Desh Par Kavita: देश पर लिखी गई प्रसिद्ध कविताओं का संग्रह

1 minute read
desh par kavita

Desh Par Kavitayen: हमारा भारत देश एक अद्वितीय लोकतांत्रिक राष्ट्र है, जिसने अपनी तपस्या, त्याग और संघर्षों के प्रकाश से दुनिया को जागरूक किया। इस महान भूमि ने दुनिया को आज़ादी का असली अर्थ समझाया और मानवता के कल्याण की दिशा में अपना योगदान दिया। हमारे देश में जन्मे हर वीर सैनिक ने शौर्य और साहस की अद्भुत गाथाओं के साथ संसार को प्रेरित किया। देश पर कविता (Desh Par Kavita) केवल शब्दों का साधारण रूप नहीं, बल्कि हमारे दिलों में देश के प्रति प्रेम, समर्पण और गर्व की भावना को और भी गहरा करती हैं। ये कविताएं हमें हमारी मातृभूमि से जुड़ने, अपने कर्तव्यों को समझने और देश के प्रति हमारी जिम्मेदारी का अहसास दिलाने का कार्य करती हैं। इस लेख में हम आपके लिए देश पर कविताएं प्रस्तुत कर रहे हैं, जो हमारे देश की महानता और असाधारण धरोहर को सम्मानित करती हैं। आइए, पढ़ें कुछ चुनिंदा लोकप्रिय कविताएं और अपने देश के प्रति प्रेम और गर्व को महसूस करें।

देश पर कविताएं – Desh Par Kavitayen

महान कवियों द्वारा लिखी कुछ चुनिंदा देश पर कविताएं (Desh Par Kavitayen) इस प्रकार हैं:

कविता का नामकवि/कवियत्री का नाम
इस विशाल देश केकेदारनाथ सिंह
एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलोहरिवंशराय बच्चन
चरखे़ की प्रतिज्ञाशैलेंद्र चतुर्वेदी
जय अखंड भारतआरसी प्रसाद सिंह
जय जन भारत जन मन अभिमतसुमित्रानंदन पंत
जिसे देश से प्यार नहीं हैंश्रीकृष्ण सरल
देश पर आक्रमणहरिवंशराय बच्चन
देश से प्यारश्रीकृष्ण सरल
स्थितप्रज्ञ अपना देशकेदारनाथ अग्रवाल
भारतवर्षमैथिलीशरण गुप्त

इस विशाल देश के

इस विशाल देश के
धुर उत्तर में
एक छोटा-सा खँडहर है
किसी प्राचीन नगर का
जहाँ उसके वैभव के दिनों में
कभी-कभी आते थे बुद्ध
कभी-कभी आ जाता था
बाघ भी

दोनों अलग-अलग आते थे
अगर बुद्ध आते थे पूरब से
तो बाघ क्या
कभी वह पश्चिम से आ जाता था
कभी किसी ऐसी गुमनाम दिशा से
जिसका किसी को
आभास तक नहीं होता था

पर कभी-कभी दोनों का
हो जाता था सामना
फिर बाघ आँख उठा
देखता था बुद्ध को
और बुद्ध सिर झुका
बढ़ जाते थे आगे

इस तरह चलता रहा

- केदारनाथ सिंह

एक और जंज़ीर तड़कती है, भारत माँ की जय बोलो

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बँधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गँवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आज़ादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
“जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।”
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कठिन नहीं होता है बाहर की बाधा को दूर भगाना,
कठिन नहीं होता है बाहर के बंधन को काट हटाना,
ग़ैरों से कहना क्या मुश्किल अपने घर की राह सिधारें,
किंतु नहीं पहचाना जाता अपनों में बैठा बेगाना,
बाहर जब बेड़ी पड़ती है भीतर भी गाँठें लग जातीं,
बाहर के सब बंधन टूटे, भीतर के अब बंधन खोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

कटीं बेड़ियाँ औ’ हथकड़ियाँ, हर्ष मनाओ, मंगल गाओ,
किंतु यहाँ पर लक्ष्य नहीं है, आगे पथ पर पाँव बढ़ाओ,
आज़ादी वह मूर्ति नहीं है जो बैठी रहती मंदिर में,
उसकी पूजा करनी है तो नक्षत्रों से होड़ लगाओ।
हल्का फूल नहीं आज़ादी, वह है भारी ज़िम्मेदारी,
उसे उठाने को कंधों के, भुजदंडों के, बल को तोलो।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

