भारत में नागरिकता कैसे मिलती है? धाराएं, अधिकार और मूल प्रावधानों की पूरी जानकारी

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भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान

Citizenship Provisions in the Indian Constitution in Hindi: कभी सोचा है कि आप जहां वर्षों से रह रहे हैं, वहां आपको नागरिकता की क्या जरूरत है? सिर्फ एक पहचान पत्र ही तो नहीं है नागरिकता! यह तो देश का हिस्सा होने का एहसास है, जिसके कुछ नियम हैं, कुछ अधिकार हैं, और कुछ जिम्मेदारियां भी। परंतु नागरिकता का असली मतलब क्या है? कानूनी तौर पर यह हमें क्या ताकत देती है? और एक देश के संविधान में इसका इतना महत्व क्यों है? अगर आप UPSC या सामान्य ज्ञान की तैयारी कर रहे छात्र हैं, तो यह विषय आपके लिए बहुत महत्वपूर्ण होने वाला है। इस ब्लॉग भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान (Citizenship Provisions in the Indian Constitution in Hindi) के जरिए हम सभी संबंधित जानकारियों के बारे में विस्तार से जानेंगे।

This Blog Includes:
  1. नागरिकता की परिभाषा
    1. नागरिक बनाम प्रवासी: अधिकार और कर्तव्य
  2. भारतीय संदर्भ में नागरिकता का अर्थ
  3. भारत में नागरिकों के अधिकार
  4. भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान कब लागू हुआ? 
    1. अनुच्छेद 5 से 11 में नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान
  5. संविधान निर्माण के समय नागरिकता का निर्धारण
  6. कैसे मिलती है भारत की नागरिकता?
    1. जन्म द्वारा (By Birth)
    2. वंशानुक्रम (By Descent)
    3. पंजीकरण द्वारा (By Registration)
    4. प्राकृतिककरण (By Naturalization) 
  7. नागरिकता समाप्त (Loss of Citizenship)
    1. छोड़ देना (परित्याग)
    2. अपने आप खत्म होना (विलोपन)
    3. सरकार द्वारा छीन लेना (निरसन)
  8. नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act – CAA)
    1. CAA को लेकर भारत में विवाद 
    2. CAA को लेकर भारत में वर्तमान स्थिति 
  9. OCI, POI, NRI कार्ड का अर्थ 
  10. FAQs

नागरिकता की परिभाषा

नागरिकता, मतलब कानूनी तौर पर किसी देश से जुड़ा होना है। जहां आपको देश के प्रति वफादार नागरिक होना होता है, जिसके बदले में देश आपकी सुरक्षा और अधिकारों का ध्यान रखता है। नागरिक होने के नाते आपको कुछ खास हक मिलते हैं, जैसे – वोट देना, चुनाव लड़ना, पासपोर्ट बनवाना और देश में कहीं भी आज़ादी से रहना और काम करना। सामाजिक तौर पर कहें तो नागरिकता हमें समान पहचान देती है और ‘हम सब एक हैं’ की भावना पैदा करती है। यह हमें अपने देश की परंपराओं, संस्कृति और इतिहास से जोड़ती है, जिससे देश में एकता और मेलजोल को भी बढ़ावा मिलता है।

नागरिक बनाम प्रवासी: अधिकार और कर्तव्य

विशेषतानागरिक (Citizen)प्रवासी (Immigrant/Alien)
मूलभूत अधिकारलगभग सभी संवैधानिक और कानूनी अधिकार प्राप्त होते हैं।कुछ मूलभूत अधिकार प्राप्त होते हैं, लेकिन राजनीतिक अधिकारों (जैसे वोटिंग) का अभाव होता है।
राजनीतिक अधिकारवोट देने, चुनाव लड़ने और सार्वजनिक पद धारण करने का अधिकार होता है।ये अधिकार आमतौर पर प्राप्त नहीं होते।
आने-जाने की स्वतंत्रतादेश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आ-जा सकते हैं और बिना किसी विशेष अनुमति के रह सकते हैं।देश में प्रवेश और निवास के लिए वीजा और अन्य अनुमतियों की आवश्यकता हो सकती है।
आने-जाने की स्वतंत्रतादेश में कहीं भी स्वतंत्र रूप से आ-जा सकते हैं और बिना किसी विशेष अनुमति के रह सकते हैं।देश में प्रवेश और निवास के लिए वीजा और अन्य अनुमतियों की आवश्यकता हो सकती है।
सरकारी नौकरीकुछ विशिष्ट पदों पर नियुक्ति का अधिकार होता है।आमतौर पर सभी सरकारी नौकरियों के लिए पात्र नहीं होते।
निष्ठा का कर्तव्यराज्य के प्रति निष्ठा रखने और संविधान का पालन करने का कर्तव्य होता है।देश के कानूनों का पालन करने का कर्तव्य होता है।

