250+ Lokoktiyan in Hindi साथ ही जानिए मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

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Lokoktiyan in Hindi

हमने बचपन से कई ऐसे बुजुर्ग या फिर ऐसे लोगों को देखा होगा जो अपनी बात थोड़ा अलग अंदाज में करते हैं और लोकोक्ति का प्रयोग अपनी बातों में किया करते हैं। जैसे-अंधों में काना राजा, गेहूं के साथ घुन भी पिसता है आदि। लोकोक्तियाँ हिंदी व्याकरण का एक महत्वपूर्ण विषय है जिसके बारे में अक्सर परीक्षाओं में तथा प्रतियोगी परीक्षाओं में पूछा जाता है। कई आकर्षक और महत्वपूर्ण 250+ Lokoktiyan in Hindi इस ब्लॉग में दी गई हैं।

लोकोक्तियाँ किसे कहते हैं?

अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करने वाला वाक्य लोकोक्ति कहलाता है। लोकोक्ति को कहावतें भी कहते हैं। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। महापुरुषों, कवियों व संतों के कहे हुए ऐसे कथन जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में कहे गए हैं जिसमें उनका भाव निहित होता है तो ये लोकोक्तियाँ कहलाती है। प्रत्येक लोकोक्ति के पीछे कोई न कोई घटना व कहानी होती है।

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

मुहावरे और लोकोक्ति में अंतर

महान लोगों के द्वारा लोकोक्ति की परिभाषाएँ

लोकोक्ति की परिभाषाएँ विभिन्न लोगों ने अलग-अलग दी हैं जो इस प्रकार है :

  • डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों एवं लोक विश्वास आदि पर आधारित चुटीला, सरगर्भित, सजीव, संक्षिप्त लोक प्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं जिनका प्रयोग बात की पुष्टि या विरोध, सीख तथा भविष्य कथन आदि के लिए किया जाता है।”
  • ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “जनता में प्रचलित कोई छोटा सा सारगर्भित वचन, अनुभव अथवा निरीक्षण द्वारा निश्चित या सबको ज्ञात किसी सत्य को प्रकट करने वाली कोई संक्षिप्त उक्ति लोकोक्ति है।”
  • अरस्तु के अनुसार, “संक्षिप्त और प्रयोग करने के लिए उपयुक्त होने के कारण तत्वज्ञान के खंडहरों में से चुनकर निकाले हुए टुकड़े बचा लिए गए अंश को लोकोक्ति की संज्ञा से अभिहित किया जा सकता है।”
  • टेनिसन के अनुसार, “लोकोक्ति वे रत्न हैं जो लघु आकार होने पर भी अनंत काल से चली आ रही उक्ति है।”
  • डॉ. सत्येंद्र के अनुसार, “लोकोक्तियों में लय और तान या ताल न होकर संतुलित स्पंदनशीलता ही होती है।”
  • धीरेंद्र वर्मा के अनुसार, “लोकोक्तियां ग्रामीण जनता की नीति शास्त्र है। यह मानवीय ज्ञान के घनीभूत रत्न हैं।”
सोर्स : EDUSOFT KNOWLEDGEVERSE

लोकोक्ति की विशेषताएं

  1. समाज का सही मार्गदर्शन दिखाने के लिए।
  2.  धार्मिक एवं नैतिक उपदेश रूपी प्रवृत्ति।
  3. हास्य और मनोरंजन  में प्रयोग।
  4. सर्वव्यापी एवं सर्वग्राही ( लोकोक्तियों के अर्थ प्रत्येक समाज में एक से रहते हैं।)
  5. प्राचीन परंपरा  से चलती आ रही है।
  6. जीवन के हर पहलू को स्पर्श करती है।
  7. अनुभव पर आधारित एवं जीवनोपयोगी बातों के बारे में सुझाव देती है।
  8. सरल एवं समास शैली( इसमें गहरी से गहरी बात को सूक्ष्म से सूक्ष्म शब्दों में कह दिया जाता है।
  9. लोकोक्ति के माध्यम से किसी जटिल बात को भी सरल और सहज अंदाज में कहा जा सकता है।
  10. लोकोक्तियाँ जीवन में मार्गदर्शक का कार्य करती हैं क्योंकि प्राचीन समय में लोगों ने अपने जीवन के अनुभवों के आधार पर लोकोक्तियों को बनाया था।
  11. लोकोक्तियों की सबसे खूबसूरत बात यह होती है कि लोकोक्तियाँ किसी कटु बात को भी मनोरंजक अंदाज में बयाँ करती हैं, जिससे बात कहने और सुनने वाले के मध्य किसी तरह का तनाव उत्पन्न नहीं होता।
  12. लोकोक्तियाँ समाज को धर्म और नैतिकता की राह पर चलने का मार्ग बताती हैं, जिससे समाज में स्थिरता बनी रहती है।
  13. लोकोक्तियाँ समाज के प्रत्येक वर्ग को एक स्तर पर जोड़ने का काम करती हैं।
  14. लोकोक्तियों का चलन प्राचीन समय से ही है। अतः लोकोक्तियों के माध्यम से हम, हमारे पूर्वजों का जीवन के प्रति दृष्टिकोण और उस समय की व्यवस्था को समझ सकते हैं।

