Poem on Tiranga in Hindi: भारत का राष्ट्रीय ध्वज, जिसे प्यार और सम्मान से ‘तिरंगा’ भी कहा जाता है, केवल तीन रंगों का संयोजन नहीं है; यह हमारे देश की आत्मा, संस्कृति और गौरव का प्रतीक है। तिरंगे में बसे केसरिया, सफेद और हरे रंग के साथ बीच में घूमता अशोक चक्र, हर भारतीय के दिल में देशभक्ति का ज्वार लाता है। यह न केवल हमारी स्वतंत्रता की कहानी कहता है, बल्कि हर भारतीय को एकजुट करने का भी एक माध्यम है। स्कूल और कॉलेज के छात्र जब तिरंगे पर कविताएं लिखते या पढ़ते हैं, तो वे न केवल अपनी लेखनी को समृद्ध करते हैं, बल्कि अपने भीतर छिपी देशभक्ति को भी उजागर करते हैं। तिरंगे पर कविता लिखकर या पढ़कर हम देश की महानता, बलिदान और संघर्ष को सम्मानित कर सकते हैं। इस लेख में कुछ लोकप्रिय तिरंगा पर कविता (Tiranga Par Kavita) दी गई हैं, जो हम में देशभक्ति की भावना को जीवंत करेंगी।
This Blog Includes:
तिरंगे पर कविता – Poem on Tiranga in Hindi
महान कवियों द्वारा लिखी कुछ चुनिंदा तिरंगे पर कविता (Poem on Tiranga in Hindi) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (झंडा गीत) | श्यामलाल गुप्त ‘पार्षद’ |
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो | कुमार विश्वास |
काश! यह तिरंगा और ऊँचा फहराते | दिनेश देवघरिया |
तिरंगा | श्रीप्रसाद |
तिरंगा | रंजना वर्मा |
तिरंगा | राजेश चेतन |
भारत का झण्डा | मैथिलीशरण गुप्त |
राष्ट्रीय ध्वज | हरिवंशराय बच्चन |
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा (झंडा गीत)
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति बरसाने वाला,
प्रेम सुधा सरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला,
मातृभूमि का तन-मन सारा।। झंडा...।
स्वतंत्रता के भीषण रण में,
लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में,
मिट जाए भय संकट सारा।। झंडा...।
इस झंडे के नीचे निर्भय,
लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय,
स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।। झंडा...।
आओ! प्यारे वीरो, आओ।
देश-धर्म पर बलि-बलि जाओ,
एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।। झंडा...।
इसकी शान न जाने पाए,
चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं,
तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।। झंडा...।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा,
झंडा ऊंचा रहे हमारा।
- श्यामलाल गुप्त 'पार्षद'
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
गीता का ज्ञान सुने ना सुनें, इस धरती का यशगान सुनें
हम सबद-कीर्तन सुन ना सकें भारत मां का जयगान सुनें
परवरदिगार,मैं तेरे द्वार
पर ले पुकार ये आया हूं
चाहे अज़ान ना सुनें कान
पर जय-जय हिन्दुस्तान सुनें
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
- कुमार विश्वास
यह भी पढ़ें: प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ
काश! यह तिरंगा और ऊँचा फहराते
स्वतंत्रता दिवस
कॉलेज जल्द जाना था।
पर, हाय सभी मुसीबतों को आज ही आना था।
पिछ्ले 38 मिनटों से ट्रेन
एक ही स्टेशन पर खड़ी थी,
शायद आगे लाईन में कुछ गड़बड़ी थी।
स्पीच तैयार कर रखी थी,
पिछली तीन रातों से,
अगर वक्त पर न पहुँचा,
तो सर्वश्रेष्ठ वक्ता का पुरस्कार तो गया मेरे हाथों से।
भाषण भी कमाल था
मैंने शब्दों से अपने भारत को खूब सजाया था।
कलम के जादू से अपने देश को हर देश से अनोखा बनाया था।
खैर!
तब तक एक उत्तम विचार दिमाग़ में आया।
क्यों व्यर्थ चिंता में अमूल्य समय बर्बाद करूँ ?
