Poem on Sports in Hindi: खेल हमारे जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। यह न केवल हमें शारीरिक रूप से सक्रिय और स्वस्थ बनाए रखता है, बल्कि अनुशासन, टीम वर्क और आत्मविश्वास जैसे जीवन के अहम गुण भी सिखाता है। खेलों के माध्यम से हम न केवल मनोरंजन प्राप्त करते हैं, बल्कि यह हमें जीवन की कठिनाइयों का सामना करने की प्रेरणा भी देता है। कई प्रसिद्ध कवियों ने खेलों पर सुंदर कविताएँ लिखी हैं, जो न केवल खेलों की महिमा का वर्णन करती हैं, बल्कि हमें अनुशासित जीवन जीने और समाज की गहरी समस्याओं को समझने में भी मदद करती हैं। इस लेख में आपको खेल पर प्रेरणादायक कविताएँ (Khel Par Kavita) मिलेंगी, जो खेलों के महत्व को दर्शाते हुए आपको इन्हें अपनाने की प्रेरणा देंगी।
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खेल पर कविता – Khel Par Kavita
खेल पर कविता (Khel Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
आओ हम सब खेलें खेल | कमलेश द्विवेदी |
चलो कुछ खेल जैसा खेलें | महेश आलोक |
खेल भावना | प्रभुदयाल श्रीवास्तव |
तुकों के खेल | भवानीप्रसाद मिश्र |
आओ एक खेल खेलें | अज्ञेय |
खेल कबड्डी | रामसेवक शर्मा |
सभा का खेल | सुभद्राकुमारी चौहान |
खेल | प्रभुदयाल श्रीवास्तव |
खेलकूद की आजादी | प्रकाश मनु |
पत्तों का खेल | किशोर काबरा |
आओ हम सब खेलें खेल
आओ हम सब खेलें खेल-आओ हम सब खेलें खेल।
खेल-खेल में मित्र बनें हम और बढ़े आपस का मेल।
तुम सब जन डिब्बे बन जाओ,
मैं बन जाऊँ इंजन।
और पार्क के चारों कोने,
बन जायें स्टेशन।
सीटी देती छुक-छुक करती चले हमारी प्यारी रेल।
आओ हम सब खेलें खेल-आओ हम सब खेलें खेल।
तुम सब लोग छात्र बन जाओ,
मैं बन जाऊँ टीचर।
जो भी पूछूँ सही बताओ,
दूँगा अच्छे नंबर।
मेरी कक्षा में सब अव्वल कभी न कोई होता फेल।
आओ हम सब खेलें खेल-आओ हम सब खेलें खेल।
खेलें खो-खो और कबड्डी,
खेलें लूडो-कैरम।
खेल-कूद से ही रहता है,
स्वास्थ्य हमेशा उत्तम।
किन्तु कभी मत खेलें कंचे-गुल्ली-डंडा और गुलेल।
आओ हम सब खेलें खेल-आओ हम सब खेलें खेल।
– कमलेश द्विवेदी
चलो कुछ खेल जैसा खेलें
चलो कुछ खेल जैसा खेलें
थोड़ा- थोड़ा साहस थोड़ा- थोड़ा भय साथ-साथ रखें
थोड़ा-थोड़ा अनुचित थोड़ा-थोड़ा उचित
इतना प्रेम करें कि मजा यह भी हो कि थोड़ा-थोड़ा नैतिक
थोड़ा-थोड़ा अनैतिक होना अच्छा लगे
थोड़ी-थोड़ी सड़कें थोड़ी-थोड़ी खिड़कियाँ देह की अन्तिम कला में खोलें
थोड़ी-थोड़ी मृत्यु थोड़ा- थोड़ा जीवन
प्रेम के भीतर रखने का काम भी
गलत नहीं लगेगा ऐसे समय
इस कठिन समय में
चलो कुछ खेल जैसा खेलें
– महेश आलोक
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खेल भावना
एक सड़क पर मक्खी मच्छर,
बैठ गये शतरंज खेलने।
थे सतर्क बिल्कुल चौकन्ने
इक दूजे के वार झेलने।
मक्खी ने जब चला सिपाही,
मच्छर ने घोड़ा दौड़ाया|
मक्खी ने चलकर वजीर को,
मच्छर का हाथी लुड़काया।
मच्छर ने गुस्से के मारे,
ऊँट चलाकर हमला बोला।
मक्खी ने मारा वजीर से,
ऊँट हो गया बम बम भोला।
ऊँट मरा जैसे मच्छर का,
वह गुस्से से लाल हो गया।
मक्खी बोली यह मच्छर तो,
अब जी का जंजाल हो गया।
मच्छर ने तलवार उठाकर,
मक्खीजी पर वार कर दिया।
मक्खी ने मच्छर का सीना,
चाकू लेकर पार कर दिया।
मच्छर औ मक्खी दोनों का,
पल में काम तमाम हो गय।|
देख तमाशा रुके मुसाफिर,
सारा रास्ता जाम हो गया।
खेल हमेशा खेल भावना
से मिलकर खेलो भाई,
खेल खेल में लड़ जाने से
होती बच्चो नहीं भलाई।
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव
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तुकों के खेल
मेल बेमेल
तुकों के खेल
जैसे भाषा के ऊंट की
नाक में नकेल !
