जानिए फंगस की पूरी जानकारी

1 minute read
Fungus in Hindi

फंगल संक्रमण एक आम समस्या है परन्तु अगर समय से इसका इलाज न किया जाए तो यह एक गम्भीर रूप ले सकता है। फंगल संक्रमण एक आम प्रकार का त्वचा संबंधी संक्रमण होता है। मनुष्यों में, Fungus in Hindi तब होता है जब फंगस शरीर के किसी क्षेत्र में आक्रमण करते है और प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में सक्षम नहीं होती है। कोरोना संकट के बीच म्‍यूकोरमाइकोसिस यानी ब्लैक फंगस पूरे देश में चिंता का विषय बना हुआ है। कोरोना के साथ ब्लैक फंगस का संक्रमण लोगों के डर को और बढ़ा रहा है। तो चलिए जानते हैं Fungus in Hindi के बारे में ।

ये भी पढ़ें : कोरोना के खिलाफ ऐसे रखेंगे ख्याल तो ज़रूर जीतेंगे यह वॉर

This Blog Includes:
  1. फंगस क्या है ?
  2. फंगल इंफेक्शन के लक्षण क्या हैं?
  3. फंगल इंफेक्शन से बचने के उपाय
  4. एंटिफंगल दवाइयां क्या है और वे कैसे काम करती है?
  5. एंटिफंगल क्रीम, तरल पदार्थ या स्प्रे (टोपिकल एंटिफंगल)
    1. एंटिफंगल शैम्पू
    2. ऐंटिफंगल पेसर्स
  6. मुंह द्वारा ली जाने वाली एंटिफंगल दवाइयां
  7. ऐंटिफंगल दवाइयां कौन नहीं ले सकते हैं?
  8. फंगस डायग्नोसिस
  9. फंगल इंफेक्शन पर काबू पाने के लिए करे ये घरेलू उपाय
  10. ब्लैक फंगस संक्रमण होने की वजह?
  11. व्हाइट फंगस : कितना खतरनाक है व्हाइट फंगस, कोविड 19 के साथ क्यों माना जा रहा है जानलेवा
  12. क्या हैं व्हाइट फंगस के लक्षण?
  13. व्हाइट फंगस से किसको है ज्यादा खतरा?
  14. कैसे करें व्हाइट से खुद का बचाव?
  15. FAQs

फंगस क्या है ?

कई प्रकार के फंगल रोगाणु (कवक) मिट्टी, भोजन, हमारी त्वचा पर और पर्यावरण के अन्य स्थानों पर हानि रहित स्थिति में रहते हैं। हालांकि, कुछ प्रकार के फंगल शरीर की सतह पर बढ़ और प्रजनन कर सकते है, जिससे त्वचा, नाखून, मुँह या योनि का संक्रमण हो सकता है। त्वचा के संक्रमण के लिए सबसे आम फंगल ट्यूना समूह हैं।

 उदाहरण के लिए:

  • एथलीट फुट (टिनिया पेडीस) पैर की अँगुलियों और पैरों का एक आम फंगल संक्रमण है।
  • टिनिया संक्रमण से दाद (टिनिअ कॉरपॉरिसी) (रिंगवर्म)
  • स्कैल्प के दाद (टिनिया कैपिटिस)(रिंगवर्म) भी उत्पन्न हो सकता है।
  • इसके कारण अनेक प्रकार का कवकीय नाखून संक्रमण (फंगल नेल इन्फेक्शन) भी हो सकता है।
  • मुँह (कॉमन फंगल इन्फेक्शन)
  • एक आम फंगल संक्रमण (वजाइना) को थ्रस कहा जाता है।
  • यह कैंडिडा के बहुत अधिक वृद्धि के कारण होता है जो एक यीस्ट (फंगल का एक प्रकार) है। 
  • कैंडिडा की छोटी संख्या आमतौर पर त्वचा पर हानिरहित स्थिति में रहती हैं। 
  • कुछ स्थितियों में कैंडिडा बहुगुणित होकर संक्रमण उत्पन्न कर सकती हैं।
  • कैंडिडा कभी कभी कुछ कवकीय नाखून संक्रमण का कारण भी हो सकती है।

ये भी पढ़ें :  घर पर करने के लिए 15 बेहतरीन टिप्स

Fungus in Hindi संक्रमण तीनों दोषों के कारण होता है। 

  • लक्षणों के आधार पर दोषों की दुष्टि भिन्न-भिन्न हो सकती है।
  • खुजली होने पर कफ एवं पित्त असंतुलित होना, लाल होने पर कफ एवं पित्त का असंतुलन
  • त्वचा पर सफेद चकत्ते होना- वात एवं कफ का असंतुलन होने के कारण होता है।

फंगल संक्रमण एक आम समस्या है परन्तु अगर समय से इसका इलाज न किया जाए तो यह एक गम्भीर रूप ले सकता है। 

  • फंगल संक्रमण भले ही त्वचा पर पड़ने वाले लाल चकत्तों जैसा होता है, परन्तु इसका प्रभाव काफी खतरनाक साबित हो सकता है।
  • यह रोग सिर्फ त्वचा तक ही सीमित नहीं होता है बल्कि यह ऊतक, हड्डियों और शरीर के सभी अंगों को प्रभावित करने की क्षमता रखता है।
  • फंगल इंफेक्शन नवजात से वृद्धावस्था तक किसी भी अवस्था में हो सकता है।

फंगल इंफेक्शन के लक्षण क्या हैं?

इसके लक्षण निम्नलिखित हैं। जैसे-

  • प्रभावित क्षेत्र लाल होना या छाले पड़ना
  • त्वचा में पपड़ी निकलना
  • संक्रमित क्षेत्र में खुजली या जलन होना
  • योनि के आसपास खुजली और सूजन
  • सफेद दाग आना और अत्यधिक खुजली होना
  • पेशाब करने या संभोग करने के दौरान जलन या दर्द होना
  • त्वचा रूखी हो जाना तथा दरारें पड़ जाना

ये भी पढ़ें : कोरोना वायरस के बारे में कितना जानते हैं आप?

फंगल इंफेक्शन से बचने के उपाय

फंगल इंफेक्शन के समस्या से बचने के लिए सबसे पहले जीवनशैली और आहार में बदलाव लाने की ज़रूरत होती है-

  • मानसून में फंगल संक्रमण अधिक होता है।
  • त्वचा को सूखा और स्वच्छ रखे।
  • सूती कपड़े पहने।
  • बरसात में बालों को गीला न रहने दे।
  • पानी पर्याप्त मात्रा में पीयें ताकि त्वचा सूखी न रखे।
  • फंगल संक्रमण की नवीन अवस्था में एलोपैथिक उपचार बेहतर परिणाम देते हैं परन्तु अगर एलोपैथिक उपचार से संक्रमण ठीक न हो तो आयुर्वेदिक उपचार ज्यादा फायदेमंद साबित हो सकता है।

एंटिफंगल दवाइयां क्या है और वे कैसे काम करती है?

एंटिफंगल दवाइयां अनेक प्रकार की होती हैं।

  • ये क्रीम
  • स्प्रे
  • घोल
  • योनि (पोजीरीज़)
  • शैंपू
  • मुँह से लेने की दवाइयां
  • इंजेक्शन के रूप में उपलब्ध हैं।

अधिकांश दवाइयां फंगल की कोशिका की दीवार को नुकसान पहुंचाकर कार्य करती हैं, जिससे फंगल कोशिकाएं मर जाती है। जिन लोगों को एंटिफंगल इंजेक्शन लेने की अनुशंसा की जाती है वे आमतौर पर अस्पताल में भर्ती होते हैं और बहुत बीमार होते हैं।

एंटिफंगल क्रीम, तरल पदार्थ या स्प्रे (टोपिकल एंटिफंगल)

इनका उपयोग त्वचा, खोपड़ी और नाखूनों के फंगल संक्रमण के उपचार के लिए किया जाता है। 

  • क्लोट्रीयमैजोल
  • इकोनाज़ोल
  • केटोकोनैज़ोल
  • माइकोनाज़ोल
  • टियोकोनाज़ोल
  • टेरबीनाफ़िन
  • एमोरोल्फिन

कभी कभी एक एंटिफंगल क्रीम को अन्य क्रीमों के साथ मिलाया जाता है जब दो कार्यों की आवश्यकता होती है।

 उदाहरण के लिए:-

  • कुछ चकत्ते का उपचार करने के लिए, 
  • एक एंटिफंगल क्रीम को अक्सर हल्के स्टेरॉयड क्रीम, 
  • जैसे हाइड्रोकार्टेसोन ( माइल्ड स्टेरॉयड क्रीम ),
  • एंटिफंगल क्रीम संक्रमण को साफ करता है, 
  • हल्के स्टेरॉयड क्रीम संक्रमण की वजह से होने वाले सूजन को कम करता है।

एंटिफंगल शैम्पू

एक शैम्पू जिसमें किटोकोनैजोल होता है, कभी-कभी स्कैल्प फंगल संक्रमण और कुछ त्वचा की स्थितियों के उपचार में मददगार होता है।

ऐंटिफंगल पेसर्स

पोजीरीज़ वैसे टेबलेट्स हैं जिन्हें योनि में डाला जाता है।

 कुछ एंटिफंगल दवाओं को योनि नीचे दी गई है :-

  • थ्रश, 
  • विशेषकर क्लोटियमैजोल, 
  • ईकोनाज़ोल,
  •  माइकोनाजोल
  •  फेंटिकोनज़ोल के उपचार के लिए पोजीरीज़ के रूप में उपयोग किया जाता है।

मुंह द्वारा ली जाने वाली एंटिफंगल दवाइयां

यह विभिन्न प्रकार की होती है। 

उदाहरण के लिए:

  • माइकोनाजोल ओरल जेल
  • निस्टाटिन एक तरल के रूप में उपलब्ध है। 

उनका इस्तेमाल मुँह पर किया जाता हैं। वे मुँह और गले के घोंघे (कैन्डिडा संक्रमण) का उपचार करने के लिए उपयोग किया जाता है।

  • टेर्बिनाफिन ,
  • इटरेक्नाज़ोल,फ्लुकोनाज़ोल
  • पॉसासकोनाजोल
  • व्होरिकोनाज़ोल गोलियों के रूप में उपलब्ध हैं, जो शरीर द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं। 

ये भी पढ़ें : योग क्या है?

ऐंटिफंगल दवाइयां कौन नहीं ले सकते हैं?

ज्यादातर लोग टोपिकल एंटिफंगल का उपयोग करने में सक्षम होते हैं और वे ओरल एंटिफंगल लेते हैं।

  • डॉक्टर या फार्मासिस्ट जो आपको सलाह देते हैं, वे जाँच करते हैं कि क्या वे दवाइयां विशेष रूप से आप के लिए उपयुक्त हैं। 
  • भले ही आप एक विशेष एंटिफंगल नहीं ले रहे हों, तो आपका डॉक्टर आमतौर पर आपके लिए उचित एंटिफंगल की दवाई खोज सकता हैं।
  • यदि आप गर्भवती हैं या गंभीर यकृत की बीमारी या किडनी की बीमारी से पीड़ित है तो आपको ओरल एंटिफंगल दवाइयां नहीं लेनी चाहिए। 
  • बच्चों के लिए आमतौर पर ओरल एंटिफंगल दवाइयों की अनुशंसा नहीं की जाती हैं,
  •  यदि उनकी अनुशंसा की जाती है, तो यह आमतौर पर एक विशेषज्ञ द्वारा किया जाता है।

कुछ मौखिक एंटिफंगल जिन्हें आप लेते हैं, वे अन्य दवाइयों के साथ प्रतिक्रिया कर सकती हैं। इसके कारण प्रतिक्रियाएँ हो सकती है, या एक या अन्य उपचार का प्रभाव कम हो सकता है। इसलिए, जब आपको किसी एंटिफंगल दवाइ लेने की अनुशंसा की जाती हैं, तो आपको डॉक्टर से बताना चाहिए अगर आप अन्य दवाइयां ले रहे हैं।

ये भी पढ़ें : प्रदूषण पर निबंध

फंगस डायग्नोसिस

फंगल इन्फेक्शन की जांच कैसे की जाती है? फंगल इन्फेक्शन का निदान मुख्य रूप से त्वचा की जांच पर निर्भर करता है। इस जांच के लिए शरीर के प्रभावित क्षेत्र से त्वचा पर होने वाली पपड़ी, नाखून की कतरनें या वहां के बालों के नमूने लिए जाते हैं। फंगल इन्फेक्शन का निदान हो जाने पर सबसे पहले इसके अंतर्निहित कारणों का इलाज किया जाता है।

Fungus in Hindi संक्रमण की जांच के लिए निम्न टेस्ट किये जा सकते हैं –

  • रक्त परीक्षण – फंगल इन्फेक्शन की जांच के लिए रक्त परीक्षण किया जाता है। जिससे की इसके संभावित कारणों का पता लगाया जा सके।
  • इमेजिंग टेस्ट – इसके अलावा फंगल इन्फेक्शन जब फेफड़ो में फैल गया हो, तो आपको एक्स-रे, सीटी स्कैन और एमआरआई स्कैन के माध्यम से इसके कारणों को पता लगाने की सलाह दी जाती है।

फंगल इंफेक्शन पर काबू पाने के लिए करे ये घरेलू उपाय

हल्दी

प्रभावित हिस्से को हल्दी मिले पानी से धोना फायदेमंद होता है। ऐसा नियमित रूप से करने पर संक्रमण का प्रभाव कम होने लगता है। अगर संक्रमण की जगह पर हल्दी का पेस्ट लगा दिया जाए तो इससे भी राहत मिलती है।

नीम

नीम त्वचा के किसी भी तरह के संक्रमण को रोकने में लाभकारी है। नीम के पानी या नीम की पत्तियों को पानी में उबालकर इस पानी का प्रयोग दिन में कई बार त्वचा पर किया जाना चाहिए।

पुदीना

पुदीने में संक्रमण के प्रभाव को नष्ट करने की क्षमता होती है। पुदीने की पत्तियों को पीसकर पेस्ट बना लें। इस पुदीने के पेस्ट को त्वचा में लगा कर इसे 1 घंटे रहने दें।

कपूर

केरोसिन के तेल में 5 ग्राम कपूर और 1 ग्राम नेप्थलीन को मिला लें। इसे संक्रमण वाली जगह पर कुछ देर मलहम की तरह लगा कर छोड़ दें। जब तक रोग ठीक न हो जाये, इस उपाय को दिन में दो बार करें।

टी ट्री ऑइल 

टी ट्री ऑइल में एंटीबैक्टीरियल गुण पाए जाते हैं। त्वचा संक्रमण को दूर करने के लिए टी ट्री ऑइल को सीधे प्रभावित हिस्से में रोजाना दो बार लगायें।

पीपल की पत्तियां 

पीपल की पत्तियों को थोड़े पानी के साथ उबाल लें। इसे ठंडा होने दें और इस पानी का प्रयोग त्वचा को धोने के लिए करें। इससे घाव जल्दी ठीक होने लगते हैं।

ये भी पढ़ें :- जानिए सरकारी नौकरी के 10 फायदे

कोविड-19 के इलाज से शरीर कमजोर और इम्यूनिटी कम हो सकती है। उससे डायबिटीज और गैर डायबिटीज मरीजों में ब्लड शुगर लेवल भी खराब हो सकता है, जो फफूंद के कई गुना बढ़ने की प्रमुख वजह बताया जा रहा है। लेकिन दांत की स्वच्छता के कुछ आसान नियमों का पालन कर आप ब्लैक फंगस समेत वायरल और फंगल संक्रमण की चपेट में आने की संभावना को कम कर सकते हैं।

ब्लैक फंगस संक्रमण होने की वजह?

स्वास्थ्य मंत्रालय ने पुष्टि कर दी है कि संक्रमण कोविड-19 से ठीक हो चुके या उबर रहे लोगों के बीच पहचान में आ रहा है।

  • आईसीयू में ऑक्सीजन थेरेपी का इस्तेमाल करने वालों लोगों को नमी के संपर्क में आने की वजह से ज्यादा खतरा है।
  • इसलिए, सलाह दी जाती है कि ऑक्सीजन थेरेपी के लिए स्टेराइल वाटर का इस्तेमाल किया जाए।
  • कमजोर इम्यूनिटी, स्टेरॉयड का अत्यधिक इस्तेमाल, वोरिकोनाजोल थेरेपी और अनियंत्रित डायबिटीज भी ब्लैक फंगस संक्रमण के खतरे में लोगों को डालता है।

इन मरीजों को है सबसे अधिक खतरा

  • डायबिटिज के मरीज में जिन्हें स्टेरॉयड दिया जा रहा है।
  • कैंसर का इलाज करा रहे मरीज।
  • अधिक मात्रा में स्टेरॉयड लेने वाले मरीज।
  • ऐसे कोरोना संक्रमित जो ऑक्सीजन मॉस्क या वेंटिलेटर के जरिए ऑक्सीजन सपोर्ट पर हैं।
  • ऐसे मरीज जिनकी रोग प्रतिरोधक क्षमता बेहद कम है।
  • ऐसे मरीज जिनके किसी ऑर्गन का ट्रांसप्लांट हुआ हो।

ये भी पढ़ें :-  ऑनलाइन सर्टिफिकेट कोर्सेज

Source: India TV

इन कारणों से बढ़ रहे ब्लैक फंगस के मामले

  • डॉ श्वेता के मुताबिक कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड का इस्तेमाल हो रहा है जिससे शुगर का लेवल बढ़ रहा है।
  • शुगर लेवल बढ़ने और फिजिकल एक्टिविटी न होने पर ब्लैक Fungus in Hindi के संक्रमण की आशंका बढ़ जाती है।
  • स्टेरॉयड के इस्तेमाल से शरीर की प्रतिरोधी क्षमता कम होती है, जिससे ब्लैक फंगस के विरुद्ध शरीर का प्रतिरक्षा तंत्र प्रभावी तरीके से काम नहीं कर पाता है।
  • चेन्नई स्थित डायबिटीज स्पेशिलिटीज सेंटर के चीफ कंसल्टेंट व चेयरमैन डॉ वी मोहन के मुताबिक डायबिटीज के अलावा हाईजीन और दूषित इक्विपमेंट के चलते भी ब्लैक फंगस के मामले बढ़ रहे हैं।
  •  डॉ मोहन का कहना है कि कोरोना केसेज इतने अधिक आ रहे हैं कि अस्पतालों में सफाई पर बहुत अधिक ध्यान नहीं दिया जा रहा है।
  • इसके चलते इक्विपमेंट पर Fungus in Hindi जमा होने की आशंका बढ़ती है।

व्हाइट फंगस : कितना खतरनाक है व्हाइट फंगस, कोविड 19 के साथ क्यों माना जा रहा है जानलेवा

भारत समेत कई और देश कोरोना वायरस की दूसरी लहर से प्रभावित हैं :- 

  • इसी बीच कोरोनावायरस के मरीजों पर ब्लैक फंगस और व्हाइट फंगस ‌जैसे काले बादल मंडरा रहे हैं। 
  • व्हाइट फंगस के आ जाने से मामला और गंभीर हो गया है।
  • इस परिस्थिति ने लोगों को और डरा दिया है। 
  • विशेषज्ञों का मानना है कि व्हाइट फंगस खतरनाक है मगर ब्लैक फंगस के मुकाबले यह थोड़ा कम नुकसानदेह है।
  • भले ही विशेषज्ञों की यह बात सुनकर थोड़ी तसल्ली मिल रही है मगर यह फंगस जानलेवा भी हो सकता है।

कुछ रिपोर्ट्स के अनुसार, यह पता चला है कि व्हाइट फंगस अन्य आम फंगस के समान है लेकिन इससे ठीक होने में करीब एक से डेढ़ महीने का समय लगेगा। लोगों को अपने इम्यूनिटी का खास ध्यान रखना चाहिए और कोरोनावायरस से जितना हो सके उतना बचने की कोशिश करना चाहिए। ‌

क्या हैं व्हाइट फंगस के लक्षण?

व्हाइट फंगस फेफड़ों को प्रभावित करता है।

  • जिससे लोगों को खांसी,
  •  सांस लेने में दिक्कत,
  •  सीने में दर्द
  •  बुखार जैसी समस्याएं होती हैं। 

 व्हाइट फंगस दिमाग को प्रभावित कर रहा है तो इससे लोगों की समझने की क्षमता कम हो जाती है तथा उन्में सिर दर्द और दौरा पड़ने के लक्षण भी दिखाई देते हैं। छोटा और दर्दरहित फोड़ा, चलने में परेशानी और उठने-बैठने में दिक्कत भी व्हाइट फंगस के लक्षण हैं

व्हाइट फंगस से किसको है ज्यादा खतरा?

जिन लोगों की इम्युनिटी कमजोर है उन्हें व्हाइट फंगस का खतरा ज्यादा है। जरूरत से ज्यादा स्टेरॉयड और एंटीबायोटिक का सेवन करने वाले लोगों को भी व्हाइट फंगस हो सकता है। 

  • डायबिटीज, 
  • लंग्स 
  • कैंसर के मरीजों को अपना ध्यान अवश्य रखना चाहिए क्योंकि वह भी इसके चपेट में आ सकते हैं।

कैसे करें व्हाइट से खुद का बचाव?

जानकार बताते हैं कि व्हाइट फंगस से बचने के लिए लोगों को अपनी इम्यूनिटी पर खास ध्यान देना चाहिए और डायबिटीज के मरीजों को अपना डायबिटीज का लेवल नियंत्रित रखना चाहिए। 

  • इम्यूनोमॉड्यूलेटिंग ड्रग और स्टेरॉयड का सेवन कम करना चाहिए और लक्षण दिखने पर डॉक्टर से परामर्श अवश्य करना चाहिए।
  •  इस परिस्थिति में बिना डॉक्टर की सलाह लिए किसी भी दवा का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • व्हाइट फंगस से बचने के लिए योग, एक्सरसाइज और पौष्टिक आहार भी फायदेमंद साबित हो सकते हैं।

FAQs

फंगल इन्फेक्शन कैसे जाता है?

फंगस अक्सर गर्म, और नम वातावरण में बढ़ती है। पसीने से तर या गीले कपड़े पहनना भी आपकी त्वचा के इन्फेक्शन के लिए एक जोखिम कारक है। त्वचा के कटने या फटने से भी बैक्टीरिया त्वचा की गहरी परतों में अंदर तक जा सकता है और विभिन्न प्रकार के इन्फेक्शन हो सकते हैं।

फंगल इंफेक्शन को कैसे दूर करें?

-हल्दी
-नीम नीम स्किन संबंधी हर इंफेक्शन को खत्म करने में मदद करती है।
-लहसुन लहसुन में एंटी फंगल गुण पाए जाते हैं।
-एलोवेरा एलोवेरा में एंटी फंगल, एंटी बैक्टीरियल गुए पाए जाते हैं जो –स्किन संबंधी किसी भी समस्या को सही कर देता है।
-नारियल तेल नारियल तेल में फैटी एसिड होता है जो फंगसाइड के रूप में काम करता है।

फंगल का मतलब क्या होता है?

बारिश के मौसम में हवा में मौजूद नमी, उमस और गीलापन कई तरह के संक्रमण पैदा करने वाले जीवों और कीटों के बढ़ने के लिए बहुत आसान होता है। उसपर कपड़ों का आसानी से न सूख पाना, सीलन और गंदगी इसको और बढ़ा देते हैं।

फंगल इन्फेक्शन होने पर क्या नहीं खाना चाहिए?

मूंगफली, पिस्ता आदि को मोल्ड संदूषण माना जाता है। फंगल संक्रमण के दौरान अधिकांश डॉक्टर इस तरह के खाद्य पदार्थों का सेवन करने से बचने की सलाह देते हैं। अगर आप फंगल संक्रमण का इलाज करा रहे हैं, तो कुछ दिनों तक इन खाद्य पदार्थों के सेवन से बचें।

फंगल इन्फेक्शन क्यों होता है?

फंगल संक्रमण एक आम प्रकार का त्वचा संबंधी संक्रमण होता है। मनुष्यों में, फंगल संक्रमण तब होता है जब कवक या फंगस शरीर के किसी क्षेत्र में आक्रमण करते है और प्रतिरक्षा प्रणाली इनसे लड़ने में सक्षम नहीं होती है।

आशा करते हैं कि आपको Fungus in Hindi का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। यदि आप विदेश में पढ़ना चाहते है तो हमारे Leverage Edu के एक्सपर्ट्स से 1800572000 पर कांटेक्ट कर आज ही 30 मिनट्स का फ्री सेशन बुक कीजिए

Leave a Reply

Required fields are marked *

*

*