कुंवर नारायण की कविताएँ: समय, समाज और सत्य का अलौकिक संगम

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कुंवर नारायण की कविताएँ

कविताएं मानव को मानवता से जोड़ने वाले एक सेतु के रूप में कार्य करती हैं, उस सेतु को साहित्य कहना अनुचित नहीं होगा। सही अर्थों में देखा जाए तो कविताएं ही समाज में कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए समाज को संगठित और प्रेरित करती हैं। हिंदी साहित्य में ऐसे कई महान कवि हुए जिन्होंने अपनी कविताओं और रचनाओं के माध्यम से समाज की चेतना को जागृत करने का अद्भुत काम किया, उन्हीं में से एक “कुँवर नारायण” भी थे जिनकी लेखनी ने सदा ही समाज के हर वर्ग को प्रेरित करने का काम किया है। इस ब्लॉग में आपके लिए कुंवर नारायण की कविताएँ (Kunwar Narayan Poems in Hindi) दी गई हैं, जिन्हें पढ़कर आप अपने जीवन में सकारात्मक परिवर्तन को महसूस कर पाएंगे। कुंवर नारायण की रचनाएं सदैव आपका मार्गदर्शन करेंगी, जिन्हें पढ़ने के लिए ये ब्लॉग अंत तक जरूर पढ़ें।

कुँवर नारायण का संक्षिप्त जीवन परिचय

कुंवर नारायण की कविताएँ (Kunwar Narayan Poems in Hindi) आपको हिंदी साहित्य की ओर आकर्षित तो करेंगी ही, साथ ही कुँवर नारायण का जीवन परिचय आपका मार्गदर्शन करने का प्रयास करेगा। बता दें कि भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि कुँवर नारायण भी हैं, जिनकी लेखनी आज के आधुनिक दौर में भी प्रासंगिक हैं। अपनी महान लेखनी और साहित्य की समझ से कुँवर नारायण को हिंदी कवियों की श्रेणी में विशिष्ट स्थान प्राप्त है।

19 सितंबर 1927 को कुँवर नारायण का जन्म उत्तर प्रदेश के अयोध्या के एक प्रतिष्ठित परिवार में हुआ था। कुँवर नारायण के परिवार से आचार्य नरेंद्र देव, आचार्य कृपलानी और राम मनोहर लोहिया जैसे महान व्यक्तियों के निकट संपर्क रहे। इसी के प्रभाव में आकर कुँवर नारायण जी ने गंभीर अध्ययन और स्वतंत्र चिंतन की ओर प्रेरित हुए। वर्ष 1951 में उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय से अँग्रेज़ी साहित्य में ग्रेजुएशन की। इसी दौरान उन्होंने लखनऊ लेखक संघ की गतिविधियों में अपनी भागीदारी को सक्रिय किया।

कुँवर नारायण ने अपने जीवन में साहित्य के आँगन में एक ऐसा बीज बोया, जो एक विशाल वृक्ष की भांति आज संसार को तपती धूप से छाया प्रदान करता है। कुँवर नारायण की प्रमुख रचनाओं में चक्रव्यूह (1956), परिवेश: हम तुम (1961), अपने सामने (1979), कोई दूसरा नहीं (1993), इन दिनों (2002), हाशिए का गवाह (2009) आदि सुप्रसिद्ध हैं।

कुँवर नारायण जी द्वारा हिंदी साहित्य में किए गए अप्रतिम योगदान को देखते हुए, वर्ष 1995 में उन्हें साहित्य अकादेमी पुरस्कार और वर्ष 2008 में ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया। इसी कड़ी में आगे भारत सरकार द्वारा वर्ष 2009 में उन्हें ‘पद्मभूषण’ से सम्मानित किया। हिंदी के एक महान कवि कुँवर नारायण जी का निधन 15 नवंबर 2017 को उत्तर प्रदेश के लखनऊ में हुआ था।

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कुंवर नारायण की कविताएँ – Kunwar Narayan Ki Kavitayen

कुंवर नारायण की कविताएँ (Kunwar Narayan Ki Kavitayen) जिन्होंने लोगों के दिलों में अपना विशेष स्थान बनाया है, वे कुछ इस प्रकार हैं –

