उत्तरी मैदान
हिमालय के दक्षिण और प्रायद्वीपीय पठार के उत्तर में एक विशाल समतल मैदान फैला हुआ है, जिसे उत्तरी मैदान के नाम से जाना जाता है। इसका निर्माण सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों और उनकी सहायक नदियों द्वारा लाए गए उपजाऊ जलोढ़ मिट्टी के जमाव से हुआ है। इसे भारत का अन्न भंडार भी कहा जाता है। इसे तीन भागों में बांटा गया है:-
पंजाब का मैदान | सिंधु और उसकी सहायक नदियों द्वारा निर्मित। |
गंगा का मैदान | घग्गर और तीस्ता नदियों के बीच फैला हुआ और भारत का सबसे विस्तृत उपजाऊ क्षेत्र है। |
ब्रह्मपुत्र का मैदान | मुख्य रूप से असम में स्थित है और ब्रह्मपुत्र नदी द्वारा लाई गई मिट्टी से बना है। |
भारत के उत्तरी मैदान का महत्व
- यह अत्यंत उपजाऊ मिट्टी वाला क्षेत्र है, जो भारत में कृषि उत्पादन का प्रमुख केंद्र है और देश का “अन्न भंडार” कहलाता है।
- समतल भूभाग और उपजाऊ मिट्टी के कारण यहाँ जनसंख्या घनत्व अधिक है और कई बड़े शहरी केंद्र स्थित हैं।
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भारत के प्रायद्वीपीय पठार
यह एक प्राचीन और कठोर भूभाग है, जो गोंडवानालैंड का हिस्सा था। यह त्रिभुजाकार आकृति में फैला हुआ है और इसकी सतह उबड़-खाबड़ है, जिसमें कई पहाड़ियाँ और पठार शामिल हैं। यह खनिजों का एक समृद्ध स्रोत है और यहाँ कई महत्वपूर्ण नदियाँ बहती हैं।
जैसे:-
- गोदावरी
- कृष्णा
- कावेरी
प्रायद्वीप पठार को मुख्य रूप से दो भागों में बांटा गया है:-
- मध्य उच्चभूमि: यह नर्मदा नदी के उत्तर में स्थित है और मालवा का पठार, बुंदेलखंड और बघेलखंड जैसे क्षेत्र इसमें शामिल हैं।
- दक्कन का पठार: यह नर्मदा नदी के दक्षिण में स्थित है और एक विशाल त्रिकोणीय भूभाग है। इसकी पश्चिमी सीमा पर पश्चिमी घाट और पूर्वी सीमा पर पूर्वी घाट स्थित हैं।
प्रायद्वीप पठार का महत्व
- यह खनिजों का एक समृद्ध भंडार है, जहाँ कोयला, लौह अयस्क और अन्य महत्वपूर्ण खनिज प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।
- यह कई महत्वपूर्ण नदियों (जैसे गोदावरी, कृष्णा, कावेरी) का स्रोत है, जो दक्षिण भारत की सिंचाई और जल आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
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भारतीय मरुस्थल
यह भारत के पश्चिमी भाग में, अरावली पर्वत श्रृंखला के पश्चिम में स्थित है। इसे थार मरुस्थल (Thar Desert) के नाम से भी जाना जाता है। यहाँ शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु पाई जाती है, और प्राकृतिक वनस्पति बहुत कम है। रेत के टीले (बालू के स्तूप) यहाँ की प्रमुख भू-आकृति हैं।
भारतीय मरुस्थल का महत्व
- यह क्षेत्र अपनी विशिष्ट जलवायु और पारिस्थितिकी तंत्र के लिए जाना जाता है, जिसमें विशेष प्रकार के जीव-जंतु और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं।
- यह पर्यटन और अपनी अनूठी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी महत्वपूर्ण है।
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भारतीय तटीय मैदान
बताना चाहेंगे प्रायद्वीपीय पठार के किनारों पर संकरे मैदानों की एक पट्टी फैली हुई है, जिसे तटीय मैदान कहा जाता है। इन्हें दो भागों में बाँटा जाता है:-
- पश्चिमी तटीय मैदान: यह अरब सागर के किनारे फैला हुआ है और अपेक्षाकृत संकरा है। इसे कोंकण तट, कन्नड़ तट और मालाबार तट जैसे विभिन्न भागों में विभाजित किया जाता है।
- पूर्वी तटीय मैदान: यह बंगाल की खाड़ी के किनारे स्थित है और पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में चौड़ा है। इसे उत्तरी सरकार तट और कोरोमंडल तट के रूप में जाना जाता है।
भारतीय तटीय मैदान का महत्व
- यह क्षेत्र मत्स्य पालन, बंदरगाहों और कुछ स्थानों पर कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।
- अपने खूबसूरत समुद्र तटों के कारण यह पर्यटन का भी एक प्रमुख केंद्र है और व्यापारिक गतिविधियों के लिए महत्वपूर्ण बंदरगाह यहाँ स्थित हैं।
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भारत के द्वीप समूह
भारत में दो मुख्य द्वीप समूह हैं:-
- अंडमान और निकोबार द्वीप समूह: यह बंगाल की खाड़ी में स्थित कई छोटे-बड़े द्वीपों का समूह है। ये द्वीप ज्वालामुखी और प्रवाल भित्तियों से बने हैं और घने उष्णकटिबंधीय वनों से ढके हैं।
- लक्षद्वीप द्वीप समूह: यह अरब सागर में स्थित प्रवाल द्वीपों का एक छोटा समूह है। ये अपनी मनमोहक प्राकृतिक सुंदरता और शांत वातावरण के लिए जाने जाते हैं।
भारत के द्वीप समूह का महत्व
- सामरिक दृष्टि से इन द्वीपों का महत्वपूर्ण स्थान है।
- यह जैव विविधता का भंडार हैं और पर्यटन के लिए आकर्षक स्थल हैं।
FAQs
भारत के भौतिक स्वरूप को प्रमुख 6 भागों में बांटा गया है – प्रायद्वीपीय पठार, उत्तरी पर्वतीय क्षेत्र, थार मरुस्थल, द्वीप, तटीय मैदान और उत्तर-भारतीय मैदान।
भौतिक स्वरूप का अर्थ किसी चीज का या किसी स्थान का आकार, बनावट या संरचना है।
भारत का स्वरूप पर्वत और समुद्र हैं।
भौतिक शब्द की परिभाषा किसी आकार, आकृति या बल के प्रति प्रतिरोध है।
यह भारत का वह दक्षिणी भाग है जो तीन तरफ से जल से घिरा है: अरब सागर, हिंद महासागर और बंगाल की खाड़ी।
भारत उत्तर से दक्षिण तक 3,214 किलोमीटर और पूर्व से पश्चिम तक 2,933 किलोमीटर लंबा है।
प्रायद्वीप एक ऐसा भूभाग होता है जो तीन तरफ से पानी से घिरा होता है, और केवल एक तरफ से मुख्य भूमि से जुड़ा होता है।
भारत का सबसे पुराना भू-आकृति क्षेत्र प्रायद्वीपीय पठार है।
आशा है कि आपको इस लेख में भारत का भौतिक स्वरुप (Bharat Ka Bhautik Swaroop) से संबंधित संपूर्ण जानकारी मिल गई होगी। ऐसे ही UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।