क्यों न दो चार बार भाषण मन ही मन पढ़ूँ?
दो-चार बार के चक्कर में
21 बार पढ़ा,
तब जाके चक्का आगे बढ़ा
थोड़ी ही देर बाद,
एक मधुर तान कानों में आई,
जैसे किसी ने देश-भक्ति की वीणा बजायी।
मुड़कर देखा तो एक भिखारिन
अपने बच्चे के साथ
भीख माँगती हुई आ रही थी।
"मेरे देश की धरती सोना उगले, उगले हीरे मोती"
हॉ, यही गीत, यही गीत
वह गा रही थी।
मेरे तो होश उड़ गए ।
मानो, मेरे भाषण की हर पंक्ति पर
प्रश्न चिह्न लग गए?
वह स्वतंत्रता दिवस मना रही थी,
या गाने का अर्थ समझ नहीं पा रही थी,
या फिर स्वतंत्र भारत का मज़ाक उड़ा रही थी?
मैं कुछ समझ नहीं पा रहा था,
अपने ही सवालों के जाल में
उलझता जा रहा था।
किसी ने दुत्कारा,
किसी ने फटकारा,
किसी ने कटोरे में रुपया,
किसी ने अठन्नी गिरायी।
धीरे-धीरे वह मुझ तक आयी।
मैले-कुचैले कपड़े, भद्दा सा शरीर।
हाथों में कटोरा, आँखों में उम्मीद।
मुझे उसके हालात पर तरस आया।
मैंनें एक दस का नोट
उसके कटोरे में गिराया,
पर मेरे सामने बैठे एक बूढ़े ने जो किया
वह देख कर मैं दंग रह गया।
उसने भिखारन के बच्चे को गोद में उठाया
अपने बगल की सीट पर बैठाया।
एक टॉफ़ी हाथ में दी और
प्यार से उसके सिर पर हाथ फिराया।
बच्चा मुस्कुराया,
भिखारिन की ऑंखों में खुशियों के आँसू आ गए।
जैसे भीख में आज सारा संसार मिल गया।
मुझे लगा,
मेरे दस का नोट 50 पैसे की टॉफ़ी से हार गया।
काश !
हम भी प्यार का मोल समझ पाते,
हर गिरे इंसान को गले लगा पाते,
इंसान को इंसान समझ,
उन्हें जिंदा होने का एहसास दिला पाते,
तो आज
गॉंधी के सपनों से भी ऊँचा भारत बना पाते।
ऐसे ही सवालों के भॅंवर में मैं खो चूका था।
ट्रेन रुकी, घड़ी देखी
तो पूरे सवा घंटे लेट हो चुका था।
दौड़ता हुआ, कॉलेज पहुंचा, पर कार्यक्रम समाप्त।
कैम्पस में केवल तिरंगा लहलहा रहा था।
तिरंगे को देख बार-बार
ये सवाल दिल में आ रहा था।
काश!
