मंगल पांडे पर कविता के माध्यम से युवाओं को स्वतंत्रता का सही अर्थ समझाया जा सकता है, मंगल पांडे पर कविता पढ़कर आप भारतीय स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले मंगल पांडे के बारे में जान पाएंगे। मंगल पांडे एक ऐसे स्वतंत्रता सेनानी थे जिनकी वीरता के किस्सों ने हर भारतीय को स्वतंत्रता संग्राम में अपना सर्वस्व समर्पित करने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने देश को अंग्रेजों की पकड़ से छुड़ाने के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। उन्हें भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानियों और 1857 के सिपाही विद्रोह के रूप में जाना जाता है। 1857 के विद्रोह में उनकी बहुत बड़ी भूमिका थी। मंगल पांडेय की वीरता की कहानियां आज भी पूरे भारत में उत्साह भरती हैं। मंगल पांडेय के जीवन पर कवियों द्वारा लिखी गईं कविताएं उनकी वीरगाथा की अमर निशानियां दिखाती हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप मंगल पांडे पर कविता पढ़ पाएंगे, जो आपको देशभक्ति की भावना से ओतप्रोत करने का काम करेंगी।
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मंगल पांडे के बारे में
मंगल पांडे का जन्म 19 जुलाई 1827 को उत्तर प्रदेश के ऊपरी बलिया जिले के नगवा गांव में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम दिवाकर पांडेय था। मंगल का 22 वर्ष की उम्र में ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना चयन हो गया। वर्ष 1849 में वे ईस्ट इंडिया कंपनी में शामिल हो गए।
मंगल पांडे को भारत का पहला स्वतंत्रता सेनानी कहा जाता है, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह करने का साहस किया। वह 1857 के भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में एक प्रमुख व्यक्ति थे, जिन्होंने उस चिंगारी को प्रज्वलित किया जिसके कारण सिपाही विद्रोह के 90 साल बाद भारत को आजादी मिली।
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मंगल पांडे पर कविता
मंगल पांडे एक भारतीय सैनिक थे जिन्होंने 1857 के भारतीय विद्रोह के फैलने से ठीक पहले होने वाली घटनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। वह ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की 34वीं बंगाल नेटिव इन्फैंट्री रेजिमेंट में एक सिपाही थे। 1984 में भारत सरकार ने उन्हें याद करने के लिए एक डाक टिकट जारी किया था। मंगल पांडे की शौर्यता और पराक्रम को समझने के लिए हमें उन पर लिखी गईं कविताओं को पढ़ना होगा। यहां भारत के प्रसिद्ध लेखकों द्वारा लिखी गईं मंगल पांडे पर कविता दी जा रही हैं।
मंगल पांडे पर प्रसिद्ध नारायाण सिंह की कविता
जब सन्ताबनि के रारि भइलि, बीरन के बीर पुकार भइलि।
बलिया का ‘मंगल पांडे के, बलिबेदी से ललकार भइलि ॥
‘मंगल‘ मस्ती में चूर चलल, पहिला बागी मसहूर चलल।
गोरन का पलटनि का आगे, बलिया के बाँका शूर चलल ॥
गोली के तुरत निसान भइल, जननी के भेंट परान भइल।
आजादी का बलिवेदी पर, ‘मंगल पांडे‘ बलिदान भइल ॥
