Republic Day Poem in Hindi 2024: गणतंत्र दिवस पर वीर रस की कविता

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गणतंत्र दिवस पर वीर रस की कविता

Republic Day Poem in Hindi 2024: 26 जनवरी भारत सबसे महत्वपूर्ण राष्ट्रीय दिवसों में से एक है। भारत में गणतंत्र दिवस पर होने वाले कार्यक्रमों और समारोहों के आयोजन के लिए बहुत समय से तैयारी की जाती है। नई दिल्ली में परेड का आयोजन किया जाता है। इसके साथ ही राज्यों से बड़ी-बड़ी सैन्य झांकियां और कार्यक्रम आयोजित की जाती हैं।

नई दिल्ली में इन कार्यक्रम के बीच देश के लिए अपने प्राणों का बलिदान देने वाले सैनिकों को याद करने के लिए इंडिया गेट पर अमर जवान ज्योति पर पुष्पांजलि अर्पित करने के साथ शुरू होता है। इसके साथ ही कई स्कूल और कॉलेजों में कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इनमें से एक कविता पाठ भी प्रमुख कार्यक्रम होता है। गणतंत्र दिवस के मौके पर वीर रस की कविता (Republic Day Poem in Hindi2024) से बेहतर क्या ही हो सकता है। ऐसे में चलिए जानते हैं गणतंत्र दिवस पर वीर रस की कविता।


Republic Day Poem in Hindi 2024: सुभद्राकुमारी चौहान अपनी वीर रस कविता के लिए जानी जाती हैं, आइए इस गणतंत्र दिवस पर पढ़ें उनकी इस कविता-

वीरों का कैसा हो वसंत? 

आ रही हिमाचल से पुकार, 

है उदधि गरजता बार-बार, 

प्राची, पश्चिम, भू, नभ अपार, 

सब पूछ रहे हैं दिग्-दिगंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

फूली सरसों ने दिया रंग, 

मधु लेकर आ पहुँचा अनंग, 

वधु-वसुधा पुलकित अंग-अंग, 

हैं वीर वेश में किंतु कंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

भर रही कोकिला इधर तान, 

मारू बाजे पर उधर गान, 

है रंग और रण का विधान, 

मिलने आये हैं आदि-अंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

गलबाँहें हों, या हो कृपाण, 

चल-चितवन हो, या धनुष-बाण, 

हो रस-विलास या दलित-त्राण, 

अब यही समस्या है दुरंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

कह दे अतीत अब मौन त्याग, 

लंके, तुझमें क्यों लगी आग? 

ऐ कुरुक्षेत्र! अब जाग, जाग, 

बतला अपने अनुभव अनंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

हल्दी-घाटी के शिला-खंड, 

ऐ दुर्ग! सिंह-गढ़ के प्रचंड, 

राणा-ताना का कर घमंड, 

दो जगा आज स्मृतियाँ ज्वलंत, 

वीरों का कैसा हो वसंत? 

भूषण अथवा कवि चंद नहीं, 

बिजली भर दे वह छंद नहीं, 

है क़लम बँधी, स्वच्छंद नहीं, 

फिर हमें बतावे कौन? हंत! 

वीरों का कैसा हो वसंत?


ये वीर रस कविता आर. चेतनक्रांति जी की लिखी गई है,

सपाट सोच, इकहरा दिमाग़, दिल पत्थर। 

सैकड़ों साल से ठहरी हुई काई ऊपर। 

बेरहम सोच की ख़ुदकश निगहबान से फ़रार। 

तुम जो फिरते हो लिए सर पे क़दीमी तलवार। 

तुमको मालूम भी है वक़्त कहाँ जाता है! 

और इस वक़्त से इंसान का रिश्ता क्या है! 

तुम जो पापों को दान-दक्षिणा से ढकते हो। 

और भगवान् को गुल्लक बना के रखते हो। 

तुम जिन्हें चीख़कर ताक़त का भरम होता है। 

ज़ुल्म से अपनी हुक़ूमत का भरम होता है। 

तुम जिन्हें औरतों की आह मज़ा देती है। 

जिनको इंसान की तकलीफ़ हँसा देती है। 

तुम जिन्हें है ही नहीं इल्म कि ग़म क्या शै है। 

कशमकश दिल की, निगाहों की शरम क्या शै है। 

तुम तो उठते हो और जाके टूट पड़ते हो। 

सोच की आँच पे घबरा के टूट पड़ते हो। 

न ठहरते हो न सुनते हो न झिझकते हो। 

राम ही जाने कि क्या-क्या अनर्थ बकते हो। 

यूँ कभी देश कभी धर्म कभी चाल-चलन। 

असल वजह तो इस ग़ुस्से की है ये ठोस बदन। 

इससे कुछ काम अब दिमाग़ को भी लेने दो। 

ज़रा-सा गोश्त गमो-फ़िक्र को भी चखने दो। 

जोशे-कमज़र्फ़ इस मिट्टी को नहीं भाता है। 

इसको दानाँ की उदासी पे प्यार आता है। 

इसने हमलावरों को लोरियों से जीत लिया। 

ख़ून के वल्वलों को थपकियों से जीत लिया। 

लेके लश्कर जो इसे जीतने आए बाबर।

इसका जादू कि उन्हीं से उगा दिए अकबर। 

तंगनज़री से इसे पहचानना मुमकिन ही नहीं। 

नफ़रतों से इसे पहचानना मुमकिन ही नहीं। 

इसको जनना ही नहीं, पालना भी आता है। 

सिर्फ़ भारत की माँ नहीं, ये विश्वमाता है। 



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पढ़िए माखनलाल चतुर्वेदी की वीर रस की कविता – ‘मुक्त गगन है, मुक्त पवन है’

‘मुक्त गनन है, मुक्त पवन है, मुक्त सांस गरबीली’
लांघ सात लंबी सदियों को हुई शृंखला ढीली। 

टूटी नहीं कि लगा अभी तक उपनिवेश का दाग़
बोल तिरंगे तुझे उड़ाऊं या कि जगाऊं आग?

उठ रणराते, ओ बलखाते, विजयी भारतवर्ष
नक्षत्रों पर बैठे पूर्वज माप रहे उत्कर्ष। 

ओ पूरब के प्रलयी पंथी, ओ जग के सेनानी
होने दे भूकंप कि तूने, आज भृकुटियां तानी। 

नभ तेरा है? तो उड़ते हैं वायुयान ये किसके?
भुज-वज्रों पर मुक्ति-स्वर्ण को देख लिया है कसके?

तीन ओर सागर तेरा है, लहरें दौड़ी आती चरण,
भुजा, कटिबंध देश तक वे अभिषेक सजातीं। 

क्या लहरों से खेल रहे वे हैं जलयान तुम्हारे नहीं?
अरे तो हटे न अब तक लहरों के हत्यारे?

वह छूटी बंदूक़, गोलियां, क्या उधार हैं आई
तो हमने किसकी करुणा से यह आज़ादी पाई?

उठ पूरब के प्रहरी, पश्चिम जांच रहा घर तेरा
साबित कर तेरे घर पहले होता विश्व-सवेरा?

तुझ पर पड़ जो किरणें जूठी हो जाती,
जग पाता जीने के ये मंत्र सूर्य से सीखो भाग्य-विधाता। 

सूझों में, सांसों में, संगर में, श्रम में, ज्वारों में जीने में,
मरने में, प्रतिभा में, आविष्कारों में।  

सागर की बांहें लांघे हैं तट-चुंबित भू-सीमा
तू भी सीमा लांघ, जगा एशिया, उठा भुज-भीमा। 

वह नेपाल प्रलय का प्रहरी, वह तिब्बत सुर-धामी
वह गांधार युगों का साथी, वीर सोवियत नामी। 

तुझे देख उन्मुक्त आज से उन्नत बोल रहे हैं
चीन, निपन, बर्मा, जाबा के मस्तक डोल रहे हैं। 

आज हो गई धन्य प्रबल, हिंदी वीरों की भाषा
कोटि-कोटि सिर क़लम किये फूली उसकी अभिलाषा

जग कहता है तू विशाल है, तू महान, जय तेरी
लोक-लोक से बरस रही तुझ पर पुष्पों की ढेरी।

तीन तरफ़ सागर की लहरें जिसका बने बसेरा
पतवारों पर नियति सजाती जिसका सांझ-सवेरा। 

बनती हो मल्लाह-मुट्ठियां सतत भाग्य की रेखा
रतनाकर रतनों का देता हो टकराकर लेखा।

उस लहरीले घर के झंडे देश-देश में लहरें
लहरों से जागृत नर-प्रहरी कभी न रुककर ठहरें। 

उठता हो आकाश, हिमालय दिव्य द्वार हो अपना
सागर हो विजया मां तेरा उस परसों का सपना। 

चिंतक, चिंताधारा तेरी आज प्राण पा बैठी
रे योद्धा प्रत्यंचा तेरी, उठ कि बाण पा बैठी।

लाल किले का झंडा हो, अंगुलि-निर्देश तुम्हारा
और कटे धड़ वाला अर्पित तुमको देश तुम्हारा। 

धड़ से धड़ को जोड़ बना तू भारत एक अखंडित
तेरे यश का गान करेंगे प्रलय-नाद के पंडित। 

ब्रिटिश राज टुकड़े-टुकड़े है क्या समाज का भय है
उठ कि मसल दे शिथिल रूढ़ियां तेरी आज विजय है। 

तोड़ अमीरों के मनसूबे, गिन न दिनों की घड़ियां
बुला रही हैं, तुझे देश की कोटि-कोटि झोपड़ियां

मिले रक्त से रक्त, मने अपना त्यौहार सलौना
भरा रहे अपनी बलि से मां की पूजा का दौना। 

हथकड़ियों वाले हाथों हैं, शत-शत वंदनवारें
और चूड़ियों की कलाइयां उठ आरती उतारें।

हो नन्हीं दुनियां के हाथों कोटि-कोटि जयमाला
मस्तक पर दायित्व, हृदय में वज्र, दृगों में ज्वाला। 

तीस करोड़ धड़ों पर गर्वित, उठे, तने, ये शिर
हैं तुम संकेत करो, कि हथेली पर शत-शत हाज़िर हैं।’

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आशा है कि आपको गणतंत्र दिवस पर वीर रस की कविता (Republic Day Poem in Hindi 2024) का यह ब्लॉग पसंद आया होगा। इसी तरह के जीके और ट्रेंडिंग इवेंट्स से संबंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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