Bhrashtachar Par Kavita: भ्रष्टाचार हमारे समाज की एक ऐसी कड़वी सच्चाई है, जो विकास की राह में सबसे बड़ी बाधा बनकर खड़ी है। यह एक ऐसी समस्या है, जिसके स्थाई समाधान के लिए समाज को जागरूक रहने की आवश्यकता है। भ्रष्टाचार का असर केवल आर्थिक स्थिति पर नहीं, बल्कि सामाजिक, शैक्षणिक और नैतिक मूल्यों पर भी पड़ता है। भ्रष्टाचार ही मानव के ज्ञान, परिश्रम और किसी भी राष्ट्र के वैभव को कलंकित करने में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके कारण समाज अपनी समृद्धि खो देता है और सामाजिक व्यवस्थाएं खोखली हो जाती है। भ्रष्टाचार पर कविता के माध्यम से इसके विभिन्न पहलुओं को समझने और समाज में बदलाव लाने का प्रयास किया जा सकता है। इस लेख में कुछ लोकप्रिय भ्रष्टाचार पर कविता (Bhrashtachar Par Kavita) दी गई हैं, जो आपको इस संकट से लड़ने के लिए प्रेरित करेंगी।
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भ्रष्टाचार पर कविता – Bhrashtachar Par Kavita
भ्रष्टाचार पर कविता (Bhrashtachar Par Kavita) की सूची इस प्रकार है:
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
---|---|
भ्रष्टाचार | काका हाथरसी |
जय बोलो बेईमान की! | काका हाथरसी |
भ्रष्टाचार | शैल चतुर्वेदी |
भ्रष्टाचार खत्म करने को | गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’ |
भ्रष्टाचार | मनोज झा |
नहीं सुनाई देता है क्यूँ भीषण हाहाकार तुम्हें | महेश कटारे सुगम |
काका हाथरसी की भ्रष्टाचार पर कविता
राशन की दुकान पर, देख भयंकर भीर
‘क्यू’ में धक्का मारकर, पहुँच गये बलवीर
पहुँच गये बलवीर, ले लिया नंबर पहिला
खड़े रह गये निर्बल, बूढ़े, बच्चे, महिला
कहँ ‘काका’ कवि, करके बंद धरम का काँटा
लाला बोले – भागो, खत्म हो गया आटा
– काका हाथरसी
जय बोलो बेईमान की!
मन मैला तन ऊजरा भाषण लच्छेदार
ऊपर सत्याचार है भीतर भ्रष्टाचार
झूठों के घर पंडित बाँचें कथा सत्य भगवान की
जय बोलो बेईमान की!
लोकतंत्र के पेड़ पर कौआ करें किलोल
टेप-रिकार्डर में भरे चमगादड़ के बोल
नित्य नयी योजना बनतीं जन-जन के कल्यान की
जय बोलो बेईमान की!
महँगाई ने कर दिए राशन – कारड फेल
पंख लगाकर उड़ गए चीनी-मिट्टी-तेल
क्यू में धक्का मार किवाड़ें बंद हुईं दूकान की
जय बोलो बेईमान की!
डाक-तार-संचार का प्रगति कर रहा काम
कछुआ की गति चल रहे लैटर-टेलीग्राम
धीरे काम करो तब होगी उन्नति हिन्दुस्तान की
जय बोलो बेईमान की!
चैक कैश कर बैंक से लाया ठेकेदार
कल बनाया पुल नया, आज पड़ी दरार
झाँकी-वाँकी कर को काकी फाइव ईयर प्लान की
जय बोलो बेईमान की!
वेतन लेने को खड़े प्रोफेसर जगदीश
छ:-सौ पर दस्तखत किए मिले चार-सौ-बीस
मन ही मन कर रहे कल्पना शेष रकम के दान की
जय बोलो बेईमान की!
खड़े ट्रेन में चल रहे कक्का धक्का खायँ
दस रुपये की भेंट में थ्री टीयर मिल जाएँ
हर स्टेशन पर पूजा हो श्री टीटीई भगवान की
जय बोलो बेईमान की!
बेकारी औ भुखमरी महँगाई घनघोर
घिसे-पिटे ये शब्द हैं बन्द कीजिए शोर
अभी ज़रूरत है जनता के त्याग और बलिदान की
जय बोलो बेईमान की!
मिल मालिक से मिल गए नेता नमक हलाल
मंत्र पढ़ दिया कान में खत्म हुई हड़ताल
पत्र-पुष्प से पाकिट भर दी श्रमिकों के शैतान की
जय बोलो बेईमान की!
न्याय और अन्याय का नोट करो डिफरेंस
जिसकी लाठी बलवती हाँक ले गया भैंस
निर्बल धक्के खाएँ तूती बोल रही बलवान की
जय बोलो बेईमान की!
पर-उपकारी भावना पेशकार से सीख
बीस रुपे के नोट में बदल गई तारीख
खाल खिच रही न्यायालय में, सत्य-धर्म-ईमान की
जय बोलो बेईमान की!
नेताजी की कार से कुचल गया मज़दूर
बीच सड़क पर मर गया हुई गरीबी दूर
गाड़ी ले गए भगाकर जय हो कृपानिधान की
जय बोलो बेईमान की!
– काका हाथरसी
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शैल चतुर्वेदी की भ्रष्टाचार पर कविता
हमारे लाख मना करने पर भी
हमारे घर के चक्कर काटता हुआ
मिल गया भ्रष्टाचार
हमने डांटा : नहीं मानोगे यार
तो बोला : चलिए
आपने हमें यार तो कहा
अब आगे का काम
हम सम्भाल लेंगे
आप हमको पाल लीजिए
आपके बाल-बच्चों को
हम पाल लेंगे
हमने कहा : भ्रष्टाचार जी!
किसी नेता या अफ़सर के
बच्चे को पालना
और बात है
इन्सान के बच्चे को पालना
आसान नहीं है
वो बोला : जो वक्त के साथ नहीं चलता
इंसान नहीं है
मैं आज का वक्त हूँ
कलयुग की धमनियों में
बहता हुआ रक्त हूँ
कहने को काला हूँ
मगर मेरे कई रंग हैं
दहेज़, बेरोज़गारी
हड़ताल और दंगे
मेरे ही बीस सूत्री कार्यक्रम के अंग हैं
मेरे ही इशारे पर
रात में हुस्न नाचता है
और दिन में
पंडित रामायण बांचता है
मैं जिसके साथ हूँ
वह हर कानून तोड़ सकता है
अदलत की कुर्सी का चेहरा
चाहे जिस ओर मोड़ सकता है
उसके आंगन में
अंगड़ाई लेती है
गुलाबी रात
और दरवाज़े पर दस्तक देती है
सुनहरी भोर
उसके हाथ में चांदी का जूता है
जिसके सर पर पड़ता है
वही चिल्लाता है
वंस मोर
वंस मोर
वंस मोर
इसलिए कहता हूँ
कि मेरे साथ हो लो
और बहती गंगा में हाथ धो लो
हमने कहा : गटर को गंगा कहते हो?
ये तो वक्त की बात है
जो भारत वर्ष में रह रहे हो
वो बोला : भारत और भ्रष्टाचार की राशि एक है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
हमारी ही देख-रेख है
राजनीति हमारी प्रेमिका
और पार्टी औलाद है
आज़ादी हमारी आया
और नेता हमारा दामाद है
हमने कहा : ठीक कहते हो भ्रष्टाचार जी!
दामाद चुनाव में खड़ा हो जाता है
और जीतने के बाद
उसकी अँगुली छोटी
और नाख़ून बड़ा हो जाता है
मगर याद रखना
दामादों का भविष्य काला है
बस, तूफ़ान आने ही वाला है
वो बोला : तूफ़ान आए चाहे आंधी
अपना तो एक ही नारा है
भरो तिज़ोरी चांदी की
जै बोलो महात्मा गांधी की
हमने कहा : अपने नापाक मुँह से
गांधी का नाम तो मत लो
वो बोला : इस ज़माने में
गांधी का नाम
मेरे सिवाय कौन लेता है
गांधी के सिद्धांतों पर चलने वालों को
जीने कौन देता है
मत भूलो
कि भ्रष्टाचार
इस ज़माने की लाचारी है
हमें मालूम है
कि आप कवि हैं
और आपने
कविता की कौन-सी लाइन
कहाँ से मारी है।
– शैल चतुर्वेदी
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भ्रष्टाचार खत्म करने को
आओ हाथ हृदय पर रख, कुछ क्षण सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें, जिम्मेदार हैं, सोचें हम
फिर निर्णय लें, पश्चात्ताप करें या प्रायश्चित या
भ्रष्टाचार खत्म करने को,जड़ तक पहुँचे हम
कहाँ नहीं है भ्रष्टाचार, मगर चुप रहते आये
आवश्यकता की खातिर हम,सब कुछ सहते आये
बढ़ा हौसला जिसका,उसने हर शै लाभ उठाया
क्या छोटे,क्या बड़े सभी,इक रौ में बहते आये
भ्रष्टाचारी गिद्धों ने जब,अपनी आँख जमाई
अत्याचारों के खिलाफ,संतों ने अलख जगाई
पहुँची है हुंकार आज इक,जनक्रांति की घर-घर
क्या बच्चे,क्या बूढ़े,तरुणों ने फिर ली अँगड़ाई
लगता है अब आएगा,इस मुहिम नतीजा कोई
देंगे यदि देनी ही पड़े अब,अग्नि परीक्षा कोई
रक्तहीन क्रांति की पहल, करी है हमने यारो,
हम कायर हैं,इस भ्रम में ना,रहे ख़लीफ़ा कोई
पहन मुखौटा करते हैं, अपमान राष्ट्र पर्वों का
शर्मिन्दा करते हैं,संस्कृति,उत्सव औ धर्मों का
नहीं हुए हम जागरूक सिर कफ़न बाँधना होगा
और हिसाब देना होगा,सबको अपने कर्मों का
आओ इस अनमोल समय का,मिल कर लाभ उठायें
कर गुज़रें इस संकट में सब,मिल कर हाथ बढ़ायें
राष्ट्रछवि बिगड़ी है,भ्रष्टाचार खत्म हो जड़ से
एक बनें मिल कर,इक जुट हों,इक आवाज़ उठायें
वंदेमातरम् गायें,सत्य मेव जयते दोहरायें
सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्ताँ हमारा गायें
राष्ट्रागान गूँजे घर ऑंगन,वैष्णव जनतो गूँजे
संविधान पर उठे न उँगली,ध्व्ज की शान बढ़ायें
आओ अंतर्मन के,तूफाँ रोकें,सोचें हम
थोड़े हम भी इसमें,जिम्मेदार हैं,सोचें हम
पीछे मुड़ कर ना देखें,संकल्प उठायें,सब मिल
भ्रष्टाचार खत्म करने को जड़ तक पहुँचे हम
– गोपाल कृष्ण भट्ट ‘आकुल’
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मनोज झा की भ्रष्टाचार पर कविता
अब अपने कंधे पर रख लो पालो।
ये हमारे है, वह हमारे है,
इन संबंधों का वहम,
अपने दिल से निकालो-निकालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥
दुःखी आसुओं की धार में मत बहो,
दुनिया अगर भ्रष्ट है तो-
अपने को दुनिया के रंग में ढालो,
अन्यथा टूट जाओगे,
घर से बाहर तक पैसे की माँग है।
अतः अपने को संहालो-संहालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥
यहाँ कोई किसी का कहतोँ-महतोँ नहीं है,
अफसर हों या नेता-।
जेब में हाथ डालो, पैसे निकालो,
और अपना काम बनालो-बनालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥
क्या जेब में पैसे नहीं हैं?
कलम मेँ ताकत नहीं है?
तो उठालो-उठालो
अपने हाथों में बंदूक उठालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥
तुम्हारा भविष्य आतंकित था,
कहलाए-आतंकवादी।
अब देखो एक जनता तो क्या
सरकार तुम्हारे इशारे पर नाचती है,
समझौता चाहती है।
वाह! जमालो-जमालो
अपनी शाहंशाही खूब जमालो,
अब अपने कंधे पर रख लो पालो॥
– मनोज झा
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नहीं सुनाई देता है क्यूँ भीषण हाहाकार तुम्हें
नहीं सुनाई देता है क्यूँ भीषण हाहाकार तुम्हें ।
भूल हुई जो बना दिया है सूबे का सरदार तुम्हें ।
रिश्वत बिना किसी दफ़्तर में काम नहीं होता कोई,
नहीं दिखाई देता है क्यूँ फैला भ्रष्टाचार तुम्हें ।
नारी-उत्पीड़न में सूबा अव्वल नम्बर पर आया,
फिर भी शर्म नहीं आती है लानत है धिक्कार तुम्हें ।
केबिनेट में भ्रष्ट मन्त्री छाँट-छाँट कर रख छोड़े,
लूट रहे क्या नहीं दिख रहे दौलत के दरबार तुम्हें ।
पोल खुलेगी जिस दिन उस दिन हश्र सामने आएगा,
मुर्दे सभी गवाही देंगे होगा कारागार तुम्हें ।
– महेश कटारे सुगम
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