- हरिवंशराय बच्चन

यह भी पढ़ें – प्रेरणादायक प्रसिद्ध हिंदी कविताएँ

चरखे़ की प्रतिज्ञा

मेरे चरख़े का टूटे न तार, हरदम चलाता रहूं।

भारत के संकट पे तन-मन लगा दूं,
प्राणों को कर दूं न्यौछार, खद्दर बनाता रहूं।

खद्दर के कपड़े स्वदेशी बना के,
विदेशी में ठोकर मार, घिन्नी घुमाता रहूं।

गांधी के वचनों को पूरा करा दूं,
भारत को लूंगा उबार, माला चढ़ाता रहूं।

चुटकी से तागे को बट करके जोडूं,
हरि का बनाऊं मैं हार, फरही दबाता रहूं।

लेंगे इसी से शैलेंद्र स्वराज्य अब,
होंगे गुलामी से पार, मंगल मनाता रहूं।

विदेशी कपड़े के होंगे हवन अब,
कर दें जलाकर के छार, आहुति चढ़ाता रहूं।

- शैलेंद्र चतुर्वेदी

यह भी पढ़ें – बसंत पंचमी पर कविता

जय अखंड भारत

शक्ति ऐसी है नहीं संसार में कोई कहीं पर,
जो हमारे देश की राष्ट्रीयता को अस्त कर दे।
ध्वान्त कोई है नहीं आकाश में ऐसा विरोधी,
जो हमारी एकता के सूर्य को विध्वस्त कर दे!

राष्ट्र की सीमांत रेखाएँ नहीं हैं
बालकों के खेल का कोई घरौंदा,
पाँव से जिसको मिटा दे।
देश की स्वाधीनता सीता सुरक्षित है,
किसी दश-कंठ का साहस नहीं,
ऊँगली कभी उसपर उठा दे।

देश पूरा एक दिन हुंकार भी समवेत कर दे,
तो सभी आतंकवादियों का बगुला टूट जाए।
किन्तु, ऐसा शील भी क्या, देखता सहता रहे
जो आततायी मातृ-मंदिर की धरोहर लूट जाए।

रोग, पावक, पाप, रिपु प्रारंभ में लघु हों
भले ही किन्तु, वे ही अंत में दुर्दम्य हो जाते उमड़कर।
पूर्व इस भय के की वातावरण में विष फैल जाए,
विषधरों के विष उगलते दंश को रख दो कुचलकर।

झेलते तूफ़ान ऐसे सैकड़ो आए युगों से,
हम इसे भी ऐतिहासिक भूमिका में झेल लेंगे।
किन्तु, बर्बर और कायरता कलंकित कारनामों की
पुनरावृति को निश्चेष्ट होकर हम सहेंगे।

- आरसी प्रसाद सिंह

यह भी पढ़ें: भारतीय संस्कृति की सजीव झलक प्रस्तुत करती रामनरेश त्रिपाठी की कविताएं

जय जन भारत जन मन अभिमत

जय जन भारत जन मन अभिमत

जय जन भारत जन मन अभिमत
जन गण तंत्र विधाता
जय गण तंत्र विधाता

गौरव भाल हिमालय उज्ज्वल
हृदय हार गंगा जल
कटि विंध्याचल सिंधु चरण तल
महिमा शाश्वत गाता
जय जन भारत...

हरे खेत लहरें नद-निर्झर
जीवन शोभा उर्वर
विश्व कर्मरत कोटि बाहुकर
अगणित पग ध्रुव पथ पर
जय जन भारत...

प्रथम सभ्यता ज्ञाता
साम ध्वनित गुण गाता
जय नव मानवता निर्माता
सत्य अहिंसा दाता

जय हे जय हे जय हे
शांति अधिष्ठाता
जय-जन भारत...

