सुमित्रानंदन पंत हिंदी साहित्य के ‘छायावादी युग’ के चार स्तंभों में से एक माने जाते हैं। उन्हें सौंदर्य के अप्रतीम कवि और ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ के रूप में भी जाना जाता है। क्या आप जानते हैं कि सुमित्रानंदन पंत ने मात्र सात वर्ष की अल्पायु में ही काव्य रचनाएं करना शुरू कर दिया था? उन्होंने हिंदी काव्य धारा में अनुपम रचनाएं कीं, जिनमें ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘चिदंबरा’, ‘युगांत’ और ‘स्वर्णधूलि’ प्रमुख मानी जाती हैं।
सुमित्रानंदन पंत ने अपना संपूर्ण जीवन लेखन कार्य को ही समर्पित कर दिया था। हिंदी साहित्य में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें ‘पद्म भूषण’, ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ और ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ जैसे विशेष सम्मानों से नवाजा गया है। भारत में जब टेलीविजन प्रसारण शुरू हुआ तो उसका भारतीय नामकरण ‘दूरदर्शन’ उन्होंने ही किया था। इस लेख में सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय और उनकी साहित्यिक रचनाओं की जानकारी दी गई है।
| नाम | सुमित्रानंदन पंत |
| अन्य नाम | गुसाईं दत्त |
| जन्म | 20 मई, 1900 |
| जन्म स्थान | कौसानी, उत्तराखंड |
| पिता का नाम | गंगादत्त पंत |
| माता का नाम | सरस्वती देवी |
| पेशा | अध्यापक, लेखक, कवि |
| भाषा | हिंदी |
| काव्य युग | छायावाद |
| मुख्य काव्य रचनाएँ | वीणा, पल्लव, चिदंबरा, युगवाणी, युगपथ, स्वर्णकिरण, कला और बूढ़ा चाँद आदि |
| उपन्यास | हार (1960) |
| सम्मान | पद्म भूषण (1961), ज्ञानपीठ पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार (1960), भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार (1969) आदि। |
| निधन | 28 दिसंबर 1977 (इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश) |
| संग्रहालय | सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका, कौसानी गांव (उतराखंड) |
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सुमित्रानंदन पंत का आरंभिक जीवन
सौंदर्य के अप्रतीम कवि कहे जाने वाले ‘सुमित्रानंदन पंत’ का जन्म बागेश्वर जिले के कौसानी, उत्तराखंड में 20 मई 1900 को हुआ था। पंत जी के पिता का नाम ‘गंगादत्त पंत’ और माता का नाम ‘सरस्वती देवी’ था। पंत जी के जन्म के कुछ घंटे बाद ही उनकी माता का देहांत हो गया था, जिसके बाद उनका लालन-पोषण उनकी दादी ने किया। बचपन में उनका नाम ‘गुसाईं दत्त’ था, लेकिन हाई स्कूल के समय उन्होंने अपना नाम बदलकर सुमित्रानंदन पंत रख लिया। वे अपने सात भाई-बहनों में सबसे छोटे थे।
सुमित्रानंदन पंत ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कौसानी गांव से ही शुरू की फिर वे वाराणसी आ गए और ‘जयनारायण हाईस्कूल’ में शिक्षा प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने वर्ष 1918 में इलाहबाद (वर्तमान प्रयागराज) चले गए और म्योर कॉलेज में बाहवीं कक्षा में दाखिला लिया। ये वो समय था जब संपूर्ण भारत में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन चल रहे थे।