  • अजीब वक्त है
  • जल्दी में
  • दुनिया की चिन्ता
  • अबकी बार लौटा तो
  • घर पहुँचना 
  • कविता 
  • कविता की ज़रूरत
  • संभावनाएँ
  • एक वृक्ष की हत्या
  • इतना कुछ था
  • एक अजीब-सी मुश्किल
  • अंतिम ऊँचाई
  • क्या वह नहीं होगा
  • तबादले और तबदीलियां
  • पुनश्‍च
  • सुबह हो रही थी
  • अंग अंग उसे लौटाया जा रहा था
  • बीमार नहीं है वह
  • और जीवन बीत गया
  • मौत ने कहा
  • आवाज़ें
  • अलविदा श्रद्धेय!
  • उजास
  • एक हरा जंगल
  • कमरे में धूप
  • घंटी
  • अच्छा लगा
  • अयोध्या, 1992
  • कभी पाना मुझे 
  • जिस समय में
  • दीवारें 
  • वसंत की एक लहर
  • उत्केंद्रित? 
  • जन्म-कुंडली
  • यक़ीनों की जल्दबाज़ी से
  • उनके पश्चात् 
  • दूसरी तरफ़ उसकी उपस्थिति
  • किसी पवित्र इच्छा की घड़ी में
  • आँकड़ों की बीमारी 
  • घबरा कर 
  • बात सीधी थी पर
  • भाषा की ध्वस्त पारिस्थितिकी में
  • गले तक धरती में
  • शब्दों की तरफ़ से
  • गुड़िया 
  • एक यात्रा के दौरान / एक
  • एक यात्रा के दौरान / दो
  • एक यात्रा के दौरान / तीन
  • एक यात्रा के दौरान / चार
  • एक यात्रा के दौरान / पाँच
  • एक यात्रा के दौरान / छह 
  • एक यात्रा के दौरान / सात
  • एक यात्रा के दौरान / आठ
  • एक यात्रा के दौरान / नौ 
  • एक यात्रा के दौरान / दस
  • एक यात्रा के दौरान / ग्यारह
  • एक यात्रा के दौरान / बारह 
  • एक यात्रा के दौरान / तेरह 
  • एक यात्रा के दौरान / चौदह
  • एक यात्रा के दौरान / पंद्रह 
  • आदमी का चेहरा 
  • ये शब्द वही हैं 
  • ये पंक्तियाँ मेरे निकट 
  • एक अजीब दिन
  • सवेरे-सवेरे 
  • यकीनों की जल्दबाज़ी से
  • उदासी के रंग 
  • लापता का हुलिया
  • बाकी कविता 
  • प्यार के बदले
  • रोते-हँसते 
  • ऐतिहासिक फ़ासले 
  • एक चीनी कवि-मित्र द्वारा बनाए अपने एक रेखाचित्र को सोचते हुए
  • अगली यात्रा
  • प्रस्थान के बाद
  • कोलम्बस का जहाज
  • सृजन के क्षण
  • प्यार की भाषाएँ
  • मामूली ज़िन्दगी जीते हुए
  • मैं कहीं और भी होता हूँ
  • नई किताबें इत्यादि।

अजीब वक्त है

अजीब वक्त है -
बिना लड़े ही एक देश- का देश
स्वीकार करता चला जाता
अपनी ही तुच्छताओं के अधीनता!

कुछ तो फर्क बचता
धर्मयुद्ध और कीट युद्ध में -
कोई तो हार जीत के नियमों में
स्वाभिमान के अर्थ को फिर से ईजाद करता।

-कुँवर नारायण

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जल्दी में

प्रियजन
मैं बहुत जल्दी में लिख रहा हूं
क्योंकि मैं बहुत जल्दी में हूं लिखने की
जिसे आप भी अगर
समझने की उतनी ही बड़ी जल्दी में नहीं हैं
तो जल्दी समझ नहीं पायेंगे
कि मैं क्यों जल्दी में हूं।