भारतीय संदर्भ में नागरिकता का अर्थ

भारत में नागरिकता का अर्थ है भारत गणराज्य का पूर्ण सदस्य होना। भारतीय नागरिक संविधान द्वारा प्रदत्त सभी मौलिक अधिकारों और नागरिक स्वतंत्रताओं का हकदार है। उसे वोट देने, चुनाव लड़ने, सरकारी पदों पर नियुक्त होने और देश के किसी भी हिस्से में रहने और काम करने का अधिकार है। साथ ही, भारतीय नागरिकों पर संविधान और कानूनों का पालन करने तथा राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने की जिम्मेदारी भी है।

भारत में नागरिकों के अधिकार

भारत के संविधान ने अपने नागरिकों को कुछ बुनियादी अधिकार उपलब्ध कराये हैं, जिन्हें मौलिक अधिकार कहते हैं। यह अधिकार संविधान के भाग III (अनुच्छेद 12 से 35) में दिए गए हैं। जिसका उद्देश्य नागरिकों को हक़ और न्याय दिलाना है। यदि इनका उल्लंघन होता है तो नागरिक अदालत के दरवाज़े पर जा सकता है।  भारत में नागरिकों के मुख्य अधिकार इस प्रकार हैं:

  • समानता का अधिकार (Right to Equality)
  • स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom)
  • शोषण के विरुद्ध अधिकार (Right Against Exploitation)
  • धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (Right to Freedom of Religion)
  • सांस्कृतिक तथा शिक्षा संबंधी अधिकार (Cultural and Educational Rights)
  • संवैधानिक उपचारों का अधिकार (Right to Constitutional Remedies)

भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान कब लागू हुआ? 

भारतीय संविधान में नागरिकता से संबंधित प्रावधान, जो भाग II (अनुच्छेद 5 से 11) में दिए गए हैं, 26 नवंबर 1949 को लागू हुए। यह वही तारीख थी जब भारत की संविधान सभा ने संविधान को अपनाया था। हालाँकि संविधान का मुख्य भाग 26 जनवरी 1950 (जिसे गणतंत्र दिवस के रूप में मनाया जाता है) को लागू हुआ, लेकिन नागरिकता, चुनाव, अस्थायी संसद और कुछ मौलिक अधिकारों से जुड़े कुछ प्रावधान पहले ही 26 नवंबर 1949 को लागू कर दिए गए थे।

अनुच्छेद 5 से 11 में नागरिकता के संवैधानिक प्रावधान

अनुछेद विषय 
अनुच्छेद 5संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता को परिभाषित करता है, जिसमें वे व्यक्ति शामिल हैं जिनका भारत में अधिवास था और जोभारत में पैदा हुए थे, जिनके माता-पिता में से कोई एक भारत में पैदा हुआ था,जो संविधान के प्रारंभ से ठीक पहले कम से कम पांच वर्षों तक भारत में साधारण निवासी रहे थे।
अनुच्छेद 6यह नियम कहता है कि जो लोग 19 जुलाई 1949 से पहले पाकिस्तान से भारत आए, उन्हें भारत का नागरिक माना जाएगा। ज़रूरी यह था कि उनके माता-पिता या दादा-दादी में से कोई एक भारत में पैदा हुआ हो।
अनुच्छेद 7यह नियम उन लोगों के लिए है जो 1 मार्च 1947 के बाद भारत छोड़कर पाकिस्तान चले गए। लेकिन अगर वे बाद में भारत वापस आना चाहते थे, तो उन्हें सरकार से फिर से बसने की इजाज़त (पुनर्वास परमिट) लेनी पड़ती थी, तभी उन्हें नागरिक माना जाता।
अनुच्छेद 8यह नियम उन लोगों के लिए है जो भारत के बाहर रहते हैं, लेकिन वे खुद या उनके माता-पिता/दादा-दादी में से कोई भारत में पैदा हुआ हो। ऐसे लोग चाहें तो भारतीय दूतावास में अपना नाम भारत के नागरिक के तौर पर रजिस्टर करवा सकते हैं।
अनुच्छेद 9यह नियम कहता है कि अगर कोई अपनी मर्ज़ी से किसी और देश का नागरिक बन जाता है, तो वह भारत का नागरिक नहीं रहेगा। यानी भारत में सिर्फ एक नागरिकता का नियम है।
अनुच्छेद 10यह नियम कहता है कि जिसे भी ऊपर बताए गए नियमों से भारत की नागरिकता मिली है, वह हमेशा नागरिक रहेगा, जब तक कि संसद कोई ऐसा कानून न बना दे जिससे नागरिकता खत्म हो जाए।
अनुच्छेद 11संसद को नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति तथा नागरिकता से संबंधित किसी अन्य मामले के संबंध में कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।

संविधान निर्माण के समय नागरिकता का निर्धारण

संविधान निर्माताओं के सामने एक बड़ी मुसीबत थी कि विभाजन की त्रासदी के बाद एक नए राष्ट्र के नागरिकों को कैसे परिभाषित किया जाए। अनुच्छेद 5 से 8 इसी चुनौती का समाधान प्रस्तुत करते हैं, जिसमें भारत में जन्म, माता-पिता के जन्मस्थान और निवास जैसे कारकों के आधार पर नागरिकता निर्धारित की गई है। अनुच्छेद 9 यह सुनिश्चित करता है कि दोहरी नागरिकता को प्रोत्साहित नहीं किया जाएगा, जबकि अनुच्छेद 11 भविष्य में नागरिकता कानूनों को बनाने की शक्ति संसद को सौंपता है।

कैसे मिलती है भारत की नागरिकता?

संसद ने अनुच्छेद 11 द्वारा दी गयी शक्ति का प्रयोग करते हुए नागरिकता अधिनियम, 1955 बनाया, जो भारत की नागरिकता प्राप्त करने के विभिन्न तरीकों और इसकी समाप्ति के प्रावधानों को विस्तार से बताता है।

भारतीय नागरिकता अधिनियम 1955:

  • जन्म द्वारा (By Birth)
  • वंशानुक्रम (By Descent)
  • पंजीकरण द्वारा (By Registration)
  • प्राकृतिककरण (By Naturalization)
  • क्षेत्रीय विलय द्वारा (By Incorporation of Territory)

जन्म द्वारा (By Birth)

26 जनवरी, 1950 से 1 जुलाई, 1987 के बीच भारत में जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति जन्म से भारत का नागरिक है। 1 जुलाई, 1987 के बाद जन्म लेने वाला व्यक्ति तभी भारत का नागरिक है यदि उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो। 3 दिसंबर, 2004 के बाद जन्म लेने वाला व्यक्ति तभी भारत का नागरिक है यदि उसके माता-पिता दोनों भारत के नागरिक हों या उनमें से एक भारत का नागरिक हो और दूसरा उसके जन्म के समय अवैध प्रवासी न हो।

वंशानुक्रम (By Descent)

26 जनवरी, 1950 के बाद भारत के बाहर जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक है यदि उसके पिता उसके जन्म के समय भारत के नागरिक थे। 10 दिसंबर, 1992 के बाद भारत के बाहर जन्म लेने वाला व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा यदि उसके माता-पिता में से कोई एक उसके जन्म के समय भारत का नागरिक हो। ऐसे जन्म का पंजीकरण भारतीय दूतावास में जन्म के एक वर्ष के भीतर कराना आवश्यक है या केंद्र सरकार की अनुमति से उसके बाद भी कराया जा सकता है।

पंजीकरण द्वारा (By Registration)

केंद्र सरकार निम्नलिखित श्रेणियों के व्यक्तियों को आवेदन करने पर भारत का नागरिक के रूप में पंजीकृत कर सकती है:

  • भारतीय मूल के व्यक्ति जो पंजीकरण के लिए आवेदन करने से ठीक पहले सात वर्षों तक भारत में साधारण रूप से निवासी रहे हों।
  • भारतीय मूल के व्यक्ति जो भारत के बाहर किसी भी देश या स्थान के निवासी हों।
  • ऐसे व्यक्ति जिन्होंने किसी भारतीय नागरिक से विवाह किया हो और पंजीकरण के लिए आवेदन करने से ठीक पहले सात वर्षों तक भारत में साधारण रूप से निवासी रहे हों।
  • भारतीय नागरिकों के नाबालिग बच्चे।
  • राष्ट्रमंडल देशों के नागरिक जो भारत में सरकारी सेवा में हैं या भारत सरकार के अधीन किसी अंतरराष्ट्रीय संगठन में कार्यरत हैं और पंजीकरण के लिए आवेदन करते हैं।
  • भारतीय नागरिकता प्राप्त कर चुके व्यक्तियों के वयस्क बच्चे।
  • भारतीय मूल के व्यक्ति या भारतीय नागरिक से विवाहित व्यक्ति के नाबालिग बच्चे।

प्राकृतिककरण (By Naturalization) 

केंद्र सरकार किसी ऐसे विदेशी को आवेदन करने पर भारत की नागरिकता प्रदान कर सकती है जो निम्नलिखित शर्तों को पूरा करता हो:

  • वह ऐसा व्यक्ति न हो जिसके पास किसी ऐसे देश की नागरिकता हो जहाँ भारतीय नागरिकों को प्राकृतिककरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने से रोका जाता है।
  • वह अच्छे चरित्र का हो।
  • वह भारत सरकार की सेवा में रहा हो या कम से कम बारह महीने तक भारत में निवासी रहा हो और पंजीकरण की तारीख से ठीक पहले चौदह वर्षों में कुल मिलाकर ग्यारह वर्षों तक भारत में रहा हो।
  • उसे भारतीय संविधान में निहित मूल्यों और सिद्धांतों की जानकारी हो।
  • यदि उसे नागरिकता प्रदान की जाती है, तो वह अपनी पिछली नागरिकता त्यागने का इरादा रखता हो।
  • क्षेत्रीय विलय द्वारा (By Incorporation of Territory): यदि कोई नया क्षेत्र भारत में शामिल किया जाता है, तो केंद्र सरकार अधिसूचना द्वारा यह निर्दिष्ट कर सकती है कि उस क्षेत्र के कौन से व्यक्ति भारत के नागरिक होंगे।

नागरिकता समाप्त (Loss of Citizenship)

नागरिकता अधिनियम, 1955 में बताया गया है कि भारत की नागरिकता किन तीन तरीकों से खत्म हो सकती है:

  • परित्याग (Renunciation)
  • विलोपन (Termination)
  • निरसन (Deprivation)

छोड़ देना (परित्याग)

  • कोई भी बालिग भारतीय नागरिक लिखकर यह कह सकता है कि वह भारत की नागरिकता छोड़ना चाहता है। अगर देश में युद्ध चल रहा हो, तो सरकार उसे ऐसा करने से रोक भी सकती है। जब कोई अपनी नागरिकता छोड़ता है, तो उसके छोटे बच्चे भी भारतीय नागरिक नहीं रहते, हालाँकि बड़े होने पर वे वापस नागरिकता के लिए अर्ज़ी दे सकते हैं।

अपने आप खत्म होना (विलोपन)

  • अगर कोई भारतीय नागरिक अपनी मर्जी से किसी दूसरे देश की नागरिकता ले लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता अपने आप ही खत्म हो जाती है। यह नियम संविधान के अनुच्छेद 9 पर आधारित है।

सरकार द्वारा छीन लेना (निरसन)

  • सरकार कुछ खास कारणों से किसी की भारतीय नागरिकता खत्म कर सकती है, चाहे उसे यह नागरिकता जन्म से मिली हो या बाद में:
  • अगर उसने धोखे से या गलत जानकारी देकर नागरिकता पाई हो।
  • अगर उसने भारत के संविधान का अपमान किया हो।
  • अगर उसने युद्ध के समय दुश्मन की मदद की हो या उनसे बात की हो।
  • अगर नागरिकता मिलने के पाँच साल के अंदर उसे किसी दूसरे देश में दो साल या उससे ज़्यादा की जेल हुई हो।
  • अगर वह सात साल तक लगातार भारत से बाहर रहा हो।

नागरिकता संशोधन अधिनियम (Citizenship Amendment Act – CAA)

भारत के नागरिकता कानून (1955) में समय-समय पर ज़रूरत के हिसाब से बदलाव किए गए हैं। कुछ मुख्य बदलाव इस तरह हैं:

1986जन्म से नागरिकता के नियम थोड़े कड़े हुए। अब कम से कम एक माता-पिता का भारतीय होना ज़रूरी है।
1992नागरिकता सिर्फ पिता से नहीं, माता या पिता किसी से भी मिल सकती है।
2003OCI नाम की एक नई कैटेगरी बनी, जो विदेश में रहने वाले भारतीयों के लिए थी। नागरिकता मिलने के नियम भी साफ किए गए।
2005OCI के नियमों को और अच्छे से समझाया गया।
2015पहले दो तरह के कार्ड (PIO और OCI) थे, उन्हें मिलाकर एक OCI कार्ड बना दिया गया।
2019एक नया नियम बनाया गया, जिसके तहत पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए कुछ खास धर्मों के लोगों को नागरिकता मिल सकती है, अगर वे एक तय तारीख से पहले भारत आ गए हों तो। 

नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019 में नागरिकता के पुराने कानून (1955) में कुछ बदलाव किए गए हैं। इसका मेन मकसद पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई लोगों को भारत की नागरिकता देना है, जो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ गए थे और जिनके पास ज़रूरी कागज़ात नहीं हैं।

  • यह कानून उन धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता के लिए अर्ज़ी देने की इजाज़त देता है जो इन तीन मुस्लिम-बहुल देशों में परेशान किए जाने के कारण भागकर भारत आए हैं।
  • ऐसे लोगों के लिए भारत में रहने की ज़रूरी अवधि, जिसके बाद वे नागरिकता के लिए अप्लाई कर सकते हैं, 11 साल से घटाकर 5 साल कर दी गई है।
  • यह कानून असम, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के कुछ आदिवासी इलाकों और उन क्षेत्रों पर लागू नहीं होता जहाँ इनर लाइन परमिट (ILP) सिस्टम लागू है।

CAA को लेकर भारत में विवाद 

CAA को लेकर भारत में बहुत बहस और विरोध हुआ है। इसके कुछ मुख्य कारण हैं:

  • धर्म के आधार पर भेदभाव – जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं, उनका कहना है कि यह कानून धर्म के आधार पर शरणार्थियों से भेदभाव करता है और भारत के धर्मनिरपेक्ष संविधान के खिलाफ है। इसमें मुस्लिम शरणार्थियों को शामिल नहीं किया गया है, इसलिए इसे पक्षपातपूर्ण माना जा रहा है।
  • संविधान के खिलाफ? – कुछ लोगों ने इस कानून को अदालत में चुनौती दी है। उनका कहना है कि यह कानून बराबरी के अधिकार (अनुच्छेद 14) का उल्लंघन करता है।
  • पूर्वोत्तर पर असर – पूर्वोत्तर राज्यों में लोग इसलिए विरोध कर रहे हैं क्योंकि उन्हें डर है कि बांग्लादेश से बड़ी संख्या में हिंदू आने से उस क्षेत्र की जनसंख्या और संस्कृति बदल जाएगी।

CAA को लेकर भारत में वर्तमान स्थिति 

CAA अभी पूरी तरह से लागू नहीं हुआ है। सरकार अभी इसके नियम और इसे लागू करने का तरीका बना रही है। इस कानून को लेकर कानूनी लड़ाई भी चल रही है, जिसकी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो रही है। इस कानून का आगे क्या होगा और यह भारत की नागरिकता व्यवस्था को कैसे बदलेगा, यह अभी कहना मुश्किल है।

