Poem on Republic Day in Hindi 2025: 76वे गणतंत्र दिवस पर राष्ट्रीय एकता का संदेश देती कविताएं

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Poem on Republic Day in Hindi

Poem on Republic Day in Hindi: गणतंत्र दिवस हमारे देश का एक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है, जिसे हर साल 26 जनवरी को पूरे उत्साह और गर्व के साथ मनाया जाता है। यह दिन हमारे संविधान के लागू होने की याद में हर साल बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, जो हमें सही मायनों में लोकतंत्र की शक्ति का अहसास कराता है। इस दिन भारत के स्कूल और कॉलेजों में विभिन्न प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है, जिसमें भाषण, निबंध, और कविताएँ शामिल होती हैं। इस लेख में आपके लिए गणतंत्र दिवस पर कविता (Poem on Republic Day in Hindi) दी गई हैं, जिनके माध्यम से आपको इस दिन के महत्व के बारे में जानने का मौका मिलेगा। 26 जनवरी पर कविता पढ़ने के लिए इस लेख को अंत तक जरूर पढ़ें।

गणतंत्र दिवस पर कविता – Poem on Republic Day in Hindi

गणतंत्र दिवस पर कविता (Poem on Republic Day in Hindi) के माध्यम से आप इस दिन को एक अनोखे अंदाज़ में मना पाएंगे। गणतंत्र दिवस पर कविता (Poem on Republic Day in Hindi) इस प्रकार हैं –

गणतंत्र दिवस

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

- हरिवंशराय बच्चन

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गणतंत्र-दिवस

यह इनका गणतंत्र-दिवस है
तुम दूर से उन्हें देख कहोगे

गिनती सीखने की उम्रवाले बच्चे चार-पाँच
पकड़े हुए एक-एक हाथ में एक-एक नहीं, कई-कई

नन्हें काग़ज़ी राष्ट्रीय झंडे तिरंगे
लेकिन थोड़ा क़रीब होते ही

तुम्हारा भरम मिट जाता है
पचीस जनवरी की सर्द शाम शुरू-रात

जब एक शीतलहर ठेल रही है सड़कों से लोगों को असमय ही घरों की ओर
वे बेच रहे हैं ये झंडे

घरमुँही दीठ के आगे लहराते
झंडे, स्कूल जानेवाले उनके समवयसी बच्चे जिन्हें पकड़ेंगे

गणतंत्र-दिवस की सुबह
स्कूली समारोह में

पूरी धज में जाते हुए
उनके क़रीब

उनके खेद-खाए उल्लास के क़रीब
और छुटकों में जो बड़का है

बतलाता है तुतले शब्दों, भेद-भरे स्वर में
साठ रुपए सैकड़ा ले

बेचते एक-एक रुपय में
—हिसाब के पक्के!

गिनती सीखने की उम्र वाले बच्चे
गणतंत्र-दिवस-समारोह के शामियाने के बाहर खड़े

जड़ाती रात की उछीड़ सड़क पर
झंडों का झुँड उठाए, दीठ के आगे लहराते :

झंडा उँचा रहे हमारा!

- ज्ञानेंद्रपति

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26 जनवरी पर कविता – 26 January Kavita in Hindi

26 जनवरी पर कविता (26 January Kavita in Hindi) पढ़कर आप इस दिन के महत्व को आसानी से समझ पाएंगे। 26 जनवरी पर कविता निम्नलिखित हैं –

26 जनवरी (गणतंत्र दिवस)

प्राची से झाँक रही ऊषा,
कुंकुम-केशर का थाल लिये।
हैं सजी खड़ी विटपावलियाँ,
सुरभित सुमनों की माल लिये॥

गंगा-यमुना की लहरों में,
है स्वागत का संगीत नया।
गूँजा विहगों के कण्ठों में,
है स्वतन्त्रता का गीत नया॥

प्रहरी नगराज विहँसता है,
गौरव से उन्नत भाल किये।
फहराता दिव्य तिरंगा है,
आदर्श विजय-सन्देश लिये॥

गणतन्त्र-आगमन में सबने,
मिल कर स्वागत की ठानी है।
जड़-चेतन की क्या कहें स्वयं,
कर रही प्रकृति अगवानी है॥

कितने कष्टों के बाद हमें,
यह आज़ादी का हर्ष मिला।
सदियों से पिछड़े भारत को,
अपना खोया उत्कर्ष मिला॥

धरती अपनी नभ है अपना,
अब औरों का अधिकार नहीं।
परतन्त्र बता कर अपमानित,
कर सकता अब संसार नहीं॥

क्या दिये असंख्यों ही हमने,
इसके हित हैं बलिदान नहीं।
फिर अपनी प्यारी सत्ता पर,
क्यों हो हमको अभिमान नहीं॥

पर आज़ादी पाने से ही,
बन गया हमारा काम नहीं।
निज कर्त्तव्यों को भूल अभी,
हम ले सकते विश्राम नहीं॥

प्राणों के बदले मिली जो कि,
करना है उसका त्राण हमें।
जर्जरित राष्ट्र का मिल कर फिर,
करना है नव-निर्माण हमें॥

इसलिये देश के नवयुवको!
आओ कुछ कर दिखलायें हम।
जो पंथ अभी अवशिष्ट उसी,
पर आगे पैर बढ़ायें हम॥

भुजबल के विपुल परिश्रम से,
निज देश-दीनता दूर करें।
उपजा अवनी से रत्न-राशि,
फिर रिक्त-कोष भरपूर करें॥