जल्दी का जमाना है
सब जल्दी में हैं
कोई कहीं पहुंचने की जल्दी में
तो कोई कहीं लौटने की…

हर बड़ी जल्दी को
और बड़ी जल्दी में बदलने की
लाखों जल्दबाज मशीनों का
हम रोज आविष्कार कर रहे हैं
ताकि दिन दूनी रात चौगुनी बढ़ती हुई
हमारी जल्दियां हमें जल्दी से जल्दी
किसी ऐसी जगह पर पहुंचा दें
जहां हम हर घड़ी
जल्दी से जल्दी पहुंचने की जल्दी में हैं।

मगर….कहां ?
यह सवाल हमें चौंकाता है
यह अचानक सवाल इस जल्दी के जमाने में
हमें पुराने जमाने की याद दिलाता है।

किसी जल्दबाज आदमी की सोचिए
जब वह बहुत तेजी से चला जा रहा हो
-एक व्यापार की तरह-
उसे बीच में ही रोक कर पूछिए,

‘क्या होगा अगर तुम
रोक दिये गये इसी तरह
बीच ही में एक दिन
अचानक….?’

वह रुकना नहीं चाहेगा
इस अचानक बाधा पर उसकी झुंझलाहट
आपको चकित कर देगी ।
उसे जब भी धैर्य से सोचने पर बाध्य किया जायेगा
वह अधैर्य से बड़बड़ायेगा।

‘अचानक’ को ‘जल्दी’ का दुश्मान मान
रोके जाने से घबड़ायेगा।
यद्यपि आपको आश्चर्य होगा
कि इस तरह रोके जाने के खिलाफ
उसके पास कोई तैयारी नहीं…

-कुँवर नारायण

दुनिया की चिन्ता

दुनिया की चिन्ता
छोटी सी दुनिया
बड़े-बड़े इलाके
हर इलाके के
बड़े-बड़े लड़ाके
हर लड़ाके की
बड़ी-बड़ी बन्दूकें
हर बन्दूक के बड़े-बड़े धड़ाके
सबको दुनिया की चिन्ता
सबसे दुनिया को चिन्ता।

-कुँवर नारायण

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अबकी बार लौटा तो

अबकी बार लौटा तो
बृहत्तर लौटूंगा
चेहरे पर लगाए नोकदार मूँछें नहीं
कमर में बांधें लोहे की पूँछे नहीं
जगह दूंगा साथ चल रहे लोगों को
तरेर कर न देखूंगा उन्हें
भूखी शेर-आँखों से

अबकी बार लौटा तो
मनुष्यतर लौटूंगा
घर से निकलते
सड़को पर चलते
बसों पर चढ़ते
ट्रेनें पकड़ते
जगह बेजगह कुचला पड़ा
पिद्दी-सा जानवर नहीं

अगर बचा रहा तो
कृतज्ञतर लौटूंगा

अबकी बार लौटा तो
हताहत नहीं
सबके हिताहित को सोचता
पूर्णतर लौटूंगा

-कुँवर नारायण

घर पहुँचना

हम सब एक सीधी ट्रेन पकड़ कर
अपने अपने घर पहुँचना चाहते

हम सब ट्रेनें बदलने की
झंझटों से बचना चाहते

हम सब चाहते एक चरम यात्रा
और एक परम धाम

हम सोच लेते कि यात्राएँ दुखद हैं
और घर उनसे मुक्ति

सचाई यूँ भी हो सकती है
कि यात्रा एक अवसर हो
और घर एक संभावना

ट्रेनें बदलना
विचार बदलने की तरह हो
और हम सब जब जहाँ जिनके बीच हों
वही हो
घर पहुँचना

-कुँवर नारायण

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कविता

कविता वक्तव्य नहीं गवाह है
कभी हमारे सामने
कभी हमसे पहले
कभी हमारे बाद

कोई चाहे भी तो रोक नहीं सकता
भाषा में उसका बयान
जिसका पूरा मतलब है सचाई
जिसका पूरी कोशिश है बेहतर इन्सान

उसे कोई हड़बड़ी नहीं
कि वह इश्तहारों की तरह चिपके
जुलूसों की तरह निकले
नारों की तरह लगे
और चुनावों की तरह जीते