जब चिता-राख चिनगारी से, धुधुकत तनिकी अंगारी से।
सोला निकलल, धधकल, फइलल, बलिया का क्रान्ति पुजारी से ॥
घर-घर में ऐसन आगि लगलि, भारत के सूतल भागि जगलि।
अंगरेजन के पलटनि सारी, बैरक से भागि चललि ॥
बिगड़लि बागी पलटनि काली, जब चललि ठोंकि आगे ताली।
मचि गइल रारि, पडि़ गइलि स्याह, गोरन के गालन के लाली ॥
भोजपुर के तप्पा जाग चलल, मस्ती में गावत राग चलल।
बांका सेनानी कुँवर सिंह, आगे फहरावत पाग चलल ॥
टोली चढि़ चलल जवानन के, मद में मातल मरदानन के।
भरि गइल बहादुर बागिन से, कोना-कोना मयदानन के ॥
ऐसन सेना सैलानी ले, दीवानी मस्त तूफानी ले।
आइल रन में रिपु का आगे, जब कुँवर सिंह सेनानी ले ॥
खच-खच खंजर तरुवारि चललि, संगीन, कृपान, कटारि चललि।
बर्छी, बर्छा का बरखा से, बहि तुरत लहू के धारि चललि ॥
बन्दूक दगलि दन-दनन्दनन्, गोली दउरलि सन्-सनन् सनन्।
भाला, बल्लम, तेगा, तब्बर बजि उठल उहाँ खन्-खनन् खनन् ॥
खउलल तब खून किसानन के जागल जब जोश जवानन के।
छक्का छूटल अंगरेजनि के, गोरे-गोरे कपतानन के ॥
बागी सेना ललकार चललि, पटना-दिल्ली ले झारि चललि।
आगे जे आइल राह रोक, रन में उनके संहारि चललि ॥
बैरी के धीरज छूटि गइल, जन्नु घड़ा पाप के फूटि गइल।
रन से सब सेना भागि चललि, हर ओर मोरचा टूटि गइल ॥
तनिकी-सा दूर किनार रहल, भारत के बेड़ा पार रहल।
लउकत खूनी दरिआव पर, मंजलि के छोर हमार रहल।।
भावार्थ- स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे ने सबसे पहले विद्रोह किया, मस्ती में चूर होकर चल दिए। अंग्रेजों की फौज के सामने आ गया बलिया का यह वीर जवान। जब गोलियों से सामना हुआ तो मां का यह सपूत आजादी की बलिबेदी पर कुर्बान हो गया।
मंगल पांडे पर मोहम्मद मुजम्मिल की कविता
मंगल पांडे पर मोहम्मद मुजम्मिल की कविता इस प्रकार हैः
आज हम मंगल पांडे को याद करते हैं, एक बहादुर और सच्चे व्यक्ति,
जिनकी उग्र भावना और साहस आज भी हमें नई प्रेरणा देती है।
वह अंग्रेजों और उनके दमनकारी शासनकाल के खिलाफ खड़े हुए,
और भारत की आज़ादी के लिए एक महान और न्यायपूर्ण अभियान चलाया।
यह 1857 का वर्ष था, जब मंगल पांडे ने अपना रुख अपनाया।
उन्होंने अत्याचार के सामने झुकने से इनकार कर दिया, उन्होंने अपनी जान अपने हाथ में ले ली।
अपने साथियों के साथ, वे ताज के विरुद्ध उठ खड़े हुए,
और अपनी पूरी ताकत से तब तक लड़ते रहे, जब तक उन्होंने दुश्मन को नीचे नहीं गिरा दिया।
उनका नाम अब पौराणिक है, भारत की लड़ाई का प्रतीक है,
स्वतंत्रता और न्याय के लिए, जो अच्छा और सही है उसके लिए।
स्मरण के इस दिन, हम उनके नाम पर श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं,
और उनकी विरासत को सम्मान और प्रसिद्धि के साथ जारी रखने का संकल्प लें।
-मोहम्मद मुजम्मिल