दें तोड़ विषमता के बन्धन,
मुखरित समता का राग रहे।
मानव-मानव में भेद नहीं,
सबका सबसे अनुराग रहे,

कोई न बड़ा-छोटा जग में,
सबको अधिकार समान मिले।
सबको मानवता के नाते,
जगतीतल में सम्मान मिले॥

विज्ञान-कला कौशल का हम,
सब मिलकर पूर्ण विकास करें।
हो दूर अविद्या-अन्धकार,
विद्या का प्रबल प्रकाश करें॥

हर घड़ी ध्यान बस रहे यही,
अधरों पर भी यह गान रहे।
जय रहे सदा भारत माँ की,
दुनिया में ऊँची शान रहे॥

- महावीर प्रसाद ‘मधुप’

आओ तिरंगा फहराये

आओ तिरंगा लहराये, आओ तिरंगा फहराये,
अपना गणतंत्र दिवस है आया, झूमे, नाचे, खुशी मनाये।
अपना 73वां गणतंत्र दिवस खुशी से मनायेंगे,
देश पर कुर्बान हुए शहीदों पर श्रद्धा सुमन चढ़ायेंगे।
26 जनवरी 1950 को अपना गणतंत्र लागू हुआ था,
भारत के पहले राष्ट्रपति, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने झंडा फहराया था,
मुख्य अतिथि के रुप में सुकारनो को बुलाया था,
थे जो इंडोनेशियन राष्ट्रपति, भारत के भी थे हितैषी,
था वो ऐतिहासिक पल हमारा, जिससे गौरवान्वित था भारत सारा।
विश्व के सबसे बड़े संविधान का खिताब हमने पाया है,
पूरे विश्व में लोकतंत्र का डंका हमने बजाया है।
इसमें बताये नियमों को अपने जीवन में अपनाये,
थाम एक दूसरे का हाथ आगे-आगे कदम बढ़ाये,
आओ तिरंगा लहराये, आओ तिरंगा फहराये,
अपना गणतंत्र दिवस है आया, झूमे, नाचे, खुशी मनाएं।।

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है
ज्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुजारा होता है
बच्चों के लिये जो धरती मां, सदियों से सभी कुछ सहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

कुछ लोग जो ज्यादा जानते हैं, इंसान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं
मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज यही जो रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है..

- शैलेन्द्र

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मेरा भारत

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,
तू है अद्भुत और सुंदर।
तेरी धरती, तेरा आकाश,
तेरी नदियाँ, तेरे पर्वत,
सब ही अविस्मरणीय हैं।

तेरे लोग, तेरे संस्कृति,
तेरी विरासत, तेरा इतिहास,
सब ही गौरवशाली हैं।

तू है सत्य, तू है धर्म,
तू है शांति, तू है अहिंसा।
तू है ज्ञान, तू है दर्शन,
तू है प्रकाश, तू है जीवन।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,
तू है मेरे हृदय में बसता।
मैं तेरा सदैव ऋणी रहूँगा।

- खुशवंत सिंह

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26 जनवरी के लिए कविता – Kavita on Republic Day in Hindi

26 जनवरी के लिए कविता (Kavita on Republic Day in Hindi) पढ़कर आप गणतंत्र दिवस को अच्छे से मना पाएंगे। 26 जनवरी के लिए कविता (Kavita on Republic Day in Hindi) इस प्रकार हैं –

आजादी

लाखों लोगों की कुर्बानी के बाद,
आखिरकार भारत को आजादी मिल गई।
15 अगस्त 1947 का दिन,
भारत के इतिहास का एक स्वर्णिम दिन है।

इस दिन भारत को गुलामी की जंजीरों से मुक्त किया गया,
और वह एक स्वतंत्र देश बना।
इस दिन भारत के लोगों ने नए भारत के सपने देखे,
और उन्होंने एक बेहतर भविष्य की कामना की।

आजादी एक ऐसा उपहार है,
जिसे हमें कभी नहीं भुलाना चाहिए।
हमें इस उपहार की रक्षा करनी चाहिए,
और इसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुँचाना चाहिए।

- खुशवंत सिंह

चंदन है भारत की माटी

“भारत का स्वर्णिम इतिहास है
हर युग में भारत का होना जयगान है
चंदन है भारत की माटी
जिसका संकल्प बड़ा महान है

तूफानों से उलझकर
प्रखरता से हवाओं के रुख को बदलकर
अखंड ज्योति में जलती बाती
करती जग में प्रकाश है
गुलामी की जंज़ीरों को तोड़कर
आशाओं से नाता जोड़कर
वीरों की जननी है जागी
करती अन्याय का नाश हैं

जीतने को दिलों को फिर से
वीरता नसों में बहती फिर से
संघर्षों में टिके रहना है जरुरी
तभी वीरगाथाओं का होना विस्तार है
भारत के कण-कण में फिर से
अमरत्व झूलता है अब फिर से
चंदन है भारत की माटी,
जिसके आगे नतमस्तक हुआ संसार है..”

- मयंक विश्नोई 

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मेरे देश की आंखें

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आंखें
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं...
तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां
नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं...

वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झांकती हैं
वे आंखें,
मेरे देश की आंखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धारे
क्षिति-रेखा को खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आंखें...

उसने झुकी कमर सीधी की
माथे से पसीना पोछा
डलिया हाथ से छोड़ी
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चांद-चेहरे सुकचाते
में टंकी थकी पलकें उठाईं
और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं
मेरे देश की आंखें...

- अज्ञेय

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