सीख देने वाली कविता युवाओं में सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करती है, सीख देने वाली कविता ही युवाओं के सपनों को नए पंख देने का काम करती है। युवाओं को उनकी शक्ति से अवगत कराने में सीख देने वाली कविता एक मुख्य भूमिका निभाती हैं। सीख देने वाली कविता समाज को उन्नति का मार्ग दिखाती हैं। यह कहना अनुचित नहीं होगा कि कविताएं ही समाज को सशक्त और युवाओं को संगठित करने में भी एक मुख्य भूमिका निभाएगा। विद्यार्थी जीवन में हर विद्यार्थी को सीख देने वाली कविता अवश्य पढ़नी चाहिए, ताकि वह अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए स्वयं को प्रेरित कर सकें। सीख देने वाली कविता पढ़ने के लिए हमारे इस ब्लॉग को अंत तक अवश्य पढ़ें।
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सीख देने वाली कविता
सीख देने वाली कविता पढ़कर युवाओं की इच्छाशक्ति को दृढ़ करने का प्रयास करती हैं। सीख देने वाली कविता ही युवाओं के कौशल का कुशल नेतृत्व करेगी, जिन्हें पढ़कर युवाओं की चेतना जागृत होगी। सीख देने वाली कविता पढ़ने से पहले आपको सीख देने वाली कविता तथा उनके कवियों के नाम की सूची पर भी प्रकाश डालना चाहिए, जो कुछ इस प्रकार है;
कविता का नाम | कवि/कवियत्री का नाम |
नूतन वर्षाभिनंदन | फणीश्वरनाथ रेणु |
मैं हूँ | खुशवंत सिंह |
जो बीत गई | हरिवंश राय बच्चन |
जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ | सूर्यकांत त्रिपाठी निराला |
कदम मिलाकर चलना होगा | अटल बिहारी वाजपेयी |
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नूतन वर्षाभिनंदन
सीख देने वाली कविता, साहस के साथ आपका परिचय क़वाएगी। इस श्रृंखला में फणीश्वरनाथ रेणु की कविता “नूतन वर्षाभिनंदन” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
नूतन का अभिनंदन हो प्रेम-पुलकमय जन-जन हो! नव-स्फूर्ति भर दे नव-चेतन टूट पड़ें जड़ता के बंधन; शुद्ध, स्वतंत्र वायुमंडल में निर्मल तन, निर्भय मन हो! प्रेम-पुलकमय जन-जन हो, नूतन का अभिनंदन हो! प्रति अंतर हो पुलकित-हुलसित प्रेम-दिए जल उठें सुवासित जीवन का क्षण-क्षण हो ज्योतित, शिवता का आराधन हो! प्रेम-पुलकमय प्रति जन हो, नूतन का अभिनंदन हो! -फणीश्वरनाथ रेणु
भावार्थ: इस कविता के माध्यम से कवि ने आशावाद का सूर्य उदय करने का प्रयास किया है। यह कविता एक आशावादी कविता है जिसने निराशाओं के तमस को जड़ से मिटाने का काम किया है। इस कविता की पृष्ठभूमि में भारत-चीन युद्ध के बाद का मुश्किल दौर है, जिसमें कवि की कविता नव वर्ष के अवसर पर देशवासियों को प्रेरणा देने का काम करती है। इस कविता में कवि ने नव वर्ष को “नवजीवन” और “नवसृष्टि” के रूप में चित्रित किया गया है। “नूतन वर्षाभिनंदन” एक प्रेरणादायक कविता है जो हमें अपनी कमियों को स्वीकार करने, चुनौतियों का सामना करने के साथ-साथ, एक बेहतर भविष्य बनाने के लिए प्रेरित करती है।
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मैं हूँ
सीख देने वाली कविता आप में साहस का विस्तार करेगी। इस श्रृंखला में खुशवंत सिंह की एक कविता “मैं हूँ” है, जो कुछ इस प्रकार है:
मैं हूँ, जो हूं, मैं हूं, जो हूं, मेरी पहचान, मेरा नाम नहीं है। मेरी पहचान, मेरा चेहरा नहीं है, मेरी पहचान, मेरी जाति नहीं है। मेरी पहचान, मेरा धर्म नहीं है, मेरी पहचान, मेरा देश नहीं है। मेरी पहचान, मेरा प्रेम है, मेरी पहचान, मेरा करुणा है। मेरी पहचान, मेरा कर्तव्य है, मेरी पहचान, मेरा मानवता है। -खुशवंत सिंह
