कविताएं मानव को मानवता से जोड़ने वाले एक सेतु के रूप में कार्य करती हैं, उस सेतु को साहित्य कहना अनुचित नहीं होगा। सही अर्थों में देखा जाए तो कविताएं ही मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का उद्देश्य अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने का होता है, इसी ज्ञान की कड़ी में विद्यार्थियों को कविताओं की महत्वता को भी समझ लेना चाहिए। कविताओं के माध्यम से समाज की चेतना को जागृत करने वाले कवि “कुँवर नारायण” की लेखनी ने सदा ही समाज के हर वर्ग को प्रेरित करने का काम किया है। Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।
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कौन हैं कुँवर नारायण?
Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) पढ़ने सेे पहले आपको कुँवर नारायण जी का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कुँवर नारायण भी हैं, जिनकी लेखनी आज के आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक हैं। अपनी महान लेखनी और साहित्य की समझ से कुँवर नारायण को हिंदी कवियों की श्रेणी में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।
19 सितंबर 1927 को कुँवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। कुँवर नारायण के परिवार से आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी और राम मनोहर लोहिया जैसे महान व्यक्तियों के निकट संपर्क रहे। इसी के प्रभाव में आकर कुँवर नारायण जी ने गंभीर अध्ययन और स्वतंत्र चिंतन की ओर प्रेरित हुए। वर्ष 1951 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में ग्रेजुएशन की। इसी दौरान उन्होंने लखनऊ लेखक संघ की गतिविधियों में अपनी भागीदारी को सक्रिय किया।
कुँवर नारायण ने अपने जीवन में साहित्य के आँगन में एक ऐसा बीज बोया, जो एक विशाल वृक्ष की भांति आज संसार को तपती धूप से छाया प्रदान करता है। कुँवर नारायण की प्रमुख रचनाओं में चक्रव्यूह (1956), परिवेश: हम तुम (1961), अपने सामने (1979), कोई दूसरा नहीं (1993), इन दिनों (2002), हाशिए का गवाह (2009) आदि सुप्रसिद्ध हैं।
कुँवर नारायण जी द्वारा हिंदी साहित्य में किए गए अप्रतिम योगदान को देखते हुए, वर्ष 1995 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार और वर्ष 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में आगे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। हिंदी के एक महान कवि कुँवर नारायण जी का निधन 15 नवंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था।
संभावनाएँ
Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं। कुँवर नारायण जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “संभावनाएँ” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
लगभग मान ही चुका था मैं मृत्यु के अंतिम तर्क को कि तुम आए और कुछ इस तरह रखा फैलाकर जीवन के जादू का भोला-सा इंद्रजाल कि लगा यह प्रस्ताव ज़रूर सफल होगा। ग़लतियाँ ही ग़लतियाँ थी उसमें हिसाब-किताब की, फिर भी लगा गलियाँ ही गलियाँ हैं उसमें अनेक संभावनाओं की बस, हाथ भर की दूरी पर है, वह जिसे पाना है। ग़लती उसी दूरी को समझने में थी।
-कुँवर नारायण
एक वृक्ष की हत्या
Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “एक वृक्ष की हत्या” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था— वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष जो हमेशा मिलता था घर के दरवाज़े पर तैनात। पुराने चमड़े का बना उसका शरीर वही सख़्त जान झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला, राइफ़िल-सी एक सूखी डाल, एक पगड़ी फूल पत्तीदार, पाँवों में फटा-पुराना जूता चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता धूप में बारिश में गर्मी में सर्दी में हमेशा चौकन्ना अपनी ख़ाकी वर्दी में दूर से ही ललकारता, “कौन?” मैं जवाब देता, “दोस्त!” और पल भर को बैठ जाता उसकी ठंडी छाँव में दरअसल, शुरू से ही था हमारे अंदेशों में कहीं एक जानी दुश्मन कि घर को बचाना है लुटेरों से शहर को बचाना है नादिरों से देश को बचाना है देश के दुश्मनों से बचाना है— नदियों को नाला हो जाने से हवा को धुआँ हो जाने से खाने को ज़हर हो जाने से : बचाना है—जंगल को मरुस्थल हो जाने से, बचाना है—मनुष्य को जंगल हो जाने से।
-कुँवर नारायण
इतना कुछ था
Kunwar Narayan Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “इतना कुछ था” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
इतना कुछ था दुनिया में लड़ने-झगड़ने को पर ऐसा मन मिला कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा और जीवन बीत गया...
-कुँवर नारायण
एक अजीब-सी मुश्किल
Kunwar Narayan Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “एक अजीब-सी मुश्किल” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:
एक अजीब-सी मुश्किल में हूँ इन दिनों— मेरी भरपूर नफ़रत कर सकने की ताक़त दिनोंदिन क्षीण पड़ती जा रही अँग्रेज़ी से नफ़रत करना चाहता जिन्होंने दो सदी हम पर राज किया तो शेक्सपीयर आड़े आ जाते जिनके मुझ पर न जाने कितने एहसान हैं मुसलमानों से नफ़रत करने चलता तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती है उनके सामने? सिखों से नफ़रत करना चाहता तो गुरु नानक आँखों में छा जाते और सिर अपने आप झुक जाता और ये कंबन, त्यागराज, मुत्तुस्वामी... लाख समझाता अपने को कि वे मेरे नहीं दूर कहीं दक्षिण के हैं पर मन है कि मानता ही नहीं बिना उन्हें अपनाए और वह प्रेमिका जिससे मुझे पहला धोखा हुआ था मिल जाए तो उसका ख़ून कर दूँ! मिलती भी है, मगर कभी मित्र कभी माँ कभी बहन की तरह तो प्यार का घूँट पीकर रह जाता हर समय पागलों की तरह भटकता रहता कि कहीं कोई ऐसा मिल जाए जिससे भरपूर नफ़रत करके अपना जी हल्का कर लूँ पर होता है इसका ठीक उलटा कोई-न-कोई, कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी ऐसा मिल जाता जिससे प्यार किए बिना रह ही नहीं पाता दिनोंदिन मेरा यह प्रेम-रोग बढ़ता ही जा रहा और इस वहम ने पक्की जड़ पकड़ ली है कि वह किसी दिन मुझे स्वर्ग दिखाकर ही रहेगा।
-कुँवर नारायण
अंतिम ऊँचाई
Kunwar Narayan Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, कुँवर नारायण जी की रचनाओं में से एक रचना “अंतिम ऊँचाई” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:
कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं, हमारे चारों ओर नहीं। कितना आसान होता चलते चले जाना यदि केवल हम चलते होते बाक़ी सब रुका होता। मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है। शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं कि सब कुछ शुरू से शुरू हो, लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं। हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती कि वह सब कैसे समाप्त होता है जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था हमारे चाहने पर। दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे— जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में जिन्हें तुमने जीता है— जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे और काँपोगे नहीं— तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं सब कुछ जीत लेने में और अंत तक हिम्मत न हारने में।
-कुँवर नारायण
आशा है कि Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) के माध्यम से आप कुँवर नारायण की रचनाएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।