Russian Revolution in Hindi: रूसी क्रांति क्या है? जानें इसके प्रमुख कारण, घटनाएँ और प्रभाव

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Russian Revolution in Hindi

Russian Revolution in Hindi: रूसी क्रांति केवल एक देश की सत्ता परिवर्तन की कहानी नहीं है, बल्कि यह उस ज्वालामुखी के विस्फोट की कहानी है, जिस समाज में अन्याय, असमानता, भूख, युद्ध और शोषण की आग धधक रही थी, उस उबलते हुए माहौल में लेनिन और बोल्शेविकों ने एक ऐसे नए समाज की नींव रखी, जहाँ हर किसी को समान अवसर, अधिकार और अपना हक मिलने की उम्मीद थी। 1917 की रूसी क्रांति, बीसवीं सदी की सबसे भयानक क्रांतियों में से एक थी। इस भयानक क्रांति ने रूस के शाही परिवार, रोमानोव वंश और सदियों पुराने उनके शासन को जड़ से उखाड़ फेंका। रूस की क्रांति में सबसे महत्वपूर्ण दो आंदोलन शामिल रहे हैं। इस ब्लॉग में हम रुसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi) से जुड़े पहलुओं और परितिथियों के बारे में विस्तार से चर्चा करेंगे।

रूसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi) क्या है?

1917 की रूसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi), 20वीं सदी की सबसे महत्वपूर्ण और उथल-पुथल भरी घटनाओं में से एक थी। इस क्रांति ने न केवल रूस के सदियों पुराने ज़ारशाही शासन को उखाड़ फेंका, बल्कि दुनिया के इतिहास में एक नए राजनीतिक और सामाजिक युग की शुरुआत की। यह क्रांति दो चरणों में हुई और इसने रूस को एक साम्यवादी राज्य में बदल दिया, जिसका वैश्विक राजनीति पर गहरा प्रभाव पड़ा। आइए इस महत्वपूर्ण घटनाक्रम के बारे में विस्तार से जानते हैं।

रूसी क्रांति: कब और क्यों हुई?

रूस में 19वीं सदी के दौरान औद्योगिक क्रांति ने सामाजिक और राजनीतिक परिवर्तन लाए। शहरी केंद्रों में जनसंख्या वृद्धि ने बुनियादी ढांचे पर दबाव डाला और प्रदूषण, भीड़भाड़ जैसी समस्याएं पैदा कीं। इससे नया मध्यम वर्ग बेचैन हो गया। ज़ार की कार्रवाई न होने से तंग आकर लोगों ने मार्च करना शुरू कर दिया, जिसे खूनी रविवार नरसंहार के रूप में जाना जाता है। इस घटना ने राजशाही के पतन की शुरुआत की और 1905 की रूसी क्रांति को जन्म दिया। इस क्रांति के दौरान, ज़ार निकोलस द्वितीय ने आर्थिक और राजनीतिक सुधारों को स्थापित करने के लिए सहमति दी, लेकिन उनकी देरी और संसद को भंग करने से लोगों का विश्वास उठ गया। खूनी रविवार नरसंहार और परिणामी क्रांति ने ज़ार की नींव हिला दी और रूस के आधुनिक इतिहास में एक नया मोड़ ला दिया। 1917 में रूस में दो महत्वपूर्ण क्रांतियाँ हुईं, जो कि निम्नलिखित हैं –

फरवरी क्रांति (मार्च 1917): जूलियन कैलेंडर के अनुसार फरवरी में हुई इस क्रांति के परिणामस्वरूप ज़ार निकोलस द्वितीय का त्याग हुआ और एक अस्थायी सरकार की स्थापना हुई। फरवरी की क्रांति को पेत्रोग्राद रेवोलुशन भी कहा जाता है। 1917 में पेत्रोग्राद में मजदूरों और महिलाओं ने अनाज के लिए प्रदर्शन शुरू किया था। जल्द ही सैनिकों ने भी विद्रोह कर दिया और ज़ार के आदेश मानने से इंकार कर दिया फिर स्थिति बिगड़ी और ज़ार निकोलस द्वितीय को गद्दी छोड़नी पड़ी। एक अंतरिम सरकार का गठन हुआ, लेकिन वह कमजोर और असफल रही। बोल्शेविकों ने जनता के बीच अपनी एक अमिट छाप छोड़ी। 

