Poem on Discipline in Hindi: अनुशासन, जीवन की ऐसी आधारशिला है जिस पर हमारे भविष्य का महल टिका होता है। अनुशासन ही हमें आशावादी बनाकर सफलता के शीर्ष तक ले जाता है। सही मायनों में यह न केवल हमारे व्यक्तित्व को निखारता है, बल्कि हमारे जीवन को व्यवस्थित और सुसंस्कृत भी बनाता है। अनुशासन का महत्व समझाने के लिए कविताएँ एक सुंदर माध्यम हो सकती हैं। अनुशासन पर कविता के माध्यम से हम इसकी गहराई को समझकर, इसे अपने जीवन में आत्मसात कर पाएंगे। इस लेख में कुछ लोकप्रिय अनुशासन पर कविता (Anushasan Par Kavita) दी गई हैं, जो हमारे जीवन में सकारात्मकता का संचार करेंगी।
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अनुशासन पर कविता – Poem on Discipline in Hindi
अनुशासन पर कविता (Poem on Discipline in Hindi) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
अनुशासन का महत्व | मयंक विश्नोई |
अनुशासन का दीपक | मयंक विश्नोई |
अनुशासन की शक्ति | मयंक विश्नोई |
अनुशासन पर्व | अटल बिहारी वाजपेयी |
अनुशासन के नाम पर | अटल बिहारी वाजपेयी |
आँगन गायब हो गया | कैलाश गौतम |
अनुशासन | सुघोष मिश्र |
अनुशासन का महत्व
आशाओं का दीप जलाकर
निराशाओं का तमस मिटाकर
फैला है जग में उजियारा,
अनुशासन की अलख जगाकर
मन के सारे मैल हटाकर
नवीन कोई एक दिशा दिखाकर
लगा जीत का है जयकारा,
अनुशासन को गले लगाकर
निरंतर नन्हें क़दम बढ़ाकर
चिंताओं का बोझ उठाकर
मिले समय का सही इशारा,
अनुशासन का महत्व बताकर
जीवन के सुख-दुःख अपनाकर
पीड़ाओं का मोल चुकाकर
समस्याओं का हो निपटारा,
अनुशासन के पथ पर आकर
– मयंक विश्नोई
अनुशासन का दीपक
ज्ञान की लौ जलाएगा
अज्ञानता को मिटाएगा
जीवन में निरंतर जलता रहेगा,
अनुशासन का दीपक
आलस से हमें बचाएगा
परिश्रमी हमें बनाएगा
सयंम की अखंड ज्योति बनेगा,
अनुशासन का दीपक
कर्मों का मार्ग दिखाएगा
कर्तव्य पथ पर चलना सिखाएगा
तूफानी हवाओं से लड़ता रहेगा,
अनुशासन का दीपक
ये निर्भय हमें बनाएगा
हर भय को दूर भगाएगा
हमेशा परिवर्तन की पुकार बनेगा,
अनुशासन का दीपक
– मयंक विश्नोई
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अनुशासन की शक्ति
हमें हमेशा प्रेरणा देती रहेगी
परिवर्तन को अपनाने की
इच्छाओं को जगाएगी हर पल,
कुछ बेहतर कर जाने की
समय का शंखनाद करेगी
अनुशासन की शक्ति
जीवन के हर दुःख हरेगी
अनुशासन की शक्ति
खुशियों का हमें मंत्र बताकर
ये संघर्षों का सार कहेगी
आशाओं का अचूक तंत्र बनाकर
ये चरित्रों में सुगंध भरेगी
सुखों का आधार बनेगी
अनुशासन की शक्ति
सद्कर्मों का विस्तार करेगी
अनुशासन की शक्ति
जीवनभर वंदनीय रहेगी
धरा पर सद्कर्मों की भक्ति
हम में साहस का संचार करेगी,
अनुशासन की शक्ति
– मयंक विश्नोई
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अनुशासन पर्व
अनुशासन का पर्व है,
बाबा का उपदेश;
हवालात की हवा भी
देती यह सन्देश:
देती यह सन्देश,
राज डण्डे से चलता;
जब हज करने जाएँ,
रोज़, कानून बदलता;
कह कैदी कविराय,
शोर है अनुशासन का;
लेकिन ज़ोर दिखाई
देता दु:शासन का।
– अटल बिहारी वाजपेयी
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अनुशासन के नाम पर
अनुशासन के नाम पर
अनुशासन का खून
भंग कर दिया संघ को
कैसा चढ़ा जुनून
कैसा चढ़ा जुनून
मातृ-पूजा प्रतिबंधित
कुलटा करती केशव-कुल की
कीर्ति कलंकित
कह कैदी कविराय,
तोड़ कानूनी कारा
