पढ़िए अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं, जो आपका मार्गदर्शन करेंगी!

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अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आज के समय में भी उतनी ही प्रासंगिक है, जितना कि यह कभी अपनी रचनाओं के समय में रही होंगी। भारत के साहित्य के स्वर्णिम इतिहास पर प्रकाश डाला जाए तो आप जानेंगे कि भारत की पुण्यभूमि पर हर सदी में ऐसे कवि-कवियत्रियों ने जन्म लिया है, जिन्होंने समाज की चेतना को जगाए रखने के सफल प्रयास किए हैं। ऐसे ही कवि-कवियत्रियों की सूचि में उपस्थित अग्रिम पंक्ति के एक कवि “अयोध्या सिंह उपाध्याय” भी थे।

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं वर्तमान में भी युवाओं का मार्गदर्शन करने के साथ-साथ, उन्हें प्रेरित करने का काम करती हैं। अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं समाज का, समाज में उपस्थित पीड़ाओं से परिचय करवाती हैं। विद्यार्थी जीवन में विद्यार्थियों को एक न एक बार अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताओं को अवश्य पढ़ना चाहिए। इस ब्लॉग में आप अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं पढ़ पाएंगे, जो आपका मार्गदर्शन करके आपके लिए प्रेरणा का एक स्त्रोत बनेंगी।

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अयोध्या सिंह उपाध्याय का संक्षिप्त जीवन परिचय

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं पढ़ने सेे पहले आपको अयोध्या सिंह उपाध्याय का जीवन परिचय पढ़ लेना चाहिए। भारतीय साहित्य की अप्रतीम अनमोल मणियों में से एक बहुमूल्य मणि अयोध्या सिंह उपाध्याय भी हैं, जिनकी लेखनी आज के समय में भी प्रासंगिक हैं और लाखों युवाओं को प्रेरित कर रही हैं। अयोध्या सिंह उपाध्याय का उपनाम “हरिऔध” है।

15 अप्रैल 1865 को अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” का जन्म उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ में हुआ था। अयोध्या सिंह उपाध्याय का विद्यार्थी जीवन कुछ इस प्रकार था कि उनकी प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा घर पर ही हुई थी, जिसके बाद उन्होंने उर्दू, संस्कृत, फ़ारसी, बांग्ला और अंग्रेज़ी भाषा और साहित्य का अध्ययन किया था।

अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” के कार्य-जीवन का आरंभ मध्य विद्यालय के प्रधानाध्यापक के रूप में हुआ था, जिसके बाद उन्होंने क़ानूनगो के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद फिर उन्होंने काशी हिंदू विश्वविद्यालय में अवैतनिक प्राध्यापक के रूप में सेवा दी।

अयोध्या सिंह उपाध्याय “हरिऔध” की प्रमुख कृतियाँ “प्रियप्रवास”, “वैदेही वनवास”, “काव्योपवन”, “रसकलश”, “बोलचाल”, “चोखे चौपदे”, “चुभते चौपदे”, “पारिजात”, “कल्पलता”, “मर्मस्पर्श”, “पवित्र पर्व”, “दिव्य दोहावली”, “हरिऔध सतसई” इत्यादि हैं।

अयोध्या सिंह उपाध्याय जी का साहित्य के लिए दिए गए अविस्मरणीय योगदान को देखते हुए, उन्हें दो बार हिंदी साहित्य सम्मेलन के सभापति के रूप में अपनी सेवाएं देने का अवसर दिया गया। ‘प्रिय प्रवास’ के लिए उन्हें मंगला प्रसाद पारितोषिक से सम्मानित किया गया था। अपने समय के एक महान कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय का 76 वर्ष की आयु में 16 मार्च 1947 को निधन हुआ था।

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अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं मानव को मानवता का पाठ पढ़ाने के साथ-साथ, जीवन में सकारात्मकता को स्वीकार करना सिखाएंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं विद्यार्थियों का परिचय साहित्य के सौंदर्य से करवाएंगी, जिसका उद्देश्य समाज की चेतना को जगाए रखने का होगा। अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं कुछ इस प्रकार हैं;

भारत-गगन

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आपको साहित्य से परिचित करवाएंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की प्रसिद्ध रचनाओं में से एक “भारत-गगन” भी है, जो कुछ इस प्रकार है:

अवनति-काली-निशा काल-कवलित होवेगी। 
दिशा-कालिमा-कूट-नीति विदलित होवेगी। 
होगा कांति-विहीन जातिगत-कलह-कलाधर । 
ज्योति जायगी गृह-विवाद-तारक-चय की टर। 

उन्नति बाधक बुरे सलूक-उलूक लुकेंगे। 
भेद जनित अविचार-रजनिचर निकल रुकेंगे। 
लोक-हितकरी शांति-कमलिनी होगी विकसित। 
सब थल होगी रुचिर ज्योति जन समता विलसित। 

बह स्वतंत्रता-वायु करेगी परम प्रमोदित। 
होंगे मधुकर-निकर-नारि-नर-वृंद विनोदित। 
होगा नाना-सुख-समूह-खग-कुल निनाद कल। 
उज्ज्वल होगा जन्म-सिद्ध-अधिकार-धरातल। 

कर लाभ स्व-वांछित बाल-रवि, कर देगा दुख-तम-कदन। 
देशानुराग-नव-राग से, आरंजित भारत-गगन॥

-अयोध्या सिंह उपाध्याय
अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि अयोध्या सिंह उपाध्याय भारत के उज्ज्वल भविष्य की कल्पना करते हैं। कवि अपनी इस कविता के माध्यम से देश में शांति, समृद्धि और समानता स्थापित होने की कामना करते हैं। यह कविता युवाओं के अंतर्मन में मुख्य रूप से राष्ट्रवाद, सामाजिक सुधार, स्वतंत्रता, शिक्षा, प्रकृति के साथ-साथ आशावाद की भी एक पवित्र ज्वाला जलाती है।

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हमारा पतन

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आपको साहित्य से परिचित करवाएंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “हमारा पतन” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

जैसा हमने खोया, न कोई खोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

एक दिन थे हम भी बल विद्या बुधिवाले 
एक दिन थे हम भी धीर वीर गुनवाले 
एक दिन थे हम भी आन निभानेवाले 
एक दिन थे हम भी ममता के मतवाले 
जैसा हम सोए क्या कोई सोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

जब कभी मधुर हम साम गान करते थे 
पत्थर को मोम बना करके धरते थे 
मन पसू और पंखी तक का हरते थे 
निरजीव नसों में भी लोहू भरते थे 
अब हमें देखकर कौन नहीं रोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

जब कभी विजय के लिए हम निकलते थे 
सुन करके रण-हुंकार सब दहलते थे 
बल्लियों कलेजे वीर के उछलते थे 
धरती कँपती थी, नभ तारे टलते थे 
अपनी मरजादा कौन यों डुबौवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

हम भी जहाज़ पर दूर दूर जाते थे 
कितने दीपों का पता लगा लाते थे 
जो आज पासफ़िक ऊपर मँडलाते थे 
तो कल अटलांटिक में हम दिखलाते थे 
अब इन बातों को कहा कौन ढोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

तिल तिल धरती था हमने देखा भाला 
अमरीका में था हमने डेरा डाला 
यूरप में भी था हमने किया उजाला 
अफ़रीका को था अपने ढंग में ढाला 
अब कोई अपना कान भी न टोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

सभ्यता को जगत में हमने फैलाया 
जावा में हिंदूपन का रंग जमाया 
जापान चीन तिब्बत तातार मलाया 
सबने हमसे ही धरम का मरम पाया 
हम सा घर में काँटा न कोई बोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

अब कलह फूट में हमें मजा आता है 
अपनापन हमको काट काट खाता है 
पौरुख उद्यम उतसाह नहीं भाता है 
आलस जम्हाइयों में सब दिन जाता है 
रो रो गालों को कौन यों भिंगोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा 

अब बात बात में जाति चली जाती है 
कँपकँपी समुंदर लखे हमें आती है 
'हरिऔध' समझते ही फटती छाती है 
अपनी उन्नति अब हमें नहीं भाती है 
कोई सपूत कब यह धब्बा धोवेगा 
ऐसा नहिं कोई कहीं गिरा होवेगा

-अयोध्या सिंह उपाध्याय

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि भारत के गौरवशाली इतिहास और संस्कृति को याद करके वर्तमान दयनीय स्थिति के लिए चिंतित हैं। यह कविता भारत के ज्ञान, विज्ञान, कला, और आध्यात्मिकता के क्षेत्र में हुई अनेक उपलब्धियों के बारे में बताने के साथ-साथ, भारत की संस्कृति तथा नैतिकता के ह्रास से होने वाले पतन के बारे में बताती है। इस कविता मे पतन से बचने के लिए कुछ उपाय भी बताए गए है। यह कविता हमें भारत के गौरवशाली इतिहास और शास्वत संस्कृति पर गर्व करना चाहिए।

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दमदार दावे

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आपको प्रेरणा से भर देंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं की श्रेणी में से एक रचना “दमदार दावे” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

जो आँख हमारी ठीक-ठीक खुल जावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे। 

है पास हमारे उन फूलों का दोना। 
है महँक रहा जिससे जग का हर कोना। 
है करतब लोहे का लोहापन खोना। 
हम हैं पारस, हो जिसे परसते सोना। 
जो जोत हमारी अपनी जोत जगावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥ 

हम उस महान जन की संतति हैं न्यारी। 
है बार-बार जिसने बहु जाति उबारी। 
है लहू रगों में उन मुनिजन का जारी॥ 
जिनकी पग-रज है राज से अधिक प्यारी। 
है तेज हमारा अपना तेज बढ़ावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥ 

था हमें एक मुख, पर दसमुख को मारा। 
था सहसबाहु दो बाहों के बल हारा। 
था सहसनयन दबता दो नयनों द्वारा। 
अकले रवि सम दानव समूह संहारा। 
यह जान मन उमग जो उमंग में आवे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥ 

हम हैं सु-धेनु लौं धरा दूहनेवाले। 
हमने समुद्र मथ चौदह रत्न निकाले। 
हमने दृग-तारों से तारे परताले। 
हम हैं कमाल वालों के लाले-पाले। 
जो दुचित हो न चित उचित पंथ को पावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥ 

तो रोम-रोम में राम न रहा समाया। 
जो रहे हमें छलती अछूत की छाया। 
कैसे गंगा-जल जग-पावन कहलाया। 
जो परस पान कर पतित पतित रह पाया। 
आँखों पर का परदा ज्यों प्यार हटावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥ 

तप के बल से हम नभ में रहे बिचरते। 
थे तेजपुंज बन अंधकार हम हरते। 
ठोकरें मारकर चूर मेरु को करते। 
हुन वहाँ बरसता जहाँ पाँव हम धरते। 
जो समझें हैं दमदार हमारे दावे। 
तो किसे ताब है आँख हमें दिखलावे॥

-अयोध्या सिंह उपाध्याय

भावार्थ : अयोध्या सिंह उपाध्याय ने इस कविता को भारतीयों के आत्मसम्मान और गर्व का प्रतीक बताया है। यह कविता भारत के सम्मानित नागरिकों को अथवा मूल रूप से भारतीयों को गौरवशाली इतिहास और संस्कृति का स्मरण कराती है, साथ ही यह कविता भारतीयों को अपनी शक्ति और क्षमता का एहसास दिलाती है। इस कविता के माध्यम से कवि भारतीयों को अपनी आँखें खोलने और अपनी शक्ति को पहचानने का आह्वान करते हैं।

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भारत

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आपको साहित्य के सौंदर्य से परिचित करवाएंगी, साथ ही आपको प्रेरित करेंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की सुप्रसिद्ध रचनाओं में से एक रचना “भारत” भी है, यह कुछ इस प्रकार है:

तेरा रहा नहीं है कब रंग ढंग न्यारा। 
कब था नहीं चमकता भारत तेरा सितारा॥ 
किसने भला नहीं कब जी में जगह तुझे दी। 
किसकी भला रहा है तू आँख का न तारा॥ 

वह ज्ञान जोत सबसे, पहले जगी तुझी में। 
जग जगमगा रहा है, जिसका मिले सहारा॥ 
किस जाति को नहीं है तूने गले लगाया। 
किस देश में बही है तेरी न प्यार धारा॥ 

तू ही बहुत पते की यह बात है बताता। 
सब में रमा हुआ है वह एक राम प्यारा॥ 
कुछ भेद हो भले ही, उनकी रहन सहन में। 
पर एक अस्ल में हैं हिंदू तुरुक नसारा॥ 

उनमें कमाल अपना है जोत ही दिखाती। 
रँग एक हो न रखता चाहे हरेक तारा॥ 
तो क्या हुआ अगर हैं प्याले तरह तरह के। 
जब एक दूध उनमें है भर रहा तरारा॥ 

ऊँची निगाह तेरी लेगी मिला सभी को। 
तेरा विचार देगा कर दूर भेद सारा॥ 
हलचल चहल पहल औ अनबन अमन बनेगी। 
औ फूल जायगा बन जलता हुआ अँगारा॥ 

जो चैन चाँदनी में होंगे महल चमकते। 
सुख-चाँद झोपड़ों में तो जायगा उतारा॥ 
कर हेल मेल हिलमिल सब ही रहें सहेंगे। 
हो जायगा बहुत ही ऊँचा मिलाप पारा॥ 

सब जाति को रँगेगी तेरी मिलाप रंगत। 
तेरा सुधार होगा सब देश को गवारा॥ 
उस काल प्रेम-धारा जग में उमग बहेगी। 
घर-घर घहर उठेगा आनंद का नगारा॥

-अयोध्या सिंह उपाध्याय

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से कवि “भारत” को अपनी माँ के रूप में संबोधित करते हुए, भारत के प्रति प्रेम और भक्ति की भावना से ओतप्रोत है। यह कविता भारत की प्राकृतिक सुंदरता, समृद्ध संस्कृति और वीरतापूर्ण इतिहास का वर्णन करती है। इस कविता में कवि अपनी मातृभूमि भारत के प्रति अपनी श्रद्धा और सम्मान व्यक्त करते हैं। कविता में कवि भारत की वीरतापूर्ण कहानियों को याद करते हुए भारतीयों को अपनी मातृभूमि के लिए बलिदान करने के लिए प्रेरित करते हैं। यह कविता भारत के प्रति प्रेम और भक्ति की भावना को जगाने वाली एक प्रेरणादायक रचना है।

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वर वनिता

अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं आपको प्रेरित करेंगी, साथ ही आपका परिचय साहस से करवाएंगी। अयोध्या सिंह उपाध्याय जी की महान रचनाओं में से एक रचना “वर वनिता” भी है। यह कविता कुछ इस प्रकार है:

वर वनिता है नहीं अति कलित कुंतल वाली। 
भुवन-मोहिनी-काम-कामिनी-कर-प्रतिपाली। 

विधु-वदनी, रसभरी, सरस, सरहोरुह-नयनी। 
अमल अमोल कपोलवती कल कोकिल-बयनी। 

उत्तम कुल की वधू उच्च कुल-संभव-बाला। 
गौरव गरिमावती विविध गुण गण मणिमाला। 

हाव भाव विभ्रम विलास अनुपम पुत्तलिका। 
रुचिर हास परिहास कुसुमकुल विकसित कलिका। 

सुंदर बसना बनी ठनी मधुमयी फबीली। 
भाग भरी औ राग-रंग अनुराग-रँगीली। 

अलंकार-आलोक-समालोकित मुद-मूला। 
नीति-रता संयता बहुविकचता अनुकूला। 

है वह वर वनिता जो रहे, जन्मभूमि-हित में निरत। 
हो जिसका जन-हित जाति-हित, जग-हित परम पुनीत व्रत॥

-अयोध्या सिंह उपाध्याय

भावार्थ : इस कविता के माध्यम से अयोध्या सिंह उपाध्याय ने एक आदर्श पत्नी के गुणों का वर्णन किया है। कविता में कवि के अनुसार, एक वर वनिता केवल सुंदर ही नहीं होती, बल्कि उसके अंदर अनेक गुण होते हैं जो उसे एक आदर्श जीवनसाथी बनाते हैं। यह कविता समाज के समक्ष एक आदर्श पत्नी के गुणों का ऐसा चित्रण करती है, जिसमें सभी महिलाओं को आदर्श पत्नी बनने के लिए प्रेरित किया गया है। इस कविता की सरल और स्पष्ट भाषा ने समाज की चेतना जगाने का कार्य किया है।

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आशा है कि अयोध्या सिंह उपाध्याय की कविताएं पढ़कर आप अपने दृष्टिकोण को नए आयाम पर लेकर जा सकते हैं। इस ब्लॉग के माध्यम से आप अयोध्या सिंह उपाध्याय की सुप्रसिद्ध रचनाओं के साथ-साथ उनके संक्षिप्त जीवन परिचय के बारे में भी जान पाए होंगे। आशा है कि यह ब्लॉग आपको इंट्रस्टिंग और इंफॉर्मेटिव भी लगा होगा। इसी प्रकार की अन्य कविताएं पढ़ने के लिए हमारी वेबसाइट Leverage Edu के साथ बने रहें।

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