रस का शाब्दिक अर्थ है निचोड़। जब भी हम किसी कविता, नाटक, फिल्म के बारे में बोल रहे या सुन रहे हो उससे जो आनंद मिलता है उसे “रस” कहते है। Ras Hindi grammar class 10 का सिद्धांत बहुत पुराना है रस को काव्य की आत्मा माना जाता है, जैसे बिना आत्मा के शरीर का कोई अस्तित्व नहीं है उसकी तरह काव्य भी रस के बिना निर्जीव है। आइए विस्तार से जानते हैं रस हिंदी व्याकरण कक्षा 10 के बारे में।
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रस की परिभाषा
रस का शाब्दिक अर्थ है ‘आनन्द’। काव्य को पढ़ने या सुनने से जिस आनन्द की अनुभूति होती है, उसे ‘रस’ कहा जाता है। रस का सम्बन्ध ‘सृ’ धातु से माना गया है। जिसका अर्थ है – जो भाव हृदय में बहता है उसी को रस कहते है। रस को ‘काव्य की आत्मा’ या ‘प्राण’ माना जाता है।
जैसे-
“उस काल मारे क्रोध के, तन काँपने उसका लगा।
मानों हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।”
भरतमुनि द्वारा रस की परिभाषा
सबसे पहले भरतमुनि ने “नाट्यशास्त्र ” में काव्य रस के बारे में उल्लेख किया था। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। विभावानुभावव्यभिचारिसंयोगाद्रसनिष्पत्तिः अर्थात् विभाव, अनुभाव तथा व्यभिचारी भाव के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। इस प्रकार काव्य पढ़ने, सुनने या अभिनय देखने पर विभाव आदि के संयोग से उत्पन्न होने वाला आनन्द ही ‘रस’ है। उन्होंने अपने ‘नाट्यशास्त्र’ में रस के आठ प्रकारों का वर्णन किया है। Ras Hindi Grammar Class 10 के इस ब्लॉग में आइए रस के बारे में विस्तार से जानें।
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रस के अंग
Ras Hindi Grammar Class 10 में चार अंग होते है जो इस प्रकार हैं:
1. स्थायी भाव
हृदय में मूल्य रूप से उत्पन्न हुए भाव दीर्घकाल तक रहने वाले भाव को स्थायी भाव कहते है। इन भावों को नौ स्थायी भावों में विभाजित किया है पर वत्सल भाव को शामिल करने पर इनकी संख्या दस मानी जाती है। ये स्थायीभाव रस इस प्रकार हैं –
2. विभाव
स्थायी भाव जिसके कारण जागृत होते है उसे विभाव कहते है। विभाव में दो प्रकार होते हैं।
(i) आलम्बन विभाव– आलम्बन का अर्थ होता है “सहारा” जिस चीज़ का सहारा लेकर भाव जगे उसे आलम्बन विभाव कहते है। आलम्बन विभाव दो प्रकार में विभाजित किया है।
- आश्रयालंबन: जिसके मन में किसी विशेष भाव जगे उसे आश्रयालंबन कहते है।
- विषयालंबन: जिसके प्रति या जिसके कारण मन में भाव जगे वह विषयालंबन कहलाता है|उदाहरण : यदि राम के मन में सीता के प्रति प्रेम का भाव जगता है तो राम आश्रय होंगे और सीता विषय।
(ii) उद्दीपन विभाव– वो परिस्थिति जिसे देखकर स्थायी भाव जागृत होते है वह उद्दीपन विभाव कहलाता है। अभिनेत्री को देखर अभिनेता के मन में आकर्षण(रति भाव ) का भाव जागृत होता है। अभिनेत्री की शारीरिक चेष्टाएँ और पहाड़ो का सुन्दर दृश्य अभिनेता के मन में आकर्षण का भाव उत्पन्न करता है और सुहावन मौसम उसे तीव्रता लाता है। इसमें अभिनेत्री की शारीरिक चेष्टाएँ और पहाड़ो का सुहावना मौसम को उद्दीपन विभाव कहा जाएगा।
3.अनुभव