आजादी के छह दशक बाद भी
हम इंसान को इंसान से अलग करने वाली हरेक दीवार गिरा पाते।
हर इंसान में खुदा और भगवान देख पाते।
गीता और कुरान से पहले
प्रेम के ढाई अक्षर की व्यापकता को समझ पाते।
तो आज यह तिरंगा
और ऊँचा...और ऊँचा...और ऊँचा फहराते।
पर काश! यह तिरंगा और ऊँचा फहराते।
- दिनेश देवघरिया
यह भी पढ़ें: बसंत पंचमी पर कविता
छूता है आकाश तिरंगा
छूता है आकाश तिरंगा
बादल के है पास तिरंगा
भारत की है आस तिरंगा
भारत के ऊपर छाया है
दूर हवा में लहराया है
सूरज ने आ चमकाया है
हम गाते हैं इसका गाना
‘जन-गण-मन’ है गीत सुहाना
इस झंडे के नीचे आना
जब गुलाम था भारत प्यारा
तब झंडा था यही सहारा
इस झंडे से दुश्मन हारा
हमने इसका गाना गाया
सारा देश उमड़कर आया
उस दिन था दुश्मन थर्राया
कितनों ने ही की कुर्बानी
उनकी है यह ध्वजा निशानी
वे थे सब स्वदेश अभिमानी
हम सबसे है बड़ा तिरंगा
अडिग भाव से खड़ा तिरंगा
सबके मन में चढ़ा तिरंगा।
- श्रीप्रसाद
यह भी पढ़ें: भारतीय संस्कृति की सजीव झलक प्रस्तुत करती रामनरेश त्रिपाठी की कविताएं
तिरंगा
नन्हे हाथों से
थाम कर
राष्ट्रध्वज
कह रही
नन्ही बिटिया
कम न समझना हमें
उन बेटों से
जो बलिदान हो रहे हैं
देश की रक्षा में
दे रहे हैं
अपने प्राण
हंसते हुए जाते हैं
घर से
और लौटते हैं
तिरंगे में लिपट कर ।
हमें भी प्यारा है
देश का सम्मान
उसकी आन
देने को तत्पर हैं
अपनी जान
इसीलिए
हाथ मे है
तिरंगा
हमारा निशान
हमारी जान
हमारा सम्मान ....
- रंजना वर्मा
यह भी पढ़ें: दुष्यंत कुमार की कविताएं, जो आपको प्रेरित करेंगी
ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है
ये तिरंगा ये तिरंगा ये हमारी शान है
विश्व भर में भारती की ये अमिट पहचान है
ये तिरंगा हाथ में ले पग निरन्तर ही बढ़े
ये तिरंगा हाथ में ले दुश्मनों से हम लड़े
ये तिरंगा दिल की धड़कन ये हमारी जान है
ये तिरंगा विश्व का सबसे बडा जनतन्त्र है
ये तिरंगा वीरता का गूँजता इक मन्त्र है
ये तिरंगा वन्दना है भारती का मान है
ये तिरंगा विश्व जन को सत्य का संदेश है
ये तिरंगा कह रहा है अमर भारत देश है
ये तिरंगा इस धरा पर शांति का संधान है
इसके रेशों में बुना बलिदानियों का नाम है
ये बनारस की सुबह है, ये अवध की शाम है
ये तिरंगा ही हमारे भाग्य का भगवान है
ये कभी मंदिर कभी ये गुरूओं का द्वारा लग
चर्च का गुम्बद कभी मस्जिद का मिनारा लगे
ये तिरंगा धर्म की हर राह का सम्मान है
ये तिरंगा बाईबल है भागवत का श्लोक है
ये तिरंगा आयत-ए-कुरआन का आलोक है
ये तिरंगा वेद की पावन ॠचा का ज्ञान है
ये तिरंगा स्वर्ग से सुंदर धरा कश्मीर है
ये तिरंगा झूमता कन्याकुमारी नीर है
ये तिरंगा माँ के होठों की मधुर मुस्कान है
ये तिरंगा देव नदियों का त्रिवेणी रूप है
ये तिरंगा सूर्य की पहली किरण की धूप है
ये तिरंगा भव्य हिमगिरि का अमर वरदान है
शीत की ठण्डी हवा, ये ग्रीष्म का अंगार है
सावनी मौसम में मेघों का छलकता प्यार है
झंझावातों में लहरता ये गुणों की खान है
ये तिरंगा लता की इक कुहुकती आवाज है
ये रवि शंकर के हाथों में थिरकता साज है
