हिंदी व्याकरण मेंं जैसे संज्ञा, सर्वनाम, कारक, विशेषण जितने महत्वपूर्ण हैं ठीक उसी प्रकार Chhand क्या होता है, छंद की परिभाषा (chhand ki paribhasha), छंद के भेद, छंद के उदाहरण (chhand ke Udaharan) भी भाषा के तौर पर काफी महत्वपूर्ण माने जाते हैं। छंद स्कूली और प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिकतर पूछे जाने वाला विषय है। आइए इस ब्लॉग में chhand के बारे में विस्तार से जानते हैं।
विषय | छंद (chhand) |
छंद के अंग | चरण/पद, वर्ण और मात्राएँ, गति, यति, तुक, गण, |
छंद के प्रकार | मात्रिक छंद, वर्णिक छंद, वर्णिक वृत छंद, उभय छंद, मुक्त या स्वच्छन्द छंद। |
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छंद की परिभाषा
अक्षर, अक्षरों की संख्या, मात्रा, गणना, यति, गति को क्रमबद्ध तरीके से लिखना chhand कहलाती हैं। जैसे – चौपाई, दोहा, शायरी इत्यादि। छंद शब्द ‘चद’ धातु से बना है जिसका अर्थ होता है – खुश करना। छंद में पहले चार चरण हुआ करते हैं। तुक छंद की आत्मा होती है- यही हमारी आनंद-भावना को प्रेरित करती है।
छन्दों का विवेचन
Chhand का विवेचन इस प्रकार है:
- इन्द्रवज्रा
- उपेन्द्रवज्रा
- वसन्ततिलका
- मालिनी मजुमालिनी
- मन्दाक्रान्ता
- शिखरिणी
- वंशस्थ
- द्रुतविलम्बित
- मत्तगयन्द (मालती)
- सुन्दरी सवैया
छन्द का सबसे पहले उपयोग ऋग्वेद में मिलता हैं।
छंद के उदाहरण
Chhand के उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
I I IISI SI II SII
जय हनुमान ग्यान गुन सागर।
II ISI II SI ISII
जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।
SI SI IIII IISS
राम दूत अतुलित बलधामा।
SII SI III II SS
अंजनि पुत्र पवन सुत नामा।
II II SS III SI SSI III S
नित नव लीला ललित ठानि गोलोक अजिर में।
III SIS SI SI II SI III S
रमत राधिका संग रास रस रंग रुचिर में। ।
IIS IS S SIS S SI II S II IS
कहते हुई यों उत्तरा के नेत्र जल से भर गये।
II S IS S SI SS S IS SII IS
हिम के कणों से पूर्ण मानो हो गये पंकज नये।
SS II SS IS SS SII SI
मेरी भव बाधा हरो, राधा नागर सोय।
S II S SS IS SI III II SI
जा तन की झाई परे, स्याम हरित दुति होय। ।
SI SI II SI IS III IIS III
कुंद इंदु सम देह, उमा रमन करुना अयन।
SI SI II SI III IS SII III
जाहि दीन पर नेह, करहु कृपा मर्दन मयन॥
SS IIS SI S IIS I SS SI
साईं अपने भ्रात को, कबहुं न दीजै त्रास।
पलक दूर नहिं कीजिये, सदा राखिये पास।
सदा राखिये पास, त्रास, कबहु नहिं दीजै।
त्रास दियौ लंकेश ताहि की गति सुन लीजै।
कह गिरिधर कविराय, राम सों मिलिगौ जाई।
पाय विभीशण राज, लंकपति बाजयो साईं।
SI ISII SI SIII SS SS
