Lathmar Holi Kab Hai 2025: कब मनाई जाएगी बरसाने में लट्ठमार होली?

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Lathmar Holi

Lathmar Holi Kab Hai 2025: भारत और दुनियाभर में प्रतिवर्ष होली का त्योहार बड़ी धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के मथुरा, वृंदावन, बरसाना और नंदगांव में यह त्योहार कई दिनों तक चलता है। इस होली को देखने के लिए न सिर्फ देश बल्कि विदेशों के लोग भी आते हैं। वहीं इनमें ब्रज की लट्ठमार होली सबसे विशेष होती है। बताना चाहेंगे इस वर्ष 8 मार्च, 2025 को शनिवार के दिन लट्ठमार होली मनाई जाएगी। चलिए अब आपको ब्रज की लट्ठमार होली (Lathmar Holi 2025) के बारे में बताते हैं।

होली कब है 2025? 

भारत में होली का त्योहार हर वर्ष भव्यता के साथ मनाया जाता है। हर साल फाल्गुन महीने के शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा की तिथि पर शाम के वक्त होलिका दहन होता है, वहीं इसके अगले दिन रंगोत्सव मनाया जाता है। इस साल 13 मार्च को होलिका दहन (Holika Dahan 2025) और 14 मार्च को होली मनाई जाएगी।

लट्ठमार होली के बारे में

जैसा कि लट्ठमार होली के नाम से ही पता चलता है कि इस नाम का मतलब है ‘लाठी बजाकर होली मनाना’। यह होली भारत के मथुरा जिले के बरसाना और नंदगांव में खेली जाती है। लट्ठमार होली एक सप्ताह तक चलती है। इस दौरान विशेष ब्रज गीत गाए जाते हैं और वातावरण में रंगों की छटा छा जाती है। लठमार होली में महिलाएं पुरुषों को डंडे से मारती हैं और पुरुष स्त्रियों के इस लठ के वार से ढाल लगाकर बचने का प्रयास करते हैं। इस दिन नंदगांव के हुरियारे और बरसाने की हुरियारिनों के बीच लाठी-ढाल का सामजंस्य देखने को मिलता है।

Lathmar Holi का इतिहास

लट्ठमार होली की शुरुआत के पीछे कई पौराणिक कथाएं प्रचलित हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार लट्ठमार होली का सीधा संबंध भगवान कृष्ण और राधारानी के प्रेम से है। जी हाँ लट्ठमार होली खेलने की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा रानी के समय से चली आ रही है। ऐसा माना जाता है कि नंदगांव के कन्हैया अपने सखाओं के साथ राधा रानी के गांव बरसाना जाकर राधा रानी और गोपियों पर रंग लगाया करते थे। वहीं श्री कृष्ण और उनके सखाओं की इस शरारतों से परेशान होकर राधा रानी उन्हें लाठियों से भगाने लगती थी। ऐसे में कान्हा और उनके सखा खुद को बचाने के लिए ढाल का इस्तेमाल करते हैं। यहीं से इस परंपरा की शुरुआत हुई और बरसाना और नंदगाव में आज भी लट्ठमार होली का पर्व उसी उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है।

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लट्ठमार होली का महत्व

दुनियाभर में प्रसिद्ध लट्ठमार होली को देखने के लिए दूर-दूर से लोग बरसाना पहुंचते हैं। इस उत्सव का एक विशेष महत्व भी है जो कि इस प्रकार से है : 

  1. राधा-कृष्ण का प्रेम: लट्ठमार होली राधा-कृष्ण के पवित्र प्रेम कहानी का प्रतीक माना जाता है। यह त्यौहार यह दर्शाता है कि कैसे भगवान कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधा रानी और उनकी सहेलियों पर रंग लगाते थे और जवाब में राधा और उनकी सहेलियां कृष्ण और उनके सखाओं को भगाने के लिए लाठियों का सहारा लेती थी। 
  2. स्त्री शक्ति: यह उत्सव स्त्री शक्ति का प्रतीक भी माना जाता है। यह त्यौहार यह दर्शाता है कि स्त्रियां पुरुषों से कमजोर नहीं हैं। वह अपनी रक्षा खुद कर सकती हैं।
  3. भाईचारा: लट्ठमार होली लोगों को एकजुट करने और भाईचारे की भावना को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। 
  4. सांस्कृतिक महत्व: लट्ठमार होली का त्यौहार हमारी संस्कृति को जीवित रखने में भी मदद करता है।
  5. आर्थिक महत्व: लट्ठमार होली स्थानीय पर्यटन और अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देता है। यह त्यौहार देश विदेश से बड़ी संख्या में पर्यटकों को आकर्षित करता है, जिससे स्थानीय लोगों के लिए रोजगार के अवसर पैदा होते हैं। 

लट्ठमार होली कहाँ मनाई जाती है?

लट्ठमार होली

मुख्य रूप से लट्ठमार होली भारत के उत्तर प्रदेश राज्य में मथुरा ज़िले के दो गांवों, बरसाना और नंदगांव में मनाई जाती है। आपको बता दें कि बरसाना, जिसे राधा रानी का जन्मस्थान माना जाता है और नंदगांव को भगवान कृष्ण का जन्मस्थान माना जाता है। ऐसे में लट्ठमार होली को राधा कृष्ण के पवित्र प्रेम का प्रतीक माना जाता है। आज विश्वप्रसिद्ध लट्ठमार होली केवल  बरसाना और नंदगांव में ही नहीं बल्कि भारत में अन्य जगहों पर भी मनाई जाती है। बता दें कि रंगों और उमंग से भरे इस त्यौहार को वृंदावन, पानीपत और जयपुर में भी बड़े धूम धाम से मनाया जाता है।  

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लट्ठमार होली क्यों मनाई जाती है?

लट्ठमार होली को भगवान कृष्ण के काल में उनके द्वारा की जाने वाली लीलाओं का एक हिस्‍सा माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि होली के दौरान नंदगांव के कृष्ण ने बरसाने की राधा के चेहरे पर मजाक में रंग लगाया। जिसे देख गोपियों ने कृष्ण और उनके सखाओं को लाठियों के सहारे से बाहर निकाल दिया। वहीं उनकी मार से बचने के लिए कृष्ण और उनके मित्र ढालों का उपयोग किया करते थे। यही धीरे-धीरे एक परंपरा बन गई और लट्ठमार होली बड़े धूम धाम से मनाई जानें लगी। होली के दौरान हर साल नंदगांव के पुरुष बरसाना शहर में आते हैं और वहां की महिलाएं उनपर लाठियों और रंगों की बौछार करती है। 

लट्ठमार होली कैसे मनाई जाती है?

बरसाना की लट्ठमार होली विश्वभर प्रसिद्ध है, क्योंकि इसे खेले जाने का अंदाज निराला है। इस होली में महिलाओं को हुरियारिन और पुरुषों को हुरियारे के नाम से जाना जाता है। इस दौरान हुरियारिन लट्ठ लेकर हुरियारों को मजाकिया अंदाज में पीटती हैं। वहीं हुरियारे, हुरियारिनों की मार से बचने के लिए सिर पर ढाल रखर खुद को बचाते हैं। इस दौरान गीत-संगीत के साथ कई अन्य प्रतियोगिताएं का भी आयोजन किया जाता है।

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लट्ठमार होली के बारे में खास बातें

लट्ठमार होली के बारे में खास बातें इस प्रकार से हैं:

Lathmar Holi
  • लट्ठमार होली का इतिहास भगवान कृष्ण और राधा रानी से जुड़ा हुआ है। 
  • मुख्य रूप से लट्ठमार होली बरसाना और नंदगांव में मनाई जाती है।
  • यह एक हर्षोल्लासपूर्ण और मनोरंजक त्यौहार है जो देश विदेश के हजारों पर्यटकों को आकर्षित करता है।
  • यह उत्सव एक सप्ताह से अधिक समय तक चलता है। 
  • ऐसा भी कहा जाता है कि लट्ठमार होली के दौरान पुरुष महिलाओं का रूप धारण करते हैं। 

FAQs

Lathmar Holi खेलते समय क्या सावधानियां बरतनी चाहिए?

लट्ठमार होली खेलते समय निम्न चीजों का ध्यान रखें : 
1. लाठियों से खेलते समय सावधानी बरतें।
2. सुरक्षित रंगों का उपयोग करें।
3. आंखों और त्वचा को रंगों से बचाएं।
4. नशा न करें।

लट्ठमार होली कैसे खेलते हैं?

इस उत्सव में नंदगांव के पुरुष (हुरियारे) और बरसाने की महिलाएं (हुरियारिन) भाग लेती हैं। पुरुष ढाल लेकर आते हैं, जबकि महिलाएं लाठियों से उन पर प्रहार करती हैं।

होली कितने देशों में मनाई जाती है?

भारत के अलावा पाकिस्तान, बांग्लादेश, श्रीलंका और मॉरीशस में होली भारतीय परंपरा के अनुरूप मनाई जाती है।

लट्ठमार होली कहां की प्रसिद्ध है?

लट्ठमार होली नंदगांव और बरसाना में प्रसिद्ध है।

लट्ठमार होली राजस्थान में कहां खेली जाती है?

लट्ठमार होली राजस्थान भरतपुर और करौली में खेली जाती है।

यूपी की होली को क्या कहते हैं लठमार होली?

लट्ठमार होली नाम का मतलब है ‘लाठी बजाकर होली मनाना’।

होली कब मनाई जाती है?

होली हर साल फाल्गुन माह की पूर्णिमा को मनाई जाती है, जो मार्च के आसपास होती है।

होली कब है 2025?

इस साल 13 मार्च, 2025 को होलिका दहन किया जाएगा और 14 मार्च, 2025 को होली मनाई जाएगी।

होली से जुड़ी विशेष परंपराएँ क्या हैं?

होली के दिन विशेष रूप से एक-दूसरे को रंग लगाना, गीत गाना और खुशी के साथ त्योहार मनाना एक महत्वपूर्ण परंपरा है। इसके अलावा, ‘लट्ठमार होली’, ‘लड्डूमार होली’ और ‘फाग उत्सव’ जैसे स्थानीय रीति-रिवाज भी प्रचलित हैं।

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आशा है कि आपको इस आर्टिकल में लट्ठमार होली (Lathmar Holi Kab Hai) से संबंधित सभी आवश्यक जानकारी मिली गई होगी। ऐसे ही होली और ट्रेंडिंग इवेंट्स से जुड़े अन्य ब्लॉग्स पढ़ने के लिए Leverage Edu के साथ बने रहें। 

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