भावार्थ- भारत की आजादी के बाद हम एक बहादुर व्यक्ति मंगल पांडे को याद करते हैं और उनके साहस से प्रेरणा सभी को प्रेरणा मिलती है। अंग्रेजों के खिलाफ आजादी के लिए उनका अभियान 1857 का क्रांतिकारी वर्ष की याद दिलाता है। अपने साथियों के साथ उन्होंने दुश्मनों को नीचे गिराने तक अपनी पूरी ताकत झोंक दी। भारत की आजादी के लिए उनका नाम सदैव ऊपर रहेगा और उनके स्मरण के इस दिन उनके श्रद्धांजलि देने का सही अवसर है। उनका योगदान हमें उनकी विरासत को सम्मान करने के लिए उत्साहित करता है।
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मंगल पांडे पर वसुधा उत्तम की कविता
मंगल पांडे पर वसुधा उत्तम की कविता इस प्रकार हैः
देश की आजादी की क्रांति में जो पहला नाम है आता।
वो कोई और नहीं मंगल पांडे है कहलाता।।
अंग्रेजों पर किया था पहला हमला जिसने।
मारो अंग्रेजों को का नारा लगाया था उसने।।
सूअर और गाय की चर्बी के कारतूस ने उसका खून था उबाला।
अपने धर्म और देश की आन के लिए उसने बगावत का बिगुल था बजा डाला।।
देश की आजादी की पहली लड़ाई का किया था जिसने आगाज।
उसके जन्मदिन पर देश नमन करता है उसको आज।।
आंदोलन जीत तो ना पाया, पर जाते जाते लगा गया था बगावत की चिंगारी।
उस बगावत की आग ने ही एक दिन दिलवाई थी आजादी हमारी।।
ऐसे देश के वीरों की कुर्बानी ना जाने दो व्यर्थ।
देश में यदि ना हो एकता, प्रेम और भाईचारा, तो उनकी कुर्बानी का क्या बचा अर्थ।।
आओ मिलकर उनकी कुर्बानी को कुछ आदर हम दिलवाए।
जातिवाद, धर्मों, और भ्रष्टाचार के पापों से लड़कर देश को आगे हम बढ़ाए।।
-वसुधा उत्तम
भावार्थ- भारत की आजादी की क्रांति में पहला नाम मंगल पांडे का है जिसे सुनकर हम सब गर्व का अनुभव करते हैं। मंगल पांडे के मारो अंग्रेजों को नारा ने देश की आजादी की लड़ाई को नई दिशा दे दी थी। अपने धर्म और देश के लिए उसने पांडे ने बगावत का बिगुल बजाया और देश की आजादी के लिए लड़ाई का आगाज किया था। देश को आगे बढ़ने और आजादी दिलाने के लिए पांडे ने एकता, प्रेम और भाईचारे को भी बढ़ावा दिया। सभी को मिलकर अपने देश को आगे बढ़ाने के लिए आह्वान किया और देश की आजादी में महत्वपूर्ण भूमिका निभाकर अपने साथियों के साथ ऐसी क्रांति लिख दी।
मंगल पांडे पर छोटी कविता
मंगल पांडे पर कविता इस प्रकार हैः
किसी भी अन्याय को मंगल न सहन कर पाते थे।
ज्यादा कुछ न सोचकर सीधे क्रांतिकारी रवैया अपनाते थे।।
हम उनकी वीरगाथा को क्या कहें…जिनसे मोर्चा लिया वह भी उनके पराक्रम से घबराते थे।
अब हम सब उन्हें नमन करते हैं…क्योंकि आजादी का बिगुल फूंकने वाले मंगल पांडे बार-बार जन्म नहीं पाते हैं।।
-शुभम त्रिवेदी
भावार्थ- मंगल पांडे ने अन्याय का विरोध कर क्रांतिकारी रवैया अपनाया। उनकी वीरथा की गाथा और देश की आजादी में उनका योगदान देखकर हम उन्हें नमन करते हैं क्योंकि मंगल पांडे जैसे स्वतंत्रता सेनानी बार-बार जन्म नहीं लेते हैं।
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आशा है कि इस ब्लॉग के माध्यम से आप मंगल पांडे पर कविता पढ़ पाए होंगे, मंगल पांडे पर कविता आपको आज़ादी की लड़ाई में अपना सब कुछ लुटाने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी मंगल पांडे के बारे में भी बताने का प्रयास करेगी। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें।