अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध जैव विविधता के लिए प्रसिद्ध भारत देश आज कई पर्यावरणीय चुनौतियों का सामना कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण जैसी कई गंभीर समस्याएं पैदा हो रही है। ऐसे में इन विकट परिस्थितियों से निपटने के लिए और पर्यावरण की रक्षा के लिए लोगों ने कई महत्वपूर्ण पर्यावरण आंदोलन किये। आज के इस लेख में हम आपको भारत में पर्यावरण आंदोलन में बारे में विस्तार से बताएंगे।
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पर्यावरण आंदोलन क्या है?
पर्यावरण आंदोलन एक प्रकार का सामाजिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य प्रदूषण, जलवायु परिवर्तन, वनों की कटाई एवं अन्य पर्यावरणीय मुद्दों से निपटने के लिए काम करना है। यह विभिन्न प्रकार के लोगों और संगठनों का समूह है जो न केवल पृथ्वी को बचाने के लिए महत्वपूर्ण है बल्कि यह सामाजिक न्याय और स्थायी विकास को बढ़ावा देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
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भारत में पर्यावरण आंदोलन की लिस्ट
भारत में पर्यावरण आंदोलन की लिस्ट इस प्रकार से है :
आंदोलन का नाम | वर्ष | जगह |
बिश्नोई आंदोलन | 1700 के दशक में | राजस्थान |
चिपको आंदोलन | 1973 | उत्तराखंड |
साइलेंट वैली आंदोलन | 1978 | केरल |
जंगल बचाओ आंदोलन | 1980 | बिहार |
अप्पिको आंदोलन | 1983 | कर्नाटक |
नर्मदा बचाओ आंदोलन | 1985 | गुजरात, मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र |
बिश्नोई आंदोलन
बिश्नोई आंदोलन, प्रकति की रक्षा के लिए एक अहिंसक आंदोलन था। यह केवल एक आंदोलन ही नहीं था बल्कि इस आंदोलन ने बिश्नोई समाज के हृदय में प्रकृति के प्रति प्रेम और समर्पण की भावना को दर्शाया। बिश्नोई समाज, पर्यावरण संरक्षण के वीर योद्धा के रूप में जाने जाते थे। इस समाज के संस्थापक श्रीगुरु जम्भेश्वर थे, जिन्हें जम्भोज़ी के नाम से भी जाना जाता है। जम्भोज़ी ने अपने समुदाय के अनुयायियों को 29 नियम दिये थे। ‘बिश्नोई’ दो शब्दों से मिलकर बना है: बीस + नौ, इन्हीं 29 नियमों अर्थात बीस और नौ के कारण ही इस सम्प्रदाय का नाम विश्नोई पड़ा।
वहीं बताते चले कि 1700 ईस्वी के आसपास राजस्थान के मारवाड़ क्षेत्र में ऋषि सोमजी द्वारा यह आंदोलन शुरू किया गया था। इसका उद्देश्य था वनों की कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करना। इसके बाद अमृता देवी इस आंदोलन की प्रेरणादायी नेता बनी। आंदोलन के दौरान बिश्नोई समुदाय के लगभग 363 लोग मारे गए थे लेकिन तब भी किसी ने हार नहीं मानी। अंत में उस क्षेत्र के राजा को बिश्नोई समजाक की दृढ़ता और बलिदान के आगे झुकना पड़ा और फिर उन्होंने उस क्षेत्र को घोषित कर दिया। यह घटना बिश्नोई आंदोलन की जीत का प्रतीक बन गया।
चिपको आंदोलन
भारत के इतिहास में चिपको आंदोलन बहुत प्रसिद्ध है। यह आंदोलन साल 1973 में उत्तराखंड राज्य (तब उत्तरा प्रदेश का भाग) में वृक्षों की कटाई का विरोध करने के लिए शुरू किया गया था। इस आंदोलन का नेतृत्व सुंदरलाल बहुगुणा और चंडी प्रसाद भट्ट ने किया था। इस आंदोलन की मुख्य विशेषता महिलाओं की भागीदारी थी। उन्होंने पेड़ों को गले लगाकर और उन्हें काटने से रोककर विरोध प्रदर्शन किया। जिसके बाद सरकार को वनों की कटाई पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन
साइलेंट वैली बचाओ आंदोलन, 1980 के दशक में केरल के साइलेंट वैली राष्ट्रीय उद्यान को बचाने के लिए चलाया गया था। बता दें कि 1980 में, केरल स्टेट इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड (केएसईबी) द्वारा, कुंतीपुंझ नदी पर एक जलविद्युत बांध बनाने का प्रस्ताव रखा गया था। कुंतीपुंझ नदी, साइलेंट वैली से होकर गुजरती है, ऐसे में वहां के लोगों को डर था कि यह परियोजना सदाबहार जंगल को डुबो देगी। इस डर के वजह से पर्यावरण कार्यकर्ताओं और क्षेत्रीय लोगों ने इस परियोजना का विरोध किया। इसी के दबाव में आकर सरकार ने 1985 में इसे राष्ट्रीय आरक्षित वन घोषित कर दिया।
जंगल बचाओ आंदोलन
इस आंदोलन की शुरुआत 1980 में बिहार से हुई थी। बाद में यह आंदोलन झारखंड और उड़ीसा तक फैल गया। हुआ यूँ था कि 1980 में बिहार सरकार ने टीक के पेड़ों के लिए जंगलों को बदलने की योजना बनाई थी। ऐसे में आदिवासी समुदाय, जिन्हें जंगलों से गहरा नाता था उन्होंने सरकार की इस योजना का विरोध किया। इस आंदोलन में महिलाओं, युवाओं और बुजुर्गों ने भी भाग लिया।
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अप्पिको आंदोलन
यह आंदोलन भी चिपको आंदोलन की तरह था। दूसरे शब्दों में इस आंदोलन को दक्षिण का चिपको आंदोलन भी कहा जाता है। बता दें कि इस आंदोलन की शुरुआत 1983 में कर्नाटक के उत्तर कन्नड़ क्षेत्र में हुई थी। वनों की कटाई के विरोध में कन्नड़ क्षेत्र के लोगों ने शांतिपूर्वक प्रदर्शन किया महिलाओं ने पेड़ों को गले लगाकर उनको कटने से बचाया। जिससे सरकार को वनों की कटाई पर रोक लगाने के लिए मजबूर होना पड़ा।
नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए)
नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए), भारत के शक्तिशाली आन्दोलनों में से एक था। यह आंदोलन नर्मदा नदी पर बड़े बाँधों के निर्माण के खिलाफ चलाया गया था। आंदोलन की शुरुआत 1979 में तब हुई जब स्थानीय लोगों ने सरदार सरोवर बांध के निर्माण के विरोध में आवाज उठाई थी। इसके बाद 1985 में नर्मदा बचाओ आंदोलन का गठन हुआ। इस आंदोलन की नेता मेधा पाटकर थी जिन्हें अरुंधति रॉय, बाबा आमटे और आमिर खान का समर्थन मिला था।
पर्यावरण आंदोलनों के कारण
पर्यावरण आंदोलनों के कारण निम्नलिखित है :
- औद्योगिकीकरण, शहरीकरण के कारण प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा था।
- प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन से कई स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो रही थी।
- वनों की कटाई तेजी से हो रही थी जिससे जैव विविधता को नुकसान पहुँच रहा था।
- लोगों को पर्यावरणीय क्षरण से बाढ़, फसल नुकसान जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ रहा था।
पर्यावरण आंदोलनों के परिणाम
पर्यावरण आंदोलनों के कुछ महत्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित है :
- पर्यावरण आंदोलनों से पर्यावरणीय कानूनों और नीतियों का विकास हुआ।
- लोगों लो पर्यावरणीय मुद्दों के बारे में जागरूक करने में मदद मिली।
- जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण और जैव विविधता जैसी समस्याओं को बेहतर ढंग से समझने और इनसे निपटने में मदद मिली।
- पर्यावरण आंदोलनों ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को भी पर्यावरण संरक्षण के लिए प्रेरित किया।
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FAQs
भारत में अनेक पर्यावरण आंदोलन हैं जिनमें से मुख्य है : चिपको आंदोलन, नर्मदा आंदोलन, अपिको आंदोलन, आदि।
पर्यावरण आंदोलन एक सामाजिक आंदोलन है जिसका उद्देश्य प्राकृतिक दुनिया को हानिकारक पर्यावरणीय प्रथाओं से बचाना है।
भारत में पर्यावरण संरक्षण अधिनियम भारतीय संविधान के अनुच्छेद 253 के तहत पारित किया गया था। बता दें कि पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 19 नवंबर 1986 को लागू किया गया था।
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आशा है कि आपको भारत में पर्यावरण आंदोलन की जानकारी इस ब्लॉग में मिल गयी होगी। इसी प्रकार के अन्य ट्रेंडिंग इवेंट्स पर ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बनें रहें।