- सुमित्रानंदन पंत

यह भी पढ़ें: दुष्यंत कुमार की कविताएं, जो आपको प्रेरित करेंगी

जिसे देश से प्यार नहीं हैं

जिसे देश से प्यार नहीं हैं
जीने का अधिकार नहीं हैं।

जीने को तो पशु भी जीते
अपना पेट भरा करते हैं
कुछ दिन इस दुनिया में रह कर
वे अन्तत: मरा करते हैं।
ऐसे जीवन और मरण को,
होता यह संसार नहीं है
जीने का अधिकार नहीं हैं।

मानव वह है स्वयं जिए जो
और दूसरों को जीने दे,
जीवन-रस जो खुद पीता वह
उसे दूसरों को पीने दे।
साथ नहीं दे जो औरों का
क्या वह जीवन भार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

साँसें गिनने को आगे भी
साँसों का उपयोग करो कुछ
काम आ सके जो समाज के
तुम ऐसा उद्योग करो कुछ।
क्या उसको सरिता कह सकते
जिसम़ें बहती धार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

- श्रीकृष्ण सरल

यह भी पढ़ें – बेटियों के प्रति सम्मान के भाव को व्यक्त करती बालिका दिवस पर कविता

देश पर आक्रमण

कटक संवार शत्रु देश पर चढ़ा,
घमंड, घोर शोर से भरा बढ़ा,
स्वतंत्र देश, उठ इसे सबक सिखा,
बहुत हुई न देर अब लगा जरा।

समस्त शक्ति युद्ध में उड़ेल दे,
ग़नीम को पहाड़ पार ठेल दे,
पहाड़ पंथ रोकता, ढकेल दे,
बने नवीन शौर्य की परंपरा।

न दे, न दे, न दे स्वदेश की भुईं,
जिसे कि नोक से दबा सके सुई,
स्वतंत्र देश की प्रथम परख हुई,
उतर खरा, उतर खरा, उतर खरा।

- हरिवंशराय बच्चन

यह भी पढ़ें : सुमित्रानंदन पंत की वो महान कविताएं, जो आपको जीने का एक मकसद देंगी

देश से प्यार

जिसे देश से प्यार नहीं हैं
जीने का अधिकार नहीं हैं।

जीने को तो पशु भी जीते
अपना पेट भरा करते हैं
कुछ दिन इस दुनिया में रह कर
वे अन्तत: मरा करते हैं।
ऐसे जीवन और मरण को,
होता यह संसार नहीं है
जीने का अधिकार नहीं हैं।

मानव वह है स्वयं जिए जो
और दूसरों को जीने दे,
जीवन-रस जो खुद पीता वह
उसे दूसरों को पीने दे।
साथ नहीं दे जो औरों का
क्या वह जीवन भार नहीं है?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

साँसें गिनने को आगे भी
साँसों का उपयोग करो कुछ
काम आ सके जो समाज के
तुम ऐसा उद्योग करो कुछ।
क्या उसको सरिता कह सकते
जिसमें बहती धार नहीं है ?
जीने का अधिकार नहीं हैं।

- श्रीकृष्ण सरल

स्थितप्रज्ञ अपना देश

युद्ध-विराम के बाद भी
अविराम
आक्रमण कर रहा है
पाकिस्तान
मान कर भी
नहीं मान रहा
राष्ट्र-संघ का आदेश
अब भी कर रहा है वार
दुर्निवार,
धुँआधार
हत्या का प्रसार
अनवरत संहार
भारतीय सीमा को
कर रहा है पार।

कहीं करता है
आसमानी उल्कापात
कहीं करता है विस्फोटक आघात
कहीं करता है
अबोध नगरों का विध्वंस
कहीं करता है
गरीब गाँवों का आहार
पाकिस्तान
ने छोड़ दी है पढ़ना कुरान
नमाजी नहीं रह गया
उसका ईमान
उस पर सवार है
कोई शैतान
वह हो गया है
सरकार की शक्ल में हैवान

मर रहे हैं उसके मारे
गिरजा और अस्पताल
जालिम कारनामों का
बिछ गया है जाल

इतना सब हुआ
और हो रहा है
इस पर भी
अपना धैर्य भारत नहीं खो रहा है
स्थितप्रज्ञ अपना देश
सहता है कदाचार
इस पर भी
करता नहीं अनाचार