IS ISI ISI I IIS II S II S
जहाँ स्वतंत्र विचार न बदले मन में मुख में।
सब को जहाँ समान निजोन्नति का अवसर हो।
शांतिदायिनी निशा हर्ष सूचक वासर हो।
सब भाँति सुशासित हों जहाँ समता के सुखकर नियम।
II SI ISII S IS IIS S IIII III
छंद के अंग
Chhand के अंग इस प्रकार हैं:
चरण/पद
छंद में प्रत्येक पक्तियों में को चरण/पद/पाद कहते हैं। पहले और तीसरे चरण को विषम चरण और दूसरे और चौथे चरण को समचरण कहा जाता है। हर पद में वर्ण, मात्राएँ निश्चित रहती हैं। कुछ पदों में चार चरण तो होते हैं लेकिन वो दो पक्तियों में लिखे जाते हैं।
उदाहरण
धन्य जनम जगती-तल तासू।
पितहि प्रमोद चरति सुनि जासू।।
चारि पदारथ कर-तल ताके।।
प्रिय पितु-मात प्रान-सम सके।।
कुछ चरण छः छः पक्तियों में लिखे जाते हैं। ऐसे छंद दो योग्य से बनते हैं कुण्डलिया, छप्पय।
उदाहरण
प्रभु ने तुम को कर दान किये।
सब वांछित-वस्तु-विधान किये।।
तुम प्राप्त करो उनको न अहो!।
फिर है किसका यह दोष, कहो!।
समझो न अलभ्य किसी धन को।
नर हो, न निराश करो मन को।।
इस रचना में छंद के छह चरण हैं। प्रत्येक में 12-12 वर्ण है।
वर्ण और मात्राएँ
मुख से निकली ध्वनि को बताने के लिए निश्चित किए गए वर्ण कहलाते हैं। वर्ण दो प्रकार के होते हैं-
- ह्रस्व (लघु) वर्ण
- दीर्घ वर्ण/ गुरु
1. ह्रस्व (लघु) वर्ण: लघु वर्ण एक-एक मात्रा है, जैसे -अ, इ, उ, क, कि, कु। इसको (|) से प्रदर्शित करते हैं।
- संयुक्ताक्षर स्वयं लघु होते हैं। यदि जोर न लगाना पड़े तो वह लघु ही माने जाएंगे, जैसे : तुम्हारा में ’तु’ को पढ़ने में उस पर जोर नहीं पड़ता। अतः उसकी एक ही मात्रा (लघु) होगी।
- चन्द्रबिन्दुवाले वर्ण लघु या एक मात्रावाले माने जाते हैं;हँसी में ’हँ’ वर्ण लघु है|
- ह्रस्व मात्राओं से युक्त सभी वर्ण लघु ही होते हैं; जैसे–कि, कु आदि।
2. दीर्घ वर्ण / गुरु: दीर्घ वर्ण में दो मात्राएं होती हैं, लघु की तुलना में दुगनी मात्रा रखता है। जिन्हें (S) से प्रदर्शित करते हैं।आ ई ऊ ऋ ए ऐ ओ औ ’गुरु’ वर्ण हैं।
- संयुक्ताक्षर से पूर्व के लघु वर्ण दीर्घ होते हैं, यदि उन पर भार पड़ता है। जैसे- सत्य में ’स’, मन्द में ’म’ और व्रज में ’व’ गुरु है।
- अनुस्वार से युक्त होने पर, जैसे-कंत, आनंद में ‘कं’ और ‘न’।
- विसर्गवाले वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे- दुःख में ’दुः’ और निःसृत में ’निः’ गुरु है।
- दीर्घ मात्राओं से युक्त वर्ण दीर्घ माने जाते हैं; जैसे-कौन, काम, कैसे आदि।
गति
छंद को पढ़ते समय एक प्रकार की लय होती है इसे ही गति कहते हैं। गति की आवकश्यता वर्ण छंदो के मुकाबले मात्रिक छंदो में है। मात्राओं की संख्या ठीक होने पर भी गति में बाधा उत्पन्न हो सकती है |