अक्टूबर क्रांति (नवंबर 1917): जूलियन कैलेंडर के अनुसार अक्टूबर में हुई इस क्रांति में वामपंथी क्रांतिकारियों, बोल्शेविकों ने व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में अस्थायी सरकार को उखाड़ फेंका और सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया। अंतरिम सरकार की असफलताओं और जनता की उम्मीदों के टूटने के बाद बोल्शेविक पार्टी ने अक्टूबर 1917 में लेनिन के नेतृत्व में सशस्त्र विद्रोह कर सत्ता पर कब्जा कर लिया। लेनिन ने “शांति, रोटी और ज़मीन” का नारा दिया जिसने जनता के दिलों में जगह बनाई। विंटर पैलेस पर कब्जे के बाद सरकार गिर गई और समाजवादी शासन की शुरुआत हुई। यह घटना दुनिया की पहली सफल कम्युनिस्ट क्रांति बनी।

रूसी क्रांति के मुख्य कारण

रूसी क्रांति के पीछे कई कठोर आर्थिक, सामाजिक और राजनीतिक कारण थे:

आर्थिक कारण

  • पिछड़ी अर्थव्यवस्था: 20वीं सदी की शुरुआत में भी रूस यूरोप के सबसे गरीब और कम विकसित देशों में से एक था। पश्चिमी यूरोप की तुलना में रूस में औद्योगिकीकरण बहुत देर से शुरू हुआ और यह सीमित क्षेत्रों तक ही सिमटा रहा।
  • कृषि संकट: अधिकांश आबादी कृषि पर निर्भर थी, लेकिन किसानों के पास आधुनिक तकनीक और उपकरणों की कमी थी। कठोर जलवायु और कम कृषि योग्य भूमि के कारण अक्सर खाद्यान्न की कमी बनी रहती थी।
  • श्रमिकों की दयनीय स्थिति: शहरों में औद्योगिक श्रमिकों की संख्या बढ़ रही थी, लेकिन उनकी कामकाजी और रहने की स्थितियाँ बेहद खराब थीं। उन्हें कम वेतन, लंबे काम के घंटे और अस्वच्छ वातावरण में काम करने के लिए मजबूर किया जाता था।
  • महंगे युद्ध: क्रीमिया युद्ध (1853-1856) और रूस-जापान युद्ध (1904-1905) जैसे महंगे युद्धों ने रूसी अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डाला और लोगों की आर्थिक कठिनाइयों को और बढ़ा दिया।

सामाजिक कारण

असमान समाज: रूसी समाज में भारी असमानता थी। एक छोटा सा अभिजात वर्ग (कुलीन वर्ग) विशाल भूमि और धन का मालिक था, जबकि अधिकांश आबादी गरीबी और अभाव में जी रही थी।

दास प्रथा का अंत: 1861 में दास प्रथा समाप्त कर दी गई थी, लेकिन किसानों को भूमि के लिए ज़मींदारों को ‘मोचन भुगतान’ करना पड़ता था, जिससे उनकी आर्थिक स्थिति में कोई खास सुधार नहीं हुआ।

बुद्धिजीवियों का प्रभाव: पश्चिमी विचारों से प्रभावित रूसी बुद्धिजीवियों ने ज़ारशाही शासन की आलोचना की और सामाजिक और राजनीतिक सुधारों की मांग की।

1905 की क्रांति: 1905 में ‘खूनी रविवार’ की घटना, जिसमें शांतिपूर्ण प्रदर्शनकारियों पर ज़ार की सेना ने गोलियां चलाईं, ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया और क्रांति की नींव मजबूत की।

राजनीतिक कारण

निरंकुश ज़ारशाही: रूस पर सदियों से ज़ार का निरंकुश शासन था। ज़ार अपनी मनमानी चलाते थे और लोगों की राय या किसी लोकतांत्रिक संस्था का कोई सम्मान नहीं करते थे।

सरकारी भ्रष्टाचार: ज़ारशाही सरकार में व्यापक भ्रष्टाचार फैला हुआ था, जिससे लोगों का विश्वास उठ गया था।

प्रथम विश्व युद्ध में रूस की विफलता: 1914 में रूस ने प्रथम विश्व युद्ध में प्रवेश किया, लेकिन रूसी सेना जर्मन सेना के सामने टिक नहीं पाई। भारी जान-माल की हानि और युद्ध संबंधी कठिनाइयों ने ज़ारशाही शासन की कमजोरी को उजागर कर दिया।

ड्यूमा की विफलता: 1905 की क्रांति के बाद ज़ार ने एक निर्वाचित विधायिका (ड्यूमा) बनाने का वादा किया था, लेकिन उन्होंने इसे बार-बार भंग कर दिया जब इसने उनकी इच्छा का विरोध किया।

रासपुतिन का प्रभाव: ज़ारिना एलेक्जेंड्रा पर रहस्यमय व्यक्ति ग्रिगोरी रासपुतिन का बढ़ता प्रभाव भी लोगों के बीच असंतोष का कारण बना।

रूसी क्रांति के चरण (टाइम लाइन)

रूसी क्रांति एक कठिन प्रक्रिया थी जिसमें कई महत्वपूर्ण घटनाएं शामिल थीं, जैसे की:

वर्ष घटना 
1905रूस की कैनरी 1905, ब्लडी संडे 
1914-1917रूस का विश्व युद्व में शामिल होना
1917 मार्चफरवरी क्रांति, ज़ार निकोलस द्वितीय का गद्दी छोड़ना, अस्थायी सरकार का बनना
1917 नवंबर अक्टूबर क्रांति, बोल्शेविकों का सत्ता पर कब्ज़ा
1917-1922रूसी गृह युद्ध
1918ज़ार निकोलस द्वितीय और उनके परिवार की हत्या
1922सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) की स्थापना
  • 1905 की क्रांति: खूनी रविवार(bloody sunday) और उसके बाद हुई हड़तालों और विरोध प्रदर्शनों ने ज़ारशाही शासन को पहली बड़ी चुनौती दी।
  • प्रथम विश्व युद्ध (1914-1917): युद्ध में रूस की लगातार हार और आर्थिक संकट ने ज़ारशाही शासन के खिलाफ माहौल और खराब कर दिया।
  • फरवरी क्रांति (मार्च 1917): पेट्रोग्राद (सेंट पीटर्सबर्ग) में रोटी की कमी के कारण हुए प्रदर्शनों ने व्यापक हड़ताल का रूप ले लिया। सेना ने भी विद्रोहियों का साथ दिया, जिसके कारण ज़ार निकोलस द्वितीय को त्याग करना पड़ा। एक अस्थायी सरकार का गठन हुआ।
  • अस्थायी सरकार का शासन (मार्च – अक्टूबर 1917): उदारवादियों और समाजवादियों से मिलकर बनी अस्थायी सरकार लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर पाई। युद्ध जारी रहा और आर्थिक समस्याएँ बनी रहीं। इस दौरान सोवियतों (श्रमिकों और सैनिकों की परिषदों) का प्रभाव बढ़ता गया।
  • अक्टूबर क्रांति (नवंबर 1917): व्लादिमीर लेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने एक सुनियोजित तख्तापलट में अस्थायी सरकार को उखाड़ फेंका और सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया।
  • रूसी गृह युद्ध (1917-1922): बोल्शेविकों (‘रेड्स’) और उनके विरोधियों (‘व्हाइट्स’) के बीच एक हिंसक गृह युद्ध छिड़ गया। अंततः बोल्शेविकों ने जीत हासिल की।
  • सोवियत संघ की स्थापना (1922): गृह युद्ध की समाप्ति के बाद, बोल्शेविकों ने रूस और आसपास के क्षेत्रों को मिलाकर सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) की स्थापना की।

रूसी क्रांति के परिणाम

रूसी क्रांति के दूरगामी और महत्वपूर्ण परिणाम हुए:

  • ज़ारशाही शासन का अंत: सदियों पुराने रोमानोव राजवंश का अंत हो गया। ज़ार निकोलस द्वितीय और उनके परिवार को फांसी दे दी गई।
  • साम्यवादी शासन की स्थापना: दुनिया का पहला साम्यवादी राज्य स्थापित हुआ, जिसने वैश्विक राजनीति और विचारधारा को गहराई से प्रभावित किया।
  • सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन: भूमि का पुनर्वितरण किया गया, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया गया और एक नई सामाजिक व्यवस्था स्थापित करने के प्रयास किए गए।
  • रूसी गृह युद्ध: क्रांति के बाद हुए गृह युद्ध में लाखों लोगों की जान गई और देश की अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित हुई।
  • सोवियत संघ का उदय: रूसी साम्राज्य के स्थान पर एक नया शक्तिशाली राज्य, सोवियत संघ का उदय हुआ, जो शीत युद्ध के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ दुनिया की दो महाशक्तियों में से एक बन गया।
  • वैश्विक प्रभाव: रूसी क्रांति ने दुनिया भर के समाजवादी और कम्युनिस्ट आंदोलनों को प्रेरित किया और उपनिवेशवाद विरोधी संघर्षों को बढ़ावा दिया।