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि बड़ी ही खूबसूरती से कर्तव्यों को अपनी पहचान के रूप में स्वीकार करते हैं। यह एक ऐसी कविता है जो किसी ऐसे व्यक्ति के अंतर्मन के शोर को दर्शाती है जो पहचान के नाम पर कभी खुद से तो कभी समाज से संग्राम करता है। इस कविता की सरल और स्पष्ट भाषा कर्मों को महान बताती है और यह कविता मानवता को सर्वोपरि रखकर हमें हर मानव का सम्मान करना सिखाती है।
जो बीत गई
सीख देने वाली कविता, साहित्य का परिचय देते हुए आप में वीरता के भाव को पैदा करेगी। इस सूची में भारत के एक लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की कविता “जो बीत गई” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
जो बीत गई सो बात गई! जीवन में एक सितारा था माना, वह बेहद प्यारा था, वह डूब गया तो डूब गया; अंबर के आनन को देखो, कितने इसके तारे टूटे, कितने इसके प्यारे छूटे, जो छूट गए फिर कहाँ मिले; पर बोलो टूटे तारों पर कब अंबर शोक मनाता है! जो बीत गई सो बात गई! जीवन में वह था एक कुसुम, थे उस पर नित्य निछावर तुम, वह सूख गया तो सूख गया; मधुवन की छाती को देखो, सूखीं कितनी इसकी कलियाँ, मुरझाईं कितनी वल्लरियाँ जो मुरझाईं फिर कहाँ खिलीं; पर बोलो सूखे फूलों पर कब मधुवन शोर मचाता है; जो बीत गई सो बात गई! जीवन में मधु का प्याला था, तुमने तन-मन दे डाला था, वह टूट गया तो टूट गया; मदिरालय का आँगन देखो, कितने प्याले हिल जाते हैं, गिर मिट्टी में मिल जाते हैं, जो गिरते हैं कब उठते हैं; पर बोलो टूटे प्यालों पर कब मदिरालय पछताता है! जो बीत गई सो बात गई! मृदु मिट्टी के हैं बने हुए, मधुघट फूटा ही करते हैं, लघु जीवन लेकर आए हैं, प्याले टूटा ही करते हैं, फिर भी मदिरालय के अंदर मधु के घट हैं, मधुप्याले हैं, जो मादकता के मारे हैं वे मधु लूटा ही करते हैं; वह कच्चा पीने वाला है जिसकी ममता घट-प्यालों पर, जो सच्चे मधु से जला हुआ कब रोता है, चिल्लाता है! जो बीत गई सो बात गई! -हरिवंश राय बच्चन
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि युवाओं को यह समझाना चाहते हैं कि हमें जीवन में बीती बातों पर पछतावा नहीं करना चाहिए। कवि का मानना है कि बीती बातें बदल नहीं सकतीं, इसलिए हमें उन पर ध्यान देने के बजाय भविष्य पर ध्यान देना चाहिए। कवि हमें सिखाते हैं कि हमें जीवन में आगे बढ़ने के लिए बीती बातों को भूल जाना चाहिए। यह कविता हर उम्र के लोगों के लिए प्रेरणादायक कविता है।
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जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ
सीख देने वाली कविता, युवाओं में नवीन सकारात्मक ऊर्जाओं का संचार करने का कार्य करेगी। इस श्रृंखला में सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की एक कविता “जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
जल्द-जल्द पैर बढ़ाओ, आओ, आओ। आज अमीरों की हवेली किसानों की होगी पाठशाला, धोबी, पासी, चमार, तेली खोलेंगे अँधेरे का ताला, एक पाठ पढ़ेंगे, टाट बिछाओ। यहाँ जहाँ सेठ जी बैठे थे बनिए की आँख दिखाते हुए, उनके ऐंठाए ऐंठे थे धोखे पर धोखा खाते हुए, बैंक किसानों का खुलाओ। सारी संपत्ति देश की हो, सारी आपत्ति देश की बने, जनता जातीय वेश की हो, वाद से विवाद यह ठने, काँटा काँटे से कढ़ाओ। -सूर्यकांत त्रिपाठी निराला