वर्ष 1921 में महात्मा गाँधी के द्वारा शुरू किए गए ‘अहसयोग आंदोलन’ में हजारों लोगों ने सरकारी स्कूलों, विश्वविद्यालयों, कार्यालयों और विदेशी वस्त्रों का बहिष्कार किया। इस आंदोलन में सुमित्रानंदन पंत ने भी अपना कॉलेज छोड़ दिया। जिसके बाद वह हिंदी, संस्कृत, बांग्ला और अंग्रेजी भाषा-साहित्य का अध्ययन करने लगे।
सुमित्रानंदन पंत का साहित्यिक परिचय
क्या आप जानते हैं कि सुमित्रानंदन पंत ने मात्र सात वर्ष की अल्प आयु में ही कविता लिखना शुरू कर दिया था। उनकी कविताओं में हमें प्रकृति के सौन्दर्य का चित्रण के साथ-साथ नारी चेतना और ग्रामीण जीवन की विसंगतियों का मार्मिक चित्रण देखने को मिलता है। उनका लेखन इतना शक्तिशाली और प्रभावशाली था कि वर्ष 1918 में, महज 18 वर्ष की आयु में, उन्होंने हिंदी साहित्य में अपनी एक विशिष्ट पहचान बना ली थी।
उनका रचनाकाल वर्ष 1916 से 1977 तक लगभग 60 वर्षों तक रहा। जहां हमें उनकी काव्य यात्रा के तीन प्रमुख चरण देखने को मिलते हैं, इसमें प्रथम ‘छायावाद’, दूसरा ‘प्रगतिवाद’ और तीसरा श्री अरविंद दर्शन से प्रभावित ‘अध्यात्मवाद’ रहा हैं।
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएं
सुमित्रानंदन पंत ने आधुनिक हिंदी साहित्य की कई विधाओं में अनुपम रचनाएं की हैं। नीचे उनकी प्रमुख साहित्यिक कृतियों के नामों की सूची दी गई है:-
काव्य-संग्रह
| काव्य | प्रकाशन |
| वीणा | वर्ष 1927 |
| ग्रंथि | वर्ष 1929 |
| पल्लव | वर्ष 1926 |
| गुंजन | वर्ष 1932 |
| युगांत | वर्ष 1936 |
| युगपथ | वर्ष 1949 |
| युगवाणी | वर्ष 1939 |
| ग्राम्या | वर्ष 1940 |
| स्वर्णकिरण | वर्ष 1947 |
| स्वर्णधूलि | वर्ष 1947 |
| मधुज्वाल | वर्ष 1947 |
| उत्तरा | वर्ष 1949 |
| रजत-शिखर | वर्ष 1952 |
| अतिमा | वर्ष 1955 |
| शिल्पी | वर्ष 1952 |
| सौवर्ण | वर्ष 1956 |
| किरण-वीणा | वर्ष 1967 |
| चिदंबरा | वर्ष 1958 |
| वाणी | वर्ष 1958 |
| कला और बूढ़ा चाँद | वर्ष 1959 |
| लोकायतन | वर्ष 1964 |
| पौ फटने से पहिले | वर्ष 1967 |
| पतझर | वर्ष 1967 |
| गीतहंस | वर्ष 1969 |
| शंखध्वनि | वर्ष 1971 |
| शशि की तरी | वर्ष 1971 |
| समाधिता | वर्ष 1973 |
| आस्था | वर्ष 1973 |
| सत्यकाम | वर्ष 1975 |
| संक्रांति | वर्ष 1977 |
| गीत-अगीत | वर्ष 1977 |
उपन्यास
| उपन्यास | प्रकाशन |
| हार | वर्ष 1960 |
कहानी-संग्रह
| कहानी संग्रह | प्रकाशन |
| पाँच कहानियाँ | वर्ष 1938 |
नाट्य-कृतियाँ
| नाट्य-कृतियाँ | प्रकाशन |
| परी | वर्ष 1925 |
| ज्योत्स्ना | वर्ष 1934 |
| जिंदगी का चौराहा | वर्ष 1939 |
| अस्पृश्या | वर्ष 1937 |
| स्रष्टा | वर्ष 1938 |
| करमपुर की रानी | वर्ष 1949 |
| चौराहा | वर्ष 1948 |
| शकुंतला | वर्ष 1948 |
| युग पुरुष | वर्ष 1948 |
| छाया | वर्ष 1948 |
निबंध
| निबंध | प्रकाशन |
| छायावाद: पुनर्मूल्यांकन | वर्ष 1965 |
| शिल्प और दर्शन | वर्ष 1961 |
| कला और संस्कृति | वर्ष 1956 |
| साठ वर्ष : एक रेखांकन | वर्ष 1969 |
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पुरस्कार व सम्मान
सुमित्रानंदन पंत को आधुनिक हिंदी साहित्य में विशेष योगदान के लिए सरकारी और गैर-सरकारी संस्थाओं द्वारा कई पुरस्कारों एवं सम्मानों से पुरस्कृत किया जा चुका है, जो इस प्रकार हैं:-