इससे कुछ तो
बनता है
भाषा के ऊंट का सिर
जितना तानो
उतना तनता है!
– भवानीप्रसाद मिश्र
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आओ एक खेल खेलें
आओ, एक खेल खेलें!
मैं आदिम पुरुष बनूँगा, तुम पहली मानव-वधुका।
पहला पातक अपना ही हो परिणय, यौवन-मधु का!
पथ-विमुख करे वह, जग की कुत्सा का पात्र बनावे;
दृढ़ नाग-पाश में बाँधे पाताल-लोक ले जावे!
निज जीवन का सुख ले लें!
आओ, एक खेल खेलें!
मत मिथ्या व्रीडा से तुम नत करो दीप्त मुख अपना-
मिथ्या भय की कम्पन में मत उलझाओ सुख-सपना!
इस सुमन-कुंज से अपना प्रभु बहिष्कार कर देंगे?
उन के आज्ञापन की हम मुँहजोही ही न करेंगे!
हम उत्पीडऩ क्यों झेलें?
आओ, एक खेल खेलें!
हम उन के सही खिलौने- क्यों अपना खेल भुलावें?
कन्दरा किसी में अपनी हम क्रीडास्थली बनावें!
लज्जा, कुत्सा, पातक की पनपे वह अभिनव खेला,
परिणय की छाया में हूँ मैं तेरे साथ अकेला!
आदिम प्रेमांजलि दे लें!
आओ, एक खेल खेलें!
– अज्ञेय
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खेल पर लोकप्रिय कविताएं – Poem on Sports in Hindi
खेल पर लोकप्रिय कविताएं (Poem on Sports in Hindi) आपको इसका महत्व बताएंगी, जो कुछ इस प्रकार हैं –
खेल कबड्डी
देशी खेल हमारा-
खेल कबड्डी का
सबसे सस्ता प्यारा
खेल कबड्डी का।
महँगा क्रिकेट-साथी
टेनिस बल्ला है,
समझ नहीं आता क्यों
इतना हल्ला है।
बोल कबड्डी, बोल कबड्डी
बोलो भी
कितना दम खम है,
आपस में तोलो भी!
करें प्रदर्शन घेर
खिलाड़ी आते हैं,
दिल्ली की संसद में
माँग उठाते हैं।
सबको हो अनिवार्य
कबड्डी, क्या कहना,
मैच कबड्डी वाले
होते ही रहना।
– रामसेवक शर्मा
सभा का खेल
सभा सभा का खेल आज हम
खेलेंगे जीजी आओ,
मैं गाधी जी, छोटे नेहरू
तुम सरोजिनी बन जाओ।
मेरा तो सब काम लंगोटी
गमछे से चल जाएगा,
छोटे भी खद्दर का कुर्ता
पेटी से ले आएगा।
लेकिन जीजी तुम्हें चाहिए
एक बहुत बढ़िया सारी,
वह तुम माँ से ही ले लेना
आज सभा होगी भारी।
मोहन लल्ली पुलिस बनेंगे
हम भाषण करने वाले,
वे लाठियाँ चलाने वाले
हम घायल मरने वाले।
छोटे बोला देखो भैया
मैं तो मार न खाऊँगा,
मुझको मारा अगर किसी ने
मैं भी मार लगाऊँगा!
कहा बड़े ने-छोटे जब तुम
नेहरू जी बन जाओगे,
गांधी जी की बात मानकर
क्या तुम मार न खाओगे?
खेल खेल में छोटे भैया
होगी झूठमूठ की मार,
चोट न आएगी नेहरू जी
अब तुम हो जाओ तैयार।
हुई सभा प्रारम्भ, कहा
गांधी ने चरखा चलवाओ,
नेहरू जी भी बोले भाई
खद्दर पहनो पहनाओ।
उठकर फिर देवी सरोजिनी
धीरे से बोलीं, बहनो!