वह आदमी की भाषा में
कहीं किसी तरह ज़िन्दा रहे, बस

-कुँवर नारायण

कविता की ज़रूरत

बहुत कुछ दे सकती है कविता
क्यों कि बहुत कुछ हो सकती है कविता
ज़िन्दगी में

अगर हम जगह दें उसे
जैसे फलों को जगह देते हैं पेड़
जैसे तारों को जगह देती है रात

हम बचाये रख सकते हैं उसके लिए
अपने अन्दर कहीं
ऐसा एक कोना
जहाँ ज़मीन और आसमान
जहाँ आदमी और भगवान के बीच दूरी
कम से कम हो ।

वैसे कोई चाहे तो जी सकता है
एक नितान्त कवितारहित ज़िन्दगी
कर सकता है
कवितारहित प्रेम

-कुँवर नारायण

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कुंवर नारायण की लोकप्रिय कविताएं – Kunwar Narayan Poems in Hindi

कुंवर नारायण की लोकप्रिय कविताएं (Kunwar Narayan Poems in Hindi) कुछ इस प्रकार हैं, जो समय-समय पर आपको प्रेरित करेंगी –

संभावनाएँ

Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं। कुँवर नारायण जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “संभावनाएँ” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

लगभग मान ही चुका था मैं 
मृत्यु के अंतिम तर्क को 
कि तुम आए 
और कुछ इस तरह रखा 
फैलाकर 
जीवन के जादू का 
भोला-सा इंद्रजाल 
कि लगा यह प्रस्ताव 
ज़रूर सफल होगा। 

ग़लतियाँ ही ग़लतियाँ थी उसमें 
हिसाब-किताब की, 
फिर भी लगा 
गलियाँ ही गलियाँ हैं उसमें 
अनेक संभावनाओं की 
बस, हाथ भर की दूरी पर है, 
वह जिसे पाना है। 
ग़लती उसी दूरी को समझने में थी।

-कुँवर नारायण

एक वृक्ष की हत्या

Kunwar Narayan Poems in Hindi (कुंवर नारायण की कविताएं) आपकी सोच का विस्तार कर सकती हैं, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “एक वृक्ष की हत्या” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

अबकी घर लौटा तो देखा वह नहीं था— 
वही बूढ़ा चौकीदार वृक्ष 
जो हमेशा मिलता था घर के दरवाज़े पर तैनात। 

पुराने चमड़े का बना उसका शरीर 
वही सख़्त जान 
झुर्रियोंदार खुरदुरा तना मैला-कुचैला, 
राइफ़िल-सी एक सूखी डाल, 
एक पगड़ी फूल पत्तीदार, 
पाँवों में फटा-पुराना जूता 
चरमराता लेकिन अक्खड़ बल-बूता 
धूप में बारिश में 
गर्मी में सर्दी में 
हमेशा चौकन्ना 
अपनी ख़ाकी वर्दी में 
दूर से ही ललकारता, “कौन?” 

मैं जवाब देता, “दोस्त!” 
और पल भर को बैठ जाता 
उसकी ठंडी छाँव में 
दरअसल, शुरू से ही था हमारे अंदेशों में 
कहीं एक जानी दुश्मन 
कि घर को बचाना है लुटेरों से 
शहर को बचाना है नादिरों से 
देश को बचाना है देश के दुश्मनों से 
बचाना है— 
नदियों को नाला हो जाने से 
हवा को धुआँ हो जाने से 
खाने को ज़हर हो जाने से : 
बचाना है—जंगल को मरुस्थल हो जाने से, 
बचाना है—मनुष्य को जंगल हो जाने से।

-कुँवर नारायण

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इतना कुछ था

Kunwar Narayan Poems in Hindi आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “इतना कुछ था” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:

इतना कुछ था दुनिया में 
लड़ने-झगड़ने को 
पर ऐसा मन मिला 
कि ज़रा-से प्यार में डूबा रहा 
और जीवन बीत गया...