- वर्ष 1960 में उनके काव्य संग्रह ‘कला और बूढ़ा चाँद’ के लिए उन्हें ‘साहित्य अकादमी पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
- वर्ष 1961 में भारत सरकार ने साहित्य में उनके विशिष्ट योगदान के लिए पंत जी को ‘पद्म भूषण’ पुरस्कार से सम्मानित किया था।
- वर्ष 1968 में ‘चिदंबरा’ काव्य-संग्रह के लिए सुमित्रानंदन पंत को ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया।
- इसके साथ ही ‘प्रकृति के सुकुमार कवि’ को सोवियत लैंड नेहरु पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया हैं।
- भारतीय डाक ने सुमित्रानंदन पंत के सम्मान में एक स्मारक ‘डाक टिकट’ जारी किया था।

छायावाद के एक युग का अंत
सुमित्रानंदन पंत का संपूर्ण जीवन हिंदी साहित्य की साधना में ही बीता। उनका साहित्यिक जीवन लगभग 60 वर्षों तक रहा जिसमें उन्होंने कई विशिष्ट काव्य रचनाएं की। किंतु 28 दिसंबर 1977 को 77 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया और इसी के साथ छायावाद के एक युग का अंत हो गया। इसके बाद उनके पैतृक गांव कौसानी में उनके घर को सरकारी तौर पर अधिग्रहीत कर ‘सुमित्रानंदन पंत साहित्यिक वीथिका’ नामक संग्रहालय में परिणत किया गया। इस संग्रहालय में महाकवि सुमित्रानंदन पंत जी की एक मूर्ति स्थापित है और यहां उनकी व्यक्तिगत चीजें, प्रशस्तिपत्र, विभिन्न संग्रहों की पांडुलिपियों को सुरक्षित रखा गया है।
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सुमित्रानंदन पंत की भाषा शैली
सुमित्रानंदन पंत मुख्यत: एक शब्द शिल्पी के रूप में छायावादी कवियों में विख्यात हैं। इनके काव्य में विषय-वस्तु की अपेक्षा कला को अधिक महत्त्व मिला है। पंत जी ने आरंभिक रचना काल में परंपरागत काव्य-भाषा के रूप में ब्रज भाषा का अधिक प्रयोग किया है। वहीं अपनी काव्य भाषा के निर्माण ने उन्होंने संस्कृतनिष्ठ तत्सम शब्दावली का सर्वाधिक सहारा लिया है। शब्दों के रूप परिवर्तन द्वारा नवीन शब्द निर्माण के साथ ही उन्होंने अंग्रेजी भाषा के बहुत से शब्दों का विशिष्ट अनुवाद कर अपनी काव्य-भाषा को संपन्न किया है।
FAQs
सुमित्रानंदन पंत की प्रमुख रचनाएँ ‘वीणा’, ‘पल्लव’, ‘चिदंबरा’, ‘युगवाणी’, ‘युगपथ’, ‘स्वर्णकिरण’, ‘कला और बूढ़ा चांद’ है।
सुमित्रानंदन पंत हिंदी के पहले कवि थे जिन्हें वर्ष 1968 में ‘ज्ञानपीठ पुरस्कार’ से सम्मानित किया गया था।
सुमित्रानंदन पंत की पत्नी का नाम क्या है?
सुमित्रानंदन पंत ताउम्र अविवाहित रहें। उन्होंने कभी विवाह नहीं किया।
आशा है कि आपको प्रख्यात कवि सुमित्रानंदन पंत का जीवन परिचय पर हमारा यह ब्लॉग पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य प्रसिद्ध कवियों और महान व्यक्तियों के जीवन परिचय को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।
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अच्छी जानकारी प्राप्त हुई। उनके लेखन पर थोड़ा और प्रकाश डालें तो आलेख का सौंदर्य बढ़ेगा।
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संगीता जी, हम जल्द ही अपने इस ब्लॉग को अपडेट करेंगे। धन्यवाद!
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2 comments
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