लोकोक्तियाँ एवं कहावतें

  1. बाँझ का जाने प्रसव की पीड़ा
    अर्थः पीड़ा को सहकर ही समझा जा सकता है।
  2. बाड़ ही जब खेत को खाए तो रखवाली कौन करे
    अर्थः रक्षक का भक्षक हो जाना।
  3. बाप भला न भइया, सब से भला रूपइया
    अर्थः धन ही सबसे बड़ा होता है।
  4. बाप न मारे मेढकी, बेटा तीरंदाज़
    अर्थः छोटे का बड़े से बढ़ जाना।
  5. बाप से बैर, पूत से सगाई
    अर्थः पिता से दुश्मनी और पुत्र से लगाव।
  6. बारह गाँव का चौधरी अस्सी गाँव का राव, अपने काम न आवे तो ऐसी-तैसी में जाव
    अर्थः बड़ा होकर यदि किसी के काम न आए, तो बड़प्पन व्यर्थ है।
  7. बारह बरस पीछे घूरे के भी दिन फिरते हैं
    अर्थः एक न एक दिन अच्छे दिन आ ही जाते हैं।
  8. बासी कढ़ी में उबाल नहीं आता
    अर्थः काम करने के लिए शक्ति का होना आवश्यक होता है।
  9. बासी बचे न कुत्ता खाय
    अर्थः जरूरत के अनुसार ही सामान बनाना।
  10. बिंध गया सो मोती, रह गया सो सीप
    अर्थः जो वस्तु काम आ जाए वही अच्छी।
  11. बिच्छू का मंतर न जाने, साँप के बिल में हाथ डाले
    अर्थः मूर्खतापूर्ण कार्य करना।
  12. बिना रोए तो माँ भी दूध नहीं पिलाती
    अर्थः बिना यत्न किए कुछ भी नहीं मिलता।
  13. बिल्ली और दूध की रखवाली?
    अर्थः भक्षक रक्षक नहीं हो सकता।
  14. बिल्ली के सपने में चूहा
    अर्थः जरूरतमंद को सपने में भी जरूरत की ही वस्तु दिखाई देती है।
  15. बिल्ली गई चूहों की बन आयी
    अर्थः डर खत्म होते ही मौज मनाना।
  16. बीमार की रात पहाड़ बराबर
    अर्थः खराब समय मुश्किल से कटता है।
  17. बुड्ढी घोड़ी लाल लगाम
    अर्थः वय के हिसाब से ही काम करना चाहिए।
  18. बुढ़ापे में मिट्टी खराब
    अर्थः बुढ़ापे में इज्जत में बट्टा लगना।
  19. बुढि़या मरी तो आगरा तो देखा
    अर्थः प्रत्येक घटना के दो पहलू होते हैं – अच्छा और बुरा।
  20. लिखे ईसा पढ़े मूसा
    अर्थः गंदी लिखावट।

अ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1. अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं-चीं मत कर : जब कोई छोटा बड़े को उपदेश दे। 
    उदा-मोहन का छोटा भाई मोहन के द्वारा प्रश्न गलत हल करने पर उसका छोटा भाई उसे सिखाने लगता है तो मोहन उससे कहता है अंडा सिखावे बच्चे को कि चीं चीं मत कर।
  2. अन्त भले का भला : जो भले काम करता है, अन्त में उसे सुख मिलता है।
    उदा-रामलाल ने अपनी पुत्री को पढ़ा लिखा कर बड़ा किया अब वृद्ध अवस्था में उसकी पुत्री ने उसकी देखभाल की इसे कहते हैं अंत भले का भला।
  3. अंधा क्या चाहे, दो आंखे : आवश्यक या अभीष्ट वस्तु अचानक या अनायास मिल जाती है, तब ऐसा कहते हैं।
    उदा- मैं पिकनिक जाने का सोच ही रही थी कि मैंने कहा चलो कल पिकनिक चलते हैं यह तो वही हुआ अंधा क्या चाहे दो आंखें।
  4. अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही देः अधिकार पाने पर स्वार्थी मनुष्य अपने ही लोगों और इष्ट-मित्रों को ही लाभ पहुंचाते हैं।
    उदा- छात्र चुनाव में राहुल ने जीतने के बाद अपने ही दोस्तों को अन्य पदों पर नियुक्त कर दिया यह तो वही बात हुई अंधा बांटे रेवड़ी फिर-फिर अपने को ही दे।
  5. अंधा सिपाही कानी घोड़ी, विधि ने खूब मिलाई जोड़ी: जहां दो व्यक्ति हों और दोनों ही एक समान मूर्ख, दुष्ट या अवगुणी हों वहां ऐसा कहते हैं। 
    उदा- राम और श्याम दोनों अनपढ़ है फिर भी उन्होंने विद्यालय खोल लिया शिक्षक की भर्ती लेनी थी लेकिन दोनों अनपढ़। यह तो वही बात हुई अंदर सिपाही का निगोड़ी भी
  6. अंधी पीसे, कुत्ते खायें : मूर्खों को कमाई व्यर्थ नष्ट होती है।
    उदा- राम ने उसकी मां के ना रहने पर बड़ी मुश्किल से खाना बनाया परंतु उसका पड़ोसी आकर सारा खाना खा गया यह तो वही बात हुई अंधी पीसे कुत्ता खाए।
  7. अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे : मूर्खों को सदुपदेश देना या उनके लिए शुभ कार्य करना व्यर्थ है।
    उदा- अध्यापक विद्यालय में भाषण दे रहे थे और छात्र अपनी बातों में मस्त है वह भाषा में कोई रुचि नहीं ले रहे थे बस शोर मचाते जा रहे थे इसे कहते हैं अंधे के आगे रोवे, अपना दीदा खोवे।
  8. अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी : जब कोई मूर्ख मनुष्य बुद्धिमानी की बात कहता है तब ऐसा कहते हैं।
    उदा- रोहित हमेशा शरारत की ही बातें करता रहता है लेकिन आज उसने अध्यापक से पढ़ाई के विषय में पूछा तो अध्यापक ने उससे कहा अंधे को अंधेरे में बहुत दूर की सूझी।
  9. अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा: जहां मालिक मूर्ख होता है, वहां गुण का आदर नहीं होता। 
    उदा- एक कंपनी का मालिक मूर्ख था तथा वहां के कर्मचारी गुणवान लेकिन फिर भी उनके गुणों का आदर नहीं होता था। इसे कहते हैं अंधेर नगरी चौपट राजा, टका सेर भाजी टका सेर खाजा
  10. अंधों में काना राजा : मूर्खों या अज्ञानियों में अल्पज्ञ लोगों का भी बहुत आदर होता है।
    उदा- टेस्ट नहीं जहां सभी के जीरो नंबर आए वहां राम दो नंबर से प्रथम आ गया। इसे कहते हैं अंधों में काना राजा।
  11. अपनी-अपनी डफली, अपना-अपना राग : कोई काम नियम-कायदे से न करना
  12. अपनी पगड़ी अपने हाथ : अपनी इज्जत अपने हाथ होती है।
  13. अमानत में खयानत : किसी के पास अमानत के रूप में रखी कोई वस्तु खर्च कर देना
  14. अस्सी की आमद, चौरासी खर्च : आमदनी से अधिक खर्च
  15. अति सर्वत्र वर्जयेत् : किसी भी काम में हमें मर्यादा का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
  16. अपनी करनी पार उतरनी : मनुष्य को अपने कर्म के अनुसार ही फल मिलता है
  17. अंत भला तो सब भला : परिणाम अच्छा हो जाए तो सब कुछ माना जाता है।
  18. अंधे की लकड़ी : बेसहारे का सहारा
  19. अपना रख पराया चख : निजी वस्तु की रक्षा एवं अन्य वस्तु का उपभोग
  20. अच्छी मति जो चाहो बूढ़े पूछन जाओ : बड़े बूढ़ों की सलाह से कार्य सिद्ध हो सकते हैं।
  21. अब की अब, जब की जब के साथ : सदा वर्तमान की ही चिन्ता करनी चाहिए
  22. अपनी नींद सोना, अपनी नींद जागना : पूर्ण स्वतंत्र होना
  23. अपने झोपड़े की खैर मनाओ : अपनी कुशल देखो
कहावत
  1. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता/फोड़ता : अकेला आदमी कोई बड़ा काम नहीं कर सकता; उसे अन्य लोगों की सहयोग की आवश्यकता होती है।
  2. अक्ल के अंधे, गाँठ के पूरे : निर्बुद्धि धनवान् इसका मतलब यह है कि जिसके पास बिलकुल बुद्धि नहीं हो फिर भी वह धनवान हो तब इसका प्रयोग किया जाता है।
  3. अक्ल बड़ी की भैंस : बुद्धि शारीरिक शक्ति से श्रेष्ठ होती है।
  4. अटका बनिया दे उधार : जिस बनिये का मामला फंस जाता है, वह उधार सौदा देता है।
  5. अति भक्ति चोर के लक्षण : यदि कोई अति भक्ति का प्रदर्शन करे तो समझना चाहिए कि वह कपटी और दम्भी है।
  6. अधजल/अधभर गगरी छलकत जाय : जिसके पास थोड़ा धन या ज्ञान होता है, वह उसका प्रदर्शन करता है।
  7. अधेला न दे, अधेली दे : भलमनसाहत से कुछ न देना पर दबाव पड़ने पर या फंस जाने पर आशा से अधिक चीज दे देना।
  8. अनदेखा चोर बाप बराबर : जिस मनुष्य के चोर होने का कोई प्रमाण न हो, उसका अनादर नहीं करना चाहिए। ।
  9. अनमांगे मोती मिले मांगे मिले न भीख : संतोषी और भाग्यवान् को बैठे-बिठाये बहुत कुछ मिल जाता है परन्तु लोभी और अभागे को मांगने पर भी कुछ नहीं मिलता।
  10. अपना घर दूर से सूझता है: अपने मतलब की बात कोई नहीं भूलता। या प्रियजन सबको याद रहते हैं।

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  1. अपना पैसा सिक्का खोटा तो परखैया का क्या दोष? : यदि अपने सगे-सम्बन्धी में कोई दोष हो और कोई अन्य व्यक्ति उसे बुरा कहे, तो उससे नाराज नहीं होना चाहिए।
  2. अपना लाल गंवाय के दर-दर मांगे भीख : अपना धन खोकर दूसरों से छोटी-छोटी चीजें मांगना।
  3. अपना हाथ जगन्नाथ का भात : दूसरे की वस्तु का निर्भय और उन्मुक्त उपभोग।
  4. अपनी अक्ल और पराई दौलत सबको बड़ी मालूम पड़ती है : मनुष्य स्वयं को सबसे बुद्धिमान समझता है और दूसरे की संपत्ति उसे ज्यादा लगती है।
  5. अपनी-अपनी डफली अपना-अपना राग : सब लोगों का अपनी-अपनी धुन में मस्त रहना।
  6. अपनी गली में कुत्ता भी शेर होता है:अपने घर या मोहल्ले आदि में सब लोग बहादुर बनते हैं।
  7. अपनी फूटी न देखे दूसरे की फूली निहारे : अपना दोष न देखकर दूसरे के छोटे अवगुण पर ध्यान देना।
  8. अपने घर में दीया जलाकर तब मस्जिद में जलाते हैं : पहले स्वार्थ पूरा करके तब परमार्थ या परोपकार किया जाता है। 
  9. अपने दही को कोई खट्टा नहीं कहता : अपनी चीज को कोई बुरा नहीं कहता।
  10. अपने मरे बिना स्वर्ग नहीं दिखता : अपने किये बिना काम नहीं होता। 
  11. अपने मुंह मियां मिळू: अपने मुंह से अपनी बड़ाई करने वाला व्यक्ति। 

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  1. अब पछताए होत क्या जब चिड़िया चुग गई खेत : काम बिगड़ जाने पर पछताने और अफसोस करने से कोई लाभ नहीं होता। 
  2. अभी दिल्ली दूर है : अभी काम पूरा होने में देर है।
  3. अमीर को जान प्यारी, फकीर/गरीब एकदम भारी : अमीर विषय-भोग के लिए बहुत दिन जीना चाहता है. लेकिन खाने की कमी के कारण गरीब आदमी जल्द मर जाना चाहता है।
  4. अरध तजहिं बुध सरबस जाता : जब सर्वनाश की नौबत आती है तब बुद्धिमान लोग आधे को छोड़ देते हैं और आधे को बचा लेते हैं
  5. अशर्फियों की लूट और कोयलों पर छाप /मोहर : बहुमूल्य पदार्थों की परवाह न करके छोटी-छोटी वस्तुओं की रक्षा के लिए विशेष चेष्टा करने पर उक्ति।
  6. अशुभस्य काल हरणम् : जहां तक हो सके, अशुभ समय टालने का प्रयत्न करना चाहिए। 
  7. अहमक से पड़ी बात, काढ़ो सोटा तोड़ो दांत : मूर्खों के साथ कठोर व्यवहार करने से काम चलता है। 

आ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1. आंख के अंधे नाम नयनसुख : नाम और गुण में विरोध होना, गुणहीन को बहुत गुणी कहना।
  2. आंखों के आगे पलकों की बुराई : किसी के भाई- बन्धुओं या इष्ट-मित्रों के सामने उसकी बुराई करना।
  3. आंखों पर पलकों का बोझ नहीं होता : अपने कुटुम्बियों को खिलाना-पिलाना नहीं खलता। या काम की चीज महंगी नहीं जान पड़ती।
  4. आंसू एक नहीं और कलेजा टूक-टूक : दिखावटी रोना।
  5.  आई है जान के साथ जाएगी जनाजे के साथ : वह विपत्ति या बीमारी जो आजीवन बनी रहे।
  6. आ गई तो ईद बारात नहीं तो काली जुम्मे रात : पैसे हुए तो अच्छा खाना खायेंगे, नहीं तो रूखा-सूखा ही सही। 
  7. आई मौज फकीर को, दिया झोपड़ा फूंक : विरक्त(बिगड़ा हुए) पुरुष मनमौजी होते हैं।
  8. आए थे हरि भजन को, ओटन लगे कपास: जिस काम के लिए गए थे, उसे छोड़कर दूसरे काम में लग गए। 
  9. आगे कुआं, पीछे खाई : दोनों तरफ विपत्ति होना।
  10. आगे नाथ न पीछे पगहा, सबसे भला कुम्हार का गदहा या (खाय मोटाय के हुए गदहा) : जिस मनुष्य के कुटुम्ब में कोई न हो और जो स्वयं कमाता और खाता हो और सब प्रकार की चिंताओं से मुक्त हो।
  11. आठों पहर चौंसठ घड़ी : हर समय, दिन-रात।
  12. आठों गांठ कुम्मैत : पूरा धूर्त, घुटा हुआ।
  13. आत्मा सुखी तो परमात्मा सुखी : पेट भरता है तो ईश्वर की याद आती है।
  14. आधी छोड़ सारी को धावे, आधी रहे न सारी पावे : अधिक लालच करना अच्छा नहीं होता; जो मिले उसी से सन्तोष करना चाहिए।
  15. आपको न चाहे ताके बाप को न चाहिए : जो आपका आदर न करे आपको भी उसका आदर नहीं करना चाहिए। 
  16. आप जाय नहीं सासुरे, औरन को सिखि देत : आप स्वयं कोई काम न करके दूसरों को वही काम करने का उपदेश देना।
  17. आप तो मियां हफ्तहजारी, घर में रोवें कर्मों मारी : जब कोई मनुष्य स्वयं तो बड़े ठाट-बाट से रहता है पर उसकी स्त्री बड़े कष्ट से जीवन व्यतीत करती है तब ऐसा कहते हैं। 
  18. आप मरे जग परलय: मूत्यु के बाद की चिन्ता नहीं करनी चाहिए। 
  19. आप मियां मांगते दरवाजे खड़ा दरवेश : जो मनुष्य स्वयं दरिद्र है वह दूसरों को क्या सहायता कर सकता है? 
  20. आ बैल मुझे मार : जान- बूझकर विपत्ति में पड़ना।
  21. आम के आम गुठलियों के दाम : किसी काम में दोहरा लाभ होना।
  22. आम खाने से काम, पेड़ गिनने से क्या काम? (आम खाने से मतलब कि पेड़ गिनने से? ) : जब कोई मतलब का काम न करके फिजूल बातें करता है तब इस कहावत का प्रयोग करते हैं। 
  23. आया है जो जायेगा, राजा रंक फकीर : अमीर-गरीब सभी को मरना है।
  24. आरत काह न करै कुकरमू : दुःखी मनुष्य को भले और बुरे कर्म का विचार नहीं रहता।
  25. आस पराई जो तके, जीवित ही मर जाए : जो दूसरों पर निर्भर रहता है, वह जीवित रहते हुए भी मरा हुआ होता है।
  26. आस-पास बरसे, दिल्ली पड़ी तरसे : जिसे जरूरत हो, उसे न मिलकर किसी चीज का दूसरे को मिलना।
  27.  इक नागिन अस पंख लगाई : किसी भयंकर चीज का किसी कारणवश और भी भयंकर हो जाना।
  28. इन तिलों में तेल नहीं निकलता: ऐसे कंजूसों से कुछ प्रप्ति नहीं होती।

इ, ई से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1.  इब्तिदा-ए-इश्क है. रोता है क्या, आगे-आगे देखिए, होता है क्या : अभी तो कार्य का आरंभ है; इसे ही देखकर घबरा गए, आगे देखो क्या होता है।
  2. इसके पेट में दाढ़ी है : इसकी अवस्था बहुत कम है तथापि यह बहुत बुद्धिमान है। 
  3. इहां कुम्हड़ बतिया कोउ नाहीं, जो तर्जनि देखत मरि जाहीं : जब कोई झूठा रोब दिखाकर किसी को डराना चाहता है।
  4.  इहां न लागहि राउरि मायाः यहां कोई आपके धोखे में नहीं आ सकता। 
  5. ईश रजाय सीस सबही के : ईश्वर की आज्ञा सभी को माननी पड़ती है। 
  6. ईश्वर की माया, कहीं धूप कहीं छाया : भगवान की माया विचित्र है। संसार में कोई सुखी है तो कोई दुःखी, कोई धनी है तो कोई निर्धन। 

उ, ऊ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1. उधरे अन्त न होहिं निबाह । कालनेमि जिमि रावण राहू।। : जब किसी कपटी आदमी को पोल खुल जाती है, तब उसका निर्वाह नहीं होता। उस पर अनेक विपत्ति आती है।
  2. उत्तम विद्या लीजिए, जदपि नीच पै होय : छोटे व्यक्ति के पास यदि कोई ज्ञान है, तो उसे ग्रहण करना चाहिए। 
  3. उतर गई लोई तो क्या करेगा कोई : जब इज्जत ही नहीं है तो डर किसका?
  4. उधार का खाना और फूस का तापना बराबर है : फूस की आग बहुत देर तक नहीं ठहरती। इसी प्रकार कोई व्यक्ति बहुत दिनों तक उधार लेकर अपना खर्च नहीं चला सकता।
  5.  उमादास जोतिष की नाई, सबहिं नचावत राम गोसाई : मनुष्य का किया कुछ नहीं होता। मनुष्य को ईश्वर की इच्छा के अनुसार काम करना पड़ता है। 
  6. उल्टा चोर कोतवाल को डांटे: अपना अपराध स्वीकार न करके पूछने वाले को डांटने-फटकारने या दोषी ठहराने पर उक्ति(कथन)। 
  7. उसी की जूती उसी का सिर : किसी को उसी की युक्ति(वस्तु)से बेवकूफ बनाना। 
  8. ऊंची दुकान फीके पकवान : जिसका नाम तो बहुत हो, पर गुण कम हो।
  9. ऊंट के गले में बित्ली: अनुचित, अनुपयुक्त या बेमेल संबंध विवाह। 
  10. ऊंट के मुंह में जीरा : बहुत अधिक आवश्यकता वाले या खाने वाले को बहुत थोड़ी-सी चीज देना।
  11. ऊंट-घोड़े बहे जाए, गधा कहे कितना पानी : जब किसी काम को शक्तिशाली लोग न कर सकें और कोई कमजोर आदमी उसे करना चाहे, तब ऐसा कहते हैं। 
  12. ऊंट दूल्हा गधा पुरोहित : एक मूर्ख या नीच द्वारा दूसरे मूर्ख या नीच की प्रशंसा पर उक्ति(वाक्य/कथन)। 
  13. ऊंट बर्राता ही लदता है : काम करने की इच्छा न रहने पर डर के मारे काम भी करते जाना और बड़बड़ाते भी जाना। 
  14. ऊंट बिलाई ले गई, हां जी, हां जी कहना : जब कोई बड़ा आदमी कोई असम्भव बात कहे और दूसरा उसकी हामी भरे।

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ए से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1. एक अंडा वह भी गंदा : एक ही पुत्र, वही भी निकम्मा।
  2. एक आंख से रोना और एक आंख से हंसना : हर्ष(खुशी) और विषाद (दुःख) एक साथ होना।
  3. एक और एक ग्यारह होते हैं : मेल में बड़ी शक्ति होती है।
  4. एक जिन्दगी हजार नियामत है: जीवन बहुत बहुमूल्य होता है। 
  5. एक तवे की रोटी, क्या पतली क्या मोटी : एक परिवार के मनुष्यों में या एक पदार्थ के कई भागों में बहुत कम अन्तर होता है। 
  6. एक तो करेला (कड़वा) दूसरे नीम चढ़ा : कटु या कुटिल स्वभाव वाले मनुष्य कुसंगति में पड़कर और बिगड़ जाते हैं। 
  7. एक (ही) थैले के चट्टे-बट्टे : एक ही प्रकार के लोग।
  8. एक न शुद, दो शुद: एक विपत्ति तो है ही दूसरी और सही। 
  9. एक पथ दो काज : एक वस्तु या साधन से दो कार्यों की सिद्धि।
  10. एक मछली सारे तालाब को गंदा करती है : यदि किसी घर या समूह में एक व्यक्ति बुरे चरित्र वाला होता है तो सारा घर या समूह बुरा या बदनाम हो जाता है।
  11. एक लख पूत सवा लख नाती, तो रावण घर दीया न बाती : किसी अत्यन्त ऐश्वर्यशाली व्यक्ति के पूर्ण विनाश हो जाने पर इस लोकोक्ति का प्रयोग किया जाता है।

ओ , औ से शुरू होने वाली लोकोक्तियाँ

  1. ओठों निकली कोठों चढ़ी : जो बात मुंह से निकल है, वह फैल जाती है, गुप्त नहीं रहती।
  2. ओखली में सिर दिया तो मूसलों का क्या डर : कष्ट सहने पर उतारू होने पर कष्ट का डर नहीं रहता।
  3. और बात खोटी, सही दाल-रोटी : संसार की सब चीजों में भोजन ही मुख्य है।

अन्य Famous Lokoktiyan in Hindi

  1. अंधों में काना राजा – मूर्खों में कुछ पढ़ा-लिखा व्यक्ति
  2. अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता – अकेला आदमी लाचार होता है
  3. अधजल गगरी छलकत जाय – डींग हाँकना
  4. आँख का अँधा नाम नयनसुख – गुण के विरुद्ध नाम होना
  5. आँख के अंधे गाँठ के पूरे – मुर्ख परन्तु धनवान
  6. आग लागंते झोपड़ा, जो निकले सो लाभ – नुकसान होते समय जो बच जाए वही लाभ है
  7. आगे नाथ न पीछे पगही – किसी तरह की जिम्मेदारी न होना
  8. आम के आम गुठलियों के दाम – अधिक लाभ
  9. ओखली में सर दिया तो मूसलों से क्या डरे – काम करने पर उतारू
  10. ऊँची दुकान फीका पकवान – केवल बाह्य प्रदर्शन
  11. एक पंथ दो काज – एक काम से दूसरा काम हो जाना
  12. कहाँ राजा भोज कहाँ गंगू तेली – उच्च और साधारण की तुलना कैसी
  13. घर का जोगी जोगड़ा, आन गाँव का सिद्ध – निकट का गुणी व्यक्ति कम सम्मान पाटा है, पर दूर का ज्यादा
  14. चिराग तले अँधेरा – अपनी बुराई नहीं दिखती
  15. जिन ढूंढ़ा तिन पाइयाँ गहरे पानी पैठ – परिश्रम का फल अवश्य मिलता है
  16. नाच न जाने आँगन टेढ़ा – काम न जानना और बहाने बनाना
  17. न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसुरी – न कारण होगा, न कार्य होगा
  18. होनहार बिरवान के होत चीकने पात – होनहार के लक्षण पहले से ही दिखाई पड़ने लगते हैं
  19. जंगल में मोर नाचा किसने देखा – गुण की कदर गुणवानों बीच ही होती है
  20. कोयल होय न उजली, सौ मन साबुन लाई – कितना भी प्रयत्न किया जाये स्वभाव नहीं बदलता
  21. चील के घोसले में माँस कहाँ – जहाँ कुछ भी बचने की संभावना न हो
  22. चोर लाठी दो जने और हम बाप पूत अकेले – ताकतवर आदमी से दो लोग भी हार जाते हैं
  23. चंदन की चुटकी भरी, गाड़ी भरा न काठ – अच्छी वास्तु कम होने पर भी मूल्यवान होती है, जब्कि मामूली चीज अधिक होने पर भी कोई कीमत नहीं रखती
  24. छप्पर पर फूंस नहीं, ड्योढ़ी पर नाच – दिखावटी ठाट-वाट परन्तु वास्तविकता में कुछ भी नहीं
  25. छछूंदर के सर पर चमेली का तेल – अयोग्य के पास योग्य वस्तु का होना
  26. जिसके हाथ डोई, उसका सब कोई – धनी व्यक्ति के सब मित्र होते हैं
  27. योगी था सो उठ गया आसन रहा भभूत – पुराण गौरव समाप्त
  28. सूखी तलाईया म मेंढक करय टर-टर : खुली आँखों से सपने देखकर खुशी व्यक्त करना।
  29. जिसकी बंदरी वही नचावे और नचावे तो काटन धावे : जिसका जो काम होता है वही उसे कर सकता है।
  30. जिसकी बिल्ली उसी से म्याऊँ करे : जब किसी के द्वारा पाला हुआ व्यक्ति उसी से गुर्राता है।
  31. जिसकी लाठी उसकी भैंस : शक्ति अनधिकारी को भी अधिकारी बना देती है, शक्तिशाली की ही विजय होती है।
  32. जिसके पास नहीं पैसा, वह भलामानस कैसा : जिसके पास धन होता है उसको लोग भलामानस समझते हैं, निर्धन को लोग भलामानस नहीं समझते।
  33. जिसके राम धनी, उसे कौन कमी : जो भगवान के भरोसे रहता है, उसे किसी चीज की कमी नहीं होती।
  34. जिसके हाथ डोई (करछी) उसका सब कोई : सब लोग धनवान का साथ देते हैं और उसकी खुशामद करते हैं।
  35. जिसे पिया चाहे वही सुहागिन : जिस पर मालिक की कृपा होती है उसी की उन्नति होती है और उसी का सम्मान होता है।
  36. जी कहो जी कहलाओ : यदि तुम दूसरों का आदर करोगे, तो लोग तुम्हारा भी आदर करेंगे।
  37. जीभ और थैली को बंद ही रखना अच्छा है : कम बोलने और कम खर्च करने से बड़ा लाभ होता है।
  38. जीभ भी जली और स्वाद भी न पाया : यदि किसी को बहुत थोड़ी-सी चीज खाने को दी जाये।
  39. जीये न मानें पितृ और मुए करें श्राद्ध : कुपात्र पुत्रों के लिए कहते हैं जो अपने पिता के जीवित रहने पर उनकी सेवा-सुश्रुषा नहीं करते, पर मर जाने पर श्राद्ध करते हैं।
  40. जी ही से जहान है : यदि जीवन है तो सब कुछ है। इसलिए सब तरह से प्राण-रक्षा की चेष्टा करनी चाहिए।
  41. जुत-जुत मरें बैलवा, बैठे खाय तुरंग : जब कोई कठिन परिश्रम करे और उसका आनंद दूसरा उठावे तब कहते हैं, जैसे गरीब आदमी परिश्रम करते हैं और पूँजीपति उससे लाभ उठाते हैं।
  42. जूँ के डर से गुदड़ी नहीं फेंकी जाती : साधारण कष्ट या हानि के डर से कोई व्यक्ति काम नहीं छोड़ देता।
  43. जेठ के भरोसे पेट : जब कोई मनुष्य बहुत निर्धन होता है और उसकी स्त्री का पालन-पोषण उसका बड़ा भाई (स्त्री का जेठ) करता है तब कहते हैं।
  44. जेते जग में मनुज हैं तेते अहैं विचार : संसार में मनुष्यों की प्रकृति-प्रवृत्ति तथा अभिरुचि भिन्न-भिन्न हुआ करती है।
  45. जैसा ऊँट लम्बा, वैसा गधा खवास : जब एक ही प्रकार के दो मूर्खों का साथ हो जाता है।
  46. जैसा कन भर वैसा मन भर : थोड़ी-सी चीज की जाँच करने से पता चला जाता है कि राशि कैसी है।
  47. जैसा काछ काछे वैसा नाच नाचे : जैसा वेश हो उसी के अनुकूल काम करना चाहिए।
  48. जैसा तेरा ताना-बाना वैसी मेरी भरनी : जैसा व्यवहार तुम मेरे साथ करोगे, वैसा ही मैं तुम्हारे साथ करूँगा।
  49. जैसा देश वैसा वेश : जहाँ रहना हो वहीं की रीतियों के अनुसार आचरण करना चाहिए।
  50. जैसा मुँह वैसा तमाचा : जैसा आदमी होता है वैसा ही उसके साथ व्यवहार किया जाता है।
  51. जैसी औढ़ी कामली वैसा ओढ़ा खेश : जैसा समय आ पड़े उसी के अनुसार अपना रहन-सहन बना लेना चाहिए।
  52. जैसी चले बयार, तब तैसी दीजे ओट : समय और परिस्थिति के अनुसार काम करना चाहिए।
  53. जैसी तेरी तोमरी वैसे मेरे गीत : जैसी कोई मजदूरी देगा, वैसा ही उसका काम होगा।
  54. जैसे कन्ता घर रहे वैसे रहे विदेश : निकम्मे आदमी के घर रहने से न तो कोई लाभ होता है और न बाहर रहने से कोई हानि होती है।
  55. जैसे को तैसा मिले, मिले डोम को डोम, दाता को दाता मिले, मिले सूम को सूम : जो व्यक्ति जैसा होता है उसे जीवन में वैसे ही लोगों से पाला पड़ता है।
  56. जैसे बाबा आप लबार, वैसा उनका कुल परिवार : जैसे बाबास्वयं झूठे हैं वैसे ही उनके परिवार वाले भी हैं।
  57. जैसे को तैसा मिले, मिले नीच में नीच, पानी में पानी मिले, मिले कीच में कीच : जो जैसा होता है उसका मेल वैसों से ही होता है।
  58. जो अति आतप व्याकुल होई, तरु छाया सुख जाने सोई : जिस व्यक्ति पर जितनी अधिक विपत्ति पड़ी रहती है उतना ही अधिक वह सुख का आनंद पाता है।
  59. जो करे लिखने में गलती, उसकी थैली होगी हल्की: रोकड़ लिखने में गलती करने से सम्पत्ति का नाश हो जाता है।
  60. जो गंवार पिंगल पढ़ै, तीन वस्तु से हीन, बोली, चाली, बैठकी, लीन विधाता छीन: चाहे गंवार पढ़-लिख ले तिस पर भी उसमें तीन गुणों का अभाव पाया जाता है। बातचीत करना, चाल-ढाल और बैठकबाजी।
  61. जो गुड़ खाय वही कान छिदावे: जो आनंद लेता हो वही परिश्रम भी करे और कष्ट भी उठावे।
  62. जो गुड़ देने से मरे उसे विषय क्यों दिया जाए: जो मीठी-मीठी बातों या सुखद प्रलोभनों से नष्ट हो जाय उससे लड़ाई-झगड़ा नहीं करना चाहिए।
  63. जो टट्टू जीते संग्राम, तो क्यों खरचैं तुरकी दाम: यदि छोटे आदमियों से काम चल जाता तो बड़े लोगों को कौन पूछता।
  64. जो दूसरों के लिए गड्ढ़ा खोदता है उसके लिए कुआँ तैयार रहता है : जो दूसरे लोगों को हानि पहुँचाता है उसकी हानि अपने आप हो जाती है।
  65. जो धन दीखे जात, आधा दीजे बाँट : यदि वस्तु के नष्ट हो जाने की आशंका हो तो उसका कुछ भाग खर्च करके शेष भाग बचा लेना चाहिए।
  66. जो धावे सो पावे, जो सोवे सो खोवे : जो परिश्रम करता है उसे लाभ होता है, आलसी को केवल हानि ही हानि होती है।
  67. जो पूत दरबारी भए, देव पितर सबसे गए : जो लोग दरबारी या परदेसी होते हैं उनका धर्म नष्ट हो जाता है और वे संसार के कर्तव्यों का भी समुचित पालन नहीं कर सकते।
  68. जो बोले सो कुंडा खोले : यदि कोई मनुष्य कोई काम करने का उपाय बतावे और उसी को वह काम करने का भार सौपाजाये।
  69. जो सुख छज्जू के चौबारे में, सो न बलख बुखारे में : जो सुखअपने घर में मिलता है वह अन्यत्र कहीं भी नहीं मिल सकता।
  70. जोगी काके मीत, कलंदर किसके भाई : जोगी किसी के मित्र नहीं होते और फकीर किसी के भाई नहीं होते, क्योंकि वे नित्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाते रहते हैं।
  71. जोगी जुगत जानी नहीं, कपड़े रंगे तो क्या हुआ : गैरिक वस्त्र पहनने से ही कोई जोगी नहीं हो जाता।
  72. जोगी जोगी लड़ पड़े, खप्पड़ का नुकसान : बड़ों की लड़ाई मेंगरीबों की हानि होती है।
  73. जोरू चिकनी मियाँ मजूर : पति-पत्नी के रूप में विषमता हो, पत्नी तो सुन्दर हो परन्तु पति निर्धन और कुरूप हो।
  74. जोरू टटोले गठरी, माँ टटोले अंतड़ी : स्त्री धन चाहती है औरमाता अपने पुत्र का स्वास्थ्य चाहती है। स्त्री यह देखना चाहती है कि मेरे पति ने कितना रुपया कमाया। माता यह देखती है कि मेरा पुत्र भूखा तो नहीं है।
  75. जोरू न जांता, अल्लाह मियां से नाता : जो संसार में अकेला हो, जिसके कोई न हो।
  76. ज्यों-ज्यों भीजै कामरी, त्यों-त्यों भारी होय : जितना ही अधिक ऋण लिया जाएगा उतना ही बोझ बढ़ता जाएगा।
  77. ज्यों-ज्यों मुर्गी मोटी हो, त्यों-त्यों दुम सिकुड़े : ज्यों-ज्यों आमदनी बढ़े, त्यों-त्यों कंजूसी करे।
  78. ज्यों नकटे को आरसी, होत दिखाए क्रोध : जब कोई व्यक्तिकिसी दोषी पुरुष के दोष को बतलाता है तो उसे बहुत बुरा लगता है।
  79. झगड़े की तीन जड़, जन, जमीन, जर : स्त्री, पृथ्वी और धन इन्हीं तीनों के कारण संसार में लड़ाई-झगड़े हुआ करते हैं।
  80. झट मँगनी पट ब्याह : किसी काम के जल्दी से हो जाने पर उक्ति।
  81. झटपट की धानी, आधा तेल आधा पानी : जल्दी का काम अच्छा नहीं होता।
  82. झड़बेरी के जंगल में बिल्ली शेर : छोटी जगह में छोटे आदमी बड़े समझे जाते हैं।
  83. झूठ के पांव नहीं होते : झूठा आदमी बहस में नहीं ठहरता, उसे हार माननी होती है।
  84. झूठ बोलने में सरफ़ा क्या : झूठ बोलने में कुछ खर्च नहीं होता।
  85. झूठे को घर तक पहुँचाना चाहिए : झूठे से तब तक तर्क-वितर्क करना चाहिए जब तक वह सच न कह दे।
  86. टंटा विष की बेल है : झगड़ा करने से बहुत हानि होती है।
  87. टका कर्ता, टका हर्ता, टका मोक्ष विधायकाः
  88. टका सर्वत्र पूज्यन्ते, बिन टका टकटकायते : संसार में सभी कर्म धन से होते हैं,बिना धन के कोई काम नहीं होता।
  89. टका हो जिसके हाथ में, वह है बड़ा जात में : धनी लोगों का आदर- सत्कार सब जगह होता है।
  90. टट्टू को कोड़ा और ताजी को इशारा : मूर्ख को दंड देने की आवश्यकता पड़ती है और बुद्धिमानों के लिए इशारा काफी होता है।
  91. टाट का लंगोटा नवाब से यारी : निर्धन व्यक्ति का धनी-मानी व्यक्तियों के साथ मित्रता करने का प्रयास।
  92. टुकड़ा खाए दिल बहलाए, कपड़े फाटे घर को आए : ऐसा काम करना जिसमें केवल भरपेट भोजन मिले, कोई लाभ न हो।
  93. टेर-टेर के रोवे, अपनी लाज खोवे : जो अपनी हानि की बात सबसे कहा करता है उसकी साख जाती रहती है।
  94. ठग मारे अनजान, बनिया मारे जान : ठग अनजान आदमियों को ठगता है, परन्तु बनिया जान-पहचान वालों को ठगता है।
  95. ठुक-ठुक सोनार की, एक चोट लोहार की : जब कोई निर्बल मनुष्य किसी बलवान्‌ व्यक्ति से बार-बार छेड़खानी करता है।
  96. ठुमकी गैया सदा कलोर : नाटी गाय सदा बछिया ही जान पड़ती है। नाटा आदमी सदा लड़का ही जान पड़ता है।
  97. ठेस लगे बुद्धि बढ़े : हानि सहकर मनुष्य बुद्धिमान होता है।
  98. डरें लोमड़ी से नाम शेर खाँ : नाम के विपरीत गुण होने पर।
  99. डायन को भी दामाद प्यारा : दुष्ट स्त्रियाँ भी दामाद को प्यार करती हैं।
  100. डूबते को तिनके का सहारा : विपत्ति में पड़े हुए मनुष्यों को थोड़ा सहारा भी काफी होता है।
  101. डेढ़ पाव आटा पुल पर रसोई : थोड़ी पूँजी पर झूठा दिखावा करना।
  102. डोली न कहार, बीबी हुई हैं तैयार : जब कोई बिना बुलाए कहीं जाने को तैयार हो।
  103. ढाक के वही तीन पात : सदा से समान रूप से निर्धन रहने पर उक्त, परिणाम कुछ नहीं, बात वहीं की वहीं।
  104. ढाक तले की फूहड़, महुए तले की सुघड़ : जिसके पास धन नहीं होता वह गुणहीन और धनी व्यक्ति गुणवान्‌ माना जाता है।
  105. ढेले ऊपर चील जो बोलै, गली-गली में पानी डोलै : यदि चील ढेले पर बैठकर बोले तो समझना चाहिए कि बहुत अधिक वर्षा होगी।

लोकोक्ति MCQs

दर्जी की सुई कभी ताश में कभी टाट में-
(1) कोई दोष न होना 
(2) खाली न होना 
(3) कबाड़ी का काम करना 
(4) बेकार होना

उत्तर-(2)

पर उपदेश कुशल बहुतेरे
(1) बिना मांगे सलाह देना 
(2) दूसरों को उपदेश देने को आसान समझना
(3) बिना सोचे दूसरों की सलाह पर काम करना
(4) दूसरों की बात को शीघ्र मान लेना

उत्तर-(2)

अन्धे को अंधेरें में बहुत दूर की सूझी- 
(1) बिना देखे सब कुछ जान लेना
(2) रहस्य जान लेना
(3) कम गुणी व्यक्ति ने महान कार्य किया
(4) मूर्ख ने बुद्धिमान की बात की

उत्तर-(4)

गधा खेत खाए जुलाहा पीटा जाए –
(1) अपना व्यक्ति ही हानि पहुँचाए
(2) किसी के कर्म की सजा अन्य को मिले
(3) अकारण दोषारोपण करना
(4) हानि ही हानि होना

उत्तर-(2)

खेती पाती बीनती और घोड़े की तंग, अपने हाथ सम्भालिये चाहें लाख लोग होय संग-
(1) अपना काम स्वयं करो
(2) अन्य लोगों की सहायता की बुराई करके अपना काम स्वयं सम्पन्न करो
(3) चाहे लाखों लोग शत्रु के साथ हों फिर भी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए
(4) किसी भी दूसरे पर अपने काम के लिए भरोसा मत करो

उत्तर-(1)

नई नाइन बाँस का नैहन्ना-
(1) नये-नये चाव पूरे करने हेतु अपव्यय करना
(2) नये शौक को पूरा करने के लिए अजीब काम करना
(3) नये व्यक्ति को मूर्ख बनाना
(4) नई दुल्हन गृहस्थी के विषय में बहुत कम जानती है।

उत्तर-(2)

ऊँट को निगल लिया और दुम को हिचके-
(1) बड़ा पाप करके छोटे पाप को करने में संकोच करना 
(2) बड़ी विपत्ति को स्वीकार करना और साधारण बात पर संकोच करना
(3) कई पाप करके पवित्र होने का नाटक करना
(4) बड़ा कार्य सम्पन्न कर देना और छोटे से काम को मना कर देना

उत्तर-(2)

बोए पेड़ बबूल का आम कहाँ से होए-
(1) बच्चों को जैसा सिखाओगे वे वैसे ही बनेंगे 
(2) जैसा किया वैसा फल पाया
(3) कार्य के विपरीत फल की अपेक्षा रखना व्यर्थ है ।
(4) बुरे काम का फल अच्छा नहीं हो सकता

उत्तर-(4)

‘गिरे को खरबूजे का ज़रर” लोकोक्ति का अर्थ है-
(1) दोनों तरफ से किसी को लाभ होना। 
(2) दोनों तरफ से किसी को हानि होना। 
(3) व्यर्थ का प्रयास करना।
(4) इनमें से कोई नहीं 

उत्तर-(2)

“छूछा कोई न पूछा” लोकोक्ति का अर्थ है-
(1) गरीब आदमी का आदर-सत्कार कोई नहीं करता।
(2) जब बड़ा छोटे से अधिक ऐबी हो। 
(3) जब अमीर आदमी गरीब आदमी का आदर सत्कार करता है। 
(4) इनमें से कोई नहीं

 उत्तर-(1)

FAQs

लोकोक्तियों का अर्थ क्या है?

डॉ. भोलानाथ तिवारी के अनुसार, “विभिन्न प्रकार के अनुभवों, पौराणिक तथा ऐतिहासिक व्यक्तियों एवं कथाओं, प्राकृतिक नियमों एवं लोक विश्वास आदि पर आधारित चुटीला, सरगर्भित, सजीव, संक्षिप्त लोक प्रचलित ऐसी उक्तियों को लोकोक्ति कहते हैं जिनका प्रयोग बात की पुष्टि या विरोध, सीख तथा भविष्य कथन आदि के लिए किया जाता है।”
ऑक्सफोर्ड डिक्शनरी के अनुसार, “जनता में प्रचलित कोई छोटा सा सारगर्भित वचन, अनुभव अथवा निरीक्षण द्वारा निश्चित या सबको ज्ञात किसी सत्य को प्रकट करने वाली कोई संक्षिप्त उक्ति लोकोक्ति है।”
अरस्तु के अनुसार, “संक्षिप्त और प्रयोग करने के लिए उपयुक्त होने के कारण तत्वज्ञान के खंडहरों में से चुनकर निकाले हुए टुकड़े बचा लिए गए अंश को लोकोक्ति की संज्ञा से अभिहित किया जा सकता है।”
टेनिसन के अनुसार, “लोकोक्ति वे रत्न हैं जो लघु आकार होने पर भी अनंत काल से चली आ रही उक्ति है।”
डॉ. सत्येंद्र के अनुसार, “लोकोक्तियों में लय और तान या ताल न होकर संतुलित स्पंदनशीलता ही होती है।”
धीरेंद्र वर्मा के अनुसार, “लोकोक्तियां ग्रामीण जनता की नीति शास्त्र है। यह मानवीय ज्ञान के घनीभूत रत्न हैं।”


लोकोक्ति क्या है उदाहरण सहित?

अर्थ को पूरी तरह स्पष्ट करने वाला वाक्य लोकोक्ति कहलाता है। लोकोक्ति को कहावतें भी कहते हैं। कहावतें कही हुई बातों के समर्थन में होती है। महापुरुषों, कवियों व संतों के कहे हुए ऐसे कथन जो स्वतंत्र और आम बोलचाल की भाषा में कहे गए हैं जिसमें उनका भाव निहित होता है तो ये  लोकोक्तियाँ कहलाती है। प्रत्येक लोकोक्ति के पीछे कोई न कोई घटना व कहानी होती है। जैसे : अंधों में काना राजा, गेहूं के साथ घुन भी पिसता है आदि।


मुहावरों व लोकोक्तियों में क्या अंतर?

मुहावरा पूर्णतः स्वतंत्र नहीं होता है, अकेले मुहावरे से वाक्य पूरा नहीं होता है। लोकोक्ति पूरे वाक्य का निर्माण करने में समर्थ होती है। मुहावरा भाषा में चमत्कार उत्पन्न करता है जबकि लोकोक्ति उसमें स्थिरता लाती है। मुहावरा छोटा होता है जबकि लोकोक्ति बड़ी और भावपूर्ण होती है।

आशा है, Lokoktiyan in Hindi का यह ब्लॉग आपको पसंद आया होगा। ऐसे ही अन्य Hindi Blogs आप यहां से पढ़ सकते हैं।

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