टैगोर के जनगीत जन गण मन का ये गुणगान है
ये तिंरगा गांधी जी की शांति वाली खोज है
ये तिरंगा नेता जी के दिल से निकला ओज है
ये विवेकानंद जी का जगजयी अभियान है
रंग होली के हैं इसमें ईद जैसा प्यार है
चमक क्रिशमिस की लिये यह दीप सा त्यौहार है
ये तिरंगा कह रहा- ये संस्कृति महान है
ये तिरंगा अन्देमानी काला पानी जेल है
ये तिरंगा शांति औ’ क्रांति का अनुपम मेल है
वीर सावरकर का ये इक साधना संगान है
ये तिरंगा शहीदों का जलियांवाला बाग है
ये तिरंगा क्रांति वाली पुण्य पावन आग है
क्रांतिकारी चन्द्रशेखर का ये स्वाभिमान है
कृष्ण की ये नीति जैसा राम का वनवास है
आद्य शंकर के जतन सा बुद्ध का सन्यास है
महावीर स्वरूप ध्वज ये अहिंसा का गान है
रंग केसरिया बताता वीरता ही कर्म है
श्वेत रंग यह कह रहा हें, शांति ही धर्म है
हरे रंग के स्नेह से ये मिट्टी ही धनवान है
ऋषि दयानंद के ये सत्य का प्रकाश है
महाकवि तुलसी के पूज्य राम का विश्वास है
ये तिरंगा वीर अर्जुन और ये हनुमान है
- राजेश चेतन
यह भी पढ़ें: बेटियों के प्रति सम्मान के भाव को व्यक्त करती बालिका दिवस पर कविता
राष्ट्रीय ध्वज पर कविता – Tiranga Par Kavita
राष्ट्रीय ध्वज पर कविता (Tiranga Par Kavita) पढ़कर आप तिरंगे का महत्व जान पाएंगे, साथ ही इसका सम्मान भी करेंगे। तिरंगा पर कविता निम्नलिखित हैं –
भारत का झण्डा
भारत का झण्डा फहरै।
छोर मुक्ति-पट का क्षोणी पर,
छाया काके छहरै॥
मुक्त गगन में, मुक्त पवन में,
इसको ऊँचा उड़ने दो।
पुण्य-भूमि के गत गौरव का,
जुड़ने दो, जी जुड़ने दो।
मान-मानसर का शतदल यह,
लहर लहर का लहरै।
भारत का झण्डा फहरै॥
रक्तपात पर अड़ा नहीं यह,
दया-दण्ड में जड़ा हुआ।
खड़ा नहीं पशु-बल के ऊपर,
आत्म-शक्ति से बड़ा हुआ।
इसको छोड़ कहाँ वह सच्ची,
विजय-वीरता ठहरै।
भारत का झण्डा फहरै॥
इसके नीचे अखिल जगत का,
होता है अद्भुत आह्वान!
कब है स्वार्थ मूल में इसके ?
है बस, त्याग और बलिदान॥
ईर्षा, द्वेष, दम्भ; हिंसा का,
हदय हार कर हहरै।
भारत का झण्डा फहरै॥
पूज्य पुनीत मातृ-मन्दिर का,
झण्डा क्या झुक सकता है?
क्या मिथ्या भय देख सामने,
सत्याग्रह रुक सकता है?
घहरै दिग-दिगन्त में अपनी
विजय दुन्दभी घहरै।
भारत का झण्डा फहरै॥
- मैथिलीशरण गुप्त
यह भी पढ़ें: सुमित्रानंदन पंत की वो महान कविताएं, जो आपको जीने का एक मकसद देंगी
राष्ट्रीय ध्वज
नागाधिराज श्रृंग पर खडी हुई,
समुद्र की तरंग पर अडी हुई,
स्वदेश में जगह-जगह गडी हुई,
अटल ध्वजा हरी,सफेद केसरी!
न साम-दाम के समक्ष यह रुकी,
न द्वन्द-भेद के समक्ष यह झुकी,
सगर्व आस शत्रु-शीश पर ठुकी,
निडर ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
चलो उसे सलाम आज सब करें,
चलो उसे प्रणाम आज सब करें,
अजर सदा इसे लिये हुये जियें,
अमर सदा इसे लिये हुये मरें,
अजय ध्वजा हरी, सफेद केसरी!
- हरिवंशराय बच्चन
यह भी पढ़ें: देश पर लिखी गई प्रसिद्ध कविताओं का संग्रह
संबंधित आर्टिकल
आशा है कि आपको इस लेख में तिरंगा पर कविता (Tiranga Par Kavita, Poem on Tiranga in Hindi) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।