भारत त्यौहारों का देश है। यहाँ कई त्यौहार मनाए जाते हैं, जिनमें से सबसे प्राचीन और लोकप्रिय त्यौहार है होली। होली का त्यौहार दुनिया भर में 50 से अधिक देशों में बड़े ही धूम-धाम से मनाया जाता है। लेकिन कान्हा की नगरी मथुरा, वृंदावन और बरसाना में होली के पर्व का अलग ही उत्साह देखने को मिलता है। यहाँ होली के त्यौहार में महिलाएं, परुषों पर लाठी बरसाती हैं और इसका सभी पूरा आनंद भी उठाते हैं। हम बात कर रहे हैं बरसाने की लठमार होली के बारे में। यह होली उत्तर प्रदेश राज्य के मथुरा के निकटवर्ती शहरों बरसाना और नंदगाँव में वास्तविक होली से कुछ दिन पहले खेली जाती है। बरसाना की लट्ठमार होली दुनियाभर में काफी प्रसिद्ध है जिसे देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं। लट्ठमार होली के बारे में अधिक जानने के लिए यह लेख अंत तक पढ़ें। इस लेख में हम आपको लट्ठमार होली (Lathmar Holi) के इतिहास, महत्व एवं अन्य रोचक तथ्य के बारे में बताएंगे और इसके साथ यह भी बताएंगे कि कैसे हुई इस अनोखी परंपरा की शुरुआत।
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लट्ठमार होली के बारे में
जैसा कि लट्ठमार होली के नाम से ही पता चलता है कि इस नाम का मतलब है ‘लाठी बजाकर होली मनाना’। यह होली भारत के मथुरा जिले के बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है और। पूरे दुनिया में बहुत अपनी भव्यता के लिए प्रसिद्ध लट्ठमार होली को बरसाना और नंदगांव के मुख्य आकर्षण के रूप में देखा जाता है। लट्ठमार होली एक सप्ताह तक चलती है, जहां पुरुष और महिलाएं रंगों, गीतों, नृत्यों और लाठियों में लिप्त हो जाते हैं। लठमार होली में महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं और पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से ढाल लगाकर बचने का प्रयास करते हैं। इस दिन नंदगांव के हुरियारे और बरसाने की हुरियारिनों के बीच लाठी-ढाल का सामजंस्य देखने को मिलता है। कथित तौर पर यह अनोखा और रोमांचक त्योहार, प्रेम और साहस का प्रतीक है। यही यहां की परंपरा है। यह होली केवल आनंद के लिए नहीं, बल्कि यह नारी सशक्तीकरण का प्रतीक भी माना जाता है। ऐसे में आईये जानते हैं Lathmar Holi का इतिहास।
Lathmar Holi का इतिहास
लट्ठमार होली की शुरुआत के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लट्ठमार होली का सीधा संबंध भगवान कृष्ण और राधारानी के प्रेम से है। जी हाँ यह खेलने की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं के साथ राधा रानी के गांव बरसाना जाकर राधा रानी और गोपियों पर रंग लगाया करते थे। वहीं श्री कृष्ण और उनके सखाओं की इस शरारतों से परेशान होकर राधा रानी उन्हें लाठियों से भगाने लगती थी। ऐसे में कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई और बरसाना और नंदगाव में आज भी परंपरा उसी उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।
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लट्ठमार होली का महत्व
दुनियाभर में प्रसिद्ध लट्ठमार होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग बरसाना पहुंचते हैं। इस उत्सव का एक विशेष महत्व भी है जो कि इस प्रकार से है :
- राधा-कृष्ण का प्रेम: लट्ठमार होली राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम कहानी का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार यह दर्शाता है कि कैसे भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधा रानी और उनकी सहेलियों पर रंग लगाते थे और जवाब में राधा और उनकी सहेलियां कृष्ण और उनके सखाओं को भगाने के लिए लाठियों का सहारा लेती थी।
- स्त्री शक्ति: यह उत्सव स्त्री शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। यह त्यौहार यह दर्शाता है कि स्त्रियां पुरुषों से कमजोर नहीं हैं। वह अपनी रक्षा खुद कर सकती हैं।
- भाईचारा: लट्ठमार होली लोगों को एकजुट करने और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- सांस्कृतिक महत्व: लट्ठमार होली का त्यौहार हमारी संस्कृति को जीवित रखने में भी मदद करता है।
- आर्थिक महत्व: लट्ठमार होली स्थानीय पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। यह त्यौहार देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं।
लट्ठमार होली कहाँ मनाई जाती है?
