रामविलास शर्मा की कविताएं समाज के लिए किसी प्रेरणापुंज के समान है, जो आज भी युवाओं को प्रेरित करने का काम कर रहीं हैं। समाज में सकारात्मक परिवर्तन लाने के लिए कविताएं एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं, कविताओं के कारण ही समाज की चेतना को जगाया जा सकता है। भारत में ऐसे कई लोकप्रिय कवि रहें हैं जिन्होंने समाज की पीड़ाओं की आवाज़ बनने का काम किया है, उन्हीं में से एक लोकप्रिय कवि रामविलास शर्मा भी थे। इस ब्लॉग के माध्यम से आप रामविलास शर्मा की कविताएं पढ़ पाएंगे, जो आपका परिचय हिंदी साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी। रामविलास शर्मा की कविताएं पढ़ने के लिए ब्लॉग को अंत तक पढ़ें।
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रामविलास शर्मा का संक्षिप्त जीवन परिचय
रामविलास शर्मा की कविताएं पढ़ने सेे पहले आपको रामविलास शर्मा का संक्षिप्त जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। रामविलास शर्मा हिंदी साहित्य के एक महत्वपूर्ण स्तंभ थे, जो आधुनिक हिन्दी साहित्य के सुप्रसिद्ध आलोचक, निबंधकार, विचारक एवं कवि के रूप में लोकप्रिय थे।
10 अक्टूबर 1912 को रामविलास शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के उन्नाव में हुआ था। रामविलास शर्मा ने एम.ए. अंग्रेजी, एम.ए. हिंदी और पीएच.डी. (हिंदी) की डिग्री प्राप्त की। रामविलास शर्मा हिंदी साहित्य के एक प्रसिद्ध कवि, नाटककार, उपन्यासकार और आलोचक थे। उनकी प्रमुख रचनाओं में ‘बेला’, ‘किरण के स्वर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘मिट्टी’, ‘भारतेंदु’, ‘जायसी’, ‘तुलसीदास’ आदि बेहद लोकप्रिय हैं।
जीवन भर अपनी लेखनी से समाज को प्रभावित करने वाले रामविलास शर्मा को वर्ष 1963 में साहित्य अकादमी पुरस्कार, वर्ष 1976 में पद्म भूषण और वर्ष 1991 में व्यवसाय सम्मान से सम्मानित किया गया। 30 मई 2000 को हिंदी साहित्य के अनमोल मणि रामविलास शर्मा का देहांत उत्तर प्रदेश के वाराणसी में हुआ था।
रामविलास शर्मा की कविताओं की लिस्ट
रामविलास शर्मा की कविताएं आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी, जिसके लिए आपको यह ब्लॉग अंत तक पढ़ने की आवश्यकता है।। रामविलास शर्मा की कविताओं की सूची कुछ इस प्रकार हैं:
कविता का नाम | कवि का नाम |
गुरुदेव की पुण्यभूमि | रामविलास शर्मा |
सत्यं शिवं सुंदरम् | रामविलास शर्मा |
किसान कवि और उसका पुत्र | रामविलास शर्मा |
समुद्र के किनारे | रामविलास शर्मा |
कवि | रामविलास शर्मा |
प्रत्यूष के पूर्व | रामविलास शर्मा |
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गुरुदेव की पुण्यभूमि
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता गुरुदेव की पुण्यभूमि है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