रूस में हुए गृह युद्ध की जानकारी

रूस में गृह युद्ध 1918-1921 में हुआ था। जहाँ रेड आर्मी और वाइट आर्मी के बिच युद्ध हुआ था। रेड आर्मी बोल्शेविक की थी और वाइट आर्मी ज़ार समर्थक और पूंजीवादी थे। विदेशी शक्तियां जैसे ब्रिटैन, फ्रांस, अमेरिका, वाइट आर्मी की मदद कर रहे थे। लाखों लोगों को मौत के घाट उतरा गया और रूस की स्थिति और भी ख़राब हो गयी। आखिर मैं बोल्शेविक की जीत हुई और समजवादी शासन पूरी तरह से स्थापित हुआ। लेनिन ने नयी आर्थिक निति (NEP) लागु किया जिसके बाद अर्थ व्यवस्था मैं थोड़ी स्थिरता बानी। 

रूस की क्रांति के बाद हुए बदलाव

रूस की क्रांति के बाद हुए पाँच मुख्य परिवर्तनों की टेबल इस प्रकार है:

क्रम पहलू क्रांति के बाद की स्थिति
1ज़ार का शासन खत्मसदियों पुरानी ज़ारशाही (राजा का शासन) समाप्त हो गया।
2बोल्शेविकों का कब्ज़ालेनिन के नेतृत्व में बोल्शेविकों ने सत्ता हथिया ली।
3किसानों को ज़मीनअमीरों से ज़मीन लेकर किसानों में बाँट दी गई।
4किसानों को ज़मीनबड़े कारखानों का राष्ट्रीयकरण हुआ और श्रमिकों को नियंत्रण मिला।
5सोवियत संघ का जन्म1922 में सोवियत समाजवादी गणराज्य संघ (USSR) बना, जिसने दुनिया की राजनीति बदल दी।

समजवादी समाज का निर्माण 

बोल्शेविक शासन के दौरान समाज को वर्गहीन और बराबरी आधारीत बनाने की दिशा में कई प्रयास किए गए जैसे, राष्ट्रीयकरण किया गया और फैक्ट्रियों पर मजदूरों का नियंत्रण हुआ और शिक्षा व स्वस्थ्य सेवाएं मुफ्त में दी गयी।  महिलाओं को सामान अधिकार दिए गए एयर धर्मनिरपेक्षता को बढ़ावा मिला। लेनिन की नीतियों ने सोवियत संघ (USSR ) को एक नए युग में प्रवेश कराया। 

स्टालिनवाद (Stalinism)

स्टालिन के शासन में सोवियत संघ एक औद्योगिक शक्ति बना, लेकिन इसकी कीमत बहुत बड़ी थी। राजनितिक विरोधियों को महान सफाई अभियान (Great Purge) के तहत मारा गया और जेलों में डाला गया। हालांकि देश आर्थिक रूप से मजबूत हुआ, लेकिन व्यक्तीगत स्वतंत्रताएं पूरी तरह से समाप्त हो गयी। 

  • उन्होंने सामूहिक खेती (collectivization) और औद्योगीकरण को तेजी से लागू किया।  
  • विरोधियों को कठोर दंड दिए गए – लाखों को गुलाग शिविरों में भेजा गया।  
  • सरकार द्वारा हर क्षेत्र पर पूर्ण नियंत्रण किया गया।

रूसी क्रांति का भारत पर प्रभाव

रूसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi) का भारत पर प्रभाव इस प्रकार हैं:

  • 1917 में रूस में ज़ार निकोलस द्वितीय की सत्ता का अंत हुआ और बोल्शेविक पार्टी के नेतृत्व में लेनिन ने समाजवादी सरकार की स्थापना की। इस क्रांति ने विश्वभर के उपनिवेशों में स्वतंत्रता की आशा जगाई।
  • रूसी क्रांति ने भारतीय नेताओं को यह विश्वास दिलाया कि एक संगठित जन आंदोलन से औपनिवेशिक शासन को समाप्त किया जा सकता है। इसने भारत में समाजवादी और साम्यवादी विचारों के प्रसार को बढ़ावा दिया।
  • क्रांति से प्रेरित होकर, 1920 में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना हुई। एम.एन. रॉय जैसे नेताओं ने सोवियत रूस में प्रशिक्षण प्राप्त कर भारत में समाजवादी विचारधारा का प्रचार किया।
  • रूसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi) के प्रभाव से भारत में श्रमिकों और किसानों के अधिकारों के लिए आंदोलन तेज हुए। बताना चाहेंगे कि 1920 में अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कांग्रेस (AITUC) की स्थापना हुई, जो मजदूरों के हितों की रक्षा के लिए कार्यरत रही।
  • 1934 में कांग्रेस के भीतर सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना हुई, जिसने पार्टी को वामपंथी विचारधारा की ओर मोड़ा। जवाहरलाल नेहरू जैसे नेता सोवियत मॉडल से प्रभावित थे।

FAQs

रूस में किसका धर्म है?

रूस में रूढ़िवादी ईसाई धर्म रूस में सबसे व्यापक रूप से प्रचलित धर्म है। 

रूसी क्रांति कब और कितने चरणों में हुई?

रूसी क्रांति (Russian Revolution in Hindi) वर्ष 1917 में दो चरणों में हुई – फरवरी क्रांति और अक्तूबर क्रांति। फरवरी क्रांति में ज़ार की सत्ता खत्म हुई और अक्तूबर क्रांति में बोल्शेविकों ने सत्ता अपने हाथ में ली।

व्लादिमीर लेनिन का रूसी क्रांति में क्या योगदान था?

व्लादिमीर लेनिन बोल्शेविक पार्टी के प्रमुख नेता थे जिन्होंने क्रांति का नेतृत्व किया और बाद में सोवियत रूस के पहले नेता बने। उन्होंने मार्क्सवादी विचारधारा को क्रांति में व्यवहार में लाया।

रूस में गोरे कौन थे?

रूस में गोरे व्हाइट आर्मी,जिसे व्हाइट गार्ड के नाम से भी जाना जाता है, मूल रूप से कम्युनिस्ट अधिग्रहण का विरोध करने वाले सभी लोग गौरे थे।

रूसी क्रांति का विश्व पर क्या प्रभाव पड़ा?

रूसी क्रांति ने दुनिया भर में साम्यवाद की विचारधारा को फैलाया, खासकर चीन, क्यूबा और अन्य देशों में। यह शीत युद्ध की नींव भी बनी।

रूसी क्रांति के बाद रूस में क्या बदलाव आए?

ज़ारशाही शासन की जगह साम्यवादी शासन आया, ज़मीनों का पुनर्वितरण हुआ, उद्योगों का राष्ट्रीयकरण हुआ और मजदूरों-किसानों को अधिकार मिले।

रूसी क्रांति के जनक नेता कौन थे?

1870 में रूसी क्रांति के जनक माने जाने वाले लेनिन थे।

1917 में जारशाही निरंकुशता का पतन क्यों हुआ था?

इसका मुख्य कारण ज़ार निकोलस द्वितीय की निरंकुश सरकार थी, जो अपनी भ्रष्ट और दमनकारी नीतियों से इन लोगों को दिन-प्रतिदिन परेशान करती रहती थी।

USSR को हिंदी में क्या कहते हैं?

USSR को हिंदी में सोवियत संघ कहते हैं। 

USSR में कितने देश शामिल हैं?

USSR में 15 देश शामिल हैं: आर्मेनिया , अज़रबैजान , बेलारूस , एस्टोनिया , जॉर्जिया , कजाकिस्तान , किर्गिस्तान , लातविया , लिथुआनिया , मोल्दोवा , रूस , ताजिकिस्तान , तुर्कमेनिस्तान , यूक्रेन और उजबेकिस्तान।

रूसी क्रांति कब और कहां हुई थी?

1917 की रूस में दो भागों में हुई थी – मार्च 1917 में, तथा अक्टूबर 1917 में।

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