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि जीवन के संघर्ष और मनुष्य के अदम्य साहस को दर्शाने का सफल प्रयास करते हैं। कविता के शब्दों और भावनाओं के साथ कवि मनुष्य को प्रेरित करते हैं कि वे जीवन के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहें। यह कविता एक प्रेरणादायक कविता है जो मनुष्य को जीवन में आगे बढ़ने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करती है। कविता के माध्यम से कवि हमें सिखाते हैं कि हमें जीवन में कर्मठता, साहस, आत्मविश्वास, धैर्य और आशावाद का ज्ञान देते हैं।
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कदम मिलाकर चलना होगा
सीख देने वाली कविता, युवाओं को संघर्ष की स्थिति में प्रेरित करने का काम करती है। इस श्रृंखला में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी जी की एक कविता “कदम मिलाकर चलना होगा” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:
बाधाएँ आती हैं आएँ घिरें प्रलय की घोर घटाएँ, पावों के नीचे अंगारे, सिर पर बरसें यदि ज्वालाएँ, निज हाथों में हँसते-हँसते, आग लगाकर जलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। हास्य-रूदन में, तूफ़ानों में, अगर असंख्यक बलिदानों में, उद्यानों में, वीरानों में, अपमानों में, सम्मानों में, उन्नत मस्तक, उभरा सीना, पीड़ाओं में पलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। उजियारे में, अंधकार में, कल कहार में, बीच धार में, घोर घृणा में, पूत प्यार में, क्षणिक जीत में, दीर्घ हार में, जीवन के शत-शत आकर्षक, अरमानों को ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। सम्मुख फैला अगर ध्येय पथ, प्रगति चिरंतन कैसा इति अब, सुस्मित हर्षित कैसा श्रम श्लथ, असफल, सफल समान मनोरथ, सब कुछ देकर कुछ न मांगते, पावस बनकर ढलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। कुछ काँटों से सज्जित जीवन, प्रखर प्यार से वंचित यौवन, नीरवता से मुखरित मधुबन, परहित अर्पित अपना तन-मन, जीवन को शत-शत आहुति में, जलना होगा, गलना होगा। क़दम मिलाकर चलना होगा। -अटल बिहारी वाजपेयी
भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि सामूहिकता और एकता के महत्व पर बल देते हैं। कविता में कवि कहते हैं कि जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए हमें एकजुट होकर काम करना होगा। कवि इस कविता के माध्यम से नेतृत्व की सही परिभाषा को समाज के समक्ष रखते हैं। यह कविता हमें सिखाती है कि हमें अपने व्यक्तिगत स्वार्थों को त्यागकर सामूहिक प्रयास करना चाहिए, साथ ही इस कविता से हम राष्ट्रहित के लिए मिलकर काम करने का लक्ष्य प्राप्त करते हैं।
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आशा है कि आपको इस ब्लॉग में आपको सीख देने वाली कविता पढ़ने का अवसर मिला होगा, जिसमें आपको लोकप्रिय एवं सुप्रसिद्ध कवियों की कविताएं पढ़ने का अवसर मिला होगा। यह कविताएं आपको सदा ही प्रेरित करेंगी, आशा है कि यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा, इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।