OCI, POI, NRI कार्ड का अर्थ 

भारत में पहले भारतीय मूल के व्यक्तियों (POI) के लिए एक कार्ड था, जो उन्हें बिना वीज़ा भारत आने-जाने और कुछ अनुमती देता था। लेकिन 2015 में इसे भारत के विदेशी नागरिक (OCI) कार्ड में मिला दिया गया। OCI कार्ड भारतीय मूल के विदेशी नागरिकों के लिए एक पहचान पत्र है, जिससे वे ज़िंदगी भर बिना वीज़ा भारत में रह सकते हैं और यात्रा कर सकते हैं। हालाँकि, OCI कार्डधारकों को वोट देने, चुनाव लड़ने या बड़े सरकारी पदों पर काम करने का अधिकार नहीं होता।

अनिवासी भारतीय (NRI) वे भारतीय नागरिक हैं जो नौकरी या पढ़ाई जैसे कारणों से विदेश में रहते हैं। वे अभी भी भारत के नागरिक हैं और उन्हें लगभग सभी अधिकार मिलते हैं जो यहाँ रहने वालों को मिलते हैं, जिसमें कुछ शर्तों के साथ वोट देने का अधिकार भी शामिल है। NRI कार्ड कोई अलग नागरिकता नहीं है, बल्कि उनकी विदेश में रहने की स्थिति को दर्शाता है। भारत में सिर्फ एक नागरिकता का नियम है, लेकिन OCI जैसी योजनाओं के माध्यम से सरकार भारतीय मूल के विदेशियों से संबंध बनाए रखती है और उन्हें कुछ खास सुविधाएं देती है।

FAQs

भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान कब लागू हुआ?

भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान 26 नवंबर 1949 को लागू हुआ। 

भारतीय संविधान के कौन से प्रावधान नागरिकता से संबंधित हैं?

संविधान से संबंधित अनुच्छेद 5 से 11 मुख्य रूप से नागरिकता की अवधारणा से संबंधित हैं।

भारत की नागरिकता कहाँ से ली गयी है?

भारत की नागरिकता इंग्लैंड से ली गयी है।

संविधान के भाग 2 में क्या प्रावधान हैं?

संविधान के भाग 2 में नागरिकता से संबंधित प्रावधान दिए गए हैं।

भारत का प्रथम नागरिक कौन था?

भारत तक प्रथम नागरिक राष्ट्रपति होता है।

नागरिकता अनुच्छेद 5 से 11 में क्या है?

अनुच्छेद 5 से 11 में मुख्य रूप से भारतीय नागरिकता की पात्रता से संबंधित जानकारी का उल्लेख है।

भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के कितने मुख्य तरीके हैं?

भारतीय नागरिकता प्राप्त करने के पांच मुख्य तरीके हैं: जन्म के आधार पर, वंश के आधार पर, पंजीकरण द्वारा, प्राकृतिककरण द्वारा और भारत की सीमा में सम्मिलन के आधार पर।

नागरिकता अधिनियम 1955 का मुख्य उद्देश्य क्या है?

नागरिकता अधिनियम 1955 का उद्देश्य भारतीय नागरिकता से संबंधित नियमों को विस्तार से स्पष्ट करना और नागरिकता प्राप्त करने तथा समाप्त करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करना है।

अनुच्छेद छह के अंतर्गत किन व्यक्तियों को भारत की नागरिकता प्रदान की गई?

अनुच्छेद छह के अंतर्गत पाकिस्तान से भारत आए उन लोगों को नागरिकता प्रदान की गई जो 19 जुलाई 1948 से पहले भारत में आ गए थे या जिनके पास भारत में स्थायी निवास का प्रमाण था।

भारत में दोहरी नागरिकता की अनुमति क्यों नहीं है?

भारत में एकल नागरिकता की नीति अपनाई गई है, क्योंकि संविधान और नागरिकता अधिनियम के तहत केवल भारतीय नागरिकता को मान्यता दी जाती है।

सबंधित आर्टिकल्स

आशा करते हैं कि आपको भारतीय संविधान में नागरिकता का प्रावधान (Citizenship Provisions in the Indian Constitution in Hindi) का ब्लॉग अच्छा लगा होगा। UPSC और सामान्य ज्ञान से जुड़े ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ जुड़े रहें।

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