हिन्दू मुस्लिम मेल बढ़ाओ
सभी शुद्ध खद्दर पहनो।
छोड़ो सभी विदेशी चीजें
लो देशी सूई तागा,
इतने में लौटे काका जी
नेहरू सीट छोड़ भागा।
काका आए, काका आए
चलो सिनेमा जाएँगे,
घोरी दीक्षित को देखेंगे
केक-मिठाई खाएँगे!
जीजी, चलो, सभा फिर होगी
अभी सिनेमा है जाना,
आओ, खेल बहुत अच्छा है
फिर सरोजिनी बन जाना।
चलो चलें, अब जरा देर को
घोरी दीक्षित बन जाएँ,
उछलें-कूदें शोर मचावें
मोटर गाड़ी दौड़ावें!
– सुभद्राकुमारी चौहान
खेल
नहीं आजकल उसको,
काम और भाता है।
खेल उसे सेवा का,
मदद का सुहाता है।
न उसे कबड्डी ही,
खो खो ही आती है।
पिट्ठू पर बार बार,
गेंद चूक जाती है।
हार हार बच्चों से,
खूब मार खाता है
खेल उसे सेवा का,
मदद का सुहाता है
ढोलक न तबला न,
बांसुरी बजा पाता।
गीत ग़ज़ल कविता न,
लोरी ही गा पाता।
चिड़ियों की चें-चें में,
खूब मजा आता है।
खेल उसे सेवा का,
मदद का सुहाता है।
नहीं भजन संध्या से,
फ़िल्मों से है नाता।
संतों की बात कभी,
सुनने भी न जाता।
भूखों को प्यासों को,
अन्न जल दे आता हैं।
खेल उसे सेवा का,
मदद का सुहाता है।
– प्रभुदयाल श्रीवास्तव
खेलकूद की आजादी
हमें चाहिए, अजी चाहिए-
खेल-कूद की आजादी!
बोर करो मत पापा जी अब
हमको टोको ना,
क्रिकेट खेलेंगे दिन भर अब
हमको रोको ना।
खेल नहीं तो जीवन भी है
फीका-कितना फीका,
बिना खेल के अजी जायका
बिगड़ा है अब जी का!
बहुत सहा है, नहीं सहेंगे
अब हम कोई बंधन,
खेल नहीं तो पढ़ने में भी
कहाँ लगेगा मन!
खेल-कूद से ही आती है
हिम्मत कुछ करने की,
मुझे बताया करती थी यह
हँस-हँस प्यारी दादी।
इसीलिए तो हमें चाहिए,
खेल-कूद की आजादी!
खेल नहीं बेकार, इसे अब
दुनिया मान रही है,
जोश नहीं यह झूठा-मूठा
दुनिया जान रही है।
फिर पैरों में ये जंजीरें
क्यों कोई पहनाए,
राह हमारी बिना बात ही
रोके या भटकाए।
ज्यादा रोको ना, टोको ना
हमको अब पापा जी,
बच्चों को देनी ही होगी
खेल-कूद की आजादी।
वरना अब सत्याग्रह होगा
होंगी हड़तालें भी,
पैदा होगा हममें से ही
कोई नन्हा गाँधी!
नारा यही लगाएगा जो
आजादी! आजादी!
हमें चाहिए, अजी चाहिए,
खेल-कूद की आजादी!
– प्रकाश मनु
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पत्तों का खेल
तरह-तरह के पत्ते लाकर आओ, खेलें खेल!
मैं पीपल का कोमल-कोमल
चिकना-चिकना पत्ता लाऊँ!
और बनाऊँ उसका बाजा,
पीं-पी पीं-पीं उसे बजाऊँ!
मेरे पीछे तुम सब चलना, बन जाएगी रेल!
लाऊँ मैं बरगद का पत्ता,
उतना मोटा जितना गत्ता!
इस पत्ते का पत्र बनाकर,
भेजूँगा सीधे कलकत्ता!
बरगद के पत्ते की चिट्ठी ले जाएगी मेल!
अहा, नीम की पत्ती भाई,
अरे कभी क्या तुमने खाई!
इसकी टहनी दाँतुन बनती
और छाल से बने दवाई!
इसी नीम के फल से निकले कड़वा-कड़वा तेल!
अरे, आम का पत्ता अच्छा,
लगता ज्यों तोते का बच्चा!
इसी डाल पर आम लगा है,
मगर अभी तो है वह कच्चा!
माली से बिन पूछे तोड़ा तो जाओगे जेल!
– किशोर काबरा
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