यति
छंदो के बीच बीच में विराम लेनी की स्थति को यति कहते हैं। इनके लिए (,) , (1) , (11) , (?) , (!) चिन्ह निर्धारित होते हैं। हर छंद में बीच में रुकने के लिए कुछ स्थान निश्चित होते हैं इसी रुकने को विराम या यति कहा जाता है।
तुक
छंद में समान स्वर व्यंजन की स्थापन तुक कहलाती है। यह तुकांत और अतुकांत दो प्रकार की होती है।
जैसे :- ” हमको बहुत ई भाती हिंदी। हमको बहुत है प्यारी हिंदी।”
“काव्य सर्जक हूँ
प्रेरक तत्वों के अभाव में
लेखनी अटक गई हैं
काव्य-सृजन हेतु
तलाश रहा हूँ उपादान।”
गण
तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। गणों के आठ भेद हैं। उनके नाम, लक्षण, रूप और उदाहरण नीचे दिए गए हैं-
क्र.स. | नाम | लक्षण | रूप | उदाहरण | उदाहरण |
1. | मगण | तीनों गुरु | ऽऽऽ | मातारा | सावित्री |
2. | नगण | तीनों लघु | ।।। | नसल | अनल |
3. | भगण | आदि गुरु | ऽ।। | मानस | शंकर |
4. | जगण | मध्य गुरु | ।ऽ। | जभान | गणेश |
5. | सगण | अन्त्य गुरु | ।।ऽ | सलगा | कमला |
6. | यगण | आदि लघु | ।ऽऽ | यमाता | भवानी |
7. | रगण | मध्य लघु | ऽ।ऽ | राजभा | भारती |
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छंद के प्रकार और उदाहरण
Chhand मुख्यतः 4 प्रकार के होते हैं, जैसे-
- मात्रिक छंद
- वर्णिक छंद
- वर्णिक वृत छंद
- उभय छंद
- मुक्त या स्वच्छन्द छंद
मात्रिक Chhand की परिभाषा
मात्रिक छन्दों में केवल मात्राओं की व्यवस्था होती है किंतु लघु और गुरु का क्रम निर्धारित नहीं होता हैं। इनमें चौपाई, रोला, दोहा, सोरठा आदि मुख्य हैं।
- दोहा छंद
- सोरठा छंद
- रोला छंद
- गीतिका छंद
- हरिगीतिका छंद
- उल्लाला छंद
- चौपाई छंद
- बरवै (विषम) छंद
- छप्पय छंद
- कुंडलियाँ छंद
- दिगपाल छंद
- आल्हा या वीर छंद
- सार छंद
- तांटक छंद
- रूपमाला छंद
- त्रिभंगी छंद
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मात्रिक Chhand के प्रकार
मात्रिक छंद भी 3 प्रकार के होते हैं-
- सम मात्रिक छंद
- अर्धसम मात्रिक छंद
- विषम मात्रिक छंद
प्रमुख मात्रिक छंद
- चौपई छंद:
यह एक मात्रिक छंद होता है। प्रत्येक चरण के अन्त में जगण या तगण आना वर्जित माना जाता है। चरण के अंत में गुरु या लघु नहीं होता है |
जैसे :- (i) ll ll Sl lll llSS
“इहि विधि राम सबहिं समुझावा
गुरु पद पदुम हरषि सिर नावा।”
जय हनुमान ज्ञान गुन सागर,
।। ।।ऽ। ऽ। ।। ऽ।।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर।
।। ।ऽ। ।। ऽ। ।ऽ।।
2. सोरठा छंद:
ये दोहा छंद के उलट होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 11-11 तथा दूसरे और चौथे चरण में 13-13 मात्राएँ होती हैं।इसके सम चरणों के आरम्भ में जगण आना वर्जित माना जाता है जबकि विषम चरणों के अंत में एक लघु वर्ण आना आवश्यक है।यह अर्द्धसम मात्रिक छंद होता है।
जैसे :-
कपि करि हृदय विचार, दीन्हि मुद्रिका डारि तब।
।। ।। ।।। ।ऽ। ऽ। ऽ।ऽ ऽ। ।।
जनु असोक अंगार, लीन्हि हरषि उठिकर गहउ।।
।। ।ऽ। ऽऽ। ऽ। ।।। ।।।। ।।।
3. हरिगीतिका:
यह मात्रिक छंद होता है। इसमें चार चरण होते हैं। इसके हर चरण में 16 और 12 के क्रम से 28 मात्राएँ होती हैं। इसके अंत में लघु गुरु का प्रयोग अधिक प्रसिद्ध है। लघु लागि विधि की निपुणता, अवलोकि पुर सोभा सही।
जैसे :-
।। ऽ। ।। ऽ ।।।ऽ ।।ऽ। ।। ऽऽ ।ऽ
वन बाग कूप तङाग सरिता, सुभग सब सक को कहीं
।। ऽ। ऽ। ।ऽ। ।।ऽ ।।। ।। ।। ऽ ।ऽ
मंगल विपुल तोरण पताका, केतु गृह गृह सोहहीं
ऽ।। ।।। ऽ।। ।ऽऽ ऽ। ।। ।। ऽ।ऽ
वनिता पुरुष सुन्दर चतुर छवि, देखि मुनि मन मोहहीं
।।ऽ ।।। ऽ।। ।।। ।। ऽ। ।। ।। ऽ।ऽ
.4. दोहा छंद:-
यह अर्धसममात्रिक छंद होता है। ये सोरठा छंद के विपरीत होता है। इसमें पहले और तीसरे चरण में 13-13 तथा दूसरे और चौथे चरण में 11-11 मात्राएँ होती हैं। इसमें चरण के अंत में लघु (1) होना जरूरी होता है।
जैसे :-
जहां मंथरा की तरह, बसते दासी-दास।
आज्ञा-पालक राम को, मिलता है वनवास।।
5. द्रुतविलम्बित छंद:
यह वर्णिक सम छंद होता है। इसमें यति प्रत्येक चरण के अन्त में होती है। इसके प्रत्येक चरण में 12 वर्ण होते है, जो क्रमशः नगण, भगण व रगण के रूप में लिखे जाते हैं।
जैसे :-
दिवस का अवसान समीप था,
।।। ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ऽ
गगन था कुछ लोहित हो चला
।।। ऽ ।। ऽ।। ऽ ।ऽ
तरु शिखा पर थी अब राजती,
।। ।ऽ ।। ऽ ।। ऽ।ऽ
कमलिनी कुल बल्लभ की प्रभा
।।।ऽ ।। ऽ।। ऽ ।ऽ
6. सवैया छंद:
यह वर्णिक सम छंद होता है। इसके प्रत्येक चरण में 22 से लेकर 26 तक वर्ण होते हैं। वर्णों की संख्या एवं गणों की प्रकृति के आधार पर इस छंद के ग्यारह भेद किये जाते हैं।
सवैया के ग्यारह भेद –
“लोरी सरासन संकट कौ,
सुभ सीय स्वयंवर मोहि बरौ।
नेक ताते बढयो अभिमानंमहा,
मन फेरियो नेक न स्न्ककरी।
सो अपराध परयो हमसों,
अब क्यों सुधरें तुम हु धौ कहौ।
बाहुन देहि कुठारहि केशव,
आपने धाम कौ पंथ गहौ।।”
जैसे :-
हिये वनमाल रसाल धरे सिर मोर किरीट महा लसिबो
।ऽ ।।ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।। ऽ। ।ऽ। ।ऽ ।।ऽ
जगण + 1 लघु + गुरु = सुमुखी सवैया
7. कवित्त (मनहरण कवित्त) छंद”-
इसके प्रत्येक चरण में 31 वर्ण होते है| इसमें यति क्रमशः 16 व 15 वर्णों पर अथवा 8,8,8, व 7 वर्णों पर होती है।
जैसे :
इन्द्र जिमि जंभ पर, बाडव सुअंभ पर
रावण संदभ पर रघुकुल राज है।
पौन वारिवाह पर संभु रतिनाह पर