यह शस्य श्यामला वसुंधरा है, जिसे देख कर कवि ने मन में स्वर्ग रचा था सुंदर। यह पुण्यभूमि है, जिसे देख कर आंदोलित हो उठता था कवि का भावाकुल अंतर। वे भरे धान के खेत यहीं थे, जिन्हें देख कर साँझ-सवेरे फूटे थे कवि के स्वर। इस बंग-भूमि से ही जग को संदेश दिया था कवि ने : ‘अजर अमर है मानव-जीवन!' इस बंग-भूमि से कवि ने घोषित किया— 'क्षुद्र है मानव-द्वारा, मानव का उत्पीड़न?’ बर्बर फ़ासिस्तवाद को यही चुनौती दी; साम्राज्यवाद से युद्ध किया आजीवन! इस शस्य-श्यामला वसुंधरा पर क्रूर प्रेत-सी घिर आई किस विभीषिका की छाया, उस अजर अमर जीवन पर यह विनाश की छाया, किसकी दारुण सर्वग्रासिनी माया; इस पुण्यभूमि में तीस हज़ार युवतियों ने क्यों वेश्यालय में जाकर आश्रय पाया? उन भरे धान के खेतों में दिन-रात भूख, बस भूख महामारी का आकुल क्रंदन! हड्डी-हड्डी में सुलग रही है आग भूख की; सुलग रहा है भीतर-भीतर रक्तहीन मानव-तन; पट गया अधजली लाशों से कविगुरु का प्रिय यह हरा-भरा नंदन वन! भाई-भाई से जुदा चिता पर लड़ते हैं भाई-भाई, दो भीरु श्वान-से कायर! लाखों की रक़में काट रहे हैं, काट रहे हैं गले करोड़ों के, छिप-छिप कर कायर! सिर पर सरकार मौत-सी बेदम बैठी है, चुपचाप मौत-सी पस्त निकम्मी कायर! कायर, वह जो नेता बनता था, चला गया, मिल गया लुटेरों की सेना में, कायर। कायर, जो भी मुँह देख रहा हो, चीनी जनता के बर्बर हत्यारों का, वह कायर। लाखों को मरते देख रहा है धरे हाथ पर हाथ नपुंसक नौजवान, वह कायर। वह पुण्यभूमि है मानवता के कविगुरु की, प्राचीन तपोवन-सी ही सुंदर, पावन! बलिदान त्याग की भूमि अभी नि:स्वार्थ युवक हैं, जीवित है अब भी सामाजिक जीवन। हड्डी-हड्डी है चूर, जला सब ख़ून; अडिग है फिर भी सूखे तन में इस्पाती मन! दानव ने आज चुनौती दी है नवयुवकों को ‘आओ, यह पहाड़-सा भार उठाओ! दुर्भिक्ष महामारी से, दुष्ट लुटेरों से, आओ, यह अपना प्यारा देश बचाओ।' ऐ नौजवान भारत के! गरम लहू को आज चुनौती है; सब मिल कर भार उठाओ! दिन-रात यही हैरानी, भूली भूख-प्यास,— वीरान न हो यह प्यारा शांति-निकेतन! यह हरा-भरा बंगाल! न यों ही उजड़ जाए इस भूख महामारी से शांति-निकेतन! उस नीच नगूची को न मिले यह रवि ठाकुर का, प्राणों से भी प्यारा शांति-निकेतन! बंगाल, कसौटी देशभक्ति की, आज यहीं पर केंद्रित है सारे भारत का जीवन। बंगाल देश का सिंहद्वार! प्रहरी है केवल मृत्यु, और जनता करती है अनशन! बंगाल चिता पर जलता है! क्या बचा रहेगा देश? बचेगा किस स्वार्थी का जीवन? -रामविलास शर्मा
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सत्यं शिवं सुंदरम्
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “सत्यं शिवं सुंदरम्” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
हाथी घोड़ा पालकी, जै कन्हैया लाल की। हिंदू हिंदूस्तान की जै हिटलर भगवान् की। जिन्ना, पाकिस्तान की। टोजो और जापान की। बोलो वंदे मातरम्! सत्यं शिवं सुंदरम्। हिंदूस्तान हमारा है, प्राणों से भी प्यारा है। इस की रक्षा कौन करे? सेंत-मेंत में कौन मरे? पाकिस्तान हमारा है, प्राणों से भी प्यारा है। इस की रक्षा कौन करे? बैठो हाथ पै हाथ धरे! गिरने दो जापानी बम! सत्यं शिवं सुंदरम्। शुद्ध कला के पारखी, कहते हैं उस पार की। इस दुनिया को कौन कहे? भव—सागर में कौन बहे? जै हो राधारानी की या जिस ने मनमानी की राधा या अनुराधा से, छिप कर अपने दादा से! कैसी बढ़िया चाल की, बलिहारी गोपाल की! उस के भक्तों में से हम। सत्यं शिवं सुंदरम्। जै हो सदा बहार की, शायर या ऐयार की। तुरबत में भी आहट से, उठ कर बैठ गया झट से! गुल और बुलबुल