Mahakavi Ghagh ki Kavitayen: पढ़िए महाकवि घाघ की वो महान कविताएं, जो आपका परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी

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Mahakavi Ghagh ki Kavitayen

विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों का उद्देश्य अधिकाधिक ज्ञान अर्जित करने का होता है, इसी ज्ञान की कड़ी में विद्यार्थियों को कविताओं की महत्वता को भी समझ लेना चाहिए। कविताएं समाज को साहसिक और निडर बनाती हैं, कविताएं मानव को समाज की कुरीतियों और अन्याय के विरुद्ध लड़ना सिखाती हैं। ऐसी ही कुछ महान कविताओं के रचनाकार “महाकवि घाघ” भी थे, जिनकी लेखनी ने सदा समाज मार्गदर्शन किया है। Mahakavi Ghagh ki Kavitayen विद्यार्थियों को प्रेरणा से भर देंगी, जिसके बाद उनके जीवन में एक सकारात्मक परिवर्तन देखने को मिलेगा।

कौन हैं महाकवि घाघ?

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen पढ़ने के पहले आपको महाकवि घाघ जी का जीवन परिचय होना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि महाकवि घाघ भी थे, महाकवि घाघ एक लोकप्रिय भोजपुरी कवि थे। उनकी कविताएं कृषि, ज्योतिष, नीति, धर्म और लोकजीवन से प्रेरित था जीवन की घटनाओं पर आधारित होती थीं। कन्नौज के पास चौधरी सराय नामक ग्राम को महाकवि घाघ की जन्म भूमि बताई जाती है।

महाकवि घाघ अकबर के समकालीन थे, उनकी रचनाओं से अकबर ने प्रसन्न होकर इन्हें सराय घाघ बसाने की आज्ञा दी थी, जो कन्नौज से एक मील दक्षिण में स्थित है। महाकवि घाघ एक ऐसे कवि थे, जो एक कृषि वैज्ञानिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक अनुभवी पुरुष भी थे। महाकवि घाघ ने सूक्ष्म निरीक्षण किया, जिसकी झलक उनकी लेखनी में बड़ी ही सरलता से ही दिखाई पड़ जाती है।

महाकवि घाघ की कविताएँ बिहार और उत्तर प्रदेश के गांवों में वर्तमान में भी उतनी ही लोकप्रिय तथा प्रचलित हैं। महाकवि घाघ की कविताएँ लोक संस्कृति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं, जो कि लोक संस्कृति को आगे बढ़ाने और लोक संस्कृति को जन-जन तक पहुंचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।

खेती करै बनिज को धावै

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “खेती करै बनिज को धावै” भी है, जो कुछ इस प्रकार है;

खेती करै बनिज को धावै,
ऐसा डूबै थाह न पावै।
बेहतर है खेती से काम,
किसी से भिक्षा न मांगै।

-महाकवि घाघ

उत्तम खेती जो हर गहा

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “उत्तम खेती जो हर गहा” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

उत्तम खेती जो हर गहा,
मध्यम खेती जो सँग रहा।
जो हल जोतै खेती वाकी,
और नहीं तो जाकी ताकी।

-महाकवि घाघ

भुइयां खेड़े हर ह्वै चार

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “भुइयां खेड़े हर ह्वै चार” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

भुइयां खेड़े हर ह्वै चार। 
घर होय गिहथिन गऊ दुधार॥ 
अरहर की दाल जड़हन का भात। 
गागल निबुआ औ घिउ-तात॥ 
खाँड दही जो घर में होय। 
बाँके नैन परोसै जोय॥ 
कहैं घाघ तब सबही झूठा। 
उहाँ छोड़ि इहँवै बैकूँठा॥

-महाकवि घाघ

फूटे से बहि जातु हैं

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं की श्रेणी में एक कविता “फूटे से बहि जातु हैं” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

फूटे से बहि जातु हैं,
ढाल गँवार अँगार। 
फूटे से बनि जातु हैं, 
फूट कपास अनार॥

-महाकवि घाघ

पूत न मानै आपन डाँट

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं में से एक कविता “पूत न मानै आपन डाँट” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

पूत न मानै आपन डाँट। 
भाई लड़ै चहै नित बाँट॥ 
तिरिया कलही करकस होइ। 
नियरा बसल दुहुट सब कोई॥ 
मालिक नाहिन करै विचार। 
घाघ कहैं ई बिपति अपार॥ 

-महाकवि घाघ

खाद पड़े तो खेत

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं में से एक कविता “खाद पड़े तो खेत” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

खाद पड़े तो खेत,
नहीं तो कूड़ा रेत।
गोबर राखी पाती सड़ै,
फिर खेती में दाना पड़ै।
गोबर राखी पाती सड़ै,
फिर खेती में दाना पड़ै।
सन के डंठल खेत छिटावै,
तिनते लाभ चौगुनो पावै।

-महाकवि घाघ

परहथ बनिज संदेसे खेती

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं में से एक कविता “परहथ बनिज संदेसे खेती” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

परहथ बनिज संदेसे खेती। 
बिन घर देखे ब्याहै बेटी॥ 
द्वार पराये गाड़ै थाती। 
ये चारों मिलि पीटैं छाती॥

-महाकवि घाघ

माघ क ऊखम जेठ का जाड़

Mahakavi Ghagh ki Kavitayen आपकी जीवनशैली में साकारत्मक बदलाव कर सकती हैं, महाकवि घाघ जी की कविताओं में से एक कविता “माघ क ऊखम जेठ का जाड़” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है;

माघ क ऊखम जेठ का जाड़। 
पहिलै बरखा भरिगा ताल॥ 
कहैं घाघ हम होब बियोगी। 
कुँआ के पानी धोइहैं धोबी॥

-महाकवि घाघ

आशा है कि Mahakavi Ghagh ki Kavitayen के माध्यम से आप महाकवि घाघ की कविताएं पढ़ पाएं होंगे, जो कि आपको सदा प्रेरित करती रहेंगी। साथ ही यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।

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