रामकुमार वर्मा की कविताएँ समाज में आज भी प्रासंगिक होकर युवाओं को प्रेरित करने में अहम भूमिका निभाती हैं, साथ ही समाज में सकारात्मकता का संचार करने का भी प्रयास करती हैं। रामकुमार वर्मा हिंदी साहित्य के छायावादी युग के उन प्रमुख कवियों में से एक थे, जिन्होंने अपनी रचनाओं में प्रकृति, प्रेम, जीवन, मृत्यु, समाज, देशभक्ति आदि विषयों का बखूबी चित्रण किया है। रामकुमार वर्मा की कविताएँ युवाओं की चेतना जागकर उनका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाती हैं, विद्यार्थियों को कम से कम एक बार अपने जीवन में रामकुमार वर्मा की कविताएँ अवश्य पढ़नी चाहिए। इस ब्लॉग में आप रामकुमार वर्मा की कविताएँ पढ़ पाएंगे, जो आपको संघर्ष के समय में साहसी बनाएंगी।
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कौन हैं रामकुमार वर्मा?
रामकुमार वर्मा की कविताएँ पढ़ने के लिए आपको रामकुमार वर्मा का जीवन परिचय पर एक नज़र डालनी चाहिए। रामकुमार वर्मा जी का जन्म 15 सितंबर, 1905 को भारत के राज्य मध्य प्रदेश के सागर ज़िले में गोपालगंज ग्राम में हुआ था। रामकुमार वर्मा जी ने कानपुर और इलाहाबाद के विभिन्न कॉलेजों से अपनी प्रारंभिक और स्नातक की शिक्षा पूरी की। इसके बाद उन्होंने वाराणसी के हिन्दू विश्वविद्यालय से साहित्य शास्त्र में मास्टर्स की डिग्री प्राप्त की। अपनी शिक्षा के बाद उन्होंने कविता और साहित्य के क्षेत्र में अपनी प्रमुख भूमिका निभाई।
रामकुमार वर्मा की कविताओं में वह व्यक्तिगत अनुभवों, समाजिक मुद्दों, प्रेम, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही सुंदरता और भाषा में व्यक्त करते थे। उनकी कविताएँ और लेख अनेक साहित्यिक पत्रिकाओं और समाचार पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए और उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी। जीवन भर समाज को सद्मार्ग दिखाने वाले रामकुमार वर्मा जी 05 अक्टूबर 1990 को पंचतत्व में विलीन हो गए।
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रामकुमार वर्मा जी की रचनाएं
रामकुमार वर्मा की कविताएँ पढ़ने के पहले आपको उनकी रचनाओं के बारे में पता होना चाहिए, जिसको आप इस ब्लॉग में पढ़ेंगे। रामकुमार वर्मा की कविताएँ व्यक्तिगत अनुभवों, समाजिक मुद्दों, प्रेम, और जीवन के विभिन्न पहलुओं को बड़े ही सुंदरता और भाषा में व्यक्त करते हुए उनकी भूमिका को दर्शाने वाली हैं;
- मौन करुणा
- हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
- किरण–कण
- रजनीबाला
- आत्म-समर्पण
- ये गजरे तारों वाले
- बापू की विदा
- आज केतकी फूली!
- अछूत
- फूलवाली इत्यादि।
हिंदी का अर्थ
रामकुमार वर्मा की कविताएँ आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं, उनकी महान रचनाओं में से एक कविता “हिंदी का अर्थ” भी है, जो कि आपको हिन्दी भाषा के प्रति प्रेम, सम्मान और आस्था रखनी सिखाएगी।
मेरी हिंदी का अर्थ यही—
वाणी! तुम रहना निर्विकार!
जैसे इतना है महाकाश, जिसमें नक्षत्रों का निनाद,
अविरत गति से होता रहता, उठता न कहीं कोई विवाद।
लघु लघु तारों को भी समेट, बनती ध्वनियों की धवल धार,
उस ज्योति पर्व में किरण किरण का, कितना है कोमल प्रसार!
गति द्रुत हो, या कि विलंबित हो,
गूँजे वीणा का तार-तार!
मेरी हिंदी का अर्थ यही,
वाणी! तुम रहना निर्विकार!
जैसे इतना व्यापक समीर, जिसमें न रहा है दिशा-भेद,
निर्गंध पुष्प को भी छूकर, जिसको न कभी कुछ हुआ खेद,
जो विषम प्रभंजन रूप तोड़ता, हठवादी सब शैल-शृंग,
पर नव प्रभात के द्वार द्वार पर सींच रहा छवि की उमंग!