की औलाद, करता रहता है फ़रियाद। धीमी-धीमी सुर में नाद, इनक़लाब ज़िंदाबाद! ग़म से भर आता है दिल! दिल वह भी शायर का दिल जिस में शुद्ध भरा है ग़म! सत्यं शिवं सुंदरम्। हिंदी हम चालीस करोड़, क्यों बैठे हैं साहस छोड़? देश हमारा हिंदुस्तान, लाखों ही मज़दूर-किसान। इस धरती पर बसने वाले उस के हित पर मिटने वाले क्या भागेंगे ताबड़तोड़, हिंदी हम चालीस करोड़? यह आज़ादी का मैदान, जीतेंगे मज़दूर-किसान। एक यही है राह सुगम सत्यं शिवं सुंदरम्। आज बढ़ेंगे साथ क़दम निश्चय विजयी होंगे हम गिरने दो जापानी बम। बोलो वंदे मातरम्! -रामविलास शर्मा
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किसान कवि और उसका पुत्र
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “किसान कवि और उसका पुत्र” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
नीले रँग में डूब गया सारा नभ-मंडल, पूर्व दिशा में उठे घने दल के दल बादल लहराती पुरवाई के झोंकों पर आए, धूल-भरे लू से झुलसे खेतों पर छाए। आमों की सुगंध से महक उठी पुरवाई, पिउ-पिउ के मृदु रव से गूँज उठी अमराई। जग के दग्ध हृदय पर गह-गह बादर बरसे, डह—डह अंकुर फूटे वसुधा के अंतर से। बह न जाए जीवन अपार सीमा से बाहर, मेड़ बाँधता है किसान खेतों में जाकर। यह असाढ़ का पहला दिन, ये काले बादल, लू से झुलसे हाड़ों को करते हैं शीतल। टपक रहा है टूटा घर, खटिया टूटी है, एक यहाँ मनचाही सुख की लूट नहीं है। भरे तराई-ताल, नदी-नाले उतराए, आता है सैलाब, गाँव जिस में बह जाए। दीवारों को फिर मिट्टी से छोप-छाप कर, बचा सकेगा कौन भला ये टूटे खंडहर! हरे-हरे तरु-पात, जमे अंकुर ऊसर में, उमड़ रहा है जल अपार जीवन सरि-सर में। फिर भी उल्कापात एक उस तरु पर केवल, वन के सब वृक्षों में था जिस का मीठा फल। छार-छार हो गए पात सब वज्रपात से, वह पंछी उड़ गया; हाय, उड़ गया हाथ से! यह वर्षा की ऋतु, ढेलों में जीवन फूटा, जिन में वज्र हड्डियों का वह ढाँचा टूटा। वर्षा की ऋतु-डोली फिर वन में पुरवाई, पुरवाई के साथ मृत्यु भी उड़ती आई। बरस रहा है जब वन में खेतों में जीवन, किस ने किया इन्हीं खेतों में प्राण-विसर्जन? किसकी मिट्टी पर यह खेतों की हरियाली? किसके लाल लहू की फागुन में यह लाली? ओ मेरे साथी! मेरे जाने-पहचाने! वज्र हड्डियों से बन गए अन्न के दाने! साथी अपनी छोड़ गया था एक निशानी, साथी से ज़्यादा है उस की करुण कहानी। वह सूने वन में आशा का फूल खिला था, सूने वन को उस तरु का वरदान मिला था! प्रतिभा का वह फूल, किसी अज्ञात दिशा में, धूमकेतु-सा खिला और छिप गया निशा में। चंद्रहीन है अमा निशा का जल-सा तम है। दु:ख का पारावार अकूल अथाह अगम है। अनजानी है राह, न साथी आज पास है। एक नियति का पीछे कर्कश अट्टहास है। यह मानव का हृदय क्षुद्र इस्पात नहीं है। भय से सिहर उठे वह तरु का पात नहीं है। रेत और पानी से बन जाते हैं पत्थर, हृदय बना है आग और आँसू से मिल कर। फिर भी सूनी धूप देख कर तरु-पातों पर। कहीं बिलम जाता है मन बिसरी बातों पर, कहीं हृदय के सौ इस्पाती बंधन टूटे कहीं व्यथा के स्रोत हृदय में फिर से फूटे। दु:ख का पारावार उमड़ आया आँखों में, यह जीवन की हार नहीं छिपती आँखों में। मेरी अंध निराशा का यह गीत नहीं