कर सकता है
उस पर
पुनर्वार वह उस पर बज्र-प्रहार
ले सकता है बदला बल से
दे सकता है हार
किंतु उसे रोके हैं उसके
जीवन के संस्कार
शांति शील के सत्य विचार
जब आएगा समय
और अवसर आएगा
बिना किए आक्रमण
न भारत बच पाएगा
तब वह युद्ध करेगा
बल का बदला बल से लेगा
युद्ध-विराम तोड़कर-
आगे उमड़ पड़ेगा
जहाँ धरेंगे चरण
समर-सैनिक-सेनानी
झंडा वहाँ गड़ेगा
हारेगा दल-बादल-पाकिस्तानी
जय का वरण करेगा भारतज्ञानी

- केदारनाथ अग्रवाल

भारतवर्ष

मस्तक ऊँचा हुआ मही का, धन्य हिमालय का उत्कर्ष।
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

हरा-भरा यह देश बना कर विधि ने रवि का मुकुट दिया,
पाकर प्रथम प्रकाश जगत ने इसका ही अनुसरण किया।
प्रभु ने स्वयं 'पुण्य-भू' कह कर यहाँ पूर्ण अवतार लिया,
देवों ने रज सिर पर रक्खी, दैत्यों का हिल गया हिया!
लेखा श्रेष्ट इसे शिष्टों ने, दुष्टों ने देखा दुर्द्धर्ष!
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

अंकित-सी आदर्श मूर्ति है सरयू के तट में अब भी,
गूँज रही है मोहन मुरली ब्रज-वंशीवट में अब भी।
लिखा बुद्धृ-निर्वाण-मन्त्र जयपाणि-केतुपट में अब भी,
महावीर की दया प्रकट है माता के घट में अब भी।
मिली स्वर्ण लंका मिट्टी में, यदि हमको आ गया अमर्ष।
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

आर्य, अमृत सन्तान, सत्य का रखते हैं हम पक्ष यहाँ,
दोनों लोक बनाने वाले कहलाते है, दक्ष यहाँ।
शान्ति पूर्ण शुचि तपोवनों में हुए तत्व प्रत्यक्ष यहाँ,
लक्ष बन्धनों में भी अपना रहा मुक्ति ही लक्ष यहाँ।
जीवन और मरण का जग ने देखा यहीं सफल संघर्ष।
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

मलय पवन सेवन करके हम नन्दनवन बिसराते हैं,
हव्य भोग के लिए यहाँ पर अमर लोग भी आते हैं!
मरते समय हमें गंगाजल देना, याद दिलाते हैं,
वहाँ मिले न मिले फिर ऐसा अमृत जहाँ हम जाते हैं!
कर्म हेतु इस धर्म भूमि पर लें फिर फिर हम जन्म सहर्ष
हरि का क्रीड़ा-क्षेत्र हमारा, भूमि-भाग्य-सा भारतवर्ष॥

- मैथिलीशरण गुप्त

संबंधित आर्टिकल

रवीन्द्रनाथ टैगोर की रचनाएंभारतेंदु हरिश्चंद्र की रचनाएं
अटल बिहारी वाजपेयी की कविताएंअरुण कमल की लोकप्रिय कविताएं
भगवती चरण वर्मा की कविताएंनागार्जुन की प्रसिद्ध कविताएं
भवानी प्रसाद मिश्र की कविताएंअज्ञेय की महान कविताएं
रामधारी सिंह दिनकर की वीर रस की कविताएंरामधारी सिंह दिनकर की प्रेम कविता
राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की कविताएंमहादेवी वर्मा की कविताएं
महारथी शरद जोशी की कविताएंसुभद्रा कुमारी चौहान की कविताएं
विष्णु प्रभाकर की कविताएंमहावीर प्रसाद द्विवेदी की कविताएं
सोहन लाल द्विवेदी की कविताएंख़लील जिब्रान की कविताएं
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी की कविताएंसावित्रीबाई फुले कविता
महारथी शरद जोशी की कविताएंबालकृष्ण शर्मा नवीन की कविताएं

आशा है कि आपको इस लेख में देश पर कविता (Desh Par Kavita) पसंद आई होंगी। ऐसी ही अन्य लोकप्रिय हिंदी कविताओं को पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*