ऐसा समीर जो साँस-रूप से
जीवन की करता पुकार!
मेरी हिंदी का अर्थ यही,
वाणी! तुम रहना निर्विकार!
जैसे जलती है महा अग्नि, ढलता जिसमें भीषण प्रकाश,
अज्ञान-रूढ़ियों के शव पर, हँसता है क्षण-क्षण महानाश।
रख छद्मवेश घन अंधकार जो छिपा रहा है क्षितिज-रेख,
उसके विघटन के लिए शक्ति बन हिंदी लिख दे भाग्य लेख।
निष्कलुष बने संपूर्ण विश्व,
मिट जाए भेद-गत अहंकार,
मेरी हिंदी का अर्थ यही,
वाणी, तुम रहना निर्विकार!
जैसी बहती है सहज धार, जिसमें जीवन का है प्रवाह,
प्रतिपल आगे बढ़ने का ही, जिसमें व्रत है अनुपम अथाह,
जिसकी बूँदों के कण-कण में है नवल सृष्टि का तरल रूप,
जिसकी लहरों का सहज गीत तट की वीणा पर है अनूप।
लघु बुद्बुद् ने भी मिट मिट कर
मानी जीवन में नहीं हार,
मेरी हिंदी का अर्थ यही,
वाणी! तुम रहना निर्विकार!
जैसे सजती है सृष्टि पुनः ले सुरभित तन्वंगी तरंग,
वैसी शोभा से सजे राग-रंजित हिंदी के सहज अंग।
संस्कृति के सुरभित सुमन सजें, भूषित हो सरस प्रयोग-वृंत,
बहुरंगी विहँगों के कलरव में स्वयं चला आए वसंत,
तब जन-मन के ही सुमन सजें,
बन सरस्वती के कंठ-हार,
मेरी हिंदी का अर्थ यही,
वाणी! तुम रहना निर्विकार!
-रामकुमार वर्मा
याचना
रामकुमार वर्मा की कविताएँ आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं, उनकी महान रचनाओं में से एक कविता “याचना” भी है, इस कविता के माध्यम से कवि मन की व्यथा को एक याचना के रूप में व्यक्त कर रहे हैं।
उज्ज्वल तारक-माला मेरी!
दे दो मुझे प्रकाश दिव्य
ओ उज्ज्वल तारक-माला मेरी!
ऊँचे-नीचे उड़-उड़ कर है
खद्योतों का विकल उजाला,
अपनी छवि से पथ बतला दो
दिशा-भ्रांतियाँ हैं बहु-तेरी।
उज्ज्वल तारक-माला मेरी!
दो हाथों से रुक न सकेंगी
जग-सागर की विषम हिलोरें,
निर्बल तन है और बढ़ी है
चिंता की भय पूर्ण अँधेरी।
उज्ज्वल तारक-माला मेरी!
अंधकार की घोर गुफा में
जग-शिशु नहीं दृष्टि आता है,
मैं भी खो जाऊँगा उसमें
यदि तुमने की कुछ भी देरी।
उज्ज्वल तारक-माला मेरी!
–रामकुमार वर्मा
एकांत-गान
रामकुमार वर्मा की कविताएँ आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं, उनकी महान रचनाओं में से एक कविता “एकांत-गान” भी है, इस कविता के माध्यम से कवि मन की एकांत स्तिथि के बारे में बताना चाहते हैं।
अरे निर्जन वन के निर्मल निर्झर!
इस एकांत प्रांत-प्रांगण में
किसे सुनाते सुमधुर स्वर?
अरे निर्जन वन के निर्मल निर्झर!
अपना ऊँचा स्थान त्याग कर,
क्यों करते हो अधःपतन?
कौन तुम्हारा वह प्रेमी है,
जिसे खोजते हो बन-बन?
विरह-व्यथा में अश्रु बहा कर,
जल-मय कर डाला सब तन।
क्या धोने को चले स्वयं,
अविदित प्रेमी के पद-रज-कन?
लघु पाषाणों के टुकड़े भी,
तुमको देते हैं ठोकर।
क्षण भर ही अविचल होकर,
कंपित होते हो गति खोकर।
लघु लहरों के कंपित कर से,
करते उत्सुक आलिंगन।
कौन तुम्हें पथ बतलाता है,
मौन खड़े हैं सब तरुगन?
अविचल चल, जल का छल छल,
गिरिपर गिरि गिरि कर कल कल स्वर।
पल पल में प्रेमी के मन में,
गूँजे, ओ विरही निर्झर!
–रामकुमार वर्मा
जीवन
रामकुमार वर्मा की कविताएँ आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं, उनकी महान रचनाओं में से एक कविता “जीवन” भी है, जो कि आपको जीवन की उचित परिभाषा समझाकर, आप में साहस का विस्तार करेगी।
मौन झींगुर उस अँधेरी रात का हैं गान करते;
और तारे क्या परस्पर देख कर पहचान करते?
सुमन अपने रूप का, अपनी सुरभि का दान करते;
और अनिल तरंग अविदित रूप से मधु-पान करते।
मैं उठा हूँ जाग, यह जग
मृतक-सा क्यों रह गया है?
एक ही जीवन अनेकों
मृत्यु पर ज्यों बह गया है!
यह निशा काली-पवन ने साँस ली मानी ठहर कर;
पंख की ध्वनि-पक्षि-शावक का ध्वनि टूटा हुआ स्वर।
और पत्ते का पतन! जो अचर से कुछ हो गया चर;
देखकर मैंने कहा-अः यह निशा का मौन अंबर
शांत है, जैसे बना है साधु-
संत निरीह निश्छल;
किंतु कितने भाग्य इसने
कर दिए हैं नष्ट, निर्बल।
यह जगत है! शांति में गोपित किए हैं पाप प्रतिक्षण;
मृत्यु की छाया निशा-सी छू रही अविराम कण-कण।
हाथ को निर्बल बनाने के लिए है स्वर्ण-कंकण;
दे चुका तम-मृत्यु को नभ-तारिका-जीवन-समर्पण।
च्युत हुए पत्ते-सदृश पल में
कभी तुम टूट जाओ;
यदि सहो, तो शांति, या फिर
नित्य निखिल अशांति पाओ।
–रामकुमार वर्मा
वर्षा-नृत्य
रामकुमार वर्मा की कविताएँ आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव करने में मुख्य भूमिका निभा सकती हैं, उनकी महान रचनाओं में से एक कविता “वर्षा-नृत्य” भी है, जो कि वर्षा के सौंदर्य और प्राकृतिक सौन्दर्य को स्तुति देने का है। यह कविता प्रकृति की सुन्दरता को व्यक्त करने के रूप में लिखी गई है, जिसके माध्यम से वर्षा की प्रेरणा से मृगों और पक्षियों का खुशी-खुशी नृत्य करने का चित्रण प्रस्तुत किया गया है।
यह वर्षा झूम उठी है।
जीवन की नव हरियाली आँखों को चूम उठी है।
आँखों में जो थी छाई, वह नभ में फैल गई है;
वह घटा बिखर कर जैसे आई नित निखर नई है,
वह खोज-खोज कर मेरी आँखों की मादक पलकें,
भूली-सी नभ-आँगन में
फिर-फिर से घूम उठी है।
यह वर्षा झूम उठी है।
यह पूर्व दिशा अप्सरि-सी दे दृग में अंजन-रेखा;
लज्जित-सी नत-लोचन है, यों मैंने उसको देखा,
जैसे ही मैंने अपनी उस पर से दृष्टि उठाई,
वह साथ घटा के उमँगी
छम छम छम छम उठी है।
यह वर्षा झूम उठी है।
–रामकुमार वर्मा
मौन करुणा
रामकुमार वर्मा की कविताओं में से एक लोकप्रिय कविता “मौन करुणा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
जानता हूँ इस जगत में फूल की है आयु कितनी,
और यौवन की उभरती साँस में है वायु कितनी,
इसलिए आकाश का विस्तार सारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
प्रश्न-चिह्नों में उठी हैं भाग्य सागर की हिलोरें,
आँसुओं से रहित होंगी क्या नयन की नामित कोरें,
जो तुम्हें कर दे द्रवित वह अश्रु धारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
जोड़ कर कण-कण कृपण आकाश ने तारे सजाये,
जो कि उज्ज्वल हैं सही पर क्या किसी के काम आये?
प्राण! मैं तो मार्गदर्शक एक तारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ,
यह उठा कैसा प्रभंजन जुड़ गयी जैसे दिशायें,
एक तरणी एक नाविक और कितनी आपदाएँ,
क्या कहूँ मँझधार में ही मैं किनारा चाहता हूँ,
मैं तुम्हारी मौन करुणा का सहारा चाहता हूँ
-रामकुमार वर्मा
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
रामकुमार वर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “हे ग्राम देवता ! नमस्कार !” भी है, जो ग्राम देवता के प्रति आस्था और आभार व्यक्त करती है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
सोने-चान्दी से नहीं किन्तु तुमने मिट्टी से किया प्यार ।
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
जन कोलाहल से दूर-कहीं एकाकी सिमटा-सा निवास,
रवि-शशि का उतना नहीं कि जितना प्राणों का होता प्रकाश
श्रम वैभव के बल पर करते हो जड़ में चेतन का विकास
दानों-दानों में फूट रहे सौ-सौ दानों के हरे हास,
यह है न पसीने की धारा, यह गंगा की है धवल धार ।
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
अधखुले अंग जिनमें केवल है कसे हुए कुछ अस्थि-खण्ड
जिनमें दधीचि की हड्डी है, यह वज्र इन्द्र का है प्रचण्ड !
जो है गतिशील सभी ऋतु में गर्मी वर्षा हो या कि ठण्ड
जग को देते हो पुरस्कार देकर अपने को कठिन दण्ड !
झोपड़ी झुकाकर तुम अपनी ऊँचे करते हो राज-द्वार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
ये खेत तुम्हारी भरी-सृष्टि तिल-तिल कर बोए प्राण-बीज
वर्षा के दिन तुम गिनते हो, यह परिवा है, यह दूज, तीज
बादल वैसे ही चले गए, प्यासी धरती पाई न भीज
तुम अश्रु कणों से रहे सींच इन खेतों की दुख भरी खीज
बस, चार अन्न के दाने ही नैवेद्य तुम्हारा है उदार
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
यह नारी-शक्ति देवता की कीचड़ है जिसका अंग-राग
यह भीर हुई सी बदली है जिसमें साहस की भरी आग,
कवियो ! भूलो उपमाएँ सब मत कहो, कुसुम, केसर, पराग,
यह जननी है, जिसके गीतों से मृत अंकुर भी उठे जाग,
उसने जीवन भर सीखा है, सुख से करना दुख का दुलार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
ये राम-श्याम के सरल रूप, मटमैले शिशु हंस रहे खूब,
ये मुन्ना, मोहन, हरे कृष्ण, मंगल, मुरली, बच्चू, बिठूब,
इनको क्या चिन्ता व्याप सकी, जैसे धरती की हरी दूब
थोड़े दिन में ही ठण्ड, झड़ी, गर्मी सब इनमें गई डूब,
ये ढाल अभी से बने छीन लेने को दुर्दिन के प्रहार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
तुम जन मन के अधिनायक हो तुम हँसो कि फूले-फले देश
आओ, सिंहासन पर बैठो यह राज्य तुम्हारा है अशेष !
उर्वरा भूमि के नये खेत के नये धान्य से सजे वेश,
तुम भू पर रहकर भूमि-भार धारण करते हो मनुज-शेष
अपनी कविता से आज तुम्हारी विमल आरती लूँ उतार !
हे ग्राम देवता ! नमस्कार !
-रामकुमार वर्मा
आत्म-समर्पण
रामकुमार वर्मा की लोकप्रिय कविताओं में से एक कविता “आत्म-समर्पण” भी है, जो युवाओं का मार्गदर्शन करने का काम करती है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
यह न मुझसे पूछना, मैं किस दिशा से आ रहा हूँ
है कहाँ वह चरणरेखा, जो कि धोने जा रहा हूँ
पत्थरों की चोट जब उर पर लगे,
एक ही “कलकल” कहो, तो ले चलूँ
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
मार्ग में तुमको मिलेंगे वात के प्रतिकूल झोंके
दृढ़ शिला के खण्ड होंगे दानवों से राह रोके
यदि प्रपातों के भयानक तुमुल में,
भूल कर भी भय न हो, तो ले चलूँ
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
हो रहीं धूमिल दिशाएँ, नींद जैसे जागती है
बादलों की राशि मानो मुँह बनाकर भागती है
इस बदलती प्रकृति के प्रतिबिम्ब को,
मुस्कुराकर यदि सहो, तो ले चलूँ
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
मार्ग से परिचय नहीं है, किन्तु परिचित शक्ति तो है
दूर हो आराध्य चाहे, प्राण में अनुरक्ति तो है
इन सुनहली इंद्रियों को प्रेम की,
अग्नि से यदि तुम दहो, तो ले चलूँ
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
वह तरलता है हृदय में, किरण को भी लौ बना दूँ
झाँक ले यदि एक तारा, तो उसे मैं सौ बना दूँ
इस तरलता के तरंगित प्राण में,
प्राण बनकर यदि रहो, तो ले चलूँ
सजल जीवन की सिहरती धार पर,
लहर बनकर यदि बहो, तो ले चलूँ
-रामकुमार वर्मा
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