-कुँवर नारायण

एक अजीब-सी मुश्किल

Kunwar Narayan Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, कुँवर नारायण जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “एक अजीब-सी मुश्किल” भी है। यह कुछ इस प्रकार है:

एक अजीब-सी मुश्किल में हूँ इन दिनों— 
मेरी भरपूर नफ़रत कर सकने की ताक़त 
दिनोंदिन क्षीण पड़ती जा रही 
अँग्रेज़ी से नफ़रत करना चाहता 

जिन्होंने दो सदी हम पर राज किया 
तो शेक्सपीयर आड़े आ जाते 
जिनके मुझ पर न जाने कितने एहसान हैं 
मुसलमानों से नफ़रत करने चलता 

तो सामने ग़ालिब आकर खड़े हो जाते
अब आप ही बताइए किसी की कुछ चलती है 
उनके सामने? 
सिखों से नफ़रत करना चाहता 

तो गुरु नानक आँखों में छा जाते 
और सिर अपने आप झुक जाता 
और ये कंबन, त्यागराज, मुत्तुस्वामी... 
लाख समझाता अपने को 
कि वे मेरे नहीं 
दूर कहीं दक्षिण के हैं 

पर मन है कि मानता ही नहीं 
बिना उन्हें अपनाए 
और वह प्रेमिका 
जिससे मुझे पहला धोखा हुआ था 
मिल जाए तो उसका ख़ून कर दूँ! 

मिलती भी है, मगर 
कभी मित्र 
कभी माँ 
कभी बहन की तरह 
तो प्यार का घूँट पीकर रह जाता 
हर समय 
पागलों की तरह भटकता रहता 
कि कहीं कोई ऐसा मिल जाए 
जिससे भरपूर नफ़रत करके 
अपना जी हल्का कर लूँ 
पर होता है इसका ठीक उलटा 
कोई-न-कोई, कहीं-न-कहीं, कभी-न-कभी 
ऐसा मिल जाता 

जिससे प्यार किए बिना रह ही नहीं पाता 
दिनोंदिन मेरा यह प्रेम-रोग बढ़ता ही जा रहा 
और इस वहम ने पक्की जड़ पकड़ ली है 
कि वह किसी दिन मुझे 
स्वर्ग दिखाकर ही रहेगा।

-कुँवर नारायण

अंतिम ऊँचाई

Kunwar Narayan Poems in Hindi के माध्यम से आपको कवि की भावनाओं का अनुमान लगेगा, कुँवर नारायण जी की रचनाओं में से एक रचना “अंतिम ऊँचाई” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

कितना स्पष्ट होता आगे बढ़ते जाने का मतलब 
अगर दसों दिशाएँ हमारे सामने होतीं, 
हमारे चारों ओर नहीं। 
कितना आसान होता चलते चले जाना 
यदि केवल हम चलते होते 
बाक़ी सब रुका होता। 

मैंने अक्सर इस ऊलजलूल दुनिया को 
दस सिरों से सोचने और बीस हाथों से पाने की कोशिश में 
अपने लिए बेहद मुश्किल बना लिया है। 
शुरू-शुरू में सब यही चाहते हैं 
कि सब कुछ शुरू से शुरू हो, 
लेकिन अंत तक पहुँचते-पहुँचते हिम्मत हार जाते हैं। 

हमें कोई दिलचस्पी नहीं रहती 
कि वह सब कैसे समाप्त होता है 
जो इतनी धूमधाम से शुरू हुआ था 
हमारे चाहने पर। 

दुर्गम वनों और ऊँचे पर्वतों को जीतते हुए 
जब तुम अंतिम ऊँचाई को भी जीत लोगे— 
जब तुम्हें लगेगा कि कोई अंतर नहीं बचा अब 
तुममें और उन पत्थरों की कठोरता में 
जिन्हें तुमने जीता है— 
जब तुम अपने मस्तक पर बर्फ़ का पहला तूफ़ान झेलोगे 
और काँपोगे नहीं— 
तब तुम पाओगे कि कोई फ़र्क़ नहीं 
सब कुछ जीत लेने में 
और अंत तक हिम्मत न हारने में।

-कुँवर नारायण

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