हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं आज भी उतनी ही प्रासंगिक है जितनी कभी उस समय में थी, जब वह लिखीं गई होंगी। हिंदी भाषा के प्रति सम्मान रखने वाले हर व्यक्ति को इस महान भाषा के साहित्य पर प्रकाश डालना चाहिए। किसी भी भाषा के सौंदर्य को देखने के लिए हमारा परिचय उस भाषा के साहित्य के साथ अवश्य होना चाहिए। देखा जाए तो कविताएं ही साहित्य का श्रृंगार करती हैं, कविताएं ही मानव को साहस के साथ जीना सिखाती हैं, कविताएं ही मानव को सदा सद्मार्ग दिखाती हैं। यह कहना कुछ अनुचित नहीं होगा कि कविताएं ही समाज की कुरीतियों के खिलाफ विद्रोह के स्वर को मजबूती देने का काम करती हैं। हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं विद्यार्थियों के जीवन पर एक सकारात्मक प्रभाव डालने का प्रयास करती हैं, जो आपको इस ब्लॉग के माध्यम से पढ़ने को मिलेंगी।
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हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं हिंदी भाषा के साहित्य का श्रृंगार करती हैं, जो मानव के जीवन को एक नई दिशा देने का काम करती हैं। हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं पढ़ने से पहले आपको उन कवियों के नाम की सूची भी प्राप्त होगी, जो कुछ इस प्रकार है;
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
नूतन वर्षाभिनंदन | फणीश्वरनाथ रेणु |
सपने | पाश |
कलम, आज उनकी जय बोल | रामधारी सिंह ‘दिनकर’ |
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल | भारतेंदु हरिश्चंद्र |
ओ गगन के जगमगाते दीप! | हरिवंश राय बच्चन |
मैं अनंत पथ में लिखती जो | महादेवी वर्मा |
पुष्प की अभिलाषा | माखनलाल चतुर्वेदी |
भारत | सोहन लाल द्विवेदी |
कोयल | सुभद्रा कुमारी चौहान |
कवि | -भवानी प्रसाद मिश्र |
नूतन वर्षाभिनंदन
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं आप में साहस का संचार करेंगी। इस श्रृंखला में पहली कविता “नूतन वर्षाभिनंदन” है, जो कुछ इस प्रकार है:
नूतन का अभिनंदन हो
प्रेम-पुलकमय जन-जन हो!
नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन
टूट पड़ें जड़ता के बंधन;
शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में
निर्मल तन, निर्भय मन हो!
प्रेम-पुलकमय जन-जन हो,
नूतन का अभिनंदन हो!
प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित
प्रेम-दिए जल उठें सुवासित
जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित,
शिवता का आराधन हो!
प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो,
नूतन का अभिनंदन हो!
-फणीश्वरनाथ रेणु
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि ने आशावाद का सूर्य उदय करने का प्रयास किया है। यह कविता एक आशावादी कविता है जिसने निराशाओं के तमस को जड़ से मिटाने का काम किया है। इस कविता की पृष्ठभूमि में भारत-चीन युद्ध के बाद का मुश्किल दौर है, जिसमें कवि की कविता नव वर्ष के अवसर पर देशवासियों को प्रेरणा देने का काम करती है। इस कविता में कवि ने नव वर्ष को “नवजीवन” और “नवसृष्टि” के रूप में चित्रित किया गया है। “नूतन वर्षाभिनंदन” एक प्रेरणादायक कविता है जो हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने, चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ, एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है।
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सपने
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं आप में साहस का संचार करेंगी। इस श्रृंखला में पहली कविता “सपने” है, जो कुछ इस प्रकार है:
सपने
हर किसी को नहीं आते
बेजान बारूद के कणों में
सोई आग को सपने नहीं आते
बदी के लिए उठी हुई
हथेली के पसीने को सपने नहीं आते
शेल्फ़ों में पड़े
इतिहास-ग्रंथों को सपने नहीं आते
सपनों के लिए लाज़िमी है
झेलने वाले दिलों का होना
सपनों के लिए
नींद की नज़र होना लाज़िमी है
सपने इसलिए
हर किसी को नहीं आते
-पाश
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से पाश सपनों की महत्ता को व्यक्त करने का सफल प्रयास करते हैं। इस कविता में कवि का मानना है कि सपने ही मानव को जीवन में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हैं। यह एक प्रेरणादाई कविता है, जिसके शब्द मानव को सपनों के लिए जीना सिखाते हैं। कविता के माध्यम से कवि अपने सपनों को कभी न छोड़ने के लिए मानव को प्रेरित करते हैं। कविता में कवि सपनों को ही व्यक्ति की ताकत कहते हैं।
कलम, आज उनकी जय बोल
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, साहित्य के साथ आपका परिचय करवाएंगी। इस श्रृंखला में राष्ट्रकवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ जी की कविता “कलम, आज उनकी जय बोल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
जला अस्थियां बारी-बारी
चिटकाई जिनमें चिंगारी,
जो चढ़ गये पुण्यवेदी पर
लिए बिना गर्दन का मोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
जो अगणित लघु दीप हमारे
तूफानों में एक किनारे,
जल-जलाकर बुझ गए किसी दिन
मांगा नहीं स्नेह मुंह खोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
पीकर जिनकी लाल शिखाएं
उगल रही सौ लपट दिशाएं,
जिनके सिंहनाद से सहमी
धरती रही अभी तक डोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
अंधा चकाचौंध का मारा
क्या जाने इतिहास बेचारा,
साखी हैं उनकी महिमा के
सूर्य चन्द्र भूगोल खगोल
कलम, आज उनकी जय बोल।
-रामधारी सिंह ‘दिनकर’
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि समाज को देशभक्ति और राष्ट्रीयता की भावना से ओत-प्रोत करने का सफल प्रयास करते हैं। कवि ने इस कविता में उन वीर शहीदों का गुणगान किया है, जिन्होंने अपने देश की स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व बलिदान दिया। इस कविता में कवि कहते हैं कि कलम, आज उन वीर शहीदों की जय बोल, जिन्होंने अपना सब कुछ बलिदान करके क्रांति की भावना जागृत की और देश में नई चेतना फैलाई। इन शहीदों ने बिना किसी मूल्य के कर्तव्य की पुण्यवेदी पर स्वयं को न्योछावर कर दिया, जिस कारण हम सभी स्वतंत्र हवाओं में सांस ले पा रहे हैं।
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निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, आपको हिंदी भाषा के महत्व से अवगत करवाएंगी। इस सूची में भारतेंदु हरिश्चंद्र जी की कविता “निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय।
-भारतेंदु हरिश्चंद्र
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि अपनी भाषा की उन्नति को ही सभी उन्नतियों का मूल आधार मानते है। इस कविता के माध्यम से कवि का उद्देश्य यह बताना है कि बिना अपनी भाषा के ज्ञान के, मन की पीड़ा दूर नहीं हो सकती। इसीलिए मानव को अपनी मातृभाषा से मुँह नहीं फेरना चाहिए। कविता का उद्देश्य विश्व के समक्ष हिंदी भाषा का मजबूत पक्ष रखना है। यह कविता युवाओं को उनकी मातृभाषा के पर गर्व करना सिखाती है, साथ ही यह कविता हिंदी भाषा के महत्व को भी समाज के सामने रखती है।
ओ गगन के जगमगाते दीप!
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, हर परिस्थिति में आपको प्रेरित करने का कार्य करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन जी की कविता “ओ गगन के जगमगाते दीप!” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
दीन जीवन के दुलारे
खो गये जो स्वप्न सारे,
ला सकोगे क्या उन्हें फिर खोज हृदय समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न मेरे स्वप्न पाते,
क्यों नहीं तुम खोज लाते
वह घड़ी चिर शान्ति दे जो पहुँच प्राण समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
यदि न वह भी मिल रही है,
है कठिन पाना-सही है,
नींद को ही क्यों न लाते खींच पलक समीप?
ओ गगन के जगमगाते दीप!
-हरिवंश राय बच्चन
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि गगन के तारों को जगमगाते हुए दीपक मानते हुए उनसे सवाल पूछते हैं, कि क्या वह उनके टूटे हुए सपनों को लौटा सकते हैं। इस कविता को युवा अवस्था का एक पड़ाव माना जा सकता है, जिसमें हमारे युवाओं के कई सपने कहीं खो जाते हैं। यह कविता समाज का आईना बनने का सफल प्रयास करती है।
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मैं अनंत पथ में लिखती जो
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, युवाओं का मार्गदर्शन करने का सफल प्रयास करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवियत्री महादेवी वर्मा जी की कविता “मैं अनंत पथ में लिखती जो” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
मै अनंत पथ में लिखती जो
सस्मित सपनों की बाते
उनको कभी न धो पायेंगी
अपने आँसू से रातें!
उड़् उड़ कर जो धूल करेगी
मेघों का नभ में अभिषेक
अमिट रहेगी उसके अंचल-
में मेरी पीड़ा की रेख!
तारों में प्रतिबिम्बित हो
मुस्कायेंगी अनंत आँखें,
हो कर सीमाहीन, शून्य में
मँडरायेगी अभिलाषें!
वीणा होगी मूक बजाने-
वाला होगा अंतर्धान,
विस्मृति के चरणों पर आ कर
लौटेंगे सौ सौ निर्वाण!
जब असीम से हो जायेगा
मेरी लघु सीमा का मेल,
देखोगे तुम देव! अमरता
खेलेगी मिटने का खेल!
-महादेवी वर्मा
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवियत्री अपने लेखन के माध्यम से समाज में व्याप्त अन्याय, अत्याचार, और शोषण के खिलाफ आवाज उठाती हैं। कवियत्री का मानना है कि लेखन एक शक्तिशाली माध्यम है जो समाज को बदलने की क्षमता रखता है। कविता समाज में युवाओं को भी लेखन के लिए प्रेरित करने का काम करती है। कविता में कवियत्री कहती हैं कि वह अपने लेखन के माध्यम से दुनिया को एक बेहतर स्थान बनाना चाहती हैं। वह एक ऐसे समाज का निर्माण करना चाहती हैं जिसमें सभी लोग समान हों और जिसमें किसी के साथ अन्याय न हो। कवियत्री का मानना है कि लेखन के माध्यम से वह इस सपने को साकार कर सकती हैं।
पुष्प की अभिलाषा
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, साहित्य का सहारा लेकर सामाजिक सद्भावना को बढ़ाने का कार्य करेंगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवि माखनलाल चतुर्वेदी जी की कविता “पुष्प की अभिलाषा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
चाह नहीं, मैं सुरबाला के
गहनों में गूंथा जाऊं,
चाह नहीं प्रेमी-माला में बिंध
प्यारी को ललचाऊं,
चाह नहीं सम्राटों के शव पर
हे हरि डाला जाऊं,
चाह नहीं देवों के सिर पर
चढूं भाग्य पर इठलाऊं,
मुझे तोड़ लेना बनमाली,
उस पथ पर देना तुम फेंक
मातृ-भूमि पर शीश- चढ़ाने,
जिस पथ पर जावें वीर अनेक
-माखनलाल चतुर्वेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि स्वयं को उस फूल की भांति मानते हैं, जो मातृभूमि की रक्षा में समर्पित सैनिकों की चरणों की वंदना करता है। यह कविता राष्ट्रहित की भावना का विस्तार करती है। इस कविता का उद्देश्य युवाओं में देशभक्ति की भावना को जागृत करना है। यह कविता अपनी सरल व स्पष्ट भाषा की सहायता से युवाओं को राष्ट्रहित सर्वोपरि का मंत्र देकर, राष्ट्र की रक्षा में स्वयं को समर्पित करने वाले सेनिकों का सम्मान करती है।
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भारत
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, आपको मातृभूमि के प्रति समर्पित रहना भी सिखाएंगी। इस श्रृंखला में एक कविता “भारत” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
भारत तू है हमको प्यारा,
तू है सब देशों से न्यारा।
मुकुट हिमालय तेरा सुन्दर,
धोता तेरे चरण समुन्दर।
गंगा यमुना की हैं धारा,
जिनसे है पवित्र जग सारा।
अन्न फूल फल जल हैं प्यारे,
तुझमें रत्न जवाहर न्यारे!
राम कृष्ण से अन्तर्यामी,
तेरे सभी पुत्र हैं नामी।
हम सदैव तेरा गुण गायें,
सब विधि तेरा सुयश बढ़ायें।
-सोहन लाल द्विवेदी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि सोहन लाल द्विवेदी भारत की वीरता, गौरव और संस्कृति का गुणगान करते हैं। कवि भारत को देवताओं का निवास स्थान मानते हैं, जिसमें वे कहते हैं कि उन्हें भारत की मिट्टी सारे संसार के परम वैभव से भी प्रिय है। इस कविता के माध्यम से कवि अपनी मातृभूमि भारत की वंदना करते हैं। यह कविता सरल और स्पष्ट भाषा में लिखी गई है, जिसने भारत के युवाओं में देशभक्ति के भाव को अधिक बल दिया है।
कोयल
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, नई पीढ़ी के सामने प्रकृति का विहंगम दृश्य प्रस्तुत करती हैं। इस श्रृंखला में एक कविता “कोयल” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
देखो कोयल काली है पर
मीठी है इसकी बोली
इसने ही तो कूक कूक कर
आमों में मिश्री घोली
कोयल कोयल सच बतलाना
क्या संदेसा लाई हो
बहुत दिनों के बाद आज फिर
इस डाली पर आई हो
क्या गाती हो किसे बुलाती
बतला दो कोयल रानी
प्यासी धरती देख मांगती
हो क्या मेघों से पानी?
कोयल यह मिठास क्या तुमने
अपनी माँ से पाई है?
माँ ने ही क्या तुमको मीठी
बोली यह सिखलाई है?
डाल डाल पर उड़ना गाना
जिसने तुम्हें सिखाया है
सबसे मीठे मीठे बोलो
यह भी तुम्हें बताया है
बहुत भली हो तुमने माँ की
बात सदा ही है मानी
इसीलिये तो तुम कहलाती
हो सब चिड़ियों की रानी
-सुभद्रा कुमारी चौहान
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवयित्री सुभद्रा कुमारी चौहान कोयल के मधुर गायन का वर्णन करती हैं। कविता के माध्यम से वह कहती हैं कि कोयल का गायन वसंत ऋतु का संकेत है, और यह मन को खुशी से भर देता है। इस कविता में कोयल के गायन मन को मोह लेने वाला और आत्मा को प्रसन्न कर देने वाला कहा गया है, जो हमें जीवन का आनंद लेने के लिए प्रेरित करता है। प्रकृति के प्रति प्रेम और प्रशंसा को व्यक्त करने के लिए इस कविता को वर्ष 1930 में लिखा गया था।
कवि
हिंदी पुराने कवियों की प्रसिद्ध कविताएं, आपके समक्ष एक कवि की जिम्मेदारियों का भी वर्णन करती हैं। इस श्रृंखला में एक कविता “कवि” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
क़लम अपनी साध,
और मन की बात बिल्कुल ठीक कह एकाध।
यह कि तेरी-भर न हो तो कह,
और बहते बने सादे ढंग से तो बह।
जिस तरह हम बोलते हैं, उस तरह तू लिख,
और इसके बाद भी हमसे बड़ा तू दिख।
चीज़ ऐसी दे कि जिसका स्वाद सिर चढ़ जाए
बीज ऐसा बो कि जिसकी बेल बन बढ़ जाए।
फल लगें ऐसे कि सुख-रस, सार और समर्थ
प्राण-संचारी कि शोभा-भर न जिनका अर्थ।
टेढ़ मत पैदा करे गति तीर की अपना,
पाप को कर लक्ष्य कर दे झूठ को सपना।
विंध्य, रेवा, फूल, फल, बरसात या गर्मी,
प्यार प्रिय का, कष्ट-कारा, क्रोध या नरमी,
देश या कि विदेश, मेरा हो कि तेरा हो
हो विशद विस्तार, चाहे एक घेरा हो,
तू जिसे छू दे दिशा कल्याण हो उसकी,
तू जिसे गा दे सदा वरदान हो उसकी।
-भवानी प्रसाद मिश्र
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से भवानी प्रसाद मिश्र जी ने अपनी इस कालजयी रचना के माध्यम से समाज के समक्ष कवि की भूमिका और महत्व को दर्शाने का प्रयास किया है। इस कविता का उद्देश्य कवियों को समाज का दर्पण अथवा एक महत्वपूर्ण सदस्य बताना है, जो अपनी कला और क्षमताओं के माध्यम से समाज को बेहतर बनाने का प्रयास करता है। कविता में कवि भवानी प्रसाद मिश्र समाज के प्रति एक कवि की क्या जिम्मेदारियां होनी चाहिए उसका वर्णन करते हैं।
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