मुख्य रूप से लट्ठमार होली भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा ज़िले के दो गांवों, बरसाना और नंदगांव में मनाई जाती है। आपको बता दें कि बरसाना, जिसे राधा रानी का जन्मस्थान माना जाता है और नंदगांव को भगवान कृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है। ऐसे में लट्ठमार होली को राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है। आज विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली केवल बरसाना और नंदगांव में ही नहीं बल्कि भारत में अन्य जगहों पर मनाई जाती है। बता दें कि रंगों और उमंग से भरे इस त्यौहार को वृंदावन, पानीपत और जयपुर में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।
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लट्ठमार होली क्यों मनाई जाती है?
लट्ठमार होली को भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं का एक हिस्सा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि होली के दौरान नंदगांव के कृष्ण ने बरसाने की राधा के चेहरे पर मजाक में रंग लगाया। जिसे देख गोपियों ने कृष्ण और उनके सखाओं को लाठियों के सहारे से बाहर निकाल दिया। वहीं उनकी मार से बचने के लिए कृष्ण और उनके मित्र ढालों का उपयोग किया करते थे। यही धीरे-धीरे एक परंपरा बन गई और लट्ठमार होली बड़े धूम धाम से मनाई जानें लगी। होली के दौरान हर साल नंदगांव के पुरुष बरसाना शहर में आते हैं और वहां की महिलाएं उनपर लाठियों और रंगों की बौछार करती है।
लट्ठमार होली कैसे मनाई जाती है?
बरसाना की लट्ठमार होली विश्वभर प्रसिद्ध है, क्योंकि इसे खेले जाने का अंदाज निराला है। इस होली में महिलाओं को हुरियारिन और पुरुषों को हुरियारे के नाम से जाना जाता है। इस दौरान हुरियारिन लट्ठ लेकर हुरियारों को मजाकिया अंदाज में पीटती हैं। वहीं हुरियारे, हुरियारिनों की मार से बचने के लिए सिर पर ढाल रखर खुद को बचाते हैं। इस दौरान गीत-संगीत के साथ कई अन्य प्रतियोगिताएं का भी आयोजन किया जाता है।
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लट्ठमार होली के बारे में खास बातें
लट्ठमार होली के बारे में खास बातें इस प्रकार से हैं:
- लट्ठमार होली का इतिहास भगवान कृष्ण और राधा रानी से जुड़ा हुआ है।
- मुख्य रूप से लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव में मनाई जाती है।
- यह एक हर्षोल्लासपूर्ण और मनोरंजक त्यौहार है जो देश विदेश के हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है।
- यह उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है।
- ऐसा भी कहा जाता है कि लट्ठमार होली के दौरान पुरुष महिलाओं का रूप धारण करते हैं।
FAQs
लट्ठमार होली खेलते समय निम्न चीजों का ध्यान रखें :
1. लाठियों से खेलते समय सावधानी बरतें।
2. सुरक्षित रंगों का उपयोग करें।
3. आंखों और त्वचा को रंगों से बचाएं।
4. नशा न करें।
5. लाठियों से खेलते समय सावधानी बरतें।
लट्ठमार होली एक सप्ताह तक चलती है, जहां पुरुष और महिलाएं रंगों, गीतों, नृत्यों और निश्चित रूप से लाठियों में लिप्त हो जाते हैं।
भारत के अलावा पाकिस्तान, बंगलादेश, श्री लंका और मरिशस में होली भारतीय परंपरा के अनुरूप मनाई जाती है।
लठमार होली नंदगांव और बरसाना में प्रसिद्ध है।
लठमार होली राजस्थान भरतपुर और करौली में खेली जाती है।
लट्ठमार होली नाम का मतलब है ‘लाठी बजाकर होली मनाना’।
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