यहाँ पढ़िए मुंशी प्रेमचंद जी की सर्वश्रेष्ठ कविताएं

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Premchand ki kavitayen

भारत देश में कई ऐसे महापुरुषों ने जन्म लिया है जिन्होंने अपनी ज्ञान, कला, और कर्म से केवल भारत को ही नहीं बल्कि पूरे विश्व को प्रेरित किया है। उन महापुरुषों में कालिदास, तुलसीदास, सूरदास, रवींद्रनाथ टैगोर शामिल हैं। इन्हीं में से एक मुंशी प्रेमचंद भी थे जिन्हें कहानीकारों का सम्राट और कविताओं का जादूगर कहा जाता है। उनकी कविताएं आम आदमी की आवाज है। ऐसे में यदि आप मुंशी प्रेमचंद की कविताओं को पढ़ना चाहते हैं, तो यह लेख आपके लिए है। यहाँ हम आपको मुंशी प्रेमचंद जी की सर्वश्रेष्ठ कविताएं के बारे में बताएंगे। तो चलिए बिना देर किये पढ़ते हैं Premchand ki Kavitayen.

मुंशी प्रेमचंद का जीवन परिचय

हिंदी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार प्रेमचंद का जन्म वाराणसी के निकट लमही नामक गाँव में सन् 1880 में हुआ। उनकी आरंभिक शिक्षा गाँव में हुई। छुटपन में ही उनके पिता का देहांत हो गया। इसलिए घरजिम्मेदारी असमय ही उनके कंधों पर आ पड़ी। वे दसवीं पास करके प्राइमरी स्कूल में शिक्षक बन गए। नौकरी में रहकर ही उन्होंने बी.ए. पास किया। इसके बाद वे शिक्षा विभाग में सबडिप्टी-इंस्पेक्टर ऑफ स्कूल्स के रूप में नियुक्त हो गए।  सन् 1920 में वे गाँधी जी के आह्वान पर असहयोग आंदोलन में कूद पड़े। उन्होंने साहित्य-लेखन द्वारा देशसेवा करने का संकल्प किया। उनका वास्तविक नाम धनपत राय था। पहले वे नवाबराय के नाम से उर्दू में लिखते थे। बाद में हिंदी में प्रेमचंद के नाम से लिखने लगे। उन्होंने अपना छापाखाना खोला तथा ‘हंस’ नामक पत्रिका का संपादन किया। सन् 1936 में उनका देहांत हो गया।

यहाँ पढ़िए Premchand ki Kavitayen

ख्वाहिशे 

ख्वाहिश नहीं मुझे,
मशहूर होने की,
आप मुझे पहचानते हो,
बस इतना ही काफी है,
अच्छे ने अच्छा,
और बुरे ने बुरा जाना मुझे,
क्योंकि जिसको जितनी जरूरत थी,
उसने उतना ही पहचाना मुझे,
जिंदगी की फलसफा भी,
कितनी अजीब है,
श्यामे कटती नहीं,
और साल गुजरते चले जा रहे हैं,
एक अजीब सी,
दौड़ है ये ज़िंदगी,
जीत जाओ तो कई,
अपने पीछे छूट जाते हैं,
और हार जाओ तो,
अपने ही पीछे छोड़ जाते हैं,
बैठ जाता हूं,
मिट्टी पर अक्सर, क्योंकि मुझे अपनी,
औकात अच्छी लगती है||

Source: The Talks Club

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क़लम के जादूगर!

क़लम के जादूगर! अच्छा है,
आज आप नहीं हो अगर होते,
तो, बहुत दुखी होते। आप ने तो कहा था
कि, खलनायक तभी मरना चाहिए, जब,
पाठक चीख चीख कर बोले,
मार – मार – मार इस कमीने को|
पर,आज कल तो, खलनायक क्या?

नायक-नायिकाओं को भी,जब चाहे ,
तब, मार दिया जाता है|
फिर जिंदा कर दिया जाता है|
और फिर मार दिया जाता है|
और फिर, जनता से पूछने का नाटक होता है-
कि अब,इसे मरा रखा जाए? या जिंदा किया जाए?

सच, आप की कमी, सदा खलेगी – हर उस इंसान को,
जिसे मुहब्बत है, साहित्य से, सपनों से, स्वप्नद्रष्टाओं, समाज से,
पर समाज के तथाकथित सुधारकों से नहीं| हे कलम के सिपाही,
आज के दिन आपका सब से छोटा बालक, आप के चरणों में
अपने श्रद्धा सुमन, सादर समर्पित करता है |

दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला

दुनिया में यूँ तो हर किसी का साथ-संग मिला
अफ़सोस सब के चेहरे पे एक ज़र्द रंग मिला
मज़हब की रौशनी से था रौशन हुआ जहाँ
मज़हब के मसीहाओं से पर शहर तंग मिला
सच की उड़ान जिसने भरी और उड़ चला
वो शख़्स शहादत की लिए इक उमंग मिला
कल तक गले लगा के जो करता था जाँ निसार
बातों में उसकी आज अनोखा या ढंग मिला
जिसने लिबास ओढ़ रखा था उसूल का
वो फर्द सियात की उड़ाता पतंग मिला
सूली पे चढ़ गया कोई हक़ बोलकर यहाँ
तारिख़ के पन्नों पे इक ऐसा प्रसंग मिला
शीशे में शक्ल देख हैराँ हुआ हूँ मैं
शीशा भी मुझे देखकर किस कद्र दंग मिला
मज़नू जहाँ गया वहाँ इक भीड़ थी जमा
हाथों में सबके एक नुकीला सा संग मिला
मिलकर चले थे सबके कदम सहर की तरफ
क्यों आज विरासत में ये मैदाने जंग मिला।

Source: Hindi Kavita

हिन्दू और मुसलमान

मंदिर में दान खाकर, चिड़िया मस्जिद में पानी पीती है,
सुनने में आता है राधा की चुनरीया,
कोई सलमा बेगम सीति है,
एक रफी साहब थे जो,
मैसेज रघुपति राघव राजा राम गाते थे,
और था एक प्रेमचंद जो बच्चों को,
ईदगाह सुनाता था,
कभी कन्हैया की लीला गाता,
रसखान सुनाई देता है,बाकियों को दीखते होंगे हिंदू और मुसलमान,
मुझे तो हर जीव में भीतर एक भोला इंसान दीखता है|

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जीवन का रहस्य 

उंगलिया हर किसी पर ऐसे ना उठाया करो,
उड़ाने से पहले खुद पैसे कमाया करो,
जिंदगी का तातपर्य क्या है?
एक दिन खुद ही समझ जाओगे…
बारिशों में पतंगो को हवा लगवाया करो,
दोस्तों से मुलाकात पर,
हस्सी के ठहाके लगाया करो,
पुरे दिन मस्ती और,
घूमने के बाद, श्याम में तुम,
कुछ फकीरो को, अन खिलाया करो…
अपने साथ जमीन को बांधकर ,
आसमानों का भी लूप उठाया करो,
आने मंजिल है बड़ी, कही धुर हिअ खड़ी,
इसलिए ऐरे गेरे लोगो को, मुंह मत लगाया करो||

मोहब्बत रूह की गीज़ा है 

मोहब्बत रूह की भूख है, और सारी परेशानियां,
इस भूख के ना मिटने पर ही, पैदा होती है,
एक कवी हमें, मोह्हबत के हसीं पल,
और उसके परम आनंद का बता सकता है,
जो और भूख, पैदा करता है, और कवी के मीठे शब्दों से,
हमारी रूह जगमगा उठती है||

ईदगाह

ईदगाह सी लिखी कहानी और गबन गोदान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
प्रेमचंद की सभी कथाएं सुनी पढ़ी जाती हैं, 
बूढ़ी काकी कफ़न कामना सबको ही भाती हैं।
नशा स्वामिनी इस्तीफा भी हैं पुस्तक की शान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
मंदिर मस्जिद मंत्र आभूषण लिखा ईश्वरीय न्याय,
अलगोझा ज्योति लिखी और गरीब की हाय।
हाय निर्मला की संकट में फंसी रही है जान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
हलकू होरी धनिया जबरा और आत्माराम,
हामिद और अमीना सब ही करें प्रेम से काम।
बड़े भाई साहब तो देखो हैं भाई के प्राण,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।
मुंशी प्रेमचंद का सचमुच वृहद कथा संसार,
सुने पढ़े जाएंगे जब तक है गंगा में धार।
शब्द शब्द में प्रेमचंद हैं यही हमें है भान,
दर्द लिखा है निर्धन जन का लेखक हुए महान।

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मुंशी प्रेमचंद की रचनाएँ

Premchand ki Kavitayen, इस ब्लॉग में हम मुंशी प्रेमचंद की रचनाओं के बारे में जानेंगे। तो आईये आपको बता दें कि मुंशी प्रेमचंद ने 350 कहानियाँ और 11 उपन्यास लिखे। उनकी कहानियाँ ‘मानसरोवर’ नाम से आठ भागों में संकलित हैं। उनके प्रसिद्ध उपन्यास हैं-सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि , निर्मला, गबन, कर्मभूमि और गोदान। ‘क्बला’ और ‘प्रेम की वेदी’ नामक उनके दो नाटक भी हैं। उनके द्वारा लिखित निबंध ‘कुछ विचार’ और ‘विविध प्रसंग’ नामक संकलनों में संकलित हैं।

साहित्यिक विशेषताएँ

मुंशी प्रेमचंद के साहित्य का सबसे प्रमुख विषय है-राष्ट्रीय जागरण समाज-सुधार। देशभक्ति के प्रबल स्वर के कारण उनके कहानी-संग्रह ‘सोजे वतन’ को अंग्रेज सरकार ने जब्त कर लिया था। मुंशी प्रेमचंद ने दीन-हीन किसानों, ग्रामीणों और शोषितों की दलित अवस्था का मार्मिक चित्रण किया। उनकी कफ़न, पूस की रात, गोदान आदि रचनाएँ शोषण के विरुद्ध विद्रोह की आवाज़ उठाती हैं। उन्होंने समाज में व्याप्त अन्य बुराइयों-दहेज, अनमेल विवाह, नशाखोरी, शोषण, बहु-विवाह, छुआछूत, ऊँच-नीच आदि पर भी प्रभावशाली साहित्य लिखा। 

भाषा-शैली

मुंशी प्रेमचंद अपनी सरल, मुहावरेदार भाषा के लिए विख्यात है। उन्होंने लोकभाषा को साहित्यिक भाषा बनाया। उनकी भाषा आम जनता के बहुत निकट है। वे अपने पात्र, वातावरण और मनोदशा के अनुसार शब्दों का चुनाव में उसका करते हैं। वास्तव में एक व्यक्ति जिस वातावरण में अपने पद-स्थान के अनुसार जिस परिस्थिति में जो भाषा बोलता है, उसी को व्याकरण के नियमों में ढालकर उन्होंने प्रस्तुत कर दिया है। वे मानव-मन में उठ रहे मनोभावों को प्रकट करने में बहुत कुशल हैं।

आशा है कि आपको Premchand ki Kavitayen का यह ब्लॉग अच्छा लगा होगा। इसी तरह के अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए बने रहिये हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ।

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4 comments
  1. कोई खफा है मुझसे कोई खुश
    जाने अनजाने का सफर शुरू हुआ
    लेकिन मिलना था एक दिन तुम ही से
    यह तो कुदरत ने ही तय किया था
    कैसे कहूं वक्त भी औकात देखकर
    हमें मुसीबतों के चरणों में डालता है।

  1. कोई खफा है मुझसे कोई खुश
    जाने अनजाने का सफर शुरू हुआ
    लेकिन मिलना था एक दिन तुम ही से
    यह तो कुदरत ने ही तय किया था
    कैसे कहूं वक्त भी औकात देखकर
    हमें मुसीबतों के चरणों में डालता है।