बहादुर शाह जफर की शायरियां हिंदी में

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बहादुर शाह जफर की शायरियां हिंदी में

अबू जफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर, जिन्हें बाद में बहादुर शाह जफर के नाम से जाना जाने लगा, का जन्म 24 अक्टूबर 1775 ई. को दिल्ली में हुआ था। आपको बता दें कि वह भारत में कई सौ वर्षों तक राज करने वाले मुग़ल साम्राज्य के आखिरी शासक और उर्दू भाषा के प्रसिद्ध शायर भी थे। जिनकी शायरियां आज हम इस लेख के माध्यम से जानेंगे।

बहादुर शाह जफर की शायरियां

बहादुर शाह जफर की शायरियां निम्नलिखित है :

बात करनी मुझे मुश्किल कभी ऐसी तो न थी
जैसी अब है तिरी महफ़िल कभी ऐसी तो न थी

ले गया छीन के कौन आज तिरा सब्र ओ क़रार
बे-क़रारी तुझे ऐ दिल कभी ऐसी तो न थी

उस की आँखों ने ख़ुदा जाने किया क्या जादू
कि तबीअ’त मिरी माइल कभी ऐसी तो न थी

अक्स-ए-रुख़्सार ने किस के है तुझे चमकाया
ताब तुझ में मह-ए-कामिल कभी ऐसी तो न थी

अब की जो राह-ए-मोहब्बत में उठाई तकलीफ़
सख़्त होती हमें मंज़िल कभी ऐसी तो न थी

पा-ए-कूबाँ कोई ज़िंदाँ में नया है मजनूँ
आती आवाज़-ए-सलासिल कभी ऐसी तो न थी

निगह-ए-यार को अब क्यूँ है तग़ाफ़ुल ऐ दिल
वो तिरे हाल से ग़ाफ़िल कभी ऐसी तो न थी

चश्म-ए-क़ातिल मिरी दुश्मन थी हमेशा लेकिन
जैसी अब हो गई क़ातिल कभी ऐसी तो न थी

क्या सबब तू जो बिगड़ता है ‘ज़फ़र’ से हर बार
ख़ू तिरी हूर-शमाइल कभी ऐसी तो न थी

लगता नहीं है दिल मिरा उजड़े दयार में
किस की बनी है आलम-ए-ना-पाएदार में

इन हसरतों से कह दो कहीं और जा बसें
इतनी जगह कहाँ है दिल-ए-दाग़-दार में

काँटों को मत निकाल चमन से ओ बाग़बाँ
ये भी गुलों के साथ पले हैं बहार में

बुलबुल को बाग़बाँ से न सय्याद से गिला
क़िस्मत में क़ैद लिक्खी थी फ़स्ल-ए-बहार में

कितना है बद-नसीब ‘ज़फ़र’ दफ़्न के लिए
दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में

भरी है दिल में जो हसरत कहूँ तो किस से कहूँ
सुने है कौन मुसीबत कहूँ तो किस से कहूँ

जो तू हो साफ़ तो कुछ मैं भी साफ़ तुझ से कहूँ
तिरे है दिल में कुदूरत कहूँ तो किस से कहूँ

न कोहकन है न मजनूँ कि थे मिरे हमदर्द
मैं अपना दर्द-ए-मोहब्बत कहूँ तो किस से कहूँ

दिल उस को आप दिया आप ही पशेमाँ हूँ
कि सच है अपनी नदामत कहूँ तो किस से कहूँ

कहूँ मैं जिस से उसे होवे सुनते ही वहशत
फिर अपना क़िस्सा-ए-वहशत कहूँ तो किस से कहूँ

रहा है तू ही तो ग़म-ख़्वार ऐ दिल-ए-ग़म-गीं
तिरे सिवा ग़म-ए-फ़ुर्क़त कहूँ तो किस से कहूँ

जो दोस्त हो तो कहूँ तुझ से दोस्ती की बात
तुझे तो मुझ से अदावत कहूँ तो किस से कहूँ

न मुझ को कहने की ताक़त कहूँ तो क्या अहवाल
न उस को सुनने की फ़ुर्सत कहूँ तो किस से कहूँ

किसी को देखता इतना नहीं हक़ीक़त में
ज़फ़र’ मैं अपनी हक़ीक़त कहूँ तो किस से कहूँ

आशा है कि बहादुर शाह जफर की शायरी हिंदी में, के बारे में आपको जानकारी मिल गई होगी। इतिहास से संबंधित ऐसे ही अन्य ब्लॉग पढ़ने के लिए जुड़े रहिये Leverage Edu के साथ।

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