मन के भाव व्यक्त करने के लिए शरीर के विकार उत्पन्न होता है उसे अनुभव कहते है। इसकी संख्या 8 होती है। जैसे-चुटकुला सुनकर हँस पड़ना, तालियाँ बजाना आदि चेष्टाएँ अनुभाव हैं।
- स्तंभ
- स्वेद
- रोमांच
- स्वर-भंग
- कम्प
- विवर्णता (रंगहीनता)
- अश्रु
- प्रलय (संज्ञाहीनता/निश्चेष्टता)
4. संचारी भाव
मन में विचरण करने वाले भावों को संचारी या व्यभिचारी भाव कहते हैं, ये भाव पानी के बुलबुलों के सामान उठते और विलीन हो जाने वाले भाव होते हैं। मन में विचरण करने वाले संचारी भावों की कुल संख्या 33 मानी गई है-
- हर्ष
- विषाद
- त्रास (भय/व्यग्रता)
- लज्जा
- ग्लानि
- चिंता
- शंका
- असूया (दूसरे के उत्कर्ष के प्रति असहिष्णुता)
- अमर्ष (विरोधी का अपकार करने की अक्षमता से उत्पत्र दुःख)
- मोह
- गर्व
- उत्सुकता
- उग्रता
- चपलता
- दीनता
- जड़ता
- आवेग
- निर्वेद (अपने को कोसना या धिक्कारना)
- घृति (इच्छाओं की पूर्ति, चित्त की चंचलता का अभाव)
- मति
- बिबोध (चैतन्य लाभ)
- वितर्क
- श्रम
- आलस्य
- निद्रा
- स्वप्न
- स्मृति
- मद
- उन्माद
- अवहित्था (हर्ष आदि भावों को छिपाना)
- अपस्मार (मूर्च्छा)
- व्याधि (रोग)
- मरण
नोट – रस के प्रवर्तक भरतमुनि नाटक में 8 रस है, इसमें शांत रस नहीं होता , काव्य में 9 रस होते हैं जिन्हें नवरस कहते है इसमें शांत रस शामिल है अधिकतर साहित्यकार 11 मानते है वत्सल और भक्ति रस को हम श्रृंगार में शामिल करते है।
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रस के प्रकार
Ras Hindi Grammar Class 10 में रस के 10 प्रकार दिए गए हैं-
- श्रृंगार रस
- हास्य रस
- करूण रस
- रौद्र रस
- वीर रस
- भयानक रस
- बीभत्स रस
- अदभुत रस
- शान्त रस
- वत्सल रस
1. श्रृंगार रस
जब आपके मन में प्रेम की भावना जागती है इसका वर्णन श्रृंगार रस है। श्रृंगार रस को रसराज या रसपति कहा गया है। श्रृंगार रस का स्थायी भाव रति हैं। नायक और नायिका का प्रेम होकर श्रृंगार रस रूप मे परिणत होता हैं।
उदाहरण –
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ
तू किसी रेल-सी गुज़रती है
मैं किसी पुल-सा थरथराता हूँ।
श्रृंगार के दो भेद होते हैं।
संयोग श्रृंगार– जब प्रेमी और प्रेमिका के बीच परस्पर मिलन, स्पर्श आदि तब संयोग श्रृंगार रस होता है।
उदाहरण –
बतरस लालच लाल की, मुरली धरी लुकाय।
सौंह करै भौंहनि हँसै, दैन कहै नहि जाय। (बिहारी)
वियोग श्रृंगार- जहां प्रेमी और प्रेमिका के बिछड़ने का वर्णन हो उसे वियोग श्रृंगार कहते है।
उदाहरण –
राम के रूप निहारति जानकी, कंगन के नग की परछाई।
याते सबै सुधि भूलि गई, कर टेकि रही पल टारत नाहीं।।”
2. वीर रस
वीरता का कोई चित्र या मन में जोश भर देने वाली कोई काव्य रचना जिससे उत्साह भाव व्यक्त हो और कुछ वीरता पूर्ण कृत्य करने का मन हो।
उदाहरण –
रस बताइए मैं सत्य कहता हूं सखे सुकुमार मत जानो
मुझे यमराज से भी युद्ध को प्रस्तुत सदा मानो मुझे||
3. हास्य रस
जब किसी व्यक्ति या वस्तु को देखकर असाधारण बात, वस्त्र देखकर मन में हस भाव उत्पन्न हो उसे हास्य रस कहते है।
उदाहरण –
काहू न लखा सो चरित विशेखा । जो स्वरूप नृप कन्या देखा ।
मरकट बदन भयंकर देही। देखत हृदय क्रोध भा तेही ॥
जेहि दिसि बैठे नारद फूली। सो दिसि तेहि न बिलोकी भूली ॥
पुनि-पुनि उकसहिं अरु अकुलाही। देखि दसा हर-गन मुसुकाही ॥
4. करुण रस
इसमें किसी अपने से दूर चले जाने का जो दुख उत्पन्न होता उसे करुण रस कहते है। वियोग श्रृंगार में भी दुःख का भाव है लेकिन उसमें दूर जाने के बाद दुबारा मिलने की आशा रहती है।
उदाहरण –
रही खरकती हाय शूल-सी, पीड़ा उर में दशरथ के।
ग्लानि, त्रास, वेदना – विमण्डित, शाप कथा वे कह न सके।
5. रौद्र रस
जब किसी एक पक्ष या व्यक्ति किसी दूसरे पक्ष या दूसरे व्यक्ति का अपमान करने अथवा अपने गुरुजन कि निन्दा से जो क्रोध उत्पन्न होता है उसे रौद्र रस कहते हैं। इसका स्थायी भाव क्रोध होता है।
उदाहरण –
अब जनि देइ दोसु मोहि लोगू। कटुवादी बालक वध जोगू॥
बाल विलोकि बहुत मैं बाँचा। अब येहु मरनहार भा साँचा॥
खर कुठार मैं अकरुन कोही। आगे अपराधी गुरुद्रोही॥
उत्तर देत छोडौं बिनु मारे। केवल कौशिक सील तुम्हारे ॥
न त येहि काटि कुठार कठोरे। गुरहि उरिन होतेउँ भ्रम थोरे ॥
6. भयानक रस
जब किसी विनाशकारी कृत्य को देख कर आपके रोंगटे खड़े हो जाये और हृदय में बेचैनी से भय का स्थायी भाव उत्पन्न होता है उसे भयानक रस कहते है।
उदाहरण –
अखिल यौवन के रंग उभार, हड्डियों के हिलाते कंकाल॥
कचो के चिकने काले, व्याल, केंचुली, काँस, सिबार ॥
7.शान्त रस
जब इंसान को परम ज्ञान हासिल हो जाता है। जहाँ न दुख होता है, न द्वेष होता है। मन सांसारिक कार्यों से मुक्त हो जाता है मनुष्य वैराग्य प्राप्त कर लेता है शान्त रस कहा जाता है। इसका स्थायी भाव निर्वेद (उदासीनता) होता है।
शान्त रस साहित्य में प्रसिद्ध नौ रसों में अन्तिम रस माना जाता है – “शान्तोऽपि नवमो रस:।” इसका कारण यह है कि भरतमुनि के ‘नाट्यशास्त्र’ में, जो रस विवेचन का आदि स्रोत है, नाट्य रसों के रूप में केवल आठ रसों का ही वर्णन मिलता है।
उदाहरण –
जब मै था तब हरि नाहिं अब हरि है मै नाहिं
सब अँधियारा मिट गया जब दीपक देख्या माहिं।
8.वीभत्स रस
जब घृणित चीजों या घृणित व्यक्ति को देखकर या उनके बारे में विचार या उनके बारे में सुनकर मन में उत्पन्न होने वाली घृणा वीभत्स रस की पुष्टि करती है। तुलसीदास ने रामचरित मानस के लंकाकांड में युद्ध में कई जगह इस रस का प्रयोग किया है।
उदाहरण- मेघनाथ माया के प्रयोग से वानर सेना को डराने के लिए कई वीभत्स कृत्य करने लगता है, जिसका वर्णन करते हुए तुलसीदास जी लिखते है।
‘विष्टा पूय रुधिर कच हाडा
बरषइ कबहुं उपल बहु छाडा’
9. वत्सल रस
माता पिता का बच्चे के प्रति प्रेम , बच्चे का माता पिता के प्रति प्रेम , बड़े भाइयों का छोटे भाइयों के प्रति प्रेम, अध्यापक का शिष्य के प्रति प्रेम , शिष्य अध्यापक के प्रति प्रेम। यही स्नेह का भाव वात्सल्य रस कहलाता है।
उदाहरण –
बाल दसा सुख निरखि जसोदा, पुनि पुनि नन्द बुलवाति
अंचरा-तर लै ढ़ाकी सूर, प्रभु कौ दूध पियावति।
10. भक्ति रस
जिसमें ईश्वर के प्रति अनुराग का भाव उत्पन्न हो उसे भक्ति रस कहते है।
उदाहरण –
अँसुवन जल सिंची-सिंची प्रेम-बेलि बोई
मीरा की लगन लागी, होनी हो सो होई
11. अद्भुत रस
अलौकिक, आश्चर्यजनक दृश्य या वस्तु को देखकर सहसा विश्वास नहीं होता और मन में स्थायी भाव विस्मय उत्पन्न होता है। यही विस्मय जब विभाव, अनुभाव और संचारी भावों में पुष्ट होकर आस्वाद्य हो जाता है, तो अद्भुत रस उत्पन्न होता है।
उदाहरण –
“अम्बर में कुन्तल जाल देख,
पद के नीचे पाताल देख,
मुट्ठी में तीनों काल देख,
मेरा स्वरूप विकराल देख,
सब जन्म मुझी से पाते हैं,
फिर लौट मुझी में आते हैं।”
रस की पाश्चात्य
Ras Hindi Grammar Class 10 के इस ब्लॉग में रस के पाश्चात्य दिए गए हैं-
- सिद्धान्त – प्रवर्तक
- अनुकरण सिद्धांत – अरस्तु
- त्रासदी तथा विरेचन सिद्धांत – अरस्तु
- औदात्यवाद – लोंजाइनस
- सम्प्रेषण सिद्धान्त – आई.ए. रिचर्ड्स
- निर्वैयक्तिकता का सिद्धांत – टी. एस. इलियट
- अभिव्यंजनावाद – वेनदेतो क्रोचे
- अस्तित्ववाद – सोरेन कीर्कगार्ड
- द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद – कार्ल मार्क्स
- मार्क्सवाद – कार्ल मार्क्स
- मनोविश्लेषणवाद – फ्रायड
- विखण्डनवाद – जॉक देरिदा
- कल्पना सिद्धान्त – कॉलरिज
- स्वच्छन्दतावाद – विलियम वर्ड्सवर्थ
- प्रतीकवाद – जॉन मोरिया
- बिम्बवाद – टी.ई. ह्यम
रस की काव्यशास्त्र के सिद्धांत
रस हिंदी व्याकरण में रस के काव्यशास्त्र के सिद्धांत दिए गए हैं-
- सिद्धान्त – प्रवर्तक
- रीतिवाद – केशवदास (रामचन्द्र शुक्ल ने चिन्तामणि को हिन्दी में रीतिवाद का प्रवर्तक माना है।)
- स्वच्छन्दतावाद – श्रीधर पाठक
- छायावाद – जयशंकर प्रसाद
- हालावाद – हरिवंशराय बच्चन’
- मांसलवाद – रामेश्वर शुक्ल ‘अंचल’
- प्रयोगवाद – अज्ञेय
- कैप्सूलवाद – ओंकारनाथ त्रिपाठी
- प्रपद्यवाद (नकेनवाद) – नलिन विलोचन शर्मा, केसरी कुमार, नरेश कुमार
रस हिंदी व्याकरण पीपीटी
Ras Hindi Grammar Class 10 में पीपीटी नीचे दी गई है-
बोर्ड में पूछे गए प्रश्न
रस हिंदी व्याकरण में बोर्ड में पूछे गए प्रश्न कुछ इस प्रकार हैं:
1. कहत नटत रीझत, खिझत, मिलत, खिलत, लजियात।
भरे भौन में करत हैं नैनन ही सों बात
2. जगी उसी क्षण विद्युज्ज्वाला,
गरज उठे होकर वे क्रुद्ध;
“आज काल के भी विरुद्ध है
युद्ध-युद्ध बस मेरा युद्ध।”
3. कौरवों को श्राद्ध करने के लिए,
या कि रोने को चिता के सामने,
शेष अब है रह गया कोई नहीं.
एक वृद्धा, एक अंधे के सिवा।
1. संयोग शृंगार रस
2. भयानक रस
3. करुण रस
“संकटों से वीर घबराते नहीं,
आपदाएँ देख छिप जाते नहीं।
लग गए जिस काम में, पूरा किया
काम करके व्यर्थ पछताते नहीं।”
स्थायी भाव – उत्साह
1. पड़ी थी बिजली-सी विकराल, लपेटे थे घन जैसे बाल।
कौन छेड़े ये काले साँप, अवनिपति उठे अचानक काँप।
2. कहीं लाश बिखरी गलियों में
कहीं चील बैठी लाशों में।
3. उस काल मारे क्रोध के तनु काँपने उनका लगा।
मानो हवा के ज़ोर से सोता हुआ सागर जगा।
1 अद्भुत रस
2 वीभत्स रस
3 रौद्र रस
वह मधुर यमुना कि जिसमें,
स्निग्ध दृग का जल बहा है।
वह मधुर ब्रजभूमि जिसको,
कृष्ण के उर ने वरा है।
शांत रस
1. कहत, नटत, रीझत, खिझत
मिलत, खिलत, लजियात
भरे भवन में करते हैं
नैननि ही सौं बात।
2. एक ओर अजगरहिं लखि एक ओर मृगराय।
विकल बटोही बीच ही, पर्यो मूरछा खाय।
3. एक मित्र बोले “लाला तुम किस चक्की का खाते हो?
इतने महँगे राशन में भी, तुम तोंद बढ़ाए जाते हो।”
1 संयोग शृंगार रस
2 भयानक रस
3 हास्य रस
उत्साह
1. निसदिन बरसत नैन हमारे।
सदा रहत पावस ऋतु हम पै जब ते स्याम सिधारे।
2. हँसि हँसि भाजै देखि दूलह दिगंबर को
पाहुनी जे आँखें हिमाचल के उछाह में।
3. रे नृप बालक काल बस, बोलत तोहि न संभार।
1 शांत रस
2 हास्य रस
3 रौद्र रस
उत्साह
महत्वपूर्ण MCQs
मानों हवा के जोर से, सोता हुआ सागर जगा।”
उपरोक्त पंक्तियों के रस है-
(A) वीर
(B) रौद्र
(C) अद्भुत
(D) करुण
उत्तर- (B)
बिकल बटोही बीच ही, परयों मूरछा खाय।।’
उपरोक्त पंक्तियों में रस है
(A) शान्त
(B) रौद्र
(C) भयानक
(D) अद्भुत
उत्तर- (C)
रूप सीलू बल तेज बखानी।।
करहिं बिलाप अनेक प्रकारा।
परहिं भूमितल बारहिं बारा।|
उपरोक्त पंक्तियों में रस है
(A) शान्त
(B) वियोग श्रृंगार
(C) करुण
(D) वात्सल्य
उत्तर- (B)
(A) रति
(B) उत्साह
(C) हास्य
(D) क्रोध
उत्तर- (B)
(A) हास्य
(B) श्रृंगार
(C) वीर
(D) शान्त
उत्तर- (B)
(A) क्रोध
(B) भय
(C) विस्मय
(D)जुगुप्सा
उत्तर- (D)
(A) 11
(B) 19
(C) 10
(D) 12
उत्तर- (A)
(A) 9
(B) 33
(C)100
(D) 10
उत्तर- (B)
(A) अनुभाव
(B) संचारी भाव
(C) उद्दीपन विभाव
(D) आंलबन विभाव
उत्तर- (B)
(A) अनुभाव
(B) संचारी भाव
(C) उद्दीपन विभाव
(D) आंलबन विभाव
उत्तर- (A) अनुभाव
(A) आलंबन विभाव
(B) उद्दीपन विभाव
(C) अनुभाव
(D) संचारी भाव
उत्तर-(D) संचारी भाव
A. क्रोध
B. हास
C. रति
D. शोक
उत्तर: B
A. हास्य रस का
B. शांत रस का
C. श्रृंगार
D. वीर
उत्तर: C
A. वीर रस।
B. रौद्र रस
C. वीभत्स रस
D. करुण रस
उत्तर: A
A. उत्साह
B. शोक
C. निर्वेद
D. शोक
उत्तर: A
A. श्रृंगार रस
B. वियोग रस
C. करुण रस
D. अद्भुत रस
उत्तर: C
A. हास
B. शोक
C. भय
D. उत्साह
उत्तर: C
A. भय
B. शोक
C. हास
D. निर्वेद
उत्तर: D
A. “आँखें निकाल उड़ जाते, क्षण भर उड़कर आ जाते शव जीभ खींचकर कौवे, चुभला-चभला कर खाते।’
B. तीरथ व्रत साधन कहा, जो निस दिन हरि गान
C. उठरी विकसित-कुवलय-नयने! नयन निमीलित खोल
D. अपूर्व श्री श्यामल पत्र राजि में कदम्ब के पुष्प-कदम्ब की घटा
उत्तर: A
A. करुण
B. अद्भुत
C. वीभत्स
D. श्रृंगार
उत्तर: B
FAQs
‘रसस्यतेऽसौ इति रसः’ के रूप में रस शब्द की व्युत्पत्ति हुई है, अर्थात् जो चखा जाए या जिसका आश्वासन किया जाए ‘अथवा’ जिससे आनन्द की प्राप्ति हो, वह रस है।
रस के ग्यारह भेद होते है- (1) शृंगार रस (2) हास्य रस (3) करुण रस (4) रौद्र रस (5) वीर रस (6) भयानक रस (7) वीभत्स रस (8) अद्भुत रस (9) शांत रस (10) वत्सल रस (11) भक्ति रस।
रस हिंदी व्याकरण के 4 (चार) अंग होते हैं- (1) स्थायी भाव, (2) विभाव, (3) अनुभाव, (4) संचारी भाव
स्थायी भाव नौ हैं। इन्हीं के आधार पर नौ रस माने गए हैं। प्रत्येक रस का एक स्थायी भाव नियत होता है।
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