गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता जिसमें मिलेगा देशप्रेम का भाव

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गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता

गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता : इस वर्ष 2024 में पूरा देश अपना 75वां गणतंत्र दिवस मना रहा है। गणतंत्र दिवस देश का राष्ट्रीय पर्व की तरह है जब भारत का संविधान लागू हुआ था। देश के पहले राष्ट्रपति डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 को 21 तोपों की सलामी के साथ ध्वजारोहण कर भारत को पूर्ण गणतंत्र घोषित किया था।

इस दिन कई जगहों/ विद्यालय में कविता का कार्यक्रम भी आयोजित किया जाता है। स्कूल और सभाओं में लोग कविता पाठ करते है। तो चलिए जानते हैं गणतंत्र दिवस पर रचित कविताओं को पढ़ते हैं। गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता में आपको देशभक्ति पर आधारित कविताओं को पढ़ने का मौका मिल जायेगा।

गणतंत्र दिवस पर एक छोटी कविता 

गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता आपको देशभक्ति के रंग में रंगने का काम करेंगी। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

हरिवंश राय बच्चन की कविता

एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।
इन जंजीरों की चर्चा में कितनों ने निज हाथ बंधाए,
कितनों ने इनको छूने के कारण कारागार बसाए,
इन्हें पकड़ने में कितनों ने लाठी खाई, कोड़े ओड़े,
और इन्हें झटके देने में कितनों ने निज प्राण गंवाए!
किंतु शहीदों की आहों से शापित लोहा, कच्चा धागा।
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

जय बोलो उस धीर व्रती की जिसने सोता देश जगाया,
जिसने मिट्टी के पुतलों को वीरों का बाना पहनाया,
जिसने आजादी लेने की एक निराली राह निकाली,
और स्वयं उसपर चलने में जिसने अपना शीश चढ़ाया,
घृणा मिटाने को दुनियाँ से लिखा लहू से जिसने अपने,
‘जो कि तुम्हारे हित विष घोले, तुम उसके हित अमृत घोलो।’
एक और जंजीर तड़कती है, भारत मां की जय बोलो।

हरिवंश राय बच्चन


खुशवंत सिंह की कविता

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,

तू है अद्भुत और सुंदर।

तेरी धरती, तेरा आकाश,

तेरी नदियाँ, तेरे पर्वत,

सब ही अविस्मरणीय हैं।

तेरे लोग, तेरे संस्कृति,

तेरी विरासत, तेरा इतिहास,

सब ही गौरवशाली हैं।

तू है सत्य, तू है धर्म,

तू है शांति, तू है अहिंसा।

तू है ज्ञान, तू है दर्शन,

तू है प्रकाश, तू है जीवन।

मेरा भारत, मेरी मातृभूमि,

तू है मेरे हृदय में बसता।

मैं तेरा सदैव ऋणी रहूँगा।


शैलेन्द्र की कविता

चिश्ती ने जिस जमीं पे पैगामे हक सुनाया

नानक ने जिस चमन में बदहत का गीत गाया

तातारियों ने जिसको अपना वतन बनाया

जिसने हेजाजियों से दश्ते अरब छुड़ाया

मेरा वतन वही है, मेरा वतन वही है।


राम प्रसाद बिस्मिल की कविता

इलाही खैर! वो हरदम नई बेदाद करते हैं,

हमें तोहमत लगाते हैं, जो हम फरियाद करते हैं

कभी आजाद करते हैं, कभी बेदाद करते हैं

मगर इस पर भी हम सौ जी से उनको याद करते हैं

असीराने-कफस से काश, यह सैयाद कह देता

रहो आजाद होकर, हम तुम्हें आजाद करते हैं

रहा करता है अहले-गम को क्या-क्या इंतजार इसका

कि देखें वो दिले-नाशाद को कब शाद करते हैं

यह कह-कहकर बसर की, उम्र हमने कैदे-उल्फत में

वो अब आजाद करते हैं, वो अब आजाद करते हैं.

उम्मीद है, गणतंत्र दिवस पर छोटी सी कविता (Gantantra Diwas par choti si kavita) पढ़कर आपको अच्छा लगा होगा। इसी तरह की कविताएं और ट्रेंडिंग इवेंट्स से संबंधित ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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