Mother’s Day Story in Hindi : अनूप कुमार त्रिपाठी, वरिष्ठ अभियोजन अधिकारी (S.P.O.), जिला एवं सत्र न्यायालय, गोपालगंज) से बात करते हुए उन्होंने इस मदर्स डे अपने करियर को बनाने में अपने माँ के योगदान के बारे में बताया। पढ़ते हैं अनूप की कहानी उनकी जुबानी …
मेरी परवरिश एक गांव में हुई थी और मेरे पिता जी कोलकाता में एक प्राइवेट जॉब करते हैं। मेरी माँ पढ़ी लिखी नहीं थी, लेकिन हर माँ चाहती है की मेरे बच्चे पढ़े लिखे हो। मैं गांव के एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ने के लिए जाता था। जब स्कूल से होम वर्क मिलता था तो मेरी माता जी उसे नहीं करा पाती थी। लेकिन मेरी बड़ी माँ उन्होंने पढाई की थी, तो उनकी बेटी को जो होमवर्क मिलता था वो उसी की कॉपी लेकर आती थी और मेरी माँ मेरी कॉपी का एक-एक अक्षर उसकी कॉपी से मिलती थी, क्योंकि उनको पढ़ना तो नहीं आता था। लेकिन वो उन अक्षरों को मिला कर गलती को सुधरवाती थी। गांवों में तब लाइट की सुविधा न होने पर लालटेन को जलाकर मेरे मुँह को अपने अंचल से पोछकर सुबह पढ़ने को भेजती थीं और खुद काम करने लगती थी। जब पढ़ते-पढ़ते लालटेन की कालिख मेरे नाक को काला कर देती थी तब वो फिर मेरे मुँह को साफ करती।
जब पढ़ाई के लिए छोड़ा घर
मैंने पढ़ाई करने के बाद जब मैं पहली बार घर से बहार आया और गोरखपुर से मैंने BA LLB, LLM इसके बाद मैं प्रयागराज आ गया अपनी नौकरी की तैयारी करने के लिए मेरी ज़िंदगी की असली परीक्षा वही से शुरू हुई, बहुत प्रयास और तैयारी के बाद जब ज्यूडशरी की परीक्षा आई और मैंने प्री, मेन्स पास कर लिया लेकिन इंटरव्यू नहीं निकला और मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ तब मैं निराश भी हुआ, तब मेरी माँ ने भोजपुरी में एक बात कहि मुझसे “सबुरी के मजदूरी भगवान देले” मतलब की सब्र करोगे धैर्य करोगे तो उसका फल तुम जरूर मिलेगा। मैंने देखा है आपके पिता जी कितने भी अच्छे आपके दोस्त हो लेकिन आप उनसे अपनी परेशानी नहीं बता सकते हैं।
मेरी मां प्राकृतिक रूप से मुझे बहुत अच्छी-अच्छी बात बताती थी, जैसे की समय आने पर ही फल पकता हैं, बारिश के मौसम आने पर ही बारिश पता चलती है। उसी तरह सब चीज का दिन आता है। पढाई के दौरान जब मेरी शादी हो गई और मेरी पत्नी का सिलेक्शन मुझसे पहले हो गया। तब तनों की बरसात शुरू हुई, लेकिन उस वक्त कोई साथ था तो सिर्फ मेरी माँ। मैंने अपनी ज़िन्दगी का जो मैंनेजमेंट सीखा है वो अपनी माँ से मेरे निराश हो जाने पर मेरी माँ ने मुझसे पूछा की अभी तुम्हारी कितनी उम्र बाकि है, मैंने जवाब दिया अभी 7 साल हुआ है और 7 साल बाकि है। तो उन्होंने बहुत सुन्दर तरीके से मुझे समझाया कि अभी तुम आधी नदी में पहुंचे हो और अभी से तुम घबरा गए। अगर तुम लौटकर आते हो तो भी तो तुम आधे पर ही आओगे। तुम को बची आधी नदी को भी पर कर लेना चाहिए। वह पढ़ी लिखी न होकर मुझे मेरे जीवन की सही दिशा दिखाई।
6 बार इंटरव्यू में हुआ फेल बस मां ने दिया साथ
उसी समय स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन का मैं 6 बार इंटरव्यू दिए था, राजस्थान, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, झारखण्ड, बिहार और हरियाणा। इसके बाद मैंने लॉ ऑफिसर समेत कई परीक्षाएं दी लेकिन सब में असफलता ही हांथ लगी। मेरे सिलेक्शन न हो पाने पर जब मुझे लोगों की बात सुननी पड़ती थी तो मेरी माँ उनसे खुद कहती थी, पैसा हम देते हैं, खाना मेरा खाता है, सब चीज हम भिजवाते हैं और लड़का हमारा उम्र उसकी बीत रही है, तो बाकि सबको इतनी चिंता क्यों है। लेकिन इन कड़ी मेहनत और माता जी के स्पॉट से मैंने हार नहीं मानी और SPO वरिष्ठ अभियोजक अधिकारी के पद पर मेरा सिलेक्शन हो गया। इंटरव्यू में दौरान आर्थिक स्तिथि ठीक न होने पर कभी-कभी हम अपने साथ पढ़ने वाले के कपड़े तक पहन जाया करते थे, शर्ट किसी की पेंट किसी की।
मां ने ताने मारने वालों के पैर छूने को कहा
सिलेक्शन के बाद जब मैं अपनी माँ के पास उनके पैर छूने गया खुशी से तो उन्होंने मुझसे कहा मेरे पैर बाद में छूना पहले जाओ गांव में उनके पैर को छुओ जिन्होंने तुमको असफल होने पर तने दिए है। मेरा मानना है कि मैं अधिकारी बनता हूँ या मैं अपराधी, रोटी जलती है या रोटी अच्छी बनती है दोनों का श्रेय रोटी बनाने वाले पर जाता हैं। मां किसी की भी हो बेटा क्या बन रहा है और आप जब बनकर निकलते हो तो आपके साथ आपका परिवार होता हैं और उसकी नीव माँ होती है। माँ की बात पर भावुक होते हुए उन्होंने कहा माँ को शब्दों में समझना बहुत कठिन है, उनके लिए बस इतना ही कहूंगा “तुमसे है पूरा संसार माँ एक प्राकृतिक है और हम उनके अंश।
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