ज्यों सहस्त्र बाहु पर राम द्विजराज है।
दावा दु्रमदंड पर चीता मृग झुंड पर
भूषण वितुण्ड पर जैसे मृगराज है।
तेज तम अंस पर कान्ह जिमि कंस पर
त्यों मलेच्छ वंस पर सेर सिवराज है।
8. मालिनी छंद –इसके प्रत्येक चरण में 15 वर्ण होते है, जो क्रमशः नगण, नगण, मगण, यगण, यगण के रूप में लिखे जाते है।
जैसे :
प्रभुदित मथुरा के मानवों को बना के,
सकुशल रह के औ विध्न बाधा बचाके।
निज प्रिय सूत दोनों , साथ ले के सुखी हो,
जिस दिन पलटेंगे, गेह स्वामी हमारे।।
9. वर्णिक छंद
वर्णिक छन्दों की गणना ‘गण’ के क्रमानुसार की जाती है। सभी चरणों की संख्या समान होती है ,इनमें गुरु-लघु का क्रम निश्चित नहीं होता| इनके दो भेद हैं–साधारण और दण्डक। 1 से 26 तक वर्णवाले छन्द ‘साधारण’ और 26 से अधिक वर्णवाले छन्द ‘दण्डक’ होते हैं।जिनमे वर्णों की संख्या , क्रम , गणविधान , लघु-गुरु के आधार पर रचना होती है।छंदों के पुनः तीन प्रकार होते हैं-
1.सम छंद:
समस्त चरणों में मात्राओं (या वर्णों) की संख्या बराबर होती है। जैसे- चौपाई और वंशस्थ।
2.अर्धसम छंद :-
दो-दो चरणों में मात्राओं (या वर्णों) की संख्या बराबर होती है। जैसे- दोहा और वियोगिनी।
3.विषम छंद:- चार से अधिक (छह आदि) चरणों वाले छंदों को भी विषम छंद कहा जाता है। जैसे- छप्पय और कुण्डलिया।
चौपाई छंद के नियम
Chhand पहचानने के तरीके कुछ इस प्रकार हैं:
चौपाई छंद के प्रत्येक चरण में 16 मात्राएं होती है।
- चौपाई छंद में अंतिम दो वर्ण की मात्राएं ( S I ) नहीं होती है।
- चौपाई छंद में चरण के अंत में जगण ( I I S ) अथवा
- तगण ( S I I ) नहीं होना चाहिए।
स्पष्टीकरण
बिनु पग चले सुने बिनु काना।
I I I I I S I S I I S S = 16 मात्राएं
इसी प्रकार सभी चरणों मे 16 मात्राएं है तो यहाँ पर चौपाई छंद है।
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MCQs
(क) द्रुत विलम्बित
(ख) सवैया
(ग) छप्पय
(घ) कवित्त।
उत्तर: (क) द्रुत विलम्बित
(क) 24
(ख) 26
(ग) 28
(घ) 23
उत्तर: (ख) 26
(क) मात्रिक सम
(ख) मात्रिक विषम
(ग) वर्णिक सम
(घ) वर्णिक विषम।
उत्तर: (ग) वर्णिक सम
(क) छन्द की लय को
(ख) छन्द की पंक्ति में आए विराम को
(ग) मात्राओं के समूह को
(घ) गणों को।
उत्तर: (ख) छन्द की पंक्ति में आए विराम को
(क) जिसकी सभी पंक्तियों में समान मात्राएँ हों
(ख) जिसकी पंक्तियों में असमान मात्राएँ हों।
(ग) जिसके किसी चरण में मात्राओं तथा अन्य में वर्णित का नियम हो
(घ) जिसका अर्थ समझना सरल न हो।
उत्तर: (ख) जिसकी पंक्तियों में असमान मात्राएँ हों।
(क) कुण्डली
(ख) सवैया
(ग) कवित्त
(घ) छप्पय।
उत्तर: (घ) छप्पय।
(क) स गण, म गण, मगण, र गण
(ख) य गण, न गण, स गण, म गण
(ग) न गण, म गण, मगण, रगण
(घ) स गण, स गण, र गण, रगण।
उत्तर: (ग) न गण, म गण, मगण, रगण
(क) मात्रिक छंदों में वर्गों का ध्यान रखा जाता है
(ख) मात्रिक छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है
(ग) वर्णिक छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है
(घ) विषम छंदों के सभी चरणों में मात्रायें समान होती हैं।
उत्तर: (ख) मात्रिक छंदों में मात्राओं की गणना की जाती है
(क) एक ही होता है
(ख) अलग-अलग होते हैं
(ग) अन्तिम शब्द पहले शब्द का पर्यायवाची होता है
(घ) अन्तिम शब्द पहले शब्द का विलोम होता है।
उत्तर: (क) एक ही होता है
(क) द्रुत विलम्बित
(ख) वंशस्थ
(ग) सवैया
(घ) हरि गीतिका।
उत्तर: (घ) हरि गीतिका।
ऋग्वेद
छंद के 7 अंग है –
चरण , पाद ,पद
वर्ण और माला
गण
गति
यति ,विराम
संख्या ,क्रम
तुक
चरण के अंत में
कुण्डलिया
दोहा
सम मात्रिक छंद
दोहा
Worksheet
FAQs
छंदों के कुछ प्रकार नीचे दिए गए हैं-
1. दोहा
2. दोही
3. रोला
4. सोरठा
5. चौपाई
6. कुण्डलिया
7. गीतिका (छंद)
8. हरिगीतिका
छंद के निम्नलिखित अंग होते हैं, जैसे-
1. प्रमुख मात्रिक छंद
2. सम मात्रिक छंद
3. अर्द्धसम मात्रिक छंद
4. विषम मात्रिक छंद
5. प्रमुख वर्णिक छंद
चरण छन्द कुछ पंक्तियों का समूह होता है और प्रत्येक पंक्ति में समान वर्ण या मात्राएँ होती हैं। इन्हीं पंक्तियों को ‘चरण’ या ‘पाद’ कहते हैं। प्रथम व तृतीय चरण को ‘विषम’ तथा दूसरे और चौथे चरण को ‘सम’ कहते हैं। वर्ण ध्वनि की मूल इकाई को ‘वर्ण’ कहते हैं।
इस छंद के विषम चरणों में (प्रथम और तृतीय) 13-13 मात्राएँ तथा सम चरणों (द्वितीय व चतुर्थ) में 11-11 मात्राएँ होती हैं।
मात्रा की गणना के आधार पर की गयी पद की रचना को मात्रिक छंद कहते हैं। अथार्त जिन छंदों की रचना मात्राओं की गणना के आधार पर की जाती है उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं। जिनमें मात्राओं की संख्या , लघु -गुरु , यति -गति के आधार पर पद रचना की जाती है उसे मात्रिक छंद कहते हैं।
दोहे को उल्टा करने से ‘सोरठा’ छंद बन जाता है।
जिन छंदों में मात्र और वर्ण दोनों की समानता एक साथ पाई जाती है, उन्हें उभय छंद कहते हैं।
हिंदी व्याकरण – Leverage Edu के साथ संपूर्ण हिंदी व्याकरण सीखें
उम्मीद है आपको इस ब्लॉग से chhand के बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिली होगी। यदि आप विदेश में पढ़ना चाहते हैं तो हमारे Leverage Edu के एक्सपर्ट्स से 1800 572 000 पर कॉल करके आज ही 30 मिनट का फ्री सेशन बुक करें।
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6 comments
बहुत बढ़िया जानकारी
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