Freedom Fighters Poem : भारत के नायकों की गाथाएं गाती स्वतंत्रता संग्राम की ये लोकप्रिय कविताएं

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Freedom Fighters Poem in Hindi

भारत के नायकों की गाथाएं और स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित लोकप्रिय कविताएं आपके समक्ष आजादी के उस महान संघर्ष का इतिहास बताती हैं, जिनके बल पर हमारी मातृभूमि ने स्वतंत्रता प्राप्त की थी। आजादी पर लिखी कविताएं समाज को संगठित करने और युवाओं में राष्ट्रवाद की भावनाओं को बल देने का प्रयास करेंगी। इस ब्लॉग के माध्यम से आपको भारत के नायकों और स्वतंत्रता संग्राम पर कविताएं (Freedom Fighters Poem in Hindi) पढ़ने का अवसर मिलेगा, जो आपका परिचय आजादी की लड़ाई के सच्चे नायकों के शौर्य, बलिदान और देशभक्ति से करवाएंगी।

Freedom Fighters Poem in Hindi – भारत के नायकों और स्वतंत्रता संग्राम पर कविताएं

भारत के नायकों और स्वतंत्रता संग्राम पर कविताएं, आजादी की लड़ाई में एक ऐसा माध्यम बनीं जिनका सहारा लेकर लोगों में जोश और देशभक्ति की भावना को जगाया गया था। Freedom Fighters Poem in Hindi आज भी समाज को संगठित करने और राष्ट्रहित में निर्णय लेने के लिए प्रेरणा देती हैं।

आह्वान

अशफाकउल्ला खां की लोकप्रिय कविताओं में से एक “आह्वान” भी है, जिसने आजादी की लड़ाई में एक मुख्य भूमिका निभाई। ये कविता कुछ इस प्रकार है –

कस ली है कमर अब तो, कुछ करके दिखाएंगे,
आजाद ही हो लेंगे, या सर ही कटा देंगे
हटने के नहीं पीछे, डरकर कभी जुल्मों से
तुम हाथ उठाओगे, हम पैर बढ़ा देंगे
बेशस्त्र नहीं हैं हम, बल है हमें चरख़े का,
चरख़े से ज़मीं को हम, ता चर्ख़ गुंजा देंगे
परवाह नहीं कुछ दम की, ग़म की नहीं, मातम की
है जान हथेली पर, एक दम में गंवा देंगे
उफ़ तक भी जुबां से हम हरगिज़ न निकालेंगे
तलवार उठाओ तुम, हम सर को झुका देंगे
सीखा है नया हमने लड़ने का यह तरीका
चलवाओ गन मशीनें, हम सीना अड़ा देंगे
दिलवाओ हमें फांसी, ऐलान से कहते हैं
ख़ूं से ही हम शहीदों के, फ़ौज बना देंगे
मुसाफ़िर जो अंडमान के, तूने बनाए, ज़ालिम
आज़ाद ही होने पर, हम उनको बुला लेंगे

-अशफाकउल्ला खां

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आजादी

स्वतंत्रता संग्राम के लिए समाज को जगाने और संगठित करने में मुख्य भूमिका निभाने वाली कविताओं में से एक राम प्रसाद बिस्मिल की लोकप्रिय कविता “आजादी” भी है, जो कुछ इस प्रकार है –

इलाही ख़ैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,
हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
कभी आज़ाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं
मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं
असीराने-क़फ़स से काश, यह सैयाद कह देता
रहो आज़ाद होकर, हम तुम्हें आज़ाद करते हैं
रहा करता है अहले-ग़म को क्या-क्या इंतज़ार इसका
कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं
यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कै़दे-उल्फ़त में
वो अब आज़ाद करते हैं, वो अब आज़ाद करते हैं
सितम ऐसा नहीं देखा, जफ़ा ऐसी नहीं देखी,
वो चुप रहने को कहते हैं, जो हम फ़रियाद करते हैं
यह बात अच्छी नहीं होती, यह बात अच्छी नहीं करते
हमें बेकस समझकर आप क्यों बरबाद करते हैं?
कोई बिस्मिल बनाता है, जो मक़तल में हमें ‘बिस्मिल’
तो हम डरकर दबी आवाज़ से फ़रियाद करते हैं

-राम प्रसाद बिस्मिल

जिस देश में गंगा बहती है

स्वतंत्रता संग्राम मुख्य भूमिका निभाने वाली कविताओं में शैलेन्द्र की लोकप्रिय कविता “जिस देश में गंगा बहती है” भी है, जो कुछ इस प्रकार है –

होठों पे सच्चाई रहती है, जहां दिल में सफ़ाई रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
मेहमां जो हमारा होता है, वो जान से प्यारा होता है
ज़्यादा की नहीं लालच हमको, थोड़े मे गुज़ारा होता है
बच्चों के लिये जो धरती माँ, सदियों से सभी कुछ सहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
कुछ लोग जो ज़्यादा जानते हैं, इन्सान को कम पहचानते हैं
ये पूरब है पूरबवाले, हर जान की कीमत जानते हैं
मिल जुल के रहो और प्यार करो, एक चीज़ यही जो रहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है
जो जिससे मिला सिखा हमने, गैरों को भी अपनाया हमने
मतलब के लिये अन्धे होकर, रोटी को नही पूजा हमने
अब हम तो क्या सारी दुनिया, सारी दुनिया से कहती है
हम उस देश के वासी हैं, हम उस देश के वासी हैं
जिस देश में गंगा बहती है

-शैलेन्द्र

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मेरे देश की आंखें

स्वतंत्रता संग्राम के संघर्षों को प्रस्तुत करती अज्ञेय की एक लोकप्रिय कविता “मेरे देश की आंखें” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;

नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं
पुते गालों के ऊपर
नकली भवों के नीचे
छाया प्यार के छलावे बिछाती
मुकुर से उठाई हुई
मुस्कान मुस्कुराती
ये आंखें
नहीं, ये मेरे देश की नहीं हैं
तनाव से झुर्रियां पड़ी कोरों की दरार से
शरारे छोड़ती घृणा से सिकुड़ी पुतलियां
नहीं, ये मेरे देश की आंखें नहीं हैं...
वन डालियों के बीच से
चौंकी अनपहचानी
कभी झांकती हैं
वे आंखें,
मेरे देश की आंखें,
खेतों के पार
मेड़ की लीक धारे
क्षिति-रेखा को खोजती
सूनी कभी ताकती हैं
वे आंखें
उसने
झुकी कमर सीधी की
माथे से पसीना पोछा
डलिया हाथ से छोड़ी
और उड़ी धूल के बादल के
बीच में से झलमलाते
जाड़ों की अमावस में से
मैले चांद-चेहरे सुकचाते
में टंकी थकी पलकें
उठाईं
और कितने काल-सागरों के पार तैर आईं
मेरे देश की आंखें

-अज्ञेय

रोटी और स्वाधीनता

स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित रामधारी सिंह दिनकर की एक लोकप्रिय कविता “रोटी और स्वाधीनता” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;

आजादी तो मिल गई, मगर, यह गौरव कहाँ जुगाएगा 
मरभुखे! इसे घबराहट में तू बेच न तो खा जाएगा 
आजादी रोटी नहीं, मगर, दोनों में कोई वैर नहीं
पर कहीं भूख बेताब हुई तो आजादी की खैर नहीं
हो रहे खड़े आजादी को हर ओर दगा देनेवाले
पशुओं को रोटी दिखा उन्हें फिर साथ लगा लेनेवाले
इनके जादू का जोर भला कब तक बुभुक्षु सह सकता है 
है कौन, पेट की ज्वाला में पड़कर मनुष्य रह सकता है 
झेलेगा यह बलिदान? भूख की घनी चोट सह पाएगा 
आ पड़ी विपद तो क्या प्रताप-सा घास चबा रह पाएगा 
है बड़ी बात आजादी का पाना ही नहीं, जुगाना भी
बलि एक बार ही नहीं, उसे पड़ता फिर-फिर दुहराना भी

-रामधारी सिंह दिनकर

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आजादी की पहली वर्षगाँठ

स्वतंत्रता संग्राम पर आधारित कविताओं ने देश में आजादी की लड़ाई के लिए अलख जगाने का काम किया था, तब जाकर भारत आजाद हुआ था। आजाद भारत में आजादी के बाद के चित्रण को प्रस्तुत करने का यूँ तो अनेक कवियों ने प्रयास किया, लेकिन हरिवंशराय बच्चन उन चुनिंदा लोकप्रिय कवियों में से एक हैं, जिनकी एक लोकप्रिय कविता “आजादी की पहली वर्षगाँठ” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;

आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
आज़ादी का आया है पहला जन्म-दिवस,
उत्साह उमंगों पर पाला-सा रहा बरस,
यह उस बच्चे की सालगिरह-सी लगती है
जिसकी मां उसको जन्मदान करते ही बस
कर गई देह का मोह छोड़ स्वर्गप्रयाण
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
किस को बापू की नहीं आ रही आज याद
किसके मन में है आज नहीं जागा विषाद
जिसके सबसे ज्यादा श्रम यत्नों से आई
आजादी उसको ही खा बैठा है प्रमाद
जिसके शिकार हैं दोनों हिन्दू-मुसलमान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
कैसे हम उन लाखों को सकते है बिसार
पुश्तहा-पुश्त की धरती को कर नमस्कार
जो चले काफ़िलों में मीलों के, लिए आस
कोई उनको अपनाएगा बाहें पसार
जो भटक रहे अब भी सहते मानापमान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
कश्मीर और हैदराबाद का जन-समाज
आज़ादी की कीमत देने में लगा आज
है एक व्यक्ति भी जब तक भारत में गुलाम
अपनी स्वतंत्रता का है हमको व्यर्थ नाज़
स्वाधीन राष्ट्र के देने हैं हमको प्रमाण
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
है आज उचित उन वीरों का करना सुमिरन
जिनके आँसू, जिनके लोहू, जिनके श्रमकण
से हमें मिला है दुनिया में ऐसा अवसर
हम तान सकें सीना, ऊँची रक्खें गर्दन
आज़ाद कंठ से आज़ादी का करें गान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान
सम्पूर्ण जाति के अन्दर जागे वह विवेक
जो बिखरे हैं, हो जाएं मिलकर पुनः एक
उच्चादर्शों की ओर बढ़ाए चले पांव
पदमर्दित कर नीचे प्रलोभनों को अनेक
हो सकें साधनाओं से ऐसे शक्तिमान
दे सकें संकटापन्न विश्व को अभयदान
आज़ादी का दिन मना रहा हिन्दोस्तान

-हरिवंशराय बच्चन

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आजादी पर आधारित कुछ अन्य लोकप्रिय कविताएं

आजादी पर आधारित लोकप्रिय कविताएं आपके जीवन में राष्ट्रवाद का बीज बोने के साथ-साथ, आपको देशहित में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करने का काम करेंगी, जो इस प्रकार हैं –

  • झाँसी की रानी – सुभद्राकुमारी चौहान
  • देश-प्रेम : मेरे लिए – धूमिल
  • शहीदों की चिताओं पर – जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’
  • सन् 1857 की जनक्रांति – गयाप्रसाद शुक्ल ‘सनेही’
  • 15 अगस्त 1947 – सुमित्रानंदन पंत
  • 15 अगस्त – महावीर प्रसाद ‘मधुप’
  • 15 अगस्त 1947 – शील
  • स्वतंत्रता दिवस की पुकार – अटल बिहारी वाजपेयी इत्यादि।

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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप भारत के नायकों और स्वतंत्रता संग्राम पर कविताएं (Freedom Fighters Poem in Hindi) पढ़ पाए होंगे। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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