है। मन बहलाने को मोहक संगीत नहीं है। जीवन की इस मरण-व्यथा को सहना होगा, अंतर में यह व्यथा छिपाए रहना होगा। काल-रात्रि में चार प्रहर अविराम जागरण! यही व्यथा का पुरस्कार है, अति साधारण! बँध न सकेगा लघु सीमाओं में लघु जीवन; लघु जीवन से अमर बनेगा बहु-जन-जीवन! अडिग यही विश्वास, क्षुद्र है जीवन चंचल; अनजानी है राह; यही साहस है संबल। यह मानव का हृदय क्षुद्र इस्पात नहीं है। भय से सिहर उठे वह तरु का पात नहीं है। -रामविलास शर्मा
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समुद्र के किनारे
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “समुद्र के किनारे” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
सागर लंबी साँसें भरता है, सिर धुनती है लहर-लहर; बूँदी-बादर में एक वही स्वर गूँज रहा है हहर-हहर। सागर की छाती से उठ कर यह टकराती है कहाँ लहर? जिस ठौर हृदय में जलती है वह याद तुम्हारी आठ पहर। बस एक नखत ही चमक रहा है अब भी काली लहरों पर, जिस को न अभी तक ढँक पाए हैं सावन के बूँदी-बादर। यह जीवन यदि अपना होता यदि वश होता अपने ऊपर, यह दु:खी हृदय भी भर आता भूले दु:ख से जैसे सागर। वह डूब गया चंचल तारा जो चमक रहा था लहरों पर, सावन के बूँदी-बादर में अब एक वही स्वर हहर-हहर। सागर की छाती से उठ कर यह टकराती है कहाँ लहर? जिस ठौर नखत वह बुझ कर भी जलता रहता है आठ पहर। सागर लंबी साँसें भरता है सिर धुनती है लहर-लहर, पर आगे बढ़ता है मानव अपनेपन से ऊपर उठ कर। आगे सागर का जल अथाह ऊपर हैं नीर-भरे बादर, बढ़ता है फिर भी जन-समूह जल की इस जड़ता के ऊपर। बैठा है कौन किनारे पर, यह गरज रहा है जन-सागर, पीछे हट कर सिर धुन कर भी आगे बढ़ती है लहर-लहर। दु:ख के इस हहर-हहर में भी ऊँचा उठता है जय का स्वर; सीमा के बंधन तोड़ रही है सागर की प्रत्येक लहर। -रामविलास शर्मा
कवि
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “कवि” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
ह सहज विलंबित मंथर गति जिसको निहार गजराज लाज से राह छोड़ दे एक बार; काले लहराते बाल देव-सा तन विशाल, आर्यों का गर्वोन्नत, प्रशस्त, अविनीत भाल; झंकृत करती थी जिसकी वाणी में अमोल, शारदा सरस वीणा के सार्थक सधे बोल;— कुछ काम न आया वह कवित्व आर्यत्व आज, संध्या की वेला शिथिल हो गए सभी साज। पथ में अब वन्य जंतुओं का रोदन कराल। एकाकीपन के साथी हैं केवल शृगाल। अब कहाँ यक्ष-से कवि-कुल-गुरु का ठाट-बाट? अर्पित है कवि-चरणों में किसका राजपाट? उन स्वर्ण-खचित प्रासादों में किसका विलास? कवि के अंत:पुर में किस श्यामा का निवास? पैरों में कठिन बिवाई कटती नहीं डगर; आँखों में आँसू, दु:ख से खुलते नहीं अधर! खो गया कहीं सूने नभ में वह अरुण राग, धूसर संध्या में कवि उदास है वीतराग! अब वन्य जंतुओं का पथ में रोदन कराल। एकाकीपन के साथी हैं केवल शृगाल। अज्ञान-निशा को बीत चुका है अंधकार; खिल उठा गगन में अरुण-ज्योति का सहस्रार। किरणों ने नभ में जीवन के लिख दिए लेख; गाते हैं वन के विहग ज्योति का गीत एक। फिर क्यों पथ में यह संध्या की छाया उदास? क्यों सहस्रार का मुरझाया नभ में प्रकाश? किरणों ने पहनाया था जिसको मुकुट एक, माथे पर वहीं लिखे हैं दु:ख के अमिट लेख। अब वन्य जंतुओं का पथ में रोदन कराल, एकाकीपन के साथी हैं केवल शृगाल। इन वन्य जंतुओं से मनुष्य फिर भी महान् : तू क्षुद्र मरण से जीवन को ही श्रेष्ठ मान। ‘रावण-महिमा-श्यामा-विभावरी-अंधकार'।— बँट गया तीक्ष्ण बाणों से वह भी तम अपार अब बीती बहुत रही थोड़ी, मत हो निराश, छाया-सी संध्या का यद्यपि धूसर प्रकाश। उस वज्र-हृदय से फिर भी तू साहस बटोर, कर दिए विफल जिसने प्रहार विधि के कठोर। क्या कर लेगा मानव का यह रोदन कराल? रोने दे यदि रोते हैं वन-पथ में शृगाल। कट गई डगर जीवन की, थोड़ी रही और; इस वन में कुश-कंटक, सोने को नहीं ठौर। क्षत चरण न विचलित हों, मुँह से निकले न आह; थक कर मत गिर पड़ना ओ साथी बीच राह। यह कहे न कोई जीर्ण हो गया जब शरीर, विचलित हो गया हृदय भी पीड़ा से अधीर। पथ में उन अमिट रक्त-चिह्नों की रहे शान, मर मिटने को आते हैं पीछे नौजवान। इस वन में जहाँ अशुभ ये रोते हैं शृगाल, निर्मित होगी जन-सत्ता की नगरी विशाल। -रामविलास शर्मा
प्रत्यूष के पूर्व
रामविलास शर्मा की कविताएं आपको एक नया दृष्टिकोण देंगी, रामविलास शर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “प्रत्यूष के पूर्व” है, जो कुछ इस प्रकार हैं:
दूर छिपा है भोर अभी आकाश में, पश्चिम में धीरे-धीरे पर डूबता ठिठुरन से छोटा हो पीला चंद्रमा, धुँधली है तुषार से भीगी चाँदनी सीत्-सीत् करती बयार है बह रही, बरस रहा खेतों पर हिम-हेमंत है, हरी-भरी बालों के भारी बोझ से, मूर्च्छित हो धरती पर झुकी मोराइयाँ। बरगद के नीचे ही महफ़िल है जमी, घुँघरू की छुम-छुम पर तबला ठनकता, पेशवाज़ से सजी पतुरियाँ नाचतीं, मीठी-मीठी सारंगी भी बज रही। उडती गहरी गंध हवा में इत्र की, उजले धुले वस्त्र पहन बैठे हुए, दारू का चल रहा दौर पर दौर है। कहते हैं, स्वामी जो थे इस भूमि के, हत्यारों से वे अकाल मारे गए। सीत-सीत् करती बयार है बह रही, पौ फटने में अभी पहर भर देर है। बरगद से कुछ दूरी पर जो दीखता ऊँचा-सा टीला, उस पर एकत्र हो, ऊँचा मुँह कर देख डूबता चंद्रमा हुआ-हुआ करते सियार हैं बोलते। -रामविलास शर्मा
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रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ
इस ब्लॉग के माध्यम से आपको रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ पढ़ने का अवसर प्राप्त होगा। रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ आज भी उतनी ही प्रासंगिक और लोकप्रिय हैं, जितने वह अपनी रचनाओं के समय रही होंगी। रामविलास शर्मा की प्रमुख रचनाएँ कुछ इस प्रकार हैं:
- गुरुदेव की पुण्यभूमि
- सत्यं शिवं सुंदरम्
- किसान कवि और उसका पुत्र
- समुद्र के किनारे
- कवि
- प्रत्यूष के पूर्व
- चाँदनी
- दाराशिकोह
- दिवा-स्वप्न
- शारदीया
- कतकी
- केरल : एक दृश्य
- परिणति
- विश्व-शांति
- हड्डियों का ताप
- तूफ़ान के समय
- सिलहार
- कलियुग
- जल्लाद की मौत
- कार्य-क्षेत्र इत्यादि।
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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप रामविलास शर्मा की कविताएं पढ़ पाएंगे, रामविलास शर्मा की कविताएं युवाओं को प्रेरित करने का काम करेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।