गूंजेगा भारत माता की
जय का नारा।
– अटल बिहारी वाजपेयी
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अनुशासन पर कविताएं – Anushasan Par Kavita
अनुशासन पर कविताएं (Poem on Discipline in Hindi) पढ़कर आप अपने जीवन में इसका महत्व जान पाएंगे, साथ ही एक सुखद जीवन का भी अनुभव कर पाएंगे। अनुशासन पर कविताएं निम्नलिखित हैं –
आँगन गायब हो गया
घर फूटे गलियारे निकले आँगन गायब हो गया
शासन और प्रशासन में अनुशासन ग़ायब हो गया।
त्यौहारों का गला दबाया
बदसूरत महँगाई ने
आँख मिचोली हँसी ठिठोली
छीना है तन्हाई ने
फागुन गायब हुआ हमारा सावन गायब हो गया।
शहरों ने कुछ टुकड़े फेंके
गाँव अभागे दौड़ पड़े
रंगों की परिभाषा पढ़ने
कच्चे धागे दौड़ पड़े
चूसा ख़ून मशीनों ने अपनापन ग़ायब हो गया।
नींद हमारी खोई-खोई
गीत हमारे रूठे हैं
रिश्ते नाते बर्तन जैसे
घर में टूटे-फूटे हैं
आँख भरी है गोकुल की वृंदावन ग़ायब हो गया।।
– कैलाश गौतम
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अनुशासन
स्वतंत्रता की अधिकता से उपजती है उच्छृंखलता
यांत्रिकता लील जाती है स्वाभाविकता को
गतिशीलता क्षीण होकर जड़ता बन जाती है
अश्लीलता से पुष्ट होती है कुरूपता
जीवन सिर्फ़ आस्था और तर्क से नहीं चलता
कोई सिद्ध मंत्र और गणितीय सूत्र भी नहीं
जिससे हल हो जाएँ सारी समस्याएँ
विचारों की बौछार से सूख जाता है दर्शन
स्थापनाओं में कहीं पीछे छूट जाता है सत्य
दृष्टांतों के बोझ तले टूट जाती है प्रामाणिकता
क़ानून से अधिकारों की रक्षा होती है
क़ानून में ही उड़ाई जाती हैं उसकी धज्जियाँ
निर्णय से न्याय की उम्मीद होती है
निर्णय में ही होती है अन्याय की प्रबल संभावना
अतियों से बर्बाद हो जाता है सुख
अतियों में ही संगठित होते हैं दुःख
अनुशासन एक दुर्लभ फूल है काँटों से घिरा
मनुष्य मात्र धैर्यपूर्वक हो सकता है उसका संगी
वह एक सौंदर्य है–जीवन के लिए–एक गुण
आधिक्य से भटक जाती है उसकी यात्रा
आधिक्य में ही रूपांतरित हो जाता है
वह कट्टरता में
दरअसल
‘कहीं से कहीं तक होकर’ भी वह ‘नहीं है’
यह सृष्टि कितनी अनुशासित है
और कितनी अनुशासनहीन
धर्म बहुत अनुशासित होकर
अधर्मियों का रक्षक बन जाता है
भक्ति बहुत अनुशासित होकर
बन जाती है करुणा की शत्रु
ज्ञान बहुत अनुशासित होकर
आतंकियों का संगी बन जाता है
चिकित्सा बहुत अनुशासित होकर
बन जाती है मरीज़ों के लिए विपदा
नेतृत्व बहुत अनुशासित होकर
हत्यारों का समूह बन जाता है
राष्ट्र बहुत अनुशासित होकर
बन जाता है असहमतों का वधस्थल
ऐसे समय में
जब संसार के सबसे ताक़तवर लोग
दिन का अधिकांश समय
बहुत अनुशासित होकर
शासितों की अपूर्व सेवा में गुज़ारते हैं
मैं तनिक अनुशासनहीनता करूँ
और कविता में कहूँ तो-
दुनिया बहुत अनुशासित होकर
घड़ी बन जाती है
और तंत्रों की आवाज़ें टिक-टिक
दुनिया के तमाम लोग
अपने-अपने देशों में
अपनों से ही पीछे छूटते जाते हैं
सड़कों पर पिटते हैं, भूख से लड़ते हैं
गोलियों और बमों के छर्रों के बीच
संयोगवश रह जाते हैं सकुशल
नफ़रत, अन्याय, विश्वासघातों से
यदि नष्ट नहीं होते हैं
सूक्ष्म से सूक्ष्मतर हमलों से भी
बच निकलते हैं तो-
घरों, अस्पतालों, तंबुओं या शरणार्थी शिविरों के
अपने-अपने कमरों में क़ैद
बहुत अनुशासित तरीक़े से
मनुष्यता की रक्षा के लिए
मरते
जाते